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Class 10 Hindi – A Yatindra Mishra Extra Questions

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CBSE Class 10 Hindi Ch – 16 Practice Tests

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CBSE Latest Exam Questions for Class 10 Hindi

यतीन्द्र मिश्र (नौबतखाने में इबादत)

  1. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
    वही पुराना बालाजी का मंदिर जहाँ बिस्मिल्ला खाँ को नौबतखाने रियाज के लिए जाना पड़ता है। मगर एक रास्ता है बालाजी मंदिर तक जाने का। यह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता है। इस रास्ते से अमीरुद्दीन को जाना अच्छा लगता है। इस रास्ते न जाने कितने तरह के बोल-बनाव कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा के मार्फत इयोढ़ी तक पहुँचते रहते हैं। रसूलन और बतूलन जब गाती हैं तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती हैं। अपने ढेरों साक्षात्कारों में बिस्मिल्ला खाँ साहब ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरम्भिक दिनों में संगीत के प्रति आसक्ति इन्हीं गायिका बहिनों को सुनकर मिली है। एक प्रकार से उनकी अबोध उम्र में अनुभव की स्लेट पर संगीत प्रेरणा की वर्णमाला रसूलनबाई और बतूलनबाई ने उकेरी है।

    1. बिस्मिल्ला खाँ का असली नाम क्या था ?
    2. उनका बचपन कहाँ गुजरा ? बिस्मिल्ला खाँ का काशी से इतना जुड़ाव क्यों था ?
    3. अमीरुद्दीन का सामान्य परिचय क्या है ?
  2. शिष्या से डरते हुए बिस्मिल्ला खाँ से क्या कहाँ? खाँ साहब ने उसे कैसे समझाया?

  3. बिस्मिल्ला खाँ कचौड़ी को घी में खौलते देख क्या अनुभव करते थे ?

  4. बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक क्यों कहा जाता है ?

  5. बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया? आप इनमें से किन विशेषताओं को अपनाना चाहेंगे ? कारण सहित किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए।

  6. डुमराँव और शहनाई से संबंध था-नौबतखाने में इबादत पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

यतीन्द्र मिश्र (नौबतखाने में इबादत)

Answer

    1. बिस्मिल्ला खां का असली नाम अमीरुद्दीन था ।
    2. बिस्मिल्ला खाँ का बचपन अपने नाना के घर काशी में गुजरा। बिस्मिल्ला खां का बचपन काशी में गुजरा | उनके पूर्वज काशी में ही रचे -बसे थे | वे बालाजी के मंदिर प्रतिदिन नौबतखाने रियाज के लिए जाते थे, जहाँ रास्ते में रसूलनबाई और बतूलन बाई के गायन ने उन्हें संगीत के प्रति आसक्ति पैदा की, इसलिए उन्हें काशी से इतना अधिक जुड़ाव था ।
    3. बिस्मिल्ला खाँ का ही बचपन का नाम अमीरुद्दीन था । इनका जन्म ‘डुमराँव’ बिहार के एक संगीत प्रेमी परिवार में हुआ था। वे 5-6 वर्ष के बाद अपने नाना के घर काशी आ गए थे। इन्हें शहनाई सम्राट के नाम के जाना जाता है |
  1. शिष्या ने बिस्मिल्ला खाँ को फटी और पैबंद लगी हुई लुंगी पहने हुए देखकर डरते-डरते कहा कि आपकी इतनी प्रतिष्ठा है | अब तो आपको भारत रत्न भी मिल चुका है | आप फटी लुंगी न पहने | अच्छा नहीं लगता, जब भी कोई आता है आप इसी फटी लुंगी में उससे मिलते हैं। यह आप क्या करते हैं। शिष्या के ऐसा कहने पर उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ ने उसे समझाते हुए कहा की ठीक है आगे से नहीं पहनेंगे, किन्तु तुम लोगों की तरह बनाव सिंगार में लगे रहे तो उमर ही बीत जाती और हो चुकी शहनाई, तब क्या खाक रियाज़ हो पाता | लुंगियां तो सिल सकती है पर खुदा फटा सुर न बख्शे क्योंकि सुर यदि फट गया तो फिर सही नहीं हो सकता | यही दुआ वे खुदा से मांगते थे |
  2. मुहर्रम के गमजदा माहौल से अलग कभी सुकून के क्षणों में बिस्मिल्ला खां अपनी जवानी के दिनों को याद करते हैं। वे अपने अब्बाजान और उस्ताद को कम, पक्का महाल की कुलसुम हलवाइन की कचौड़ी वाली दुकान को ज्यादा याद करते हैं क्योंकि कचौड़ी टालते समय खौलते घी में भी उन्हें संगीत का आरोह-अवरोह सुनाई देता था | उसकी छन से उठने वाली आवाज़ भी उन्हें संगीत से युक्त कचौड़ी लगती थी |
  3. शहनाई एक ऐसा वाद्य जिसका प्रयोग मांगलिक-विधि-विधानों के अवसर पर ही होता है | इसी शहनाई बजने की परंपरा में बिस्मिल्ला खाँ अपने सुर के कारण अद्वितीय स्थान रखते हैं। वे संगीत के नायक रहे हैं इसलिए उन्हें शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक कहा गया है।
  4. बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व में ऐसी अनेक विशेषताएँ हैं जिनसे हम प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते | वे इस प्रकार हैं –
    1. धार्मिक उदारता – बिस्मिल्ला खां अपने धर्म के प्रति पूर्ण सजग थे | वे पाँचों वक्त की नमाज़ अदा तो अदा करते ही थे साथ ही काशी विश्वनाथ, बालाजी और गंगा मैया के प्रति भी अपार श्रद्धा और भक्ति रखते थे |
    2. बनावटीपन से दूर – भारतरत्न जैसे सर्वोच्च पुरस्कार के मिलने के बाद भी उनके व्यवहार में किसी तरह का कोई परिवर्तन नहीं आया |
      उनका जीवन हमें सिखाता है कि व्यक्ति को कभी अपनी कला परे अहंकार नहीं करना चाहिए तथा कभी यह नहीं समझना चाहिए कि उसकी कला-साधना का अंत हो गया। उनके जीवन से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें सांप्रदायिकता से दूर रहना चाहिए तथा बड़ी से बड़ी सफलता पाकर भी अभिमान नहीं करना चाहिए।
  5. डुमराँव गाँव की इतिहास में कोई विशेष पहचान नहीं रही है पर फिर भी वह एक विशेष स्थान के रूप में प्रसिद्द है | भारतरत्न पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्द शहनाई वादक बिस्मिल्ला खां का जन्म इसी स्थान पर हुआ था | शहनाई के लिए नरकट की आवश्यकता पड़ती है और यह नरकट इस गाँव में सोन नदी के किनारे विशेष रूप से पाया जाता है। इस तरह शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के पूरक हो गए।
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