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Class 10 Hindi – A Chhaya Mat Chhuna Extra Questions

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CBSE Class 10 Hindi Ch – 7 Practice Questions

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CBSE Important Questions for Class 10 Hindi

छाया मत छूना (गिरिजा कुमार माथुर)

  1. निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
    यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
    जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
    प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
    हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
    जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन
    छायामत छूना
    मन, होगा दु:ख दूना।

    1. ‘छाया’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
    2. ‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है’-इस पंक्ति से कवि किस तथ्य से अवगत करवाना चाहता है?
    3. ‘मृगतृष्णा’ से क्या अभिप्राय है, यहाँ मृगतृष्णा किसे कहा गया है?
  2. तन-सुगंध शेष रही बीत गई यामिनी पंक्ति का आधार समझाइए। (छाया मत छूना)

  3. मनुष्य अतीत में खोए रहने के कारण दुःखी रहता है। आपके विचार में दुःख के और क्या कारण हो सकते हैं?

  4. जीवन में है सुरंग सुधियाँ सुहावनी से कवि का अभिप्राय किन मधुर स्मृतियाँ से है?

  5. ‘छाया मत छूना’ से कवि का क्या अभिप्राय है?

  6. ‘छाया मत छूना’ कविता के आधार पर दुःख के कारण बताइए।

छाया मत छूना (गिरिजा कुमार माथुर)

Answer

    1. ‘छाया’ से कवि का तात्पर्य बीते समय की सुखद स्मृतियों से है जो मानव-मन के किसी कोने में छिपी रहती हैं। वह इन्हें छिपा कर रखता है।
    2. “हर चन्द्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है” पंक्ति के माध्यम से कवि इस तथ्य से अवगत कराना चाहता है, कि हर सुख के पीछे दु:ख भी छिपे रहते हैं और हर खुशी के पश्चात् उदासी भी आती है। यह जीवन सुख-दु:ख के मिश्रित भाव से बना है। कवि कहता है कि मनुष्य का सुखी जीवन हमेशा नहीं रहता, दुख भी मनुष्य के जीवन का अंग है। इनका तो चोली दामन का साथ है। इसी प्रकार प्रत्येक चांदनी रात के बाद एक अंधेरी रात अवश्य आती है। इस पंक्ति से कवि मनुष्य को उसके जीवन की सच्चाई से अवगत कराना चाहता है।
    3. रेगिस्तान में धूप में दूर से चमकती रेत को पानी समझकर मृग (हिरन) उसके पीछे दौड़ता है परन्तु यह उसका भ्रम होता है और वह प्यासा मर जाता है। इसी को ‘मृगतृष्णा’ कहते हैं। इसी प्रकार प्रभुता की लालसा मनुष्य के अन्दर कभी खत्म नहीं होती। इसी प्रभुता को कवि ने ‘मृगतृष्णा’ कहा है।
  1. ‘तन सुगंध शेष रही बीत गई बीत यामिनी’ इस पंक्ति के आधार पर कवि कहना कहना चाहता है कि प्रेयसी के साथ बिताए गई सुखद रात बीत चुकी है अब उसके शरीर की सुगंध शेष है जो आज भी महक रही है अर्थात सुखमय समय तो बीत चुका है किंतु वे स्मृतियां अब भी आनंदित कर कर रही हैं। सुख के दिन बीत जाने के बाद उसकी स्मृति रह जाती है,जो वर्तमान को और दुखद बना बना देती है। अतः हमें विगत स्मृतियों भुलाकर अपने वर्तमान को आनंददायक बनाना चाहिए।
  2. दूसरों के सुख से ईष्र्या करना, स्वार्थी मानसिकता होना भी दुःख के कारण हो सकते हैं। असफलता भी दु:ख का कारण होती है। मनुष्य अतीत में खोए रहने के कारण दुखी रहता है। इस दुख के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-क- विगत स्मृतियों को याद करके दुखी हो जाना।ख- यश,वैभव, मान-सम्मान, धन-दौलत के लिए भटकते रहना।ग- प्रभुता या बड़प्पन की आकांक्षा रखना।घ- दुविधा ग्रस्त रहते हुए जीवन बिताना।ड.- उपलब्धियों की प्राप्ति न होने पर परेशान रहना।
  3. ‘जीवन में सुरंग सुधियाँ सुहावनी’ से कवि का अभिप्राय उन मधुर स्मृतियाँ से है जो याद आने पर हमें पीड़ा देती हैं कवि ऐसी यादों से बचने का प्रयास करने के लिए कह रहा है। ऐसी सुखद यादें प्राय: प्रेम से सम्बन्धित होती हैं जो हमें पीड़ा पहुँचाती हैं इसलिए उन यादों में न खो जाने की सलाह कवि दे रहा है। जीवन में सुरंग सुधिया सुहावनी से कवि का अभिप्राय बहुत सी रंग बिरंगी सुंदर यादों से है | इनसे यादों के अत्यधिक सुखद और मधुर होने का एहसास होता है।
  4. बीती बातों को भूलकर आगे बढ़ना। कवि अतीत की सुखद स्मृतियों को वर्तमान के दुःख का कारण मानता है | अत: वर्तमान में जीने की प्रेरणा देता है। हमें अतीत को नहीं, भविष्य की ओर देखना चाहिए। छाया मत छूना में कवि का अभिप्राय बीते हुए सुखद पलों से है। इन पलों को कवि वर्तमान के दुख का कारण मानता है। हमें इन यादों को भुला कर वर्तमान के यथार्थ का पूजन करना चाहिए।
  5. कवि ने दु:ख के कारण बताए हैं-पुरानी यादें और बड़े सपने। इन्हें जीने से दु:ख बढ़ते हैं। यश, वैभव, मान, सम्पत्ति सब बड़े सपने हैं जो छाया की तरह अवास्तविक एवं काल्पनिक हैं। व्यक्ति को अतीत की यादों और भविष्य के इन सपनों से अलग रहकर जीना चाहिए तभी दु:ख से बच सकता है। कविता में दुख के अनेक कारण बताए हैं-1-पुरानी स्मृतियों को याद करने से वर्तमान का दुख और गहरा हो जाएगा। 2-संपत्ति एवं यश की लालसा में दुख ही प्राप्त होता है। 3-प्रभुत्व प्राप्त करने की आकांक्षा मृगतृष्णा के समान दुखदाई है। 4-दुविधा मनुष्य के साहस को असमंजस में डाल देती है।
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