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CBSE class 9 Hindi A New Syllabus 2018-19
नवीं कक्षा में दाखिल होने वाले विद्यार्थी की भाषा शैली और विचार बोध का ऐसा आधार बन चुका होता है कि उसे उसके दायरे के विस्तार और वैचारिक समृद्धि के लिए जरूरी संसाधन मुहैया कराए जाएँ। माध्यमिक स्तर तक आते-आते विद्यार्थी किशोर हो चुका होता है और उसमें सुनने, बोलने, पढ़ने, लिखने के साथ-साथ आलोचनात्मक दृष्टि विकसित होने लगती है। भाषा के सौंदर्यात्मक पक्ष, कथात्मकता/गीतात्मकता, अखबारी समझ, शब्द की दूसरी शक्तियों के बीच अंतर, राजनैतिक एवं सामाजिक चेतना का विकास, स्वयं की अस्मिता का संदर्भ और आवश्यकता के अनुसार उपयुक्त भाषा प्रयोग, शब्दों के सुचिंतित इस्तेमाल, भाषा की नियमबद्ध प्रकृति आदि से विद्यार्थी परिचित हो जाता है। इतना ही नहीं वह विभिन्न विधाओं और अभिव्यक्ति की अनेक शैलियों से भी वाकिफ होता है।
अब विद्यार्थी की पढ़ाई आस-पड़ोस, राज्य-देश की सीमा को लांघते हुए वैश्विक क्षितिज तक फैल जाती है। इन बच्चों की दुनिया में समाचार, खेल, फिल्म तथा अन्य कलाओं के साथ-साथ पत्र-पत्रिकाएँ और अलगअलग तरह की किताबें भी प्रवेश पा चुकी होती हैं। इस स्तर पर मातृभाषा हिंदी का अध्ययन साहित्यिक, सांस्कृतिक और व्यावहारिक भाषा के रूप में कुछ । इस तरह से हो कि उच्चतर माध्यमिक स्तर पर पहुँचते-पहुँचते यह विद्यार्थियों की पहचान, आत्मविश्वास और विमर्श की भाषा बन सके। प्रयास यह भी होगा कि विद्यार्थी भाषा के लिखित प्रयोग के साथ-साथ सहज और स्वाभाविक मौखिक अभिव्यक्ति में भी सक्षम हो सके।
इस पाठ्यक्रम के अध्ययन से-
- विद्यार्थी अगले स्तरों पर अपनी रूचि और आवश्यकता के अनुरूप हिंदी की पढ़ाई कर सकेंगे। तथा हिंदी में बोलने और लिखने में सक्षम हो सकेंगे।
- अपनी भाषा दक्षता के चलते उच्चतर माध्यमिक स्तर पर विज्ञान, समाज विज्ञान और अन्य पाठ्यक्रमों के साथ सहज संबद्धता (अंतर्संबंध) स्थापित कर सकेंगे।
- दैनिक व्यवहार, आवेदन पत्र लिखने, अलग-अलग किस्म के पत्र लिखने और प्राथमिकी दर्ज। कराने इत्यादि में सक्षम हो सकेंगे।
- उच्चतर माध्यमिक स्तर पर पहुँचकर विभिन्न प्रयुक्तियों की भाषा के द्वारा उनमें वर्तमान अंतर्संबंध को समझ सकेंगे।
- हिंदी भाषा में दक्षता का इस्तेमाल वे अन्य भाषा-संरचनाओं की समझ विकसित करने के लिए कर सकेंगे।
कक्षा 9वीं व 10वीं में मातृभाषा के रूप में हिंदी-शिक्षण के उद्देश्य:
- कक्षा आठवीं तक अर्जित भाषिक कौशलों (सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना) का उत्तरोत्तर विकास।
- सृजनात्मक साहित्य के आलोचनात्मक आस्वाद की क्षमता का विकास।
- स्वतंत्र और मौखिक रूप से अपने विचारों की अभिव्यक्ति का विकास।
- ज्ञान के विभिन्न अनुशासनों के विमर्श की भाषा के रूप में हिंदी की विशिष्ट प्रकृति एवं क्षमता का बोध कराना।
- साहित्य की प्रभावकारी क्षमता का उपयोग करते हुए सभी प्रकार की विविधताओं (राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग एवं भाषा) के प्रति सकारात्मक और संवेदनशील रवैये का विकास।
- जाति, धर्म, लिंग, राष्ट्रीयता, क्षेत्र आदि से संबंधित पूर्वाग्रहों के चलते बनी रूढ़ियों की भाषिक अभिव्यक्तियों के प्रति सजगता।
- विदेशी भाषाओं समेत अन्य भारतीय भाषाओं की संस्कृति की विविधता से परिचय।
- व्यावहारिक और दैनिक जीवन में विविध किस्म की अभिव्यक्तियों की मौखिक व लिखित क्षमता का विकास।
- संचार माध्यमों (प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक) में प्रयुक्त हिंदी की प्रकृति से अवगत कराना और नए-नए तरीके से प्रयोग करने की क्षमता से परिचय।
- सघन विश्लेषण, स्वतंत्र अभिव्यक्ति और तर्क क्षमता का विकास।
- अमूर्तन की पूर्व अर्जित क्षमताओं का उत्तरोत्तर विकास।भाषा में मौजूद हिंसा की संरचनाओं की समझ का विकास।
- मतभेद, विरोध और टकराव की परिस्थितियों में भी भाषा को संवेदनशील और तर्कपूर्ण इस्तेमाल से शांतिपूर्ण संवाद की क्षमता का विकास।
- भाषा की समावेशी और बहुभाषिक प्रकृति के प्रति ऐतिहासिक नजरिए का विकास।
- शारीरिक और अन्य सभी प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहे बच्चों में भाषिक क्षमताओं के विकास की उनकी अपनी विशिष्ट गति और प्रतिभा की पहचान।
शिक्षण युक्तियाँ
माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापक की भूमिका उचित वातावरण के निर्माण में सहायक की होनी चाहिए। भाषा और साहित्य की पढ़ाई में इस बात पर ध्यान देने की जरूरत होगी कि-
- विद्यार्थी द्वारा की जा रही गलतियों को भाषा के विकास के अनिवार्य चरण के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए जिससे विद्यार्थी अबाध रूप से बिना झिझक के लिखित और मौखिक अभिव्यक्ति करने में उत्साह का अनुभव करें। विद्यार्थियों पर शुद्धि का ऐसा दबाव नहीं होना चाहिए कि वे तनावग्रस्त माहौल में पड़ जाएँ। उन्हें भाषा के सहज, कारगर और रचनात्मक रूपों से इस तरह परिचित कराना उचित है कि वे स्वयं सहजरूप से भाषा का सृजन कर सकें।
- गलत से सही दिशा की ओर पहुँचने का प्रयास हो। विद्यार्थी स्वतंत्र और अबाध रूप से लिखित और मौखिक अभिव्यक्ति करे। अगर कहीं भूल होती है तो अध्यापक को अपनी अध्यापन शैली में परिवर्तन की आवश्यकता होगी।
- ऐसे शिक्षण-बिंदुओं की पहचान की जाए जिससे कक्षा में विद्यार्थी निरंतर सक्रिय भागीदारी करें और अध्यापक भी इस प्रकिया में उनका साथी बने।
- हर भाषा का अपना एक नियम और व्याकरण होता है। भाषा की इस प्रकृति की पहचान कराने में परिवेशगत और पाठगत संदर्भो का ही प्रयोग करना चाहिए। यह पूरी प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए कि विद्यार्थी स्वयं को शोधकर्ता समझे तथा अध्यापक इसमें केवल निर्देशन करें।
- हिंदी में क्षेत्रिय प्रयोगों, अन्य भाषाओं के प्रयोगों के उदाहरण से यह बात स्पष्ट की जा सकती है कि भाषा अलगाव में नहीं बनती और उसका परिवेश अनिवार्य रूप से बहुभाषिक होता है।
- भिन्न क्षमता वाले विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त शिक्षण-सामग्री का इस्तेमाल किया जाए तथा किसी भी प्रकार से उन्हें अन्य विद्यार्थियों से कमतर या अलग न समझा जाए।
- कक्षा में अध्यापक को हर प्रकार की विभिन्नताओं (लिंग, जाति, वर्ग, धर्म आदि) के प्रति सकारात्मक और संवेदनशील वातावरण निर्मित करना चाहिए।
- परंपरा से चले आ रहे मुहावरों, कहावतों (जैसे रानी रूठेगी तो अपना सुहाग लेंगी) आदि के जरिए विभिन्न प्रकार के पूर्वाग्रहों की समझ पैदा करना चाहिए और उनके प्रयोग के प्रति आलोचनात्मक दृष्टि विकसित करना चाहिए।
- मध्यकालीन काव्य की भाषा के मर्म से विद्यार्थी का परिचय कराने के लिए जरूरी होगा कि किताबों में आए काव्यांशों की संगीतबद्ध प्रस्तुतियों के ऑडियो-वीडियो कैसेट तैयार किए जाएँ। अगर आसानी से कोई गायक/गायिका मिले तो कक्षा में मध्यकालीन साहित्य के अध्यापन-शिक्षण में उससे मदद ली जानी चाहिए।
- वृत्तचित्रों और फीचर फिल्मों को शिक्षण-सामग्री के तौर पर इस्तेमाल करने की जरूरत है। इनके प्रदर्शन के क्रम में इन पर लगातार बातचीत के जरिए सिनेमा के माध्यम से भाषा के प्रयोग कि विशिष्टता की पहचान कराई जा सकती है और हिंदी की अलग-अलग छटा दिखाई जा सकती है।
- कक्षा में सिर्फ एक पाठ्यपुस्तक की भौतिक उपस्थिति से बेहतर होगा कि शिक्षक के हाथ में तरह-तरह की पाठ्यसामग्री को विद्यार्थी देखें और कक्षा में अलग-अलग मौकों पर शिक्षक उनका इस्तेमाल करें।
- भाषा लगातार ग्रहण करने की क्रिया में बनती है, इसे प्रदर्शित करने का एक तरीका यह भी है। कि शिक्षक खुद यह सिखा सकें कि वे भी शब्दकोश, साहित्यकोश, संदर्भग्रंथ की लगातार मदद ले रहे हैं। इससे विद्यार्थियों में इनके इस्तेमाल करने को लेकर तत्परता बढ़ेगी। अनुमान के आधार पर निकटतम अर्थ तक पहुँचकर संतुष्ट होने की जगह वे अधिकतम अर्थ की खोज करने का अर्थ समझ जाएँगे। इससे शब्दों की अलग-अलग रंगत का पता चलेगा, वे शब्दों के बारीक अंतर के प्रति और सजग हो पाएँगे।
व्याकरण बिंदु
- उपसर्ग, प्रत्यय
- समास
- अर्थ की दृष्टि से वाक्य भेद
- अलंकार : शब्दालंकार – अनुप्रास, यमक एवं श्लेष; अर्थालंकार – उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति एवं मानवीकरण।
श्रवण व वाचन (मौखिक बोलना) संबंधी योग्यताएँ
- श्रवण (सुनना) कौशल
- वर्णित या पठित सामग्री, वार्ता, भाषण, परिचर्चा, वार्तालाप, वाद-विवाद, कविता-पाठ आदि का सुनकर अर्थ ग्रहण करना, मूल्यांकन करना और अभिव्यक्ति के ढंग को जानना।
- वक्तव्य के भाव, विनोद व उसमें निहित संदेश, व्यंग्य आदि को समझना।
- वैचारिक मतभेद होने पर भी वक्ता की बात को ध्यानपूर्वक, धैर्यपूर्वक व शिष्टाचारानुकूल प्रकार से सुनना व वक्ता के दृष्टिकोण को समझना।
- ज्ञानार्जन मनोरंजन व प्रेरणा ग्रहण करने हेतु सुनना।
- वक्तव्य का आलोचनात्मक विश्लेषण करना एवं सुनकर उसका सार ग्रहण करना।
- श्रवण (सुनना) का परीक्षण : कुल 2.5 अंक (ढाई अंक)
- परीक्षक किसी प्रासंगिक विषय पर एक अनुच्छेद का स्पष्ट वाचन करेगा। अनुच्छेद तथ्यात्मक या सुझावात्मक हो सकता है। अनुच्छेद लगभग 150 शब्दों का होना चाहिए।
या
परीक्षक 2-3 मिनट का श्रव्य अंश (ऑडियो क्लिप) सुनवाएगा। अंश रोचक होना चाहिए। कथ्य ||घटना पूर्ण एवं स्पष्ट होनी चाहिए। वाचक का उच्चारण शुद्ध, स्पष्ट एवं विराम चिह्नों के उचित प्रयोग सहित होना चाहिए। - परीक्षक को सुनते-सुनते परीक्षार्थी अलग कागज पर दिए हुए श्रवण बोधन के अभ्यासों को हल कर सकेंगे।
- अभ्यास रिक्त स्थान पूर्ति, बहुविकल्पी अथवा सत्य/असत्य का चुनाव आदि विधाओं में हो सकते हैं।
- अति लघूत्तरात्मक 5 प्रश्न पूछे जाएँगे।
- परीक्षक किसी प्रासंगिक विषय पर एक अनुच्छेद का स्पष्ट वाचन करेगा। अनुच्छेद तथ्यात्मक या सुझावात्मक हो सकता है। अनुच्छेद लगभग 150 शब्दों का होना चाहिए।
वाचन (बोलना) कौशल
- बोलते समय भली प्रकार उच्चारण करना, गति, लय, आरोह-अवरोह उचित बलाघात व अनुतान सहित बोलना, सस्वर कविता-वाचन, कथा-कहानी अथवा घटना सुनाना।
- आत्मविश्वास, सहजता व धाराप्रवाह बोलना, कार्यक्रम-प्रस्तुति।
- भावों का सम्मिश्रण जैसे – हर्ष, विषाद, विस्मय, आदर आदि को प्रभावशाली रूप से व्यक्त करना, भावानुकूल संवाद-वाचन।
- औपचारिक व अनौपचारिक भाषा में भेद कर सकने में कुशल होना व प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित व शिष्ट भाषा में प्रकट करना।
- मौखिक अभिव्यक्ति को क्रमबद्ध, प्रकरण की एकता सहित व यथासंभव संक्षिप्त रखना।
- स्वागत करना, परिचय देना, धन्यवाद देना, भाषण, वाद-विवाद, कृतज्ञता ज्ञापन, संवेदना व बधाई इत्यादि मौखिक कौशलों का उपयोग।
- मंच भय से मुक्त होकर प्रभावशाली ढंग से 5-10 मिनट तक भाषण देना।
वाचन (बोलना) का परीक्षण : कुल 2.5 अंक (ढाई अंक)
- चित्रों के क्रम पर आधारित वर्णनः इस भाग में अपेक्षा की जाएगी कि परीक्षार्थी विवरणात्मक भाषा का प्रयोग करें।
- किसी चित्र का वर्णन (चित्र व्यक्ति या स्थान के हो सकते हैं)।
- किसी निर्धारित विषय पर बोलना जिससे वह अपने व्यक्तिगत अनुभव का प्रत्यास्मरण कर सके।
- परिचय देना। (1 अंक)
(स्व/ परिवार/ वातावरण/ वस्तु/ व्यक्ति/ पर्यावरण/ कवि /लेखक आदि) - आधे-आधे अंक के कुल तीन प्रश्न पूछे जा सकते हैं। 1.5 (डेढ़ अंक)
कौशलों के अंतरण का मूल्यांकन
श्रवण (सुनना) | वाचन (बोलना) | ||
1 | विद्यार्थी में परिचित सन्दर्भों में प्रयुक्त शब्दों और पदों को समझने की सामान्य योग्यता है, किंतु सुसंबद्ध आशय को नहीं समझ पाता। | 1 | विद्यार्थी केवल अलग-अलग शब्दों और पदों के प्रयोग की योग्यता प्रदर्शित करता है किंतु एक सुसंबद्ध स्तर पर नहीं बोल सकता। |
2 | छोटे सुसंबद्ध कथनों को परिचित संदर्भो में समझने की योग्यता है। | 2 | परिचित संदर्भो में केवल छोटे सुसंबदध कथनों का सीमित शुद्धता से प्रयोग करता है। |
3 | परिचित या अपरिचित दोनों संदर्भो में कथित सूचना को स्पष्ट समझने की योग्यता है अशुधियाँ करता है जिससे प्रेषण में रूकावट आती है। | 3 | अपेक्षित दीर्घ भाषण में अधिक जटिल कथनों के प्रयोग की योग्यता प्रदर्शित करता है अभी भी कुछ अशुधियाँ करता है। जिससे प्रेषण में रूकावट आती है। |
4 | दीर्घ कथनों की श्रृंखला को पर्याप्त शुद्धता से समझता है और निष्कर्ष निकाल सकता है। | 4 | अपरिचित स्थितियों में विचारों को तार्किक ढंग से संगठित कर धारा प्रवाह रूप में प्रस्तुत कर सकता है। ऐसी गलतियाँ करता है जिनसे प्रेषण में रूकावट नहीं आती। |
5 | जटिल कथनों के विचार-बिंदुओं को समझने की योग्यता प्रदर्शित करता है, उद्देश्य के अनुकूल सुनने की कुशलता प्रदर्शित करता है। | 5 | उद्देश्य और श्रोता के लिए उपयुक्त शैली को अपना सकता है केवल मामूली गलतियाँ करता है। |
टिप्पणी
- परीक्षण से पूर्व परीक्षार्थी को तैयारी के लिए कुछ समय दिया जाए।
- विवरणात्मक भाषा में वर्तमान काल का प्रयोग अपेक्षित है।
- निर्धारित विषय परीक्षार्थी के अनुभव संसार के हों, जैसे – कोई चुटकुला या हास्य-प्रसंग सुनाना, हाल में पढ़ी पुस्तक या देखे गए सिनेमा की कहानी सुनाना।
- जब परीक्षार्थी बोलना प्रारंभ करें तो परीक्षक कम से कम हस्तक्षेप करें।
पठन कौशल
पठन क्षमता का मुख्य उद्देश्य ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करने में निहित है जो स्वतंत्र रूप से चिंतन कर सकें तथा जिनमें न केवल अपने स्वयं के ज्ञान का निर्माण करने की क्षमता हो अपितु वे इसका आत्मावलोकन भी कर सकें।
- सरसरी दृष्टि से पढ़कर पाठ का केंद्रीय विचार ग्रहण करना।
- एकाग्रचित हो एक अभीष्ट गति के साथ मौन पठन करना।
- पठित सामग्री पर अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करना।
- भाषा, विचार एवं शैली की सराहना करना।
- साहित्य के प्रति अभिरूचि का विकास करना।
- संदर्भ के अनुसार शब्दों के अर्थ-भेदों की पहचान करना।
- किसी विशिष्ट उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए तत्संबंधी विशेष स्थल की पहचान करना।
- पठित सामग्री के विभिन्न अंशों का परस्पर संबंध समझना।
- पठित अनुच्छेदों के शीर्षक एवं उपशीर्षक देना।
- कविता के प्रमुख उपादान – तुक, लय, यति आदि से परिचित कराना।
टिप्पणी: पठन के लिए सामाजिक, सांस्कृतिक , प्राकृतिक, कलात्मक, मनोवैज्ञानिक, वैज्ञानिक तथा खेल-कूद और मनोरंजन संबंधी साहित्य के सरल अंश चुने जाएँ।
लिखने की योग्यताएँ
- लिपि के मान्य रूप का ही व्यवहार करना।
- विराम-चिह्नों का सही प्रयोग करना।
- लेखन के लिए सक्रिय (व्यवहारोपयोगी) शब्द भंडार की वृद्धि करना।
- प्रभावपूर्ण भाषा तथा लेखन-शैली का स्वाभाविक रूप से प्रयोग करना।
- उपयुक्त अनुच्छेदों में बाँटकर लिखना।
- प्रार्थना पत्र, निमंत्रण पत्र, बधाई पत्र, संवेदना पत्र, आदेश पत्र, एस.एम.एस आदि लिखना और विविध प्रपत्रों को भरना।
- विविध स्रोतों से आवश्यक सामग्री एकत्र कर अभीष्ट विषय पर निबंध लिखना।
- देखी हुई घटनाओं का वर्णन करना और उन पर अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करना।
- पढ़ी हुई कहानी को संवाद में तथा संवाद को कहानी में परिवर्तित करना।
- समारोह और गोष्ठियों की सूचना और प्रतिवेदन तैयार करना।
- सार, संक्षेपीकरण एवं भावार्थ लिखना।।
- गद्य एवं पद्य अवतरणों की व्याख्या लिखना।
- स्वानुभूत विचारों और भावनाओं को स्पष्ट सहज और प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त करना।
- क्रमबद्धता और प्रकरण की एकता बनाए रखना।
- लिखने में मौलिकता और सर्जनात्मकता लाना।
रचनात्मक अभिव्यक्ति
- वाद-विवाद
विषय का चुनाव विषय-शिक्षक स्वयं करें।
आधार बिंदु – तार्किकता, भाषण कला, अपनी बात अधिकारपूर्वक कहना। - कवि सम्मेलन।
पाठ्यपुस्तक में संकलित कविताओं के आधार पर कविता पाठ
या
मौलिक कविताओं की रचना कर कवि सम्मेलन या अंत्याक्षरी
आधार बिंदु
- अभिव्यक्ति
- गति, लय, आरोह-अवरोह सहित कविता वाचन।
- मंच पर बोलने का अभ्यास/या मंच भय से मुक्ति
कहानी सुनाना/कहानी लिखना या घटना का वर्णन/लेखन
आधार बिंदु
- संवाद – भावानुकूल एवं पात्रानुकूल
- घटनाओं का क्रमिक विवरण
- प्रस्तुतीकरण
- उच्चारण
- परिचय देना और परिचय लेना – पाठ्य पुस्तक के पाठों से प्रेरणा लेते हुए आधुनिक तरीके से किसी नए मित्र से संवाद स्थापित करते हुए अपना परिचय सरल शब्दों में देना तथा उसके विषय में जानकारी प्राप्त करना।
- अभिनय कला-पाठों के आधार पर विद्यार्थी अपनी अभिनय प्रतिभा का प्रदर्शन कर भाषा में संवादों की अदायगी का प्रभावशाली प्रयोग कर सकते हैं। नाटक एक सामूहिक क्रिया है, अतः नाटक के लेखन, निर्देशन संवाद, अभिनय, भाषा व उद्देश्य इत्यादि को देखते हुए शिक्षक स्वयं अंकों का निर्धारण कर सकता है।
- आशुभाषण – विद्यार्थियों की अनुभव परिधि से संबंधित विषय।
- सामूहिक चर्चा – विद्यार्थियों की अनुभव परिधि से संबंधित विषय।
मूल्यांकन के संकेत बिंदुओं का विवरण
प्रस्तुतीकरण
- आत्मविश्वास
- हाव-भाव
- प्रभावशीलता
- तार्किकता
- स्पष्टता
विषय वस्तु
- विषय की सही अवधारणा
- तर्क सम्मत
भाषा
- शब्द चयन व स्पष्टता स्तर और अवसर के
उच्चारण
- स्पष्ट उच्चारण, सही अनुतान, आरोह-अवरोह पर अधिक बल।
CBSE syllabus for class 9 hindi
हिन्दी पाठ्यक्रम – अ (कोड सं. – 002)
कक्षा 9वीं हिन्दी अ संकलित परीक्षाओं हेतु पाठ्यक्रम विनिर्देशन 2018-19
परीक्षा भार विभाजन | |||||
विषयवस्तु | उप भार | कुल भार | |||
1 | पठन कौशल गद्यांश व काव्यांश पर शीर्षक का चुनाव, विषय-वस्तु का बोध, भाषिक बिंदु/संरचना आदि पर अति लघुत्तरात्मक एवं लघुत्तरात्मक प्रश्न | 15 | |||
(अ) | एक अपठित गद्यांश (100 से 150 शब्दों के) (1×2=2) (2×3=6) | 08 | |||
(ब) | दो अपठित काव्यांश (100 से 150 शब्दों के) (1×3=3) (2×2=4) | 07 | |||
2 | व्याकरण के लिए निर्धारित विषयों पर विषय-वस्तु का बोध, भाषिक बिंदु/संरचना आदि पर प्रश्न (1×15) | 15 | |||
व्याकरण | |||||
1 | शब्द निर्माण उपसर्ग – 2 अंक, प्रत्यय – 2 अंक, समास – 3 अंक | 07 | |||
2 | अर्थ की दृष्टि से वाक्य भेद – 4 अंक | 04 | |||
3 | अलंकार – 4 अंक (शब्दालंकार अनुप्रास, यमक, श्लेष) (अर्थालंकार उपमा,रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, मानवीकरण) | 04 | |||
3 | पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग-1 व पूरकपाठ्यपुस्तक कृतिका भाग-1 | ||||
(अ) | गद्य खण्ड | 13 | 30 | ||
1 | क्षितिज से निर्धारित पाठों में से गद्यांश के आधार पर विषय-वस्तु का बोध, भाषिक बिंदु/संरचना आदि पर प्रश्न। (2+2+1) | 05 | |||
2 | क्षितिज से निर्धारित गद्य पाठों के आधार पर विद्यार्थियों की उच्च चिंतन व मनन क्षमताओं का आंकलन करने हेतु प्रश्न। (2×4) | 08 | |||
(ब) | गद्य खण्ड | 13 | |||
1 | काव्यबोध व काव्य पर स्वयं की सोच की परख करने हेतु क्षितिज से निर्धारित कविताओं में से काव्यांश के आधार पर प्रश्न। (2+2+1) | 05 | |||
2 | क्षितिज से निर्धारित कविताओं के आधार पर विद्यार्थियों का काव्यबोध परखने हेतु प्रश्न। (2×4) | 8 | |||
(स) | पूरक पाठ्यपुस्तक कृतिका भाग-1 | 04 | |||
पूरक पुस्तिका ‘कृतिका’ के निर्धारित पाठों पर आधारित एक मूल्य परक प्रश्न पूछा जाएगा। इस प्रश्न का कुल भार पाँच अंक होगा। ये प्रश्न विद्यार्थियों के पाठ पर आधारित मूल्यों के प्रति उनकी संवेदनशीलता को परखने के लिए होगा। (4×1) | 04 | ||||
4 | लेखन | ||||
(अ) | विभिन्न विषयों और संदर्भों पर विद्यार्थियों के तर्कसंगत विचार प्रकट करने की क्षमता को परखने के लिए संकेत बिन्दुओं पर आधारित समसामयिक एवं व्यावहारिक जीवन से जुड़े हुए विषयों पर 200 से 250 शब्दों में किसी एक विषय पर निबंध। (10×1) | 10 | 20 | ||
(ब) | अभिव्यक्ति की क्षमता पर केन्द्रित औपचारिक अथवा अनौपचारिक विषयों में से किसी एक विषय पर पत्र। (5×1) | 05 | |||
(स) | किसी एक विषय पर ‘संवाद लेखन’। (5×1) | 05 | |||
कुल | 80 |
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