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Install NowNCERT Solutions for Class 9 Hindi Course A Kshitij Shyama Charan Dube Class 9 Hindi Course A book solutions are available in PDF format for free download. These ncert book chapter wise questions and answers are very helpful for CBSE exam. CBSE recommends NCERT books and most of the questions in CBSE exam are asked from NCERT text books. Class 9 Hindi Course A chapter wise NCERT solution for Hindi Course A part 1 and Hindi Course B part 2 for all the chapters can be downloaded from our website and myCBSEguide mobile app for free.
NCERT solutions for Class 9 Hindi Course A Kshitij Shyama Charan Dube Download as PDF
NCERT Solutions for Class 9 Course A
Kshitij
- 1 प्रेमचंद
- 2 राहुल सांकृत्यायन
- 3 श्यामाचरण दुबे
- 4 जाबिर हुसैन
- 5 चपला देवी
- 6 हरिशंकर परसाई
- 7 महादेवी वर्मा
- 8 हज़ारीप्रसाद द्रिवेदी
- 9 कबीर
- 10 ललद्धद
- 11 रसखान
- 12 माखनलाल चतुर्वेदी
- 13 सुमित्रानंदन पन्त
- 14 केदारनाथ अग्रवाल
- 15 सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
- 16 चंद्रकांत देवताल
- 17 राजेश जोशी
Kritika
- 01 इस जल प्रलय में
- 02 मेरे संग की औरतें
- 03 रीढ़ की हड्डी
- 04 माटीवाली
- 05 किस तरह आखिरकार मैं हिन्दी में आया
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Course A Kshitij Shyama Charan Dube
1. लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:- लेखक के अनुसार, जीवन में ‘सुख’ का अभिप्राय केवल उपभोग-सुख नहीं है। विभिन्न प्रकार के मानसिक, शारीरिक तथा सूक्ष्म आराम भी ‘सुख’ कहलाते हैं। परन्तु आजकल लोग केवल उपभोग के साधनों को भोगने को ही ‘सुख’ कहने लगे है।
2. आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है ?
उत्तर:- आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को पूरी तरह प्रभावित कर रही है। आजकल उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रचार-प्रसार के कारण हमारी अपनी सांस्कृतिक पहचान, परम्पराएँ, आस्थाएँ घटती जा रही है। हमारे सामाजिक सम्बन्ध संकुचित होने लगा है। मन में अशांति एवं आक्रोश बढ़ रहे हैं। आज हर तंत्र पर विज्ञापन हावी है, परिणामत: हम वही खाते-पीते और पहनते-ओढ़ते हैं जो आज के विज्ञापन हमें कहते हैं। उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण हम धीरे-धीरे उपभोगों के दास बनते जा रहे हैं। सारी मर्यादाएँ और नैतिकताएँ समाप्त होती जा रही हैं तथा मनुष्य स्वार्थ-केन्द्रित होता जा रहा है। विकास का लक्ष्य हमसे दूर होता जा रहा है। हम लक्ष्यहीन हो रहें हैं ।
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3. गाँधी जी ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है ?
उत्तर:- गाँधी जी सामाजिक मर्यादाओं और नैतिकता के पक्षधर थें। गाँधी जी चाहते थे कि लोग सदाचारी, संयमी और नैतिक बनें, ताकि लोगों में परस्पर प्रेम, भाईचारा और अन्य सामाजिक सरोकार बढ़े। लेकिन उपभोक्तावादी संस्कृति इस सबके विपरीत चलती है। वह भोग को बढ़ावा देती है जिसके कारण नैतिकता तथा मर्यादा का ह्रास होता है। गाँधी जी चाहते थें कि हम भारतीय अपनी बुनियाद और अपनी संस्कृति पर कायम रहें। उपभोक्ता संस्कृति से हमारी सांस्कृतिक अस्मिता का ह्रास हो रहा है। उपभोक्ता संस्कृति से प्रभावित होकर। मनुष्य स्वार्थ-केन्द्रित होता जा रहा है। भविष्य के लिए यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि यह बदलाव हमें सामाजिक पतन की ओर अग्रसर कर रहा है।
आशय स्पष्ट कीजिए –
4.1. जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
उत्तर:- उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रभाव अप्रत्यक्ष हैं। इसके प्रभाव में आकर हमारा चरित्र बदलता जा रहा है। हम उत्पादों का उपभोग करते-करते न केवल उनके गुलाम होते जा रहे हैं बल्कि अपने जीवन का लक्ष्य को भी उपभोग करना मान बैठे हैं। आज हम भोग को ही सुख मान बैठे हैं।
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4.2. प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।
उत्तर:- सामाजिक प्रतिष्ठा विभिन्न प्रकार की होती है जिनके कई रूप तो बिलकुल विचित्र हैं। हास्यास्पद का अर्थ है- हँसने योग्य। अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए ऐसे – ऐसे कार्य और व्यवस्था करते हैं कि अनायास हँसी फूट पड़ती है। जैसे अमरीका में अपने अंतिम संस्कार और अंतिम विश्राम-स्थल के लिए अच्छा प्रबंध करना ऐसी झूठी प्रतिष्ठा है जिसे सुनकर हँसी आती है।
• रचना-अभिव्यक्ति
5. कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देख कर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं। क्यों ?
उत्तर:- विज्ञापनों का प्रभाव अत्यंत सूक्ष्म तथा सम्मोहक होता है। विज्ञापन की भाषा बहुत ही मोहक होती है। प्रचार तंत्र वाले अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों, दृश्यों और ध्वनियों के माध्यम से हमें प्रभावित करते हैं। अधिकतर विज्ञापन हमारे अन्दर भ्रम और उस वस्तु के प्रति आकर्षण पैदा करता है। हम वही खरीदते हैं जो विज्ञापन हमें दिखाता है। विज्ञापन से हम अनुपयोगी वस्तुएँ खरीदने के लिए लालायित हो जाते है।
6. आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन ? तर्क देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:- निश्चित रूप से वस्तुओं को खरीदने का आधार उनकी गुणवत्ता होनी चाहिए, क्योंकि-
1. अधिकतर विज्ञापन हमारे मन में वस्तुओं के प्रति भ्रामक आकर्षण पैदा करते हैं।
2. अधिकतर विज्ञापन आकर्षक दृश्य दिखाकर गुणहीन वस्तुओं का प्रचार करते हैं।
3. विज्ञापनों के माध्यम से हम किसी वस्तु के गुण-दोष की सच्चाई नहीं जान सकते हैं ।
7. पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही “दिखावे की संस्कृति” पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:- यह बात बिल्कुल सच है की आज दिखावे की संस्कृति पनप रही है। आज लोग अपने को आधुनिक से अत्याधुनिक और कुछ हटकर दिखाने के चक्कर में क़ीमती से क़ीमती सौंदर्य-प्रसाधन, म्युज़िक-सिस्टम, मोबाईल फोन, घड़ी और कपड़े खरीदते हैं। समाज में आजकल इन चीज़ों से लोगों की हैसियत आँकी जाती है। यहाँ तक कि लोग मरने के बाद अपनी कब्र के लिए लाखों रूपए खर्च करने लगे हैं ताकि वे दुनिया में अपनी हैसियत के लिए पहचाने जा सकें। यह दिखावे की संस्कृति नहीं तो और क्या। “दिखावे की संस्कृति” के बहुत से दुष्परिणाम अब सामने आ रहे हैं। इससे हमारा चरित्र स्वत: बदलता जा रहा है। हमारी अपनी सांस्कृतिक पहचान, परम्पराएँ, आस्थाएँ घटती जा रही है। हमारे सामाजिक सम्बन्ध संकुचित होने लगा है। मन में अशांति एवं आक्रोश बढ़ रहे हैं। नैतिक मर्यादाएँ घट रही हैं। व्यक्तिवाद, स्वार्थ, भोगवाद आदि कुप्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं।
8. आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति -रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है ? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए ।
उत्तर:- आज की उपभोक्ता संस्कृति ने हमारे रीति -रिवाजों और त्योहारों को प्रभावित कर रखा है। त्योहारों का मतलब एक दूसरे से अच्छे लगने की प्रतिस्पर्धा हो गई है। नई – नई कम्पनियाँ जैसे इस मौके की तलाश में रहती है। त्यौहार के नाम पर ज्यादा से ज्यादा ग्राहक को विज्ञापन द्वारा आकर्षित करे। पहले त्यौहार में सारे काम परिवार के लोग मिलजुल कर करते थे। आज सारी चीजें बाजार से तैयार खरीद ली जाती है और बचकुचा काम नौकर से करवा लिया जाता है।
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• भाषा-अध्ययन
9.1 धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।
इस वाक्य में बदल रहा है क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है – धीरे-धीरे। अतः यहाँ धीरे-धीरे क्रिया-विशेषण है। जो शब्द क्रिया कि विशेषता बताते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं। जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कब, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रिया-विशेषण कहलाता है।
ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए ।
उत्तर:- 1. धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है । (‘धीरे-धीरे’ रीतिवाचक क्रिया-विशेषण) (सब-कुछ ‘परिणामवाचक क्रिया-विशेषण’)
2. आपको लुभाने कि जी-तोड़ कोशिश में निरंतर लगी रहती है । (‘निरंतर’ रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
3. सामंती संस्कृति के तत्व भारत में पहले भी रहे हैं । (‘पहले’ कालवाचक क्रिया-विशेषण)
4. अमेरिका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी आ सकता है। (आज, कल कालवाचक क्रिया-विशेषण)
5. हमारे सामाजिक सरोकारों में कमी आ रही है। (परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण)
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9.2 धीरे-धीरे, जोर से, लगातार, हमेशा, आजकल, कम, ज्यादा, यहाँ, उधर, बाहर – इन क्रिया-विशेषण शब्दों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।
उत्तर:-
क्रिया-विशेषण | वाक्य |
धीरे-धीरे | धीरे-धीरे मेरा उससे परिचय हुआ। |
ज़ोर से | पानी ज़ोर से बरसा |
लगातार | लगातार पानी बरस रहा है। |
हमेशा | संजना हमेशा दौड़ती है। |
आजकल | राजू आजकल प्रतिदिन अभ्यास करता है। |
कम | हमारा दुख उसके सामने बहुत कम है। |
ज्य़ादा | आज में कुछ ज्य़ादा खा गया था। |
यहाँ | वह यहाँ आएगा। |
उधर | उसने उधर मुड़कर न देखा। |
बाहर | चिड़िया बाहर बिलख रही थी। |
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9.3.1 नीचे दिए गए वाक्यों में से क्रिया-विशेषण और विशेषण शब्द छाँटकर अलग लिखिए –
कल रातसे निरंतर बारिश हो रही है।
उत्तर:- निरंतर, (रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
कल रात (कालवाचक क्रिया-विशेषण)
9.3.2 पेड़ पर लगे पके आम देखकर बच्चों के मुँह में पानी आ गया।
उत्तर:- पके (विशेषण)
मुँह में (स्थानवाचक क्रिया-विशेषण)
9.3.3 रसोईघर से आती पुलाव की हलकी खुशबू से मुझे ज़ोरों की भूख लग आई।
उत्तर:- हलकी (विशेषण)
ज़ोरों की (रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
9.3.4 उतना ही खाओ जितनी भूख है।
उत्तर:- उतना, जितनी (परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण)
9.3.5 विलासिता की वस्तुओं से आजकल बाज़ार भरा पड़ा है।
उत्तर:- आजकल (कालवाचक क्रिया-विशेषण)
बाज़ार (स्थानवाचक क्रिया-विशेषण)
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Course A
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