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NCERT Class 12 Hindi Core Chapter-wise Solutions
Aroh (Chapters)
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Vitan (Chapters)
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NCERT Solutions class 12 Hindi Core Jainendra Kumar
1. बाज़ार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है?
उत्तर:- बाज़ार का जादू चढ़ने पर मनुष्य बाज़ार की आकर्षक वस्तुओं के मोह जाल में फँस जाता है। बाजार के इसी आकर्षण के कारण ग्राहक सजी-धजी चीजों को आवश्यकता न होने पर भी खरीदने को विवश हो जाता है।
इस मोहजाल में फँसकर वह गैरजरूरी वस्तुएँ भी खरीद लेता है। परन्तु जब यह जादू उतरता है तो उसे ज्ञान होता है कि जो वस्तुएँ उसने आराम के लिए खरीदी थीं उल्टा वे तो उसके आराम में खलल डाल रही है।
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2. बाज़ार में भगत जी के व्यक्तित्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता है? क्या आपकी नज़र में उनका आचरण समाज में शांति-स्थापित करने में मददगार हो सकता है?
उत्तर:- बाज़ार में भगत जी के व्यक्तित्व का सशक्त पहलू उनका अपने ऊपर का ‘मन नियंत्रण’ उभरकर आता है।
बाज़ार उन्हें कभी भी आकर्षित नहीं कर पाता वे केवल अपनी जरुरत भर सामान के लिए बाज़ार का उपयोग करते हैं।
भगतजी जैसे व्यक्ति समाज में शांति लाते हैं क्योंकि इस प्रकार के व्यक्तियों की दिनचर्या संतुलित होती है और ये न ही बाज़ार के आकर्षण में फँसकर अधिक से अधिक वस्तुओं का संग्रह और संचय करते हैं जिसके फलस्वरूप मनुष्यों में न अशांति बढ़ती और न ही महँगाई बढ़ती। अत: समाज में भी शांति बनी रहती है।
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3. ‘बाज़ारूपन‘ से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाज़ार की सार्थकता किसमें है?
उत्तर:- बाजारुपन से तात्पर्य ऊपरी चमक-दमक से है। जब सामान बेचने वाले बेकार की चीजों को आकर्षक बनाकर बेचने लगते हैं, तब बाज़ार में बाजारुपन आ जाता है।
जो विक्रेता, ग्राहकों का शोषण नहीं करते और छल-कपट से ग्राहकों को लुभाने का प्रयास नहीं करते साथ ही जो ग्राहक अपनी आवश्यकताओं की चीजें खरीदते हैं वे बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं। इस प्रकार विक्रेता और ग्राहक दोनों ही बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं।
मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में ही बाजार की सार्थकता है।
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4. बाज़ार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता वह देखता है सिर्फ़ उसकी क्रय शक्ति को। इस रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:- हम इस बात से पूरी तरह सहमत हैं क्योंकि आज हम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र, पढ़ाई, आवास, राजनीति, धार्मिक स्थल आदि सभी में एक प्रकार का भेदभाव देखते हैं।
बाज़ार को किसी लिंग, धर्म या जाति से कोई लेना-देना नहीं होता है उसके लिए तो हर कोई केवल और केवल ग्राहक है इस प्रकार यदि हम देखें तो बाज़ार एक प्रकार की सामाजिक समता की रचना करता है।
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5. आप अपने तथा समाज से कुछ ऐसे प्रसंग का उल्लेख करें –
क. जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ।
ख. जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई।
उत्तर:- क. जब बड़ा से बड़ा अपराधी अपने पैसे की शक्ति से निर्दोष साबित कर दिया जाता है तब हमें पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत होता है।
ख. असाध्य बीमारी के आगे पैसे की शक्ति काम नहीं आती है।
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6. बाज़ार दर्शन पाठ में बाज़ार जाने या न जाने के संदर्भ में मन की कई स्थितियों का ज़िक्र आया है। आप इन स्थितियों से जुड़े अपने अनुभवों का वर्णन कीजिए।
1. मन खाली हो
2. मन खाली न हो
3. मन बंद हो
4. मन में नकार हो
उत्तर:- 1. मन खाली हो – जब मैं केवल यूँही घूमने की दृष्टि से बाज़ार जाती हूँ तो न चाहते हुए भी कई सारी महंगी चीजें घर ले आती हूँ। और बाद में पता चलता है कि इन वस्तुओं की वास्तविक कीमत तो बहुत कम है और मैं केवल उनके आकर्षण में फँसकर इन्हें खरीद लाई।
2. मन खाली न हो – एक बार मुझे बाज़ार से एक लाल रंग की साड़ी खरीदनी थी तो मैं सीधे साड़ी की दुकान पर पहुँची उस दुकान में अन्य कई तरह के परिधान मुझे आकर्षित कर रहें थे परन्तु मेरा विचार पक्का होने के कारण मैं सीधे साड़ी वाले काउंटर पर पहुँची और अपनी मनपसंद साड़ी खरीदकर बाहर आ गई।
3. मन बंद हो – कभी कभी जब मन बड़ा उदास होता है, तब बाज़ार की रंग-बिरंगी वस्तुएँ भी मुझे आकर्षित नहीं करती हैं मैं बिना कुछ लिए यूँहीं घर चला आता हूँ।
4. मन में नकार हो – एक बार मेरे पड़ोसी ने मुझे नकली वस्तुओं के बारे में कुछ इस तरह समझाया कि मेरे मन में वस्तुओं के प्रति एक प्रकार की नकारत्मकता आ गई मुझे बाज़ार की सभी वस्तुएँ में हमें कोई न कोई कमी दिखाई देने लगी। मुझे लगा जैसे सारी वस्तुएँ अपने मापदंडों पर खरी नहीं है।
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7. बाज़ार दर्शन पाठ में किस प्रकार के ग्राहकों की बात हुई है? आप स्वयं को किस श्रेणी का ग्राहक मानते/मानती हैं?
उत्तर:- बाज़ार दर्शन पाठ में कई प्रकार के ग्राहकों की चर्चा की गई है जो निम्नलिखित हैं – खाली मन और खाली जेब वाले ग्राहक, भरे मन और भरी जेब वाले ग्राहक, पर्चेजिग पावर का प्रदर्शन करने वाले ग्राहक, बाजारुपन बढ़ानेवाले ग्राहक, अपव्ययी ग्राहक,भरे मन वाले ग्राहक, मितव्ययी और संयमी ग्राहक।
मैं अपने आप को भरे मन वाला ग्राहक समझती हूँ क्योंकि मैं आवश्यकता अनुसार ही बाज़ार का रुख करती हूँ और जो जरुरी वस्तुएँ हैं वे ही खरीदती हूँ।
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8. आप बाज़ार की भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृति से अवश्य परिचित होंगे। मॉल की संस्कृति और सामान्य
बाज़ार और हाट की संस्कृति में आप क्या अंतर पाते हैं? पर्चेजिग पावर आपको किस तरह के बाज़ार में नज़र आती है?
• मॉल की संस्कृति – मॉल की संस्कृति में हमें एक ही छत के नीचे तरह-तरह के सामान मिलते हैं यहाँ का आकर्षण ग्राहकों को सामान खरीदने को मजबूर कर देता है। इस प्रकार के बाजारों के ग्राहक उच्च और उच्च मम वर्ग से संबंधित होते हैं।
• सामान्य बाज़ार – सामान्य बाज़ार में लोगों की आवश्यकतानुसार चीजें होती हैं। यहाँ का आकर्षण मॉल संस्कृति की तरह नहीं होता है। इस प्रकार के बाजारों के ग्राहक मध्यम वर्ग से संबंधित होते हैं।
• हाट की संस्कृति – हाट की संस्कृति के बाज़ार एकदम सीधे और सरल होते हैं इस प्रकार के बाजारों में निम्न और ग्रामीण परिवेश के ग्राहक होते हैं। इस प्रकार के बाजारों में दिखावा नहीं होता है।
• पर्चेजिग पावर हमें मॉल संस्कृति में ही दिखाई देता है क्योंकि एक तो उसके ग्राहक उच्च वर्ग से संबंधित होते हैं और मॉल संस्कृति में वस्तुओं को कुछ इस तरह के आकर्षण में पेश किया जाता है कि ग्राहक उसे खरीदने को मजबूर हो जाते हैं।
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9. लेखक ने पाठ में संकेत किया है कि कभी-कभी बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:- हम इस बात से पूरी तरह सहमत हैं। दुकानदार कभी कभी ग्राहक की आवश्यकताओं का भरपूर शोषण करते हैं जैसे कभी कभी जीवनपयोगी वस्तुओं (चीनी, गैस, प्याज, टमाटर आदि) की कमी हो जाती है। उस समय दुकानदार मनचाहे दामों में इन चीजों की बिक्री करते हैं।
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10. स्त्री माया न जोड़े यहाँ माया शब्द किस ओर संकेत कर रहा है? स्त्रियों द्वारा माया जोड़ना प्रकृति प्रदत्त नहीं, बल्कि परिस्थितिवश है। वे कौन-सी परिस्थितियाँ हैं जो स्त्री को माया जोड़ने के लिए विवश कर देती हैं?
उत्तर:- यहाँ पर माया शब्द धन-संपत्ति की ओर संकेत करता है। आमतौर पर स्त्रियाँ माया जोड़ती देखी जाती हैं परन्तु उनका माया जोड़ने के पीछे अनेक कारण होते हैं जैसे – एक स्त्री के सामने घर-परिवार सुचारू रूप से चलाने की, बच्चों की शिक्षा-दीक्षा की, असमय आनेवाले संकट की, संतान के विवाह की, रिश्ते नातों को निभाने की जिम्मेदारियाँ आदि अनेक परिस्थितियाँ आती हैं जिनके कारण वे माया जोड़ती हैं।
• भाषा की बात
1. विभिन्न परिस्थितियों में भाषा का प्रयोग भी अपना रूप बदलता रहता है कभी औपचारिक रूप में आती है तो कभी अनौपचारिक रूप में। पाठ में से दोनों प्रकार के तीन-तीन उदाहरण छाँटकर लिखिए।
औपचारिक रूप | अनौपचारिक रूप |
1. पैसा पावर है। 2. बाज़ार में एक जादू है। 3. एक बार की बात कहता हूँ। | 1. बाज़ार है कि शैतान का जाल। 2. उस महिमा का मैं कायल हूँ। 3. पैसा उससे आगे होकर भीख माँगता है। |
2. पाठ में अनेक वाक्य ऐसे हैं, जहाँ लेखक अपनी बात कहता है कुछ वाक्य ऐसे है जहाँ वह पाठक-वर्ग को संबोधित करता है। सीधे तौर पर पाठक को संबोधित करने वाले पाँच वाक्यों को छाँटिए और सोचिए कि ऐसे संबोधन पाठक से रचना पढ़वा लेने में मददगार होते हैं?
उत्तर:- 1. पानी भीतर हो;लू का लूपन व्यर्थ हो जाता है।
2. लू में जाना तो पानी पीकर जाना।
3. बाज़ार आमंत्रित करता है कि आओ, मुझे लूटो और लूटो।
4. परंतु पैसे की व्यंग शक्ति की सुनिए।
5. कहीं आप भूल न कर बैठिएगा।
3. नीचे दिए गए वाक्यों को पढ़िए।
(क) पैसा पावर है।
(ख) पैसे की उस पर्चेज़िंग पावर के प्रयोग में ही पावर का रस है।
(ग) मित्र ने सामने मनीबैग फैला दिया।
(घ) पेशगी ऑर्डर कोई नहीं लेते।
ऊपर दिए इन वाक्यों की संरचना तो हिन्दी भाषा की है लेकिन वाक्यों में एकाध शब्द अंग्रेजी भाषा के आए हैं। इस तरह के प्रयोग को कोड मिक्सिंग कहते हैं। एक भाषा के शब्दों के साथ दूसरी भाषा के शब्दों का मेलजोल! अब तक आपने जो पाठ पढ़े उसमें से कोई पाँच उदहारण चुनकर लिखिए। यह भी बताइए कि आगत शब्दों की जगह उनके हिन्दी पर्यायों का ही प्रयोग किया जाए तो भाषा पर संप्रेषणीयता क्या प्रभाव पड़ता है।
उत्तर:- 1. हमें हफ्ते मैं चॉकलेट खरीदने की छूट थी।
2. बाज़ार है या शैतान का जाल।
3. पर्चेजिंग पावर के अनुपात में आया है।
4. बचपन के कुछ फ्रॉक तो मुझे अब तक याद है।
5. वहाँ के लोग उम्दा खाने के शौक़ीन है।
किसी भी भाषा को समृद्ध बनाने के लिए आगत शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इस पर यदि रोक लगा दी जाए तो भाषा की संप्रेषणीयता कमजोर और कठिन हो जाएगी जैसे उदहारण स्वरुप यदि ट्रेन को हम हिन्दी के पर्याय के रूप में लौह-पथ-गामिनी कहेंगे तो भाषा मैं दुरुहता आ जाएगी अत:कोड मिक्सिंग के प्रयोग से भाषा में सहजता और विचारों के आदान-प्रदान में सुविधा रहती है।
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4. नीचे दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश पर ध्यान देते हुए उन्हें पढ़िए –
क) निर्बल ही धन की ओर झुकता है।
ख) लोग संयमी भी होते हैं।
ग) सभी कुछ तो लेने को जी होता था।
ऊपर दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश ‘ही‘, ‘भी‘, ‘तो’ निपात हैं जो अर्थ पर बल देने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। वाक्य में इनके होने-न-होने और स्थान क्रम बदल देने से वाक्य के अर्थ पर प्रभाव पड़ता है, जैसे – मुझे भी किताब चाहिए। (मुझे महत्त्वपूर्ण है।)
मुझे किताब भी चाहिए। (किताब महत्त्वपूर्ण है।)
आप निपात (ही, भी, तो) का प्रयोग करते हुए तीन-तीन वाक्य बनाइए। साथ ही ऐसे दो वाक्यों का भी निर्माण कीजिए जिसमें ये तीनों निपात एक साथ आते हों।
उत्तर:-
निपात | ही | भी | तो |
1. उन्हें भी आज ही आना है। 2. मैं जल्दी ही सामान मँगवा लूँगा। 3. तुम ही को मिलना है | 1. आपके साथ यह भी चलेगा। 2. निरंजन साहब अब भी नहीं समझ पाए। 3. तुम अभी भी नहीं समझ रहे हो। | 1. माँ ने तुम्हें जो काम करने को दिया था, वह कर तो दिया। 2. यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था। 3. मेरे पास गहने थे तो सही लेकिन मैंने पहने नहीं। |
तीनों निपातों का प्रयोग –
1. आप घर पर ही रुकें क्योंकि माँ भी तो जा चुकी है।
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