इस आनंद उत्सव की रागिनी में …
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Posted by Nitin Ram Rayne 2 years, 1 month ago
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Preeti Dabral 2 years, 1 month ago
इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कुब्जा मोरनी के आने से हुआ। यह वाक्य नीलकंठ की मृत्यु की घटना की ओर संकेत करता है। नीलकंठ पाठ के आधार पर एक बार लेखिका को नखास कोने से निकलना पड़ा और बड़े मियां ने उनकी कार को रोककर एक घायल मोरनी के बारे में बताया । लेखिका ने सात रुपए में मोरनी को खरीदा और घर ले आई। उसकी कई दिनों तक देखभाल की । लगभग एक महीने के बाद वह अपने पंजों पर डगमगाती हुई चलने लगी और उसका नामकरण 'कुब्जा'के रूप में हुआ। वह नाम के अनुरूप स्वभाव से भी कुब्जा ही प्रमाणित हुई। वह ईर्ष्यालु प्रकृति की पक्षी थी। उसकी किसी पशु -पक्षी के साथ मित्रता नहीं थी। उसे नीलकंठ और राधा का साथ बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता। वह नीलकंठ के साथ रहना चाहती थी। राधा को साथ देखते ही उसको चोंच मार- मार कर उसके पंख नोंच डालती। इसी बीच उसने राधा के अंडों को भी चोंच से फोड़ दिया। इस कलह से राधा की दूरी से नीलकंठ दुखी रहने लगा । उसने खाना - पीना छोड़ दिया। जिस कारण तीन- चार मास के उपरांत एक दिन उसकी मृत्यु हो गई। यह सब कुब्जा मोरनी के आने से हुआ |
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