Ask questions which are clear, concise and easy to understand.
Ask QuestionPosted by Palak Gupta 4 years, 5 months ago
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Posted by Sony Chauhan 4 years, 5 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 5 months ago
ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि यह जग स्वार्थी है। जहाँ पर उसे कुछ मिलता है वह वहीं जम जाता है। दाना का अर्थ चतुर, बुद्धिमान भी है। इस दृष्टि से इस पंक्ति का अर्थ हुआ कि जहाँ पर कुछ बुद्धिमान एवं चतुर लोग रहते हैं। वहीं इस संसार में कुछ नादान (मूर्ख) भी मिलते हैं। इस संसार में सभी प्रकार के व्यक्ति मिलते हैं। इस संसार में सभी प्रकार के व्यक्ति मिलते हैं। इस संसार में भाँति-भाँति के प्राणी रहते हैं। ये अच्छे भी है तो बुरे भी। विरोधी होते हुए भी इनका आपस में संबंध है।
Posted by Devil ? 4 years, 5 months ago
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Posted by Gurleen Kaur 4 years, 5 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 5 months ago
प्रसाद जी ने स्वाध्याय द्वारा ही हिन्दी, उर्दू, संस्कृत तथा अंग्रेजी का अध्ययन किया।
Posted by Pradeep Solanki 4 years, 5 months ago
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Posted by Rahul Kumar 4 years, 5 months ago
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Posted by Sujata Singh 4 years, 5 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 5 months ago
साहित्य में स्थान–प्रसाद जी असाधारण प्रतिभाशाली कवि थे। उनके काव्य में एक ऐसा नैसर्गिक आकर्षण एवं चमत्कार है कि सहृदय पाठक उसमें रसमग्न होकर अपनी सुध-बुध खो बैठता है। निस्सन्देह वे आधुनिक हिन्दी-काव्य-गगन के अप्रतिम तेजोमय मार्तण्ड हैं।
Posted by Aanchal Garg 4 years, 5 months ago
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Posted by Tanushree Sarkar 4 years, 5 months ago
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Posted by Vivek Kumar 4 years, 5 months ago
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Posted by Sujata Singh 4 years, 5 months ago
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Posted by Gagan Singh 4 years, 5 months ago
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Puspa Patail 4 years, 5 months ago
Posted by Sumit Kasaudhan 4 years, 5 months ago
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Posted by Priyanka Khandale 4 years, 5 months ago
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Posted by R. Udhaya Kumar Udhaya 4 years, 6 months ago
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Gaurav Seth 4 years, 6 months ago
सुरक्षित तरीके से पैसों की बचत के उद्देश्य के लिये बैंक खातों से हरेक भारतीय नागरिक को जोड़ने के लिये 28 अगस्त 2014 को भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा जन धन योजना की शुरुआत की गयी थी। लाल किले पर राष्ट्र को संबोधित करने के दौरान 15 अगस्त 2015 को उन्होंने इस योजना के बारे में घोषणा की। हालांकि इसकी शुरुआत दो हफ्ते बाद हुई।
इस योजना के अनुसार, इस योजना के शुरुआत होने के पहले दिन ही लगभग 1 करोड़ बैंक खाते खोले गये। भारत में अंतिम स्तर तक विकास लाने के लिये मुद्रा बचत योजना बहुत जरुरी है जिसको ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में अपने बचत के बारे में अधिक सतर्क बनाने के द्वारा शुरुआत और प्राप्त किया जा सकता है।
खासतौर से, भारत के गरीब लोगों को खोले गये खातों के सभी लाभ को देने, बैंक खातों से उनको जोड़ने के लिये और पैसा बचत के लिये जन धन योजना स्कीम शुरु की गयी। भरतीय स्वतंत्रता दिवस से दो सप्ताह बाद 28 अगस्त को पीएम के द्वारा इस योजना की शुरुआत की गयी। बैंक से उसके लाभ से सभी भारतीय नागरिकों को जोड़ने के लिये एक राष्ट्रीय चुनौती के रुप में इस खाता खोलने वाली और मुद्रा बचत योजना की शुरुआत की गयी थी।
इस योजना को एक सफल योजना बनाने के लिये बहुत सारे कार्यक्रमों को लागू किया गया है। बैंक खातों के महत्व के बारे में जागरुक बनाने के साथ ही बैंक खाता खोलने के फायदे और प्रक्रिया के बारे में उनको समझाने और लोगों के दिमाग को इस ओर खींचने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 60 हजार नामांकन कैंप लगाये गये।
Posted by Muskan Kanojia 4 years, 6 months ago
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Posted by Kirti Chouhan 4 years, 6 months ago
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Posted by Puspa Patail 4 years, 6 months ago
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Posted by Shivanshu Rai 4 years, 6 months ago
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Posted by Monika Chauhan 4 years, 6 months ago
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Puspa Patail 4 years, 5 months ago
Posted by Dixit Upreti 4 years, 6 months ago
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Posted by Aiman Ejaz 4 years, 6 months ago
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Posted by Karun Rancho 4 years, 6 months ago
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Gaurav Seth 4 years, 6 months ago
इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने यह व्यंग्य किया है कि हम टेलीविजन (मीडिया) के लोग तो बहुत ताकतवर हैं। हम जो चाहें, जैसे चाहें कार्यक्रम को दर्शकों को दिखा सकते हैं। कार्यक्रम का निर्माण एवं प्रस्तुति उनकी मर्जी से ही होती है। वे करुणा को बेच भी सकते हैं।
जिसके ऊपर कार्यक्रम केंद्रित होता है वह एक दुर्बल व्यक्ति है। वह दुर्बल इस मायने में है कि वह अपनी मर्जी से न तो कुछ बोल सकता है न कुछ कर सकता है। उसे वही कुछ करना पड़ता है जो कार्यक्रम का संचालकसंचालक/निर्देशक है। वह विवश है। उसके साथ संवेदनहीन व्यवहार किया जाता है।
‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में मीडिया की कार्यप्रणाली पर करारा व्यंग्य किया गया है। टेलीविजन पर मीडिया सामाजिक कार्यक्रम के नाम पर लोगों के दुख-दर्द बेचने का काम करता है। उन्हें अपाहिज के दुख-दर्द और मान-सम्मान की कोई परवाह नहीं होती। उन्हें तो बस अपना कार्यक्रम रोचक बनाना होता है। वे अपाहिज और दर्शक के आँसू निकलावकर पैसा बटोरते हैं।
Posted by R. Udhaya Kumar Udhaya 4 years, 6 months ago
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Posted by A Aarthi 4 years, 6 months ago
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Posted by Prince Prasad 4 years, 6 months ago
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Aditi Andhale 4 years, 5 months ago
Posted by Fakir Mohan Dharua 4 years, 6 months ago
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Posted by Padmaja Langade 4 years, 6 months ago
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Gaurav Seth 4 years, 5 months ago
संसार के महानतम् अभिनेता चार्ली चैप्लिन के बारे में रचित इस निबंध में चार्ली के अभिनय की आधारभूत विशेषताओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं। चार्ली के अभिनय में हास्य और करुणा का मिश्रित संतुलन ही उन्हें आम जनता के अपने कष्टों और दुखों तक ले जाता है। इस तरह वे अभिनय के माध्यम से आम जन से सीधे जुड़ाव करते हैं।
चार्ली के जीवन के एक सौ तीस साल पूरे हो चुके हैं, और उनकी फिल्में बच्चों से लेकर बूढ़ों तक लगातार अपनी लोकप्रियता बनाये हुए हैं। उनकी पहली फिल्म थी, ‘मेकिंग ए लिविंग’ उसे बने हुए भी सौ साल से ज्यादा हो रहे हैं।
चार्ली की फिल्मों का मूल बुद्धि पर नहीं, भावनाओं और मनुष्यता पर टिका हुआ है। उनकी फिल्मों की सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही है कि उन्हें पागलखाने के मरीज, साधारण जन और आइंस्टीन जैसे महान प्रतिभावान एक साथ देख सकते हैं और उसका आनंद ले सकते हैं।
चार्ली ने फिल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया और दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण व्यवस्था को भी तोड़ा। चार्ली के बचपन की कुछ घटनाओं ने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। उनमें से एक यह है, कि जब वे बीमार थे, तब उनकी मां ने उन्हें ईसा मसीह के जीवन के बारे में पढ़कर सुनाया था। उससे उन्हें स्नेह, करुणा और मानवता के गुणों को ग्रहण किया था।
करुणा को हास्य में और हास्य को करुणा में बदल देने वाले वे एकमात्र अभिनेता हैं। भारतीय फिल्मों और अभिनेताओं पर भी चार्ली का खासा असर देखा जा सकता है। राजकपूर तो जीवन भर चार्ली से ही प्रेरित रहे। चार्ली की अधिकतर फिल्में मूक हैं। भाषा से परे। इसीलिये उन्हें ज्यादा से ज्यादा मानवीय होना पड़ा। मानवीयता की भाषा ने ही चार्ली को विश्व भर के दर्शकों तक पहुंचाया। चार्ली की फिल्में आम आदमी की विविध असफलताओं को दिखाती हैं, जो कि असल में उसकी असफलताएं नहीं हैं, बल्कि एक क्रूरतावादी सभ्यता के आगे लाचार हो गये आम आदमी का कड़वा सच हैं।
इस आम आदमी के साथ खड़े चार्ली सदा अमर रहेंगे।
1Thank You