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Kumkum Teotia 4 years ago

Kese likhte h
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Utkarsh Patel 4 years ago

क्योंकि उनकी भावनाएं उनके परिवार वालों से नहीं मिलती थी। वे किशनदा को अपना गुरु मानते थे इसलिए वे उनके पगचिन्हों पर चलते थे , जोकि उनके परिवार वालों को मंजूर नहीं था
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Kavita Yadav 4 years ago

How many chapters & topics are deleted????
  • 4 answers

Sheetal Singh 4 years ago

But what do I help you??

Sheetal Singh 4 years ago

Yes, ofcourse...
Sheetal, you can help me

Sheetal Singh 4 years ago

Thanks...?
  • 2 answers

Vikas Parashar 3 years, 10 months ago

?

Gaurav Seth 4 years ago

सेवा में,

 

संपादक,

नवभारत टाइम्स,

नई दिल्ली।

 

महोदय,

अपने दैनिक समाचा-पत्रों के ’पाठकों के पत्र’ शीर्षक के अंतर्गत समाज में बढ़ते अपराधों पर मेरे विचार जनहित में प्रकाशित करने का कष्ट करें।

दिल्ली में पिछले एक वर्ष से अफसरशाही को मनमानी करने का पूरा अवसर मिला हुआ है। यही कारण है कि वे अपने स्वार्थों की सिद्धि में तो लगे हुए हैं, पर जन-समस्याओं के प्रति उपेक्षापूर्ण दृष्टिकोण अपनाए हुए हैं।

दिल्ली कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज रह ही नहीं गई है। संभ्रांत काॅलोनियों में दिन दहाडें डकैती और हत्या की घटनाएँ आम हो गई हैं। यहाँ के नागरिकों का जीवन असुरक्षित हो गया है। नागरिकों की समस्यओं पर ध्यान देने की फुर्सत किसी को नहीं है। मैं आपके समाचार-पत्र के माध्यम से केन्द्र सरकार में बैठे मंत्रियों से अनुरोध करती हूँ कि दिल्ली में जन-प्रतिनिधियों की शासन-व्यवस्था को शीघ्र बहाल करें एवं महँगाई पर काबू पाने के सार्थक प्रयास करें।

धन्यवाद सहित,

भवदीया

 

प्रतिभा शर्मा

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Gaurav Seth 4 years ago

वास्तव में तो पानी की ही माँग की जाती है। ‘गुड़धानी’ शब्द तो इसके साथ जोड़ दिया गया है। पानी बरसेगा तभी खेतों में ईख और धान उत्पन्न होगा। ईख से गुड बनेगा और गड़धानी तैयार हो पाएगी।

‘गुड़धानी’ का अर्थ पाठ के संदर्भ में अनाज से है। बच्चे मेघों से पानी की माँग भी करते हैं। इसका कारण यह है कि बारिश से प्यास तो बुझती है पर पेट भरने के लिए अनाज की आवश्यकता होती है। अत: वे वर्षा के साथ गुड़धानी (अनाज) की भी माँग करते हैं।

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Gaurav Seth 4 years ago

लेखक पाठशाला जाने के लिये तड़पता है। उसके पिता ने उसे स्कूल जाने से रोक दिया है। पिता को मनाने में लेखक और उसकी माँ सफल नहीं हो पाते हैं। गाँव के सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्ति दत्ताजी राव अंतिम उपाय थे। लेखक और उसकी माँ उनके पास जाते हैं। उनसे दबाव डलवाने के लिये उनको एक झूठ का सहारा लेना पड़ता है। इसके बाद दत्ताजी राव के कहने पर लेखक के पिता उसको पढ़ाने के लिए तैयार हो जाते हैं। लेखक पाठशाला जाना शुरू कर देता है। वहाँ दूसरे लडुकों से उसकी दोस्ती होती है। वह पढ़ने के लिए हर तरह का प्रयास करता है। मराठी के एक बहुत अच्छे अध्यापक के प्रभाव में वह कविता भी रचने लगता है। अगर वह झूठ नहीं बोला जाता तो ये सारे घटनाक्रम घटित ही नहीं होते।

झूठ न बोलने से दत्ता जी राव उसके पिता के ऊपर दबाव नहीं दे पाते। उसके पिता अपनी तरह से लेखक के जीवन को ढालता। लेखक का संबंध पढ़ाई-लिखाई से नहीं हो पाता। उसके संघर्ष की कहानी ही नहीं बन पाती। आज जो कहानी हमें जूझने की प्रेरणा देती है, वह आज हमारे सामने नहीं होती। इस तरह झूठ का सहारा लेने से जीवन और सपनों का विकास होता है जिसके आधार पर लेखक अपनी आत्मकथा लिख पाता है।

  • 3 answers

Yogita Ingle 4 years ago

स्मृतियों की रेखाएँ" में संकलित "भक्तिन" महादेवी वर्मा का प्रसिद्‌ध संस्मरणात्मक रेखाचित्र है। इसमें महादेवी वर्मा ने अपनी सेविका भक्तिन के अतीत और वर्तमान का परिचय देते हुए उसके व्यक्तित्व का रोचक किन्तु मर्मस्पर्शी शब्द चित्रण किया है। महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य के छायावादी काल की प्रमुख कवयित्री है। उन्हें आधुनिक युग का मीरा भी कहा जाता है। महादेवी वर्मा ने संस्कृत से एम०ए० किया और तत्पश्चात प्रयाग-महिला विद्‌यापीठ की प्रधानाचार्या नियुक्त की गईं। महादेवी वर्मा ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। उन्होंने न केवल साहित्य लिखा बल्कि पीड़ित बच्चों और महिलाओं की सेवा भी की।

महादेवी वर्मा की भाषा संस्कृतनिष्ठ सहज तथा चित्रात्मक है जिसमें हिन्दी के तद्‌भव व देशज शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। इनकी कुछ प्रसिद्‌ध रचनाओं के नाम हैं - गिल्लू, सोना, अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, हिमालय आदि।

 

भक्तिन का वास्तविक नाम लछमिन था। उसके चरित्र में अनेक गुण और कुछ अवगुण भी थे। बचपन में अपनी माँ का साया छूट जाने के कारण उसका जीवन संघर्षपूर्ण रहा। सौतेली माँ ने उसके साथ हमेशा बुरा व्यवहार किया। भक्तिन का पाँच वर्ष की आयु में विवाह और नौ वर्ष की छोटी आयु में ससुराल गौना हो गया जहाँ उसे पति का भरपूर प्यार तो मिला लेकिन उसके जीवन का संघर्ष उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बनता गया। वह तीन कन्याओं की माँ बनी। सास और जेठानियों की उपेक्षा का शिकार बनी। पति उसे बहुत प्यार करता थी। लेखिका के शब्दों में -

 

 

"वह बड़े बाप की बड़ी बात वाली बेटी को पहचानता था। इसके अतिरिक्त परिश्रमी, तेजस्विनी और पति के प्रति रोम-रोम से सच्ची पत्नी को वह चाहता भी बहुत रहा होगा, क्योंकि उसके प्रेम के बल पर ही पत्नी ने अलगौझा करके सबको अँगूठा दिखा दिया।"

बड़ी बेटी का विवाह होने के बाद छत्तीस वर्ष की आयु में भक्तिन को बेसहारा छोड़कर उसका पति इस संसार से विदा हो गया। भक्तिन ने अपने केश मुंडवा कर, कंठीमाला धारण कर तथा गुरुमंत्र लेकर अपने जेठ-जेठानियों की आशाओं पर पानी फेरते हुए दोनों छोटी लड़कियों का विवाह कर अपने बड़े दामाद तथा बेटी को घर जमाई बना लिया। लेकिन बड़ी लड़की विधवा हो गई। जेठ ने विधवा लड़की की शादी साजिश के तहत अपने तीतरबाज़ साले से करवा दिया। परिवार में क्लेश होने लगा और घर की समृद्‌धि चली गई। जमींदार का लगान न चुकाने के कारण एक दिन ज़मींदार ने भक्तिन को दिन भर कड़ी धूप में खड़ा रखा। वह यह अपमान सह नहीं सकी और कमाने शहर, लेखिका के घर आ गई और उसकी सेविका बन गई।

भक्तिन के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताओं ने उसे लेखिका के लिए विशेष बना दिया-

भक्तिन बहुत कर्मठ और मेहनती महिला थी। छोटी बहू होने के कारण घर-गृहस्थी के सारे कार्य का बोझ उठाती थी। वह खेती-बाड़ी की देखभाल भी करती थी।

भक्तिन का जीवन संघर्षों का दूसरा नाम था। माँ की मृत्यु के उपरांत सौतेली माँ के कटु व्यवहार से लेकर ससुराल वालों की उपेक्षा तक, पति की मृत्यु के बाद अकेले ही पारिवारिक-विवाद का सामना करना तथा गाँव से शहर आकर लेखिका के यहा~म नौकरी करने तक भक्तिन ने सदैव विषम परिस्थितियों का सामना किया।

भक्तिन बहुत स्वाभिमानी थी। जब एक दिन ज़मींदार ने लगान न चुकाने के कारण दिनभर कड़ी धूप में खड़ा रखा तब भक्तिन यह अपमान न सह सकी और अकेले ही शहर की ओर कमाने निकल पड़ी।

भक्तिन अपने पति से अत्यंत प्रेम करती थी। उसके जीवित रहते भक्तिन ने कंधे से कंधा मिलाकर घर-गृहस्थी का सारा कार्य किया। पति से कभी शिकायत तक नहीं की। पति की मृत्यु के उपरांत उसने दूसरा विवाह नहीं किया।

भक्तिन समर्पित सेविका भी थी। लेखिका ने उसे सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पद्‌र्धा करने वाली बताया है। वह लेखिका का पूरा ध्यान रखती थी। खाना बनाना, बत्रन, कपड़े, सफाई आदि तो करती ही थी साथ ही लेखिका के बाद सोती और उनसे पहले उठ जाती। वह कभी तुलसी की चाय, दही की लस्सी आदि बनाकर देती थी। लेखिका के काम जैसे चित्र उठाकर रखना, रंग की प्याली धोना, दवात देना, काग़ज़ संभाल देना आदि कार्य कर देती थी। बदरी-केदार के दुर्गम मार्ग में वह लेखिका के आगे तथा धूल भरे रास्ते में वह पीछे रहती ताकि लेखिका को किसी तरह का कष्ट न हो। वह जेल के नाम से डरती थी पर सेवा धर्म के लिए लेखिका के साथ जेल जाने के लिए वायसराय ( लाट) से भी लड़ने के लिए तैयार थी।

भक्तिन के मन में दया का भाव भी भरा हुआ था। जब कोई विद्‌यार्थी जेल जाता तो उसे बहुत दुख होता था। वह छात्रावास की लड़कियों के लिए चाय-नाश्ता भी बना देती थी। उसके मन में बच्चों के प्रति वात्सल्य का भाव भी भरा हुआ था।

भक्तिन दृढ़ व्यक्तित्व की स्त्री थी। वह दूसरों को अपने अनुरूप ढाल लेती थी। वह कुतर्क करने में माहिर थी। पढ़ने में उसका मन नहीं लगता था। वह छुआछूत मानने वाली स्त्री थी। रसोईघर में किसी का भी प्रवेश उसे पसंद नहीं था।

भक्तिन घर में बिखरे हुए पैसों को उठाकर बिना लेखिका को बताए भंडार-घर में मटकी में रख देती थी। यह चोरी ही है लेकिन भक्तिन यह तर्क देती कि अपने घर का रुपया-पैसा सँभाल कर रख देना चोरी नहीं होता है।

निष्कर्ष में हम कह सकते हैं कि भक्तिन एक सांसारिक महिला थी जिसमें अपने विलक्षण व्यक्तित्व से लेखिका का मन मोह लिया था। अत: वह लेखिका को अभिभावक की तरह लगने लगी|

Aditi Andhale 4 years ago

संघर्षशील.4)निडर.5)

Aditi Andhale 4 years ago

1) सच्ची सेविका .2)स्वाभिमानी.3)
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Muskan Maan 4 years ago

शब्दो का स्थयिपन व इन्हे जब चाहे जेसे चाहे पढा जा सकता है
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Gaurav Seth 4 years ago

वैसे तो पत्रकारों के प्रकार की कोई निश्चित सीमा नही है फिर भी पत्रकार के कुछ प्रमुख प्रकार इस प्रकार हैं।

 

1. खोजीपत्रकार — ये पत्रकार वो पत्रकार होते हैं जो घटना या मामले की गहराई से छानबीन करके लोगों के सामने लाते हैं। वो मामले जिन छुपाने की कोशिश की जा रही होती है या भ्रष्टाचार से जुड़े मामले जिन्हे दबाने की कोशिश की जाती है ऐसे मामलों को खोजी पत्रकार अपनी जांच-पड़ताल, गहराई से छानबीन कर उचित साक्ष्य और तथ्यों के साथ जनता के सामने लाते हैं। आजकल टेलीविजन में दिखाये जाने वाले जुड़े स्टिंग आपरेशन भी खोजी पत्रकार ही करते हैं।

2. वाचडॉग पत्रकार — ये वो पत्रकार होते में सरकार के कामकाज पर नजर रखते हैं। अक्सर सरकारें अपने कामकाज के संबध में मीडिया को वही जानकारी उपलब्ध कराती हैं जो वो उनके पक्ष में हो। वाचडॉग पत्रकार सरकारी के कामकाज पर नजर रखे रहते हैं और सरकारी की कमियों को भी जनता के सामने लाते हैं।

3. खेल पत्रकार — ये पत्रकार खेल के विशेषता लिये होते हैं और इनका काम विभिन्न खेलों से जुड़ी गतिविधियों को जनता तक पहुंचाना है। कुछ ऐसे पत्रकार भी होते हैं जो किसी विशेष खेल से संबंधित ही रिपोर्टिंग करते हैं।

4. फिल्म/टीवी/फैशन पत्रकार — ये पत्रकार सिनेमा और टीवी जगत में हो रही हलचल की रिपोर्टिंग के लिये जाने जाते हैं। कलाकारों के इंटरव्यू आदि भी ये पत्रकार ही करते हैं। फैशन जगत से जुड़ी रिपोर्टिंग भी ये पत्रकार ही करते हैं।

5. आर्थिक पत्रकार — ये पत्रकार आर्थिक जगत से जुड़े विषयों पर पत्रकारिता करते हैं। अर्थव्यवस्था से जुड़े मसले हों या शेयर बाजार व स्टॉक एक्सचेंज के उतार-चढ़ाव की रिपोर्टिंग करनी हो तो आर्थिक पत्रकार ही रिपोर्टिंग करते हैं। आर्थिक पत्रकार को अर्थशास्त्र व आर्थिक क्षेत्रों की बारीकियों की अच्छी जानकारी होती है।

6. अपराध पत्रकार — अपराध जगत से जुड़ी  घटनाओं की रिपोर्टिंग अपराध पत्रकार करते हैं। ऐसे पत्रकार अक्सर विभिन्न पुलिस स्टेशनों के चक्कर लगाते रहते हैं। पुलिस अधिकारियों से इनके अच्छे संपर्क होते हैं जिससे किसी आपराधिक वारदात की सूचना मिल जाती है। ऐसे पत्रकारों को किसी आपराधिक मामले की तह तक जाने के लिये अक्सर खोजी पत्रकार की तरह कार्य करना होता है।

7. पीत पत्रकार — किसी क्षेत्र की किसी घटना को सनसनीखेज तरीके से पेश कर और उसमें अफवाह, झूठ या मसाला आदि डालकर पेश करने वाले पत्रकार को पीत पत्रकार कहते है। ऐसे पत्रकार ऐसा इसलिये करते ताकि मसालेदार खबरों से जनता को लुभा सकें। ऐसे पत्रकारों की खबरों की कोई विश्वसनीयता नही  होती है।

8. पेज-थ्री पत्रकार — बहुत से प्रमुख अखबारों के साथ आने वाले सप्लीमेंटस के पेज नं. थ्री पर अक्सर बड़े-बड़े सेलिब्रिटीज और अमीर लोगों की पार्टियो और लाइफ स्टाइल की खबरे छपती रहती हैं। पेज-थ्री पत्रकारों काम ऐसी खबरों की रिपोर्टिंग करना है। ये पत्रकार अक्सर पार्टियों में नजर आते हैं।

9. विज्ञान पत्रकार — विज्ञान से जुड़े विषयों, अंतरिक्ष, अनुसंधान, टेक्नोलोजी से जुड़े विषयों पर ये पत्रकार रिपोर्टिंग करते हैं।

10. एडवोकेसी पत्रकार — ये पत्रकार किसी खास विषय पर लोगों का जनमत जानने या किसी ओपिनियन पोल आदि बनाने के लिये जाने जाते हैं।

11. वैकल्पिक पत्रकार — ये पत्रकार मुख्यधारा के पत्रकारों से अलग होते हैं और इन्हें सरकार, मीडिया संस्थान का समर्थन नही होता है। इनके समर्थन व सहयोग का मुख्य स्रोत इनके पाठक या दर्शक होते हैं। बहुत से फ्रीलांस पत्रकार इसी श्रेणी में आते हैं।

 

इस प्रकार ये  पत्रकारों के प्रमुख पत्रकार हैं।

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Sandeep Brar 4 years ago

इसका मतलब है कि उषा के समय आसमान ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी ने स्लेट पर लाल रंग का चाक मल दिया है और उसे पानी से साफ कर दिया हो।
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Yogita Ingle 4 years ago

  1. प्रिंट माध्यमों के छपे शब्दों में स्थायित्व होता है।
  2. हम उन्हें अपनी रुचि और इच्छा के अनुसार धीरे-धीरे पढ़ सकते हैं।
  3. पढ़ते-पढ़ते कहीं भी रुककर सोच-विचार कर सकते हैं।
  4. इन्हें बार-बार पढ़ा जा सकता है।
  5. इसे पढ़ने की शुरुआत किसी भी पृष्ठ से की जा सकती है।
  6. इन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखकर संदर्भ की भाँति प्रयुक्त किया जा सकता है।
  7. यह लिखित भाषा का विस्तार है, जिसमें लिखित भाषा की सभी विशेषताएँ निहित हैं।
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Aditi Andhale 4 years ago

पुल्लिंग
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Prathu Kirti 4 years ago

Jiss parakr Phool khilte h vese bhi Kavita sabke Mann ko khus krti h but Jo Phool h vo ek na ek din marr jata h ya muurjha jata h parantu Kavita kabhi nhi marrti ya murjati h vo bahut saalo tak jinda rehti h
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Muskan Maan 3 years, 11 months ago

शिल्प सोन्दर्य  में बात की जाती है कि एक कविता की रचना करते समय कवि ने किस-किस बात का ध्यान रखा है। इसमें भाषा, रस, छंद, अलंकार, बिम्ब, शब्द योजना जैसे तद्भव, तत्सम शब्द इत्यादि के विषय में बताना होता है।

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