Ask questions which are clear, concise and easy to understand.
Ask QuestionPosted by Mukesh Kumar 3 years, 11 months ago
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Posted by Yash Yadav 3 years, 11 months ago
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Posted by Jivisha Srivastava 3 years, 11 months ago
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Gaurav Seth 3 years, 11 months ago
needed to communicate effectively with people and customers. This module aims to help you improve your communication skills. Clear and concise communication is of immense importance in work and business environment as there are several parties involved. Various stakeholders, like, customers, employees, vendors, media, etc., are always sending important information to each other.
Deleted syllabus of CBSE Class 12 Hindi Core
Deleted syllabus of CBSE Class 12 Hindi Elective
Posted by Ritu Kanwar 3 years, 11 months ago
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Devil ? 3 years, 11 months ago
Posted by Gaitri Abcd 3 years, 11 months ago
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Posted by Aaman Khan 3 years, 11 months ago
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Posted by Isha Mishra 3 years, 11 months ago
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Posted by Zareen Siddiqui 3 years, 11 months ago
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Posted by Zareen Siddiqui 3 years, 11 months ago
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Posted by Kavita Bhinchar 3 years, 11 months ago
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Gaurav Seth 3 years, 11 months ago
टेलीविज़न जनसंचार का सर्वाधिक ताकतवर व लोकप्रिय माध्यम है। इसमें शब्द, ध्वनि व दृश्य का मेल होता है जिसके कारण इसकी विश्वसनीयता कई गुना बढ़ जाती है। भारत में इसकी शुरुआत 15 सितंबर, 1959 को हुई।
Posted by Tejesh Kumar Karmakar 3 years, 11 months ago
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Shraddha ✨✰✰ 3 years, 11 months ago
Posted by Gokul Dass 3 years, 11 months ago
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Yashraj Chauhan 3 years, 11 months ago
Posted by Ankit Bura 3 years, 11 months ago
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Gaurav Seth 3 years, 11 months ago
पहलवान की ढोलक, कहानी फणीश्वर नाथ रेणु जी द्वारा लिखी गयी प्रसिद्ध कहानी है .इस कहानी में लेखक ने अपने गाँव अंचल एवं संस्कृति को सजीव कर दिया है .ऐसा लगता है कि मानों हरेक पात्र वास्तविक जीवन जी रहा है . कहानी के प्रारंभ पहलवान की ढोलक के बजने से होती है .गाँव में महामारी फैली हुई है .रात में वातावरण में शान्ति है .कभी - कभी झोपड़ी से कराहने व के करने कि आवाज तथा कभी कभी बच्चों के रोने की आवाज आती थी .ऐसे समय पहलवान की ढोलक संध्या से प्रातःकाल तक एक ही गति से बजती रहती थी .यही आवाज मृत गाँव में संजीवनी शक्ति रहती थी .
पहलवान के जीवन के बारे में फणीश्वर नाथ रेणु जी ने बताया है कि नौ बर्ष कि आयु में ही पहलवान के माता - पिता की मृत्यु हो गयी और उसका पालन पोषण उसकी विधवा सास द्वारा किया गया .सास पर हुए अत्याचारों को देखकर लुट्टन को बदला लेने के लिए अपने शरीर को मज़बूत बनाना शुरू कर दिया .वह गाँव में पहलवानी करने लगा .एक वह श्यामनगर के दंगल में दंगल देखने गया था .वह उसने ढोलक की आवाज को अपना गुरु मानकर शेर के बच्चे चाँद सिंह नाम के पहलवान को हराया .उसके बाद राजा ने उसे राज - पहलवान घोषित कर दिया .अब उसका पालन - पोषण राजदरबार से होने लगा .फिर उसने काले खां जैसे प्रसिद्ध पहलवान को हरा कर अपने को अजेय पहलवान घोषित कर दिया .इस प्रकार पंद्रह वर्ष बीत गए .लुट्टन अजेय बना रहा .अपने बेटों को पहलवानी की शिक्षा देने लगा .वह अपने बेटों को ढोलक के प्रताप से अजेय बनने की शिक्षा देता रहा .लेकिन राजा की मृत्यु के बाद राजकुमार विलायत से आने के बाद पहलवान के खर्चों को देखकर उसे दरबार से हटा दिया गया .विवश होकर वह अपने गाँव लौट गया .गाँव आकर वह और उसे बेटे ग्रामीण बच्चों को कुश्ती सिखाने लगा ,लेकिन ग्रामीणों में अरुचि के कारण ,पहलवान के बेटे मजदूरी करने लगे .लेकिन अकस्मात् सूखा और महामारी के कारण एक एक करके लोग मरने लगे .इस प्रकार उनके दोनों बेटे महामारी के चपेट में आ गए .वह उन्हें उठाकर नदी में बहा आया .पुत्रों के मृत्यु के बाद भी वह ढोलक बजाता रहा .तो लोगों के हिम्मत बढ़ी .चार पाँच दिन बाद ढोलक बजनी बंद हो गयी .सुबह लोगों ने देखा कि पहलवान की लाश चित्त पड़ी है .एक शिष्य ने कहा कि गुरु ने कहा था उसकी मौत के बाद उसके शरीर को चिता पर पेट के बल लिटाया जाए क्योंकि वह कभी चित्त नहीं हुआ और चिता सुलगाने के समय ढोल बजाते रहना .इस प्रकार पहलवान के अंत के साथ कहानी का अंत हो जाता है .
Posted by Jatinbhai Chaudhary 3 years, 11 months ago
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Gaurav Seth 3 years, 11 months ago
Answer : मिठाई
पहलवान लुट्टन के सुख-चैन के दिन तब शुरू हुए जब उसने चाँद सिंह को कुश्ती में हराकर अपना नाम रोशन किया। राजा ने उसे दरबार में रखा। इससे उसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। पौष्टिक भोजन व राजा की स्नेह-दृष्टि मिलने से उसने सभी नामी पहलवानों को जमीन सुंघा दी। अब वह दर्शनीय जीव बन गया। मेलों में वह लंबा चोंगा पहनकर तथा अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधकर मस्त हाथी की तरह चलता था। हलवाई उसे मिठाई खिलाते थे।
Posted by Nisha Chaudhary 3 years, 11 months ago
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Posted by Ravi Singh 3 years, 11 months ago
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Gaurav Seth 3 years, 11 months ago
(i) संचारक (Communicator)- संचार की प्रक्रिया में जो संदेश को प्रेषित करता है उसे संचारक कहते हैं। संचार प्रक्रिया में संचारक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि संचारक ही संचार प्रक्रिया की शुरूआत करता है। संचारक को कम्युनिकेटर, सेंडर, स्रोत, सम्प्रेषक, एनकोडर, संवादक इत्यादि नामों से जाना जाता है।
(ii) संदेश (Message)- संचारक या संप्रेषक जो कुछ प्रेषित करता है या भेजता है उसे हम संदेश कहते हैं। दूसरे शब्दों में- प्रापक से संचारक जो कुछ कहना चाहता है वह संदेश है। संदेश लिखित, मौखिक, प्रतीकात्मक तथा शारीरिक हाव-भाव के रूप में होता है।
(iii) माध्यम (Channel)- संचारक संदेश को प्रापक तक पहुंचाने के लिए जिस चीज या वस्तु का प्रयोग करता है उसे माध्यम कहते हैं। संचार प्रक्रिया मे माध्यम सेतु की तरह होता है, जो संचार और प्रापक को जोडऩे का कार्य करता है। संदेश किस तरह के श्रोताओं तक, किस गति से तथा कितने समय में पहुंचाना है, यह माध्यम पर निर्भर करता है। समाचार पत्र, टेलीविजन चैनल, रेडियो, वेब पोर्टल्स, ई-मेल, फैक्स, टेलीप्रिंटर, मोबाइल इत्यादि संचार के अत्याधुनिक माध्यम हैं।
(iv) प्रापक (Receiver)- संचारक माध्यम का उपयोग कर जिस व्यक्ति तक संदेश पहुंचाता है या जिसको ध्यान में रखकर संदेश प्रेषित करता है हम उसे प्रापक कहते हैं। दूसरे शब्दों में वो व्यक्ति जो संचारक द्वारा भेजे गये संदेश को ग्रहण करता है या प्राप्त करता है उसे प्रापक कहते हैं। प्रापक संदेश ग्हण कर उस पर विचार करता है फिर अपनी प्रतिक्रिया संचारक तक पहुंचाता है।
(v) फीडबैक (Feedback)- संचारक द्वारा भेजे गए संदेश को ग्रहण करने के पश्चात प्रापक उसपर मंथन या विचार करता है जिसके बाद वह संचारक को उस संदेश के संबंध में जवाब प्रेषित करता है। प्रापक द्वारा प्रेषित किये गए जवाब को हम प्रतिक्रिया (FEEDBACK) कहते है। फीडबैक सकारात्म और नाकारात्मक दोनों हो सकता है। संचार की प्रक्रिया में फीडबैक काफी महत्वपूर्ण होता है। फीडबैक के बिना सही अर्थों में संचार अधुरा है।
(v) शोर (Noise)- संचार प्रक्रिया में शोर एक प्रकार का अवरोध है, जो सम्प्रेषित संदेश के प्रभाव को कम करता है। शोर को बाधा भी कहा जाता है। संचारक जिस रूप में संदेश को भेजता है, उसी रूप में प्रापक तक शत-प्रतिशत पहुंच जाये तो माना जाता है कि संचार प्रक्रिया में कोई अवरोध नहीं है। लेकिन ऐसा कम ही होता है। सभी सम्प्रेषित संदेश के साथ कोई न कोई शोर अवश्य जुड़ जाता है, जो संचारक द्वारा भेजा गया नहीं होता है। उदाहरणार्थ, रेडियो या टेलीविजन पर आवाज के साथ सरसराहट का आना। मोबाइल पर वार्तालाप के दौरान आसपास की ध्वनियों का जुड़ जाना इत्यादि।
Posted by Ravi Singh 3 years, 11 months ago
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Gaurav Seth 3 years, 11 months ago
- भारत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से प्रारंभ होता है जिसे हम हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जानते हैं।
- यह सभ्यता लगभग 2500 ईस्वी पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग मैं फैली हुई थी,जो कि वर्तमान में पाकिस्तान तथा पश्चिमी भारत के नाम से जाना जाता है।
- सिंधु घाटी सभ्यता मिस्र,मेसोपोटामिया,भारत और चीन की चार सबसे बड़ी प्राचीन नगरीय सभ्यताओं से भी अधिक उन्नत थी।
- 1920 में, भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा किये गए सिंधु घाटी के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से हड़प्पा तथा मोहनजोदडो जैसे दो प्राचीन नगरों की खोज हुई।
- भारतीय पुरातत्त्व विभाग के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने सन 1924 में सिंधु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।
सिंधु घाटी सभ्यता के तीन चरण हैं-
- प्रारंभिक हड़प्पाई सभ्यता (3300ई.पू.-2600ई.पू. तक)
- परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता (2600ई.पू-1900ई.पू. तक)
- उत्तर हड़प्पाई सभ्यता (1900ई.पु.-1300ई.पू. तक)
Posted by Prerna Lakra 3 years, 11 months ago
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Shraddha ✨✰✰ 3 years, 11 months ago
Posted by Pradeep Solanki 3 years, 11 months ago
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Shraddha ✨✰✰ 3 years, 11 months ago
Posted by Divya Rawat 3 years, 11 months ago
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Pradeep Solanki 3 years, 11 months ago
Posted by Harshita Yadav 3 years, 11 months ago
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Posted by Ashwani Pratap Singh Lodhi 3 years, 11 months ago
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Posted by Nikil Jatav 3 years, 11 months ago
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Yogita Ingle 3 years, 11 months ago
पत्रकार तीन प्रकार के होते हैं-
1. पूर्णकालिक
2. अंशकालिक और
3. फ्रीलांसर यानी स्वतंत्र।
- पूर्णकालिक पत्रकार-इस श्रेणी के पत्रकार किसी समाचार संगठन में कमकने वाले नाम बेनोग कर्मबारी होते हैं।
- अंशकालिक पत्रकार-इस श्रेणी के पत्रकार किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर एक निश्चित समयावधि के लिए कार्य करते हैं।
- फ्रीलांसर पत्रकार-इस श्रेणी के पत्रकारों का संबंध किसी विशेष समाचार-पत्र से नहीं होता, बल्कि वे भुगतान के आधार पर अलग-अलग समाचार-पत्रों के लिए लिखते हैं।
Posted by Sonam Bhadauria 3 years, 11 months ago
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Posted by Sonu Duhan 3 years, 11 months ago
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Posted by Tandrima Saha 3 years, 11 months ago
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Posted by Umang Garg 3 years, 11 months ago
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Posted by Priya Rashal Digal 4 years ago
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Gaurav Seth 3 years, 11 months ago
परिचय
केवल एक लड़की होने की वजह से उसका समय पूरा होने के पहले ही कोख़ में एक बालिका भ्रूण को खत्म करना ही कन्या भ्रूण हत्या है।
आंकड़ों के अनुसार, ऐसा पाया गया है कि पुरुष और महिला लिंगानुपात 1961 में 102.4 पुरुष पर 100 महिला, 1981 में 104.1 पुरुषों पर 100 महिला, 2001 में 107.8 पुरुषों पर 100 महिला और 2011 में 108.8 पुरुषों पर 100 महिला हैं। ये दिखाता है कि पुरुष का अनुपात हर बार नियमित तौर पर बढ़ रहा है। भारत में वहन करने योग्य अल्ट्रासाउंड तकनीक के आने के साथ ही लगभग 1990 के प्रारंभ में ही कन्या भ्रूण हत्या शुरुआत हो चुकी थी।
भारत में 1979 में अल्ट्रासाउंड तकनीक की प्रगति आयी हालांकि इसका फैलाव बहुत धीमे था। लेकिन वर्ष 2000 में व्यापक रुप से फैलने लगा। इसका आंकलन किया गया कि 1990 से, लड़की होने की वजह से 10 मिलीयन से ज्यादा कन्या भ्रूणों का गर्भपात हो चुका है। हम देख सकते हैं कि इतिहास और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के द्वारा कन्या भ्रूण हत्या किया जा रहा है। पूर्व में, लोग मानते हैं कि बालक शिशु अधिक श्रेष्ठ होता है क्योंकि वो भविष्य में परिवार के वंश को आगे बढ़ाने के साथ ही हस्तचालित श्रम भी उपलब्ध करायेगा। पुत्र को परिवार की संपत्ति के रुप में देखा जाता है जबकि पुत्री को जिम्मेदारी के रुप में माना जाता है।
प्रचीन समय से ही भारतीय समाज में लड़कियों को लड़कों से कम सम्मान और महत्व दिया जाता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, खेल आदि क्षेत्रों में लड़कों की तरह इनकी पहुँच नहीं होती है। लिंग चयनात्मक गर्भपात से लड़ने के लिये, लोगों के बीच में अत्यधिक जागरुकता की जरुरत है। “बेटियाँ अनमोल होती हैं” के अपने पहले ही भाग के द्वारा आम लोगों के बीच जागरुकता बढ़ाने के लिये टी.वी पर आमिर खान के द्वारा चलाये गये एक प्रसिद्ध कार्यक्रम ‘सत्यमेव जयते’ ने कमाल का काम किया है। जागरुकता कार्यक्रम के माध्यम से बताने के लिये इस मुद्दे पर सांस्कृतिक हस्तक्षेप की जरुरत है। लड़कियों के अधिकार के संदर्भ में हाल के जागरुकता कार्यक्रम जैसे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं या बालिका सुरक्षा अभियान आदि बनाये गये हैं।
महिलाओं को भारतीय समाज में अपने परिवार और समाज के लिये एक अभिशाप के रुप में देखा जाता है। इन कारणों से, तकनीकी उन्नति के समय से ही भारत में बहुत वर्षों से कन्या भ्रूण हत्या की प्रथा चल रही है। 2001 के सेंसस के आंकड़ों के अनुसार, पुरुष और स्त्री अनुपात 1000 से 927 है। कुछ वर्ष पहले, लगभग सभी जोड़े जन्म से पहले शिशु के लिंग को जानने के लिये लिंग निर्धारण जाँच का इस्तेमाल करते थे। और लिंग के लड़की होने पर गर्भपात निश्चित होता था।
भारतीय समाज के लोग लड़के से पूर्व सभी बच्चियों को मारने के द्वारा लड़का प्राप्त करने तक लगातार बच्चे पैदा करने के आदी थे। जनसंख्या नियंत्रण और कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिये, कन्या भ्रूण हत्या और लिंग निर्धारण जाँच के बाद गर्भपात की प्रथा के खिलाफ भारतीय सरकार ने विभिन्न नियम और नियमन बनाये। गर्भपात के द्वारा बच्चियों की हत्या पूरे देश में एक अपराध है। चिकित्सों द्वारा यदि लिंग परीक्षण और गर्भपात कराते पाया जाता है, खासतौर से बच्चियों की हत्या की जाती है तो वो अपराधी होंगे साथ ही उनका लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है। कन्या भ्रूण हत्या से निज़ात पाने के लिये समाज में लड़कियों की महत्ता के बारे में जागरुकता फैलाना एक मुख्य हथियार है।
3Thank You