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Gaurav Seth 4 years, 9 months ago

(i) संचारक (Communicator)- संचार की प्रक्रिया में जो संदेश को प्रेषित करता है उसे संचारक कहते हैं। संचार प्रक्रिया में संचारक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि संचारक ही संचार प्रक्रिया की शुरूआत करता है। संचारक को कम्युनिकेटर, सेंडर, स्रोत, सम्प्रेषक, एनकोडर, संवादक इत्यादि नामों से जाना जाता है।

(ii) संदेश (Message)- संचारक या संप्रेषक जो कुछ प्रेषित करता है या भेजता है उसे हम संदेश कहते हैं। दूसरे शब्दों में- प्रापक से संचारक जो कुछ कहना चाहता है वह संदेश है। संदेश लिखित, मौखिक, प्रतीकात्मक तथा शारीरिक हाव-भाव के रूप में होता है।

(iii) माध्यम (Channel)- संचारक संदेश को प्रापक तक पहुंचाने के लिए जिस चीज या वस्तु का प्रयोग करता है उसे माध्यम कहते हैं। संचार प्रक्रिया मे माध्यम सेतु की तरह होता है, जो संचार और प्रापक को जोडऩे का कार्य करता है। संदेश किस तरह के श्रोताओं तक, किस गति से तथा कितने समय में पहुंचाना है, यह माध्यम पर निर्भर करता है। समाचार पत्र, टेलीविजन चैनल, रेडियो, वेब पोर्टल्स, ई-मेल, फैक्स, टेलीप्रिंटर, मोबाइल इत्यादि संचार के अत्याधुनिक माध्यम हैं।

(iv) प्रापक (Receiver)- संचारक माध्यम का उपयोग कर जिस व्यक्ति तक संदेश पहुंचाता है या जिसको ध्यान में रखकर संदेश प्रेषित करता है हम उसे प्रापक कहते हैं। दूसरे शब्दों में वो व्यक्ति जो संचारक द्वारा भेजे गये संदेश को ग्रहण करता है या प्राप्त करता है उसे प्रापक कहते हैं। प्रापक संदेश ग्हण कर उस पर विचार करता है फिर अपनी प्रतिक्रिया संचारक तक पहुंचाता है।

(v) फीडबैक (Feedback)- संचारक द्वारा भेजे गए संदेश को ग्रहण करने के पश्चात प्रापक उसपर मंथन या विचार करता है जिसके बाद वह संचारक को उस संदेश के संबंध में जवाब प्रेषित करता है। प्रापक द्वारा प्रेषित किये गए जवाब को हम प्रतिक्रिया (FEEDBACK) कहते है। फीडबैक सकारात्म और नाकारात्मक दोनों हो सकता है। संचार की प्रक्रिया में फीडबैक काफी महत्वपूर्ण होता है। फीडबैक के बिना सही अर्थों में संचार अधुरा है।

(v) शोर (Noise)- संचार प्रक्रिया में शोर एक प्रकार का अवरोध है, जो सम्प्रेषित संदेश के प्रभाव को कम करता है। शोर को बाधा भी कहा जाता है। संचारक जिस रूप में संदेश को भेजता है, उसी रूप में प्रापक तक शत-प्रतिशत पहुंच जाये तो माना जाता है कि संचार प्रक्रिया में कोई अवरोध नहीं है। लेकिन ऐसा कम ही होता है। सभी सम्प्रेषित संदेश के साथ कोई न कोई शोर अवश्य जुड़ जाता है, जो संचारक द्वारा भेजा गया नहीं होता है। उदाहरणार्थ, रेडियो या टेलीविजन पर आवाज के साथ सरसराहट का आना। मोबाइल पर वार्तालाप के दौरान आसपास की ध्वनियों का जुड़ जाना इत्यादि।

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Gaurav Seth 4 years, 9 months ago

  • भारत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से प्रारंभ होता है जिसे हम हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जानते हैं।
  • यह सभ्यता लगभग 2500 ईस्वी पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग मैं फैली हुई थी,जो कि वर्तमान में पाकिस्तान तथा पश्चिमी भारत के नाम से जाना जाता है।
  • सिंधु घाटी सभ्यता मिस्र,मेसोपोटामिया,भारत और चीन की चार सबसे बड़ी प्राचीन नगरीय सभ्यताओं से भी अधिक उन्नत थी।
  • 1920 में, भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा किये गए सिंधु घाटी के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से हड़प्पा तथा मोहनजोदडो जैसे दो प्राचीन नगरों की खोज हुई।
  • भारतीय पुरातत्त्व विभाग के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने सन 1924 में सिंधु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।

सिंधु घाटी सभ्यता के तीन चरण हैं-

  1. प्रारंभिक हड़प्पाई सभ्यता (3300ई.पू.-2600ई.पू. तक)
  2. परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता (2600ई.पू-1900ई.पू. तक)
  3. उत्तर हड़प्पाई सभ्यता (1900ई.पु.-1300ई.पू. तक)
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Shraddha ✨✰✰ 4 years, 9 months ago

सास द्वारा उसका पालन-पोषण किया जाना और सास पर हुए अत्याचारों का बदला लेने के लिए पहलवान बनना। , बिना गुरु के कुश्ती सीखना। ... , पत्नी की मृत्यु का दुःख सहना और दो छोटे बच्चों का भार संभालना।
  • 1 answers

Shraddha ✨✰✰ 4 years, 9 months ago

✯व्यवस्था के साथ तालमेल बैठाकर चलने वाली मीडिया को मुख्यधारा का मीडिया कहा जाता है इस तरह के मीडिया आम तौर पर व्यवस्था के अनुकूल और आलू की एक निश्चित दायरे में ही काम करती है इसके विपरीत जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने में और उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करता है उसे हम वैकल्पिक पत्रकारिता कहते हैं
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Pradeep Solanki 4 years, 9 months ago

kisi samachar sangatan k liye ek nischit mandey par kaam karne wala patrakar anshkalik patrakar kehlata h..
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Yogita Ingle 4 years, 9 months ago

पत्रकार तीन प्रकार के होते हैं-

1. पूर्णकालिक
2. अंशकालिक और
3. फ्रीलांसर यानी स्वतंत्र।

  1.  पूर्णकालिक पत्रकार-इस श्रेणी के पत्रकार किसी समाचार संगठन में कमकने वाले नाम बेनोग कर्मबारी होते हैं।
  2. अंशकालिक पत्रकार-इस श्रेणी के पत्रकार किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर एक निश्चित समयावधि के लिए कार्य करते हैं।
  3. फ्रीलांसर पत्रकार-इस श्रेणी के पत्रकारों का संबंध किसी विशेष समाचार-पत्र से नहीं होता, बल्कि वे भुगतान के आधार पर अलग-अलग समाचार-पत्रों के लिए लिखते हैं।
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Ashwani Kumar 4 years, 9 months ago

Your mother
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Kumkum Teotia 4 years, 9 months ago

Kese likhte h
  • 1 answers

Utkarsh Patel 4 years, 9 months ago

क्योंकि उनकी भावनाएं उनके परिवार वालों से नहीं मिलती थी। वे किशनदा को अपना गुरु मानते थे इसलिए वे उनके पगचिन्हों पर चलते थे , जोकि उनके परिवार वालों को मंजूर नहीं था
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Kavita Yadav 4 years, 9 months ago

How many chapters & topics are deleted????
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Utkarsh Patel 4 years, 9 months ago

बाज़ारूपन

Nishu Bhardwaj 4 years, 9 months ago

बाजा रूपन
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Sheetal Singh 4 years, 9 months ago

But what do I help you??

Sheetal Singh 4 years, 9 months ago

Yes, ofcourse...

Monu Kumar Mandal 4 years, 9 months ago

Sheetal, you can help me

Sheetal Singh 4 years, 9 months ago

Thanks...?
  • 2 answers

Vikas Parashar 4 years, 7 months ago

?

Gaurav Seth 4 years, 10 months ago

सेवा में,

 

संपादक,

नवभारत टाइम्स,

नई दिल्ली।

 

महोदय,

अपने दैनिक समाचा-पत्रों के ’पाठकों के पत्र’ शीर्षक के अंतर्गत समाज में बढ़ते अपराधों पर मेरे विचार जनहित में प्रकाशित करने का कष्ट करें।

दिल्ली में पिछले एक वर्ष से अफसरशाही को मनमानी करने का पूरा अवसर मिला हुआ है। यही कारण है कि वे अपने स्वार्थों की सिद्धि में तो लगे हुए हैं, पर जन-समस्याओं के प्रति उपेक्षापूर्ण दृष्टिकोण अपनाए हुए हैं।

दिल्ली कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज रह ही नहीं गई है। संभ्रांत काॅलोनियों में दिन दहाडें डकैती और हत्या की घटनाएँ आम हो गई हैं। यहाँ के नागरिकों का जीवन असुरक्षित हो गया है। नागरिकों की समस्यओं पर ध्यान देने की फुर्सत किसी को नहीं है। मैं आपके समाचार-पत्र के माध्यम से केन्द्र सरकार में बैठे मंत्रियों से अनुरोध करती हूँ कि दिल्ली में जन-प्रतिनिधियों की शासन-व्यवस्था को शीघ्र बहाल करें एवं महँगाई पर काबू पाने के सार्थक प्रयास करें।

धन्यवाद सहित,

भवदीया

 

प्रतिभा शर्मा

  • 1 answers

Gaurav Seth 4 years, 10 months ago

वास्तव में तो पानी की ही माँग की जाती है। ‘गुड़धानी’ शब्द तो इसके साथ जोड़ दिया गया है। पानी बरसेगा तभी खेतों में ईख और धान उत्पन्न होगा। ईख से गुड बनेगा और गड़धानी तैयार हो पाएगी।

‘गुड़धानी’ का अर्थ पाठ के संदर्भ में अनाज से है। बच्चे मेघों से पानी की माँग भी करते हैं। इसका कारण यह है कि बारिश से प्यास तो बुझती है पर पेट भरने के लिए अनाज की आवश्यकता होती है। अत: वे वर्षा के साथ गुड़धानी (अनाज) की भी माँग करते हैं।

  • 1 answers

Gaurav Seth 4 years, 10 months ago

लेखक पाठशाला जाने के लिये तड़पता है। उसके पिता ने उसे स्कूल जाने से रोक दिया है। पिता को मनाने में लेखक और उसकी माँ सफल नहीं हो पाते हैं। गाँव के सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्ति दत्ताजी राव अंतिम उपाय थे। लेखक और उसकी माँ उनके पास जाते हैं। उनसे दबाव डलवाने के लिये उनको एक झूठ का सहारा लेना पड़ता है। इसके बाद दत्ताजी राव के कहने पर लेखक के पिता उसको पढ़ाने के लिए तैयार हो जाते हैं। लेखक पाठशाला जाना शुरू कर देता है। वहाँ दूसरे लडुकों से उसकी दोस्ती होती है। वह पढ़ने के लिए हर तरह का प्रयास करता है। मराठी के एक बहुत अच्छे अध्यापक के प्रभाव में वह कविता भी रचने लगता है। अगर वह झूठ नहीं बोला जाता तो ये सारे घटनाक्रम घटित ही नहीं होते।

झूठ न बोलने से दत्ता जी राव उसके पिता के ऊपर दबाव नहीं दे पाते। उसके पिता अपनी तरह से लेखक के जीवन को ढालता। लेखक का संबंध पढ़ाई-लिखाई से नहीं हो पाता। उसके संघर्ष की कहानी ही नहीं बन पाती। आज जो कहानी हमें जूझने की प्रेरणा देती है, वह आज हमारे सामने नहीं होती। इस तरह झूठ का सहारा लेने से जीवन और सपनों का विकास होता है जिसके आधार पर लेखक अपनी आत्मकथा लिख पाता है।

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Yogita Ingle 4 years, 10 months ago

स्मृतियों की रेखाएँ" में संकलित "भक्तिन" महादेवी वर्मा का प्रसिद्‌ध संस्मरणात्मक रेखाचित्र है। इसमें महादेवी वर्मा ने अपनी सेविका भक्तिन के अतीत और वर्तमान का परिचय देते हुए उसके व्यक्तित्व का रोचक किन्तु मर्मस्पर्शी शब्द चित्रण किया है। महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य के छायावादी काल की प्रमुख कवयित्री है। उन्हें आधुनिक युग का मीरा भी कहा जाता है। महादेवी वर्मा ने संस्कृत से एम०ए० किया और तत्पश्चात प्रयाग-महिला विद्‌यापीठ की प्रधानाचार्या नियुक्त की गईं। महादेवी वर्मा ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। उन्होंने न केवल साहित्य लिखा बल्कि पीड़ित बच्चों और महिलाओं की सेवा भी की।

महादेवी वर्मा की भाषा संस्कृतनिष्ठ सहज तथा चित्रात्मक है जिसमें हिन्दी के तद्‌भव व देशज शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। इनकी कुछ प्रसिद्‌ध रचनाओं के नाम हैं - गिल्लू, सोना, अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, हिमालय आदि।

 

भक्तिन का वास्तविक नाम लछमिन था। उसके चरित्र में अनेक गुण और कुछ अवगुण भी थे। बचपन में अपनी माँ का साया छूट जाने के कारण उसका जीवन संघर्षपूर्ण रहा। सौतेली माँ ने उसके साथ हमेशा बुरा व्यवहार किया। भक्तिन का पाँच वर्ष की आयु में विवाह और नौ वर्ष की छोटी आयु में ससुराल गौना हो गया जहाँ उसे पति का भरपूर प्यार तो मिला लेकिन उसके जीवन का संघर्ष उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बनता गया। वह तीन कन्याओं की माँ बनी। सास और जेठानियों की उपेक्षा का शिकार बनी। पति उसे बहुत प्यार करता थी। लेखिका के शब्दों में -

 

 

"वह बड़े बाप की बड़ी बात वाली बेटी को पहचानता था। इसके अतिरिक्त परिश्रमी, तेजस्विनी और पति के प्रति रोम-रोम से सच्ची पत्नी को वह चाहता भी बहुत रहा होगा, क्योंकि उसके प्रेम के बल पर ही पत्नी ने अलगौझा करके सबको अँगूठा दिखा दिया।"

बड़ी बेटी का विवाह होने के बाद छत्तीस वर्ष की आयु में भक्तिन को बेसहारा छोड़कर उसका पति इस संसार से विदा हो गया। भक्तिन ने अपने केश मुंडवा कर, कंठीमाला धारण कर तथा गुरुमंत्र लेकर अपने जेठ-जेठानियों की आशाओं पर पानी फेरते हुए दोनों छोटी लड़कियों का विवाह कर अपने बड़े दामाद तथा बेटी को घर जमाई बना लिया। लेकिन बड़ी लड़की विधवा हो गई। जेठ ने विधवा लड़की की शादी साजिश के तहत अपने तीतरबाज़ साले से करवा दिया। परिवार में क्लेश होने लगा और घर की समृद्‌धि चली गई। जमींदार का लगान न चुकाने के कारण एक दिन ज़मींदार ने भक्तिन को दिन भर कड़ी धूप में खड़ा रखा। वह यह अपमान सह नहीं सकी और कमाने शहर, लेखिका के घर आ गई और उसकी सेविका बन गई।

भक्तिन के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताओं ने उसे लेखिका के लिए विशेष बना दिया-

भक्तिन बहुत कर्मठ और मेहनती महिला थी। छोटी बहू होने के कारण घर-गृहस्थी के सारे कार्य का बोझ उठाती थी। वह खेती-बाड़ी की देखभाल भी करती थी।

भक्तिन का जीवन संघर्षों का दूसरा नाम था। माँ की मृत्यु के उपरांत सौतेली माँ के कटु व्यवहार से लेकर ससुराल वालों की उपेक्षा तक, पति की मृत्यु के बाद अकेले ही पारिवारिक-विवाद का सामना करना तथा गाँव से शहर आकर लेखिका के यहा~म नौकरी करने तक भक्तिन ने सदैव विषम परिस्थितियों का सामना किया।

भक्तिन बहुत स्वाभिमानी थी। जब एक दिन ज़मींदार ने लगान न चुकाने के कारण दिनभर कड़ी धूप में खड़ा रखा तब भक्तिन यह अपमान न सह सकी और अकेले ही शहर की ओर कमाने निकल पड़ी।

भक्तिन अपने पति से अत्यंत प्रेम करती थी। उसके जीवित रहते भक्तिन ने कंधे से कंधा मिलाकर घर-गृहस्थी का सारा कार्य किया। पति से कभी शिकायत तक नहीं की। पति की मृत्यु के उपरांत उसने दूसरा विवाह नहीं किया।

भक्तिन समर्पित सेविका भी थी। लेखिका ने उसे सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पद्‌र्धा करने वाली बताया है। वह लेखिका का पूरा ध्यान रखती थी। खाना बनाना, बत्रन, कपड़े, सफाई आदि तो करती ही थी साथ ही लेखिका के बाद सोती और उनसे पहले उठ जाती। वह कभी तुलसी की चाय, दही की लस्सी आदि बनाकर देती थी। लेखिका के काम जैसे चित्र उठाकर रखना, रंग की प्याली धोना, दवात देना, काग़ज़ संभाल देना आदि कार्य कर देती थी। बदरी-केदार के दुर्गम मार्ग में वह लेखिका के आगे तथा धूल भरे रास्ते में वह पीछे रहती ताकि लेखिका को किसी तरह का कष्ट न हो। वह जेल के नाम से डरती थी पर सेवा धर्म के लिए लेखिका के साथ जेल जाने के लिए वायसराय ( लाट) से भी लड़ने के लिए तैयार थी।

भक्तिन के मन में दया का भाव भी भरा हुआ था। जब कोई विद्‌यार्थी जेल जाता तो उसे बहुत दुख होता था। वह छात्रावास की लड़कियों के लिए चाय-नाश्ता भी बना देती थी। उसके मन में बच्चों के प्रति वात्सल्य का भाव भी भरा हुआ था।

भक्तिन दृढ़ व्यक्तित्व की स्त्री थी। वह दूसरों को अपने अनुरूप ढाल लेती थी। वह कुतर्क करने में माहिर थी। पढ़ने में उसका मन नहीं लगता था। वह छुआछूत मानने वाली स्त्री थी। रसोईघर में किसी का भी प्रवेश उसे पसंद नहीं था।

भक्तिन घर में बिखरे हुए पैसों को उठाकर बिना लेखिका को बताए भंडार-घर में मटकी में रख देती थी। यह चोरी ही है लेकिन भक्तिन यह तर्क देती कि अपने घर का रुपया-पैसा सँभाल कर रख देना चोरी नहीं होता है।

निष्कर्ष में हम कह सकते हैं कि भक्तिन एक सांसारिक महिला थी जिसमें अपने विलक्षण व्यक्तित्व से लेखिका का मन मोह लिया था। अत: वह लेखिका को अभिभावक की तरह लगने लगी|

Aditi Andhale 4 years, 10 months ago

संघर्षशील.4)निडर.5)

Aditi Andhale 4 years, 10 months ago

1) सच्ची सेविका .2)स्वाभिमानी.3)
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