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Ask questions which are clear, concise and easy to understand.

Ask Question
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Gaurav Seth 3 years, 11 months ago

परिचय

केवल एक लड़की होने की वजह से उसका समय पूरा होने के पहले ही कोख़ में एक बालिका भ्रूण को खत्म करना ही कन्या भ्रूण हत्या है।

आंकड़ों के अनुसार, ऐसा पाया गया है कि पुरुष और महिला लिंगानुपात 1961 में 102.4 पुरुष पर 100 महिला, 1981 में 104.1 पुरुषों पर 100 महिला, 2001 में 107.8 पुरुषों पर 100 महिला और 2011 में 108.8 पुरुषों पर 100 महिला हैं। ये दिखाता है कि पुरुष का अनुपात हर बार नियमित तौर पर बढ़ रहा है। भारत में वहन करने योग्य अल्ट्रासाउंड तकनीक के आने के साथ ही लगभग 1990 के प्रारंभ में ही कन्या भ्रूण हत्या शुरुआत हो चुकी थी।

भारत में 1979 में अल्ट्रासाउंड तकनीक की प्रगति आयी हालांकि इसका फैलाव बहुत धीमे था। लेकिन वर्ष 2000 में व्यापक रुप से फैलने लगा। इसका आंकलन किया गया कि 1990 से, लड़की होने की वजह से 10 मिलीयन से ज्यादा कन्या भ्रूणों का गर्भपात हो चुका है। हम देख सकते हैं कि इतिहास और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के द्वारा कन्या भ्रूण हत्या किया जा रहा है। पूर्व में, लोग मानते हैं कि बालक शिशु अधिक श्रेष्ठ होता है क्योंकि वो भविष्य में परिवार के वंश को आगे बढ़ाने के साथ ही हस्तचालित श्रम भी उपलब्ध करायेगा। पुत्र को परिवार की संपत्ति के रुप में देखा जाता है जबकि पुत्री को जिम्मेदारी के रुप में माना जाता है।

प्रचीन समय से ही भारतीय समाज में लड़कियों को लड़कों से कम सम्मान और महत्व दिया जाता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, खेल आदि क्षेत्रों में लड़कों की तरह इनकी पहुँच नहीं होती है। लिंग चयनात्मक गर्भपात से लड़ने के लिये, लोगों के बीच में अत्यधिक जागरुकता की जरुरत है। “बेटियाँ अनमोल होती हैं” के अपने पहले ही भाग के द्वारा आम लोगों के बीच जागरुकता बढ़ाने के लिये टी.वी पर आमिर खान के द्वारा चलाये गये एक प्रसिद्ध कार्यक्रम ‘सत्यमेव जयते’ ने कमाल का काम किया है। जागरुकता कार्यक्रम के माध्यम से बताने के लिये इस मुद्दे पर सांस्कृतिक हस्तक्षेप की जरुरत है। लड़कियों के अधिकार के संदर्भ में हाल के जागरुकता कार्यक्रम जैसे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं या बालिका सुरक्षा अभियान आदि बनाये गये हैं।

महिलाओं को भारतीय समाज में अपने परिवार और समाज के लिये एक अभिशाप के रुप में देखा जाता है। इन कारणों से, तकनीकी उन्नति के समय से ही भारत में बहुत वर्षों से कन्या भ्रूण हत्या की प्रथा चल रही है। 2001 के सेंसस के आंकड़ों के अनुसार, पुरुष और स्त्री अनुपात 1000 से 927 है। कुछ वर्ष पहले, लगभग सभी जोड़े जन्म से पहले शिशु के लिंग को जानने के लिये लिंग निर्धारण जाँच का इस्तेमाल करते थे। और लिंग के लड़की होने पर गर्भपात निश्चित होता था।

भारतीय समाज के लोग लड़के से पूर्व सभी बच्चियों को मारने के द्वारा लड़का प्राप्त करने तक लगातार बच्चे पैदा करने के आदी थे। जनसंख्या नियंत्रण और कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिये, कन्या भ्रूण हत्या और लिंग निर्धारण जाँच के बाद गर्भपात की प्रथा के खिलाफ भारतीय सरकार ने विभिन्न नियम और नियमन बनाये। गर्भपात के द्वारा बच्चियों की हत्या पूरे देश में एक अपराध है। चिकित्सों द्वारा यदि लिंग परीक्षण और गर्भपात कराते पाया जाता है, खासतौर से बच्चियों की हत्या की जाती है तो वो अपराधी होंगे साथ ही उनका लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है। कन्या भ्रूण हत्या से निज़ात पाने के लिये समाज में लड़कियों की महत्ता के बारे में जागरुकता फैलाना एक मुख्य हथियार है।

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Gaurav Seth 3 years, 11 months ago

needed to communicate effectively with people and customers. This module aims to help you improve your communication skills. Clear and concise communication is of immense importance in work and business environment as there are several parties involved. Various stakeholders, like, customers, employees, vendors, media, etc., are always sending important information to each other.

Deleted syllabus of CBSE Class 12 Hindi Core

 

 

Deleted syllabus of CBSE Class 12 Hindi Elective

 

Vedika Kukreja 3 years, 11 months ago

No reduction of Chapters in Vitan
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Anand Sharma 3 years, 9 months ago

Radio m surf sun aktae h Lenin TV m देख भी सकते है

Devil ? 3 years, 11 months ago

Radio m sirf sun sktAe h lekin tv m श्रव्य व दृश्य बिंब दोनों होते हैं । -------
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Vedika Kukreja 3 years, 11 months ago

Search On Google
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Jitu Prajapati 3 years, 11 months ago

कवि ने किस मंदिरा का पान किया है

Gaurav Seth 3 years, 11 months ago

टेलीविज़न जनसंचार का सर्वाधिक ताकतवर व लोकप्रिय माध्यम है। इसमें शब्द, ध्वनि व दृश्य का मेल होता है जिसके कारण इसकी विश्वसनीयता कई गुना बढ़ जाती है। भारत में इसकी शुरुआत 15 सितंबर, 1959 को हुई

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Shraddha ✨✰✰ 3 years, 11 months ago

?????? ? ??? दक्षिण एशिया के गांव आम तौर पर कच्चे मकानों, कच्ची सड़कों और पिछड़ेपन के लिए जाने जाते हैं. लेकिन भारत के गुजरात प्रदेश में दर्जनों ऐसे गांव हैं जिन्हें 'करोड़पतियों के गांव' कहा जाता है. ये गांव अत्यंत खुशहाल और समृद्धि के स्तर पर कई शहरों से बेहतर हैं. यह विरोधाभास किसी को भी चकित कर सकता है कि यहां के 'ग्रामीणों' ने अरबों रुपये बैंकों में जमा कर रखे हैं. कच्छ इलाके में बल्दिया गांव को गुजरात का सबसे धनी गांव कहा जाता है- चौड़ी सड़कें, बड़े और सुंदर मकान इस गांव की समृद्धि का परिचय देते हैं. यहां की सुंदरता और समृद्धि किसी यूरोपीय गांव में होने का भ्रम पैदा कर सकती है. विदेश में भी संपत्ति स्थानीय पत्रकार गोविंद केराई बताते हैं, "यहां के आठ बैंकों के दो साल का डेटा अगर देखें तो इनमें डेढ़ हज़ार करोड़ रुपये जमा हैं. डाकखाने में भी लोगों ने पांच सौ करोड़ रुपये से ज़्यादा जमा कर रखे हैं." गांव के कई मकानों में ताले पड़े हुए हैं. गांव के निवासी देवजी विजोड़िया ने बताया कि यहां के अधिकतर निवासी विदेश में रहते हैं. वो कहते हैं, "मैं कीनिया का हूं, सामने जो दो लोग बैठे हैं वो ब्रिटेन में रहते हैं. हम लोगों का घर वहां भी है और यहां भी. हम लोग साल में दो तीन महीने यहां आकर रहते हैं. हमारे बच्चे विदेश में ही रहते हैं." गांव में नौ बैंकों की शाखाएं भुज शहर के पास ऐसे कई गांव हैं जिन्हें 'करोड़पतियों का गांव' कहा जाता है. बल्दिया से कुछ ही दूरी पर है गांव माधापुर जो अपनी खुशहाली के लिए दूर-दूर तक जाना जाता है. इस गांव में नौ बैंकों की शाखाएं हैं और दर्जनों एटीएम लगे हुए हैं. एक स्थानीय किसान खेमजी जादव ने बताया कि यहां के अधिकतर निवासी करोड़पति हैं. वो कहते हैं, "यहां सब धनवान हैं, करोड़पति हैं. लोग बाहर कमाते हैं और यहां पैसा लाते हैं." गांव में रहने वाले अधिकतर लोग पटेल बिरादरी के हैं. बल्दिया गांव के निवासी जादव जी गरेसिया एक कंस्ट्रक्शन कंपनी के मालिक हैं. उनका परिवार पहले विदेश में था. वो बताते हैं कि यहां का पुश्तैनी पेशा खेती है. लेकिन आज की तारीख में यहां के लोग कई मुल्कों में फैले हुए हैं. वो कहते हैं, "इस गांव के लोग अफ्रीका, ख़ास तौर पर नैरोबी में ज़्यादा हैं. कुछ लोग ब्रिटेन में भी आबाद हैं. बहुत सारे लोग सेशैल्स में भी हैं. अब ऑस्ट्रेलिया भी जा रहे हैं." बड़े बूढ़े ज़्यादा, नौजवान कम लोगों ने बरसों तक विदेशों में मेहनत करने के बाद सफलता हासिल की और दौलत कमाई. माधापुर की गांव प्रमुख प्रमिला बेन अर्जुन पुड़िया कहती हैं कि इसके बाद भी लोगों ने गांव से अपना रिश्ता बनाए रखा है. वो कहती हैं, "लोग अपने परिवार के साथ जाते हैं, वहां धन-दौलत कमाते हैं, लेकिन आख़िर में वो यहीं आकर रहते हैं." इन गांवों में नौजवान कम और बड़े-बूढ़े ज़्यादा दिखाई देते हैं. एक छात्रा प्रियंका ने बताया कि गांव के अधिकतर नौजवान विदेश में हैं. वो कहती हैं, "मां बाप यहां आ जाते हैं. अब यहां भी हर तरह की सुविधाएं हैं. यहां भी पैसा आ गया है. इसलिए अब कुछ नौजवान यहां भी रहने लगे हैं और यहीं कारोबार कर रहे हैं." लगभग सौ साल पहले यहां के लोगों ने व्यापार और बेहतर ज़िंदगी की तलाश में विदेशों का रुख़ किया था. वहां से वो एक बेहतर सोच और आर्थिक संपन्नता के साथ लौटे और फिर उसे आगे बढ़ाया. ये खुशहाली सिर्फ इन्हीं गांवों तक सीमित नहीं है. यहां से लगभग बीस किलोमीटर दूर गुजरात का भुज शहर स्थित है जिसकी गिनती भारत के खुशहाल शहरों में होती है. ℑ ???? ???? ?? ???? ???????? ??? ???.?✨✨......
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Yashraj Chauhan 3 years, 11 months ago

Bachpan m hi uske mata pita ki mratyu ho gai or uska pAlan poshan uski sans ne kiya Or kuch samay pachshchat uski patni ki mratyu ho gai or usne apne do ladko ka palan poshan kiya Phir use rajdarbar se nikal diya gya Or ant m use mahamari ka samna krna pdha
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Gaurav Seth 3 years, 11 months ago

 पहलवान की ढोलक, कहानी फणीश्वर नाथ रेणु  जी द्वारा लिखी गयी प्रसिद्ध कहानी है .इस कहानी में लेखक ने अपने गाँव अंचल एवं संस्कृति को सजीव कर दिया है .ऐसा लगता है कि मानों हरेक पात्र वास्तविक जीवन जी रहा है . कहानी के प्रारंभ पहलवान की ढोलक के बजने से होती है .गाँव में महामारी फैली हुई है .रात में वातावरण में शान्ति है .कभी - कभी झोपड़ी से कराहने व के करने कि आवाज तथा कभी कभी बच्चों के रोने की आवाज आती थी .ऐसे समय पहलवान की ढोलक संध्या से प्रातःकाल तक एक ही गति से बजती रहती थी .यही आवाज मृत गाँव में संजीवनी शक्ति रहती थी . 

पहलवान के जीवन के बारे में फणीश्वर नाथ रेणु जी  ने बताया है कि नौ बर्ष कि आयु में ही पहलवान  के माता - पिता की मृत्यु हो गयी और उसका पालन पोषण उसकी विधवा सास द्वारा किया गया .सास पर हुए अत्याचारों को देखकर लुट्टन को बदला लेने के लिए अपने शरीर को मज़बूत बनाना शुरू कर दिया .वह गाँव में पहलवानी करने लगा .एक वह श्यामनगर के दंगल में दंगल देखने गया था .वह उसने ढोलक की आवाज को अपना गुरु मानकर शेर के बच्चे चाँद सिंह नाम के पहलवान को हराया .उसके बाद राजा ने उसे राज - पहलवान घोषित कर दिया .अब उसका पालन - पोषण राजदरबार से होने लगा .फिर उसने काले खां जैसे प्रसिद्ध पहलवान को हरा कर अपने को अजेय पहलवान घोषित कर दिया .इस प्रकार पंद्रह वर्ष बीत गए .लुट्टन अजेय बना रहा .अपने बेटों को पहलवानी की शिक्षा देने लगा .वह अपने बेटों को ढोलक के प्रताप से अजेय बनने की शिक्षा देता रहा .लेकिन राजा की मृत्यु के बाद राजकुमार विलायत से आने के बाद पहलवान के खर्चों को देखकर उसे दरबार से हटा दिया गया .विवश होकर वह अपने गाँव लौट गया .गाँव आकर वह और उसे बेटे ग्रामीण बच्चों को कुश्ती सिखाने लगा ,लेकिन ग्रामीणों में अरुचि के कारण ,पहलवान के बेटे मजदूरी करने लगे .लेकिन अकस्मात् सूखा और महामारी के कारण एक एक करके लोग मरने लगे .इस प्रकार उनके दोनों बेटे महामारी के चपेट में आ गए .वह उन्हें उठाकर नदी में बहा आया .पुत्रों  के मृत्यु  के बाद भी वह ढोलक बजाता रहा .तो लोगों के हिम्मत बढ़ी .चार पाँच दिन बाद ढोलक बजनी बंद हो गयी .सुबह लोगों ने देखा कि पहलवान की लाश चित्त पड़ी है .एक शिष्य ने कहा कि गुरु ने कहा था उसकी मौत के बाद उसके शरीर को चिता पर पेट के बल लिटाया जाए क्योंकि वह कभी चित्त नहीं हुआ और चिता सुलगाने के समय ढोल बजाते रहना .इस प्रकार पहलवान  के अंत के साथ कहानी का अंत हो जाता है .

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Shraddha ✨✰✰ 3 years, 11 months ago

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Shraddha ✨✰✰ 3 years, 11 months ago

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Gaurav Seth 3 years, 11 months ago

Answer : मिठाई

पहलवान लुट्टन के सुख-चैन के दिन तब शुरू हुए जब उसने चाँद सिंह को कुश्ती में हराकर अपना नाम रोशन किया। राजा ने उसे दरबार में रखा। इससे उसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। पौष्टिक भोजन व राजा की स्नेह-दृष्टि मिलने से उसने सभी नामी पहलवानों को जमीन सुंघा दी। अब वह दर्शनीय जीव बन गया। मेलों में वह लंबा चोंगा पहनकर तथा अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधकर मस्त हाथी की तरह चलता था। हलवाई उसे मिठाई खिलाते थे।

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Shraddha ✨✰✰ 3 years, 11 months ago

Aaroh book ka chapter no.2- ʙᴀᴊᴀʀ ᴅᴀʀsᴀɴ ʜᴀɪ...

Nisha Chaudhary 3 years, 11 months ago

1 book k

Shraddha ✨✰✰ 3 years, 11 months ago

Kon si book ka chapter 2nd???
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Gaurav Seth 3 years, 11 months ago

(i) संचारक (Communicator)- संचार की प्रक्रिया में जो संदेश को प्रेषित करता है उसे संचारक कहते हैं। संचार प्रक्रिया में संचारक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि संचारक ही संचार प्रक्रिया की शुरूआत करता है। संचारक को कम्युनिकेटर, सेंडर, स्रोत, सम्प्रेषक, एनकोडर, संवादक इत्यादि नामों से जाना जाता है।

(ii) संदेश (Message)- संचारक या संप्रेषक जो कुछ प्रेषित करता है या भेजता है उसे हम संदेश कहते हैं। दूसरे शब्दों में- प्रापक से संचारक जो कुछ कहना चाहता है वह संदेश है। संदेश लिखित, मौखिक, प्रतीकात्मक तथा शारीरिक हाव-भाव के रूप में होता है।

(iii) माध्यम (Channel)- संचारक संदेश को प्रापक तक पहुंचाने के लिए जिस चीज या वस्तु का प्रयोग करता है उसे माध्यम कहते हैं। संचार प्रक्रिया मे माध्यम सेतु की तरह होता है, जो संचार और प्रापक को जोडऩे का कार्य करता है। संदेश किस तरह के श्रोताओं तक, किस गति से तथा कितने समय में पहुंचाना है, यह माध्यम पर निर्भर करता है। समाचार पत्र, टेलीविजन चैनल, रेडियो, वेब पोर्टल्स, ई-मेल, फैक्स, टेलीप्रिंटर, मोबाइल इत्यादि संचार के अत्याधुनिक माध्यम हैं।

(iv) प्रापक (Receiver)- संचारक माध्यम का उपयोग कर जिस व्यक्ति तक संदेश पहुंचाता है या जिसको ध्यान में रखकर संदेश प्रेषित करता है हम उसे प्रापक कहते हैं। दूसरे शब्दों में वो व्यक्ति जो संचारक द्वारा भेजे गये संदेश को ग्रहण करता है या प्राप्त करता है उसे प्रापक कहते हैं। प्रापक संदेश ग्हण कर उस पर विचार करता है फिर अपनी प्रतिक्रिया संचारक तक पहुंचाता है।

(v) फीडबैक (Feedback)- संचारक द्वारा भेजे गए संदेश को ग्रहण करने के पश्चात प्रापक उसपर मंथन या विचार करता है जिसके बाद वह संचारक को उस संदेश के संबंध में जवाब प्रेषित करता है। प्रापक द्वारा प्रेषित किये गए जवाब को हम प्रतिक्रिया (FEEDBACK) कहते है। फीडबैक सकारात्म और नाकारात्मक दोनों हो सकता है। संचार की प्रक्रिया में फीडबैक काफी महत्वपूर्ण होता है। फीडबैक के बिना सही अर्थों में संचार अधुरा है।

(v) शोर (Noise)- संचार प्रक्रिया में शोर एक प्रकार का अवरोध है, जो सम्प्रेषित संदेश के प्रभाव को कम करता है। शोर को बाधा भी कहा जाता है। संचारक जिस रूप में संदेश को भेजता है, उसी रूप में प्रापक तक शत-प्रतिशत पहुंच जाये तो माना जाता है कि संचार प्रक्रिया में कोई अवरोध नहीं है। लेकिन ऐसा कम ही होता है। सभी सम्प्रेषित संदेश के साथ कोई न कोई शोर अवश्य जुड़ जाता है, जो संचारक द्वारा भेजा गया नहीं होता है। उदाहरणार्थ, रेडियो या टेलीविजन पर आवाज के साथ सरसराहट का आना। मोबाइल पर वार्तालाप के दौरान आसपास की ध्वनियों का जुड़ जाना इत्यादि।

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Gaurav Seth 3 years, 11 months ago

  • भारत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से प्रारंभ होता है जिसे हम हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जानते हैं।
  • यह सभ्यता लगभग 2500 ईस्वी पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग मैं फैली हुई थी,जो कि वर्तमान में पाकिस्तान तथा पश्चिमी भारत के नाम से जाना जाता है।
  • सिंधु घाटी सभ्यता मिस्र,मेसोपोटामिया,भारत और चीन की चार सबसे बड़ी प्राचीन नगरीय सभ्यताओं से भी अधिक उन्नत थी।
  • 1920 में, भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा किये गए सिंधु घाटी के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से हड़प्पा तथा मोहनजोदडो जैसे दो प्राचीन नगरों की खोज हुई।
  • भारतीय पुरातत्त्व विभाग के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने सन 1924 में सिंधु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।

सिंधु घाटी सभ्यता के तीन चरण हैं-

  1. प्रारंभिक हड़प्पाई सभ्यता (3300ई.पू.-2600ई.पू. तक)
  2. परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता (2600ई.पू-1900ई.पू. तक)
  3. उत्तर हड़प्पाई सभ्यता (1900ई.पु.-1300ई.पू. तक)
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Shraddha ✨✰✰ 3 years, 11 months ago

सास द्वारा उसका पालन-पोषण किया जाना और सास पर हुए अत्याचारों का बदला लेने के लिए पहलवान बनना। , बिना गुरु के कुश्ती सीखना। ... , पत्नी की मृत्यु का दुःख सहना और दो छोटे बच्चों का भार संभालना।
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Shraddha ✨✰✰ 3 years, 11 months ago

✯व्यवस्था के साथ तालमेल बैठाकर चलने वाली मीडिया को मुख्यधारा का मीडिया कहा जाता है इस तरह के मीडिया आम तौर पर व्यवस्था के अनुकूल और आलू की एक निश्चित दायरे में ही काम करती है इसके विपरीत जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने में और उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करता है उसे हम वैकल्पिक पत्रकारिता कहते हैं
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Pradeep Solanki 3 years, 11 months ago

kisi samachar sangatan k liye ek nischit mandey par kaam karne wala patrakar anshkalik patrakar kehlata h..
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Yogita Ingle 3 years, 11 months ago

पत्रकार तीन प्रकार के होते हैं-

1. पूर्णकालिक
2. अंशकालिक और
3. फ्रीलांसर यानी स्वतंत्र।

  1.  पूर्णकालिक पत्रकार-इस श्रेणी के पत्रकार किसी समाचार संगठन में कमकने वाले नाम बेनोग कर्मबारी होते हैं।
  2. अंशकालिक पत्रकार-इस श्रेणी के पत्रकार किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर एक निश्चित समयावधि के लिए कार्य करते हैं।
  3. फ्रीलांसर पत्रकार-इस श्रेणी के पत्रकारों का संबंध किसी विशेष समाचार-पत्र से नहीं होता, बल्कि वे भुगतान के आधार पर अलग-अलग समाचार-पत्रों के लिए लिखते हैं।
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Ashwani Kumar 3 years, 11 months ago

Your mother
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