Ask questions which are clear, concise and easy to understand.
Ask QuestionPosted by Ramkishor Pandram 4 years, 8 months ago
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Posted by Harpreet Gvh 4 years, 8 months ago
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Posted by Isha Khurana 4 years, 8 months ago
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Posted by Sunandini Singh 4 years, 8 months ago
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Posted by Disha Malick 4 years, 8 months ago
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Posted by Deepu Goutam 4 years, 8 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 8 months ago
सिंधु-सभ्यता की खोज की शुरुआत में यह माना जा रहा था कि इस घाटी के लोग अन्न नहीं उपजाते थे। वे अनाज संबंधी जरूरतें आयात से पूरा करते थे, परंतु नयी खोजों से पता चला है कि यहाँ उन्नत खेती होती थी।
अब कुछ विद्वान इसे मूलत: खेतिहर व पशुपालक सभ्यता मानते हैं। खेती में ताँबे व पत्थर के उपकरण प्रयोग में लाए जाते थे। यहाँ रबी की फसल में गेहूँ, कपास, जौ, सरसों व चने की खेती होती थी। इनके सबूत भी मिले हैं। कुछ दिनों का विवार है कि यह ज्वार, बाजा और साग को उज भी हती थी। लोग खज्र खल्वे और अंगूर उगाते थे।
Posted by Deepak Nial 4 years, 8 months ago
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Posted by Anamika Singh Verma 4 years, 8 months ago
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Gaurav Seth 4 years, 8 months ago
Nagar Nigam Ko Application - मोहल्ले की सफाई हेतु।
सेवा में,
श्रीमान कार्यकारी अधिकारी,
नगर निगम ,आनंद विहार (नई दिल्ली )
विषय:- मोहल्ले की सफाई हेतु।
मान्यवर ,
हम आनंद विहार निवासी आपका ध्यान हमारे नगर में बढ़ रहे गन्दगी के तरफ आकर्षित करना चाहते हैं। सड़कों के किनारे कूड़ों का ढेर जमा हो रहा है , लोगों का पेदल चलना मुश्किल हो गया है। लोग अपने घर के गन्दगी को सड़कों के किनारे फेंकने को मजबूर हो गए है।
नगर में कूड़ादान तो है लेकिन उसे फेंकने वाला कोई नही है। सभी कूड़ादान भर गया है , अब लोग अपनी घर के गन्दगी को सड़कों के किनारे फेंकते हैं। कोई भी नगर निगम का कर्मचारी इन कूड़ों को ले जाने नहीं आते ,सिर्फ कूड़ादान लगाकर भूल गए हैं।
आयदिन देश में गन्दगी की वजह से नई-नई बीमारियां निकलती रहती है , हमें डर है कहीं इन कूड़ों की वजह से हमारे नगर में भी कोई बीमारी ना फ़ैल जाये। ऐसा कुछ हो इससे पहले हम नगरवासी आपको सूचित करते हैं कि आप कृपया यहां के गन्दगी को जल्द से जल्द दूर करें। और हमारे नगर के लिए कर्मचारियों को नियुक्त करे जो कूड़ेदान की गन्दगी को ले जाये। इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए हम नगरवासी सदैव आपके आभारी रहेंगे।
सधन्यवाद।
आनंद विहार निवासी
(नई दिल्ली )
दिनांक -xxxxxxxx
Posted by Aarohi Aarohi 4 years, 8 months ago
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Gaurav Seth 4 years, 8 months ago
बाहर झमाझम बारिश है
फरवरी की गुलाबी ठंड में
मौसम की यह इनायत बेहद मुलायम
पत्तियाँ धुली हुईं
दिन भर की धूप की थकान से
अभी अभी गर्भ से बाहर आए
मेमनों की आँखों-सी
मिट्टी की सोंधी महक
तुम्हारी साँसों-सी मादक हो रही
भीतर खूब भींजने की इच्छा चढ़ती रात-सी
जवाँ हो रही इस ढलती शाम में
कल फूलों में उतरेगी
अलग ही रंगत, अलग ही खुशबू
अलग ही ताज़गी में नहायी
खिलखिलाएँगी कलियाँ
उदासी की चादर ओढ़े सोच रहा हूँ
तुम कैसे सोच रही हो इस बारिश के बारे में
या कि एकबारगी भींजने उतर पड़ी हो
बारिश में
बाहर बरसती इस बारिश में
भीतर खूब भींगना, खूब रोना चाहता हूँ
मैं भी
Posted by Aarohi Aarohi 4 years, 8 months ago
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Posted by Aarohi Aarohi 4 years, 8 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 8 months ago
शब्दों का चयन कविता के बाहरी रूप को पूर्ण और आकर्षक बनाता है। कवि की कल्पना शब्दों के सार्थक और उचित प्रयोग द्वारा ही साकार होती है। अपनी हृदयगत भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए कवि भाषा की अनेक प्रकार से योजना करता है ओर इस प्रकार प्रभावशाली कविता रचता है।
Posted by Rakesh Yadav 4 years, 8 months ago
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Posted by Vishakha Phulera 4 years, 8 months ago
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Someone Unknown 4 years, 8 months ago
Posted by Mukesh Kumar 4 years, 8 months ago
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Gaurav Seth 4 years, 8 months ago
परिचय
केवल एक लड़की होने की वजह से उसका समय पूरा होने के पहले ही कोख़ में एक बालिका भ्रूण को खत्म करना ही कन्या भ्रूण हत्या है।
आंकड़ों के अनुसार, ऐसा पाया गया है कि पुरुष और महिला लिंगानुपात 1961 में 102.4 पुरुष पर 100 महिला, 1981 में 104.1 पुरुषों पर 100 महिला, 2001 में 107.8 पुरुषों पर 100 महिला और 2011 में 108.8 पुरुषों पर 100 महिला हैं। ये दिखाता है कि पुरुष का अनुपात हर बार नियमित तौर पर बढ़ रहा है। भारत में वहन करने योग्य अल्ट्रासाउंड तकनीक के आने के साथ ही लगभग 1990 के प्रारंभ में ही कन्या भ्रूण हत्या शुरुआत हो चुकी थी।
भारत में 1979 में अल्ट्रासाउंड तकनीक की प्रगति आयी हालांकि इसका फैलाव बहुत धीमे था। लेकिन वर्ष 2000 में व्यापक रुप से फैलने लगा। इसका आंकलन किया गया कि 1990 से, लड़की होने की वजह से 10 मिलीयन से ज्यादा कन्या भ्रूणों का गर्भपात हो चुका है। हम देख सकते हैं कि इतिहास और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के द्वारा कन्या भ्रूण हत्या किया जा रहा है। पूर्व में, लोग मानते हैं कि बालक शिशु अधिक श्रेष्ठ होता है क्योंकि वो भविष्य में परिवार के वंश को आगे बढ़ाने के साथ ही हस्तचालित श्रम भी उपलब्ध करायेगा। पुत्र को परिवार की संपत्ति के रुप में देखा जाता है जबकि पुत्री को जिम्मेदारी के रुप में माना जाता है।
प्रचीन समय से ही भारतीय समाज में लड़कियों को लड़कों से कम सम्मान और महत्व दिया जाता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, खेल आदि क्षेत्रों में लड़कों की तरह इनकी पहुँच नहीं होती है। लिंग चयनात्मक गर्भपात से लड़ने के लिये, लोगों के बीच में अत्यधिक जागरुकता की जरुरत है। “बेटियाँ अनमोल होती हैं” के अपने पहले ही भाग के द्वारा आम लोगों के बीच जागरुकता बढ़ाने के लिये टी.वी पर आमिर खान के द्वारा चलाये गये एक प्रसिद्ध कार्यक्रम ‘सत्यमेव जयते’ ने कमाल का काम किया है। जागरुकता कार्यक्रम के माध्यम से बताने के लिये इस मुद्दे पर सांस्कृतिक हस्तक्षेप की जरुरत है। लड़कियों के अधिकार के संदर्भ में हाल के जागरुकता कार्यक्रम जैसे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं या बालिका सुरक्षा अभियान आदि बनाये गये हैं।
महिलाओं को भारतीय समाज में अपने परिवार और समाज के लिये एक अभिशाप के रुप में देखा जाता है। इन कारणों से, तकनीकी उन्नति के समय से ही भारत में बहुत वर्षों से कन्या भ्रूण हत्या की प्रथा चल रही है। 2001 के सेंसस के आंकड़ों के अनुसार, पुरुष और स्त्री अनुपात 1000 से 927 है। कुछ वर्ष पहले, लगभग सभी जोड़े जन्म से पहले शिशु के लिंग को जानने के लिये लिंग निर्धारण जाँच का इस्तेमाल करते थे। और लिंग के लड़की होने पर गर्भपात निश्चित होता था।
भारतीय समाज के लोग लड़के से पूर्व सभी बच्चियों को मारने के द्वारा लड़का प्राप्त करने तक लगातार बच्चे पैदा करने के आदी थे। जनसंख्या नियंत्रण और कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिये, कन्या भ्रूण हत्या और लिंग निर्धारण जाँच के बाद गर्भपात की प्रथा के खिलाफ भारतीय सरकार ने विभिन्न नियम और नियमन बनाये। गर्भपात के द्वारा बच्चियों की हत्या पूरे देश में एक अपराध है। चिकित्सों द्वारा यदि लिंग परीक्षण और गर्भपात कराते पाया जाता है, खासतौर से बच्चियों की हत्या की जाती है तो वो अपराधी होंगे साथ ही उनका लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है। कन्या भ्रूण हत्या से निज़ात पाने के लिये समाज में लड़कियों की महत्ता के बारे में जागरुकता फैलाना एक मुख्य हथियार है।
Posted by Yash Yadav 4 years, 8 months ago
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Posted by Jivisha Srivastava 4 years, 8 months ago
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Gaurav Seth 4 years, 8 months ago
needed to communicate effectively with people and customers. This module aims to help you improve your communication skills. Clear and concise communication is of immense importance in work and business environment as there are several parties involved. Various stakeholders, like, customers, employees, vendors, media, etc., are always sending important information to each other.
Deleted syllabus of CBSE Class 12 Hindi Core
Deleted syllabus of CBSE Class 12 Hindi Elective
Posted by Ritu Kanwar 4 years, 8 months ago
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Devil ? 4 years, 8 months ago
Posted by Gaitri Abcd 4 years, 8 months ago
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Posted by Aaman Khan 4 years, 9 months ago
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Posted by Isha Mishra 4 years, 9 months ago
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Posted by Zareen Siddiqui 4 years, 9 months ago
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Posted by Zareen Siddiqui 4 years, 9 months ago
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Posted by Kavita Bhinchar 4 years, 9 months ago
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Gaurav Seth 4 years, 9 months ago
टेलीविज़न जनसंचार का सर्वाधिक ताकतवर व लोकप्रिय माध्यम है। इसमें शब्द, ध्वनि व दृश्य का मेल होता है जिसके कारण इसकी विश्वसनीयता कई गुना बढ़ जाती है। भारत में इसकी शुरुआत 15 सितंबर, 1959 को हुई।
Posted by Tejesh Kumar Karmakar 4 years, 9 months ago
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Shraddha ✨✰✰ 4 years, 9 months ago
Posted by Gokul Dass 4 years, 9 months ago
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Yashraj Chauhan 4 years, 9 months ago
Posted by Ankit Bura 4 years, 9 months ago
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Gaurav Seth 4 years, 9 months ago
पहलवान की ढोलक, कहानी फणीश्वर नाथ रेणु जी द्वारा लिखी गयी प्रसिद्ध कहानी है .इस कहानी में लेखक ने अपने गाँव अंचल एवं संस्कृति को सजीव कर दिया है .ऐसा लगता है कि मानों हरेक पात्र वास्तविक जीवन जी रहा है . कहानी के प्रारंभ पहलवान की ढोलक के बजने से होती है .गाँव में महामारी फैली हुई है .रात में वातावरण में शान्ति है .कभी - कभी झोपड़ी से कराहने व के करने कि आवाज तथा कभी कभी बच्चों के रोने की आवाज आती थी .ऐसे समय पहलवान की ढोलक संध्या से प्रातःकाल तक एक ही गति से बजती रहती थी .यही आवाज मृत गाँव में संजीवनी शक्ति रहती थी .
पहलवान के जीवन के बारे में फणीश्वर नाथ रेणु जी ने बताया है कि नौ बर्ष कि आयु में ही पहलवान के माता - पिता की मृत्यु हो गयी और उसका पालन पोषण उसकी विधवा सास द्वारा किया गया .सास पर हुए अत्याचारों को देखकर लुट्टन को बदला लेने के लिए अपने शरीर को मज़बूत बनाना शुरू कर दिया .वह गाँव में पहलवानी करने लगा .एक वह श्यामनगर के दंगल में दंगल देखने गया था .वह उसने ढोलक की आवाज को अपना गुरु मानकर शेर के बच्चे चाँद सिंह नाम के पहलवान को हराया .उसके बाद राजा ने उसे राज - पहलवान घोषित कर दिया .अब उसका पालन - पोषण राजदरबार से होने लगा .फिर उसने काले खां जैसे प्रसिद्ध पहलवान को हरा कर अपने को अजेय पहलवान घोषित कर दिया .इस प्रकार पंद्रह वर्ष बीत गए .लुट्टन अजेय बना रहा .अपने बेटों को पहलवानी की शिक्षा देने लगा .वह अपने बेटों को ढोलक के प्रताप से अजेय बनने की शिक्षा देता रहा .लेकिन राजा की मृत्यु के बाद राजकुमार विलायत से आने के बाद पहलवान के खर्चों को देखकर उसे दरबार से हटा दिया गया .विवश होकर वह अपने गाँव लौट गया .गाँव आकर वह और उसे बेटे ग्रामीण बच्चों को कुश्ती सिखाने लगा ,लेकिन ग्रामीणों में अरुचि के कारण ,पहलवान के बेटे मजदूरी करने लगे .लेकिन अकस्मात् सूखा और महामारी के कारण एक एक करके लोग मरने लगे .इस प्रकार उनके दोनों बेटे महामारी के चपेट में आ गए .वह उन्हें उठाकर नदी में बहा आया .पुत्रों के मृत्यु के बाद भी वह ढोलक बजाता रहा .तो लोगों के हिम्मत बढ़ी .चार पाँच दिन बाद ढोलक बजनी बंद हो गयी .सुबह लोगों ने देखा कि पहलवान की लाश चित्त पड़ी है .एक शिष्य ने कहा कि गुरु ने कहा था उसकी मौत के बाद उसके शरीर को चिता पर पेट के बल लिटाया जाए क्योंकि वह कभी चित्त नहीं हुआ और चिता सुलगाने के समय ढोल बजाते रहना .इस प्रकार पहलवान के अंत के साथ कहानी का अंत हो जाता है .
Posted by Jatinbhai Chaudhary 4 years, 9 months ago
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Gaurav Seth 4 years, 9 months ago
Answer : मिठाई
पहलवान लुट्टन के सुख-चैन के दिन तब शुरू हुए जब उसने चाँद सिंह को कुश्ती में हराकर अपना नाम रोशन किया। राजा ने उसे दरबार में रखा। इससे उसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। पौष्टिक भोजन व राजा की स्नेह-दृष्टि मिलने से उसने सभी नामी पहलवानों को जमीन सुंघा दी। अब वह दर्शनीय जीव बन गया। मेलों में वह लंबा चोंगा पहनकर तथा अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधकर मस्त हाथी की तरह चलता था। हलवाई उसे मिठाई खिलाते थे।
Posted by Nisha Chaudhary 4 years, 9 months ago
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Gaurav Seth 4 years, 8 months ago
पेज ३ पत्रकारिता का एक प्रकार है। पेज ३ मतलब समाचार पत्र के तिसरे पन्ने पर सेलिब्रिटी समाचार या प्रतिष्ठित लोगो के निजी जीवन के हलकी फुलकी बातचीत छापी जाती है।
पेज ३ में सेट पर होनेवाली मजाक मस्ती या झगडे भी छापे जाते है। यह पन्ना पढनेवाले लोगो के लिये मनोरंजन भरा होता है। यह पेज ३ पर सेलिब्रिटी या प्रतिष्ठित लोगो कि गपशप लिखी होती है। इस पन्ने पर अफवाहे भी छापी जाती है, जो सच होने कि संभावना होती है।
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