No products in the cart.

Ask questions which are clear, concise and easy to understand.

Ask Question
  • 3 answers

Rashi Tyagi 3 years, 5 months ago

Ya net se kr lo

Mohini Rajput 3 years, 5 months ago

bhaut bda chatpter h lasa send karu book nhi h to aap net sa ni kal k kar lo bhai ..... i am sorry bhai ma itna bda nhi likh sakti.....??

Mohini Rajput 3 years, 5 months ago

hindi ki book nhi h kay bhai
  • 1 answers

Mansi Semwal 3 years, 4 months ago

Vriksho thatha podho ko lagane ki prakriya ko vriksharopan kha jata hai.
  • 0 answers
  • 1 answers

Mohini Rajput 3 years, 5 months ago

साफिया के भाई ने नमक की पुड़िया भारत ले जाने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि यह गैरकानूनी था। पाकिस्तान से लाहौरी नमक भारत ले जाना प्रतिबंधित था। उसके अनुसार नमक की पुड़िया निकल आने पर बाकी सामान की भी चिंदी-चिंदी बिखेर दी जाएगी।
काव्यांश को पढ़कर इन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए: क्या रोकेंगे प्रलय मेघ ये, क्या विद्युत -घन के नर्तन, मुझे न साथी रोक सकेंगे, सागर के गर्जन तर्जन। मैं अविराम पथिक अलबेला रुके न मेरे कभी चरण, शूलों के बदले फूलों का किया न मैंने मित्र चयन। मैं विपदाओं में मुस्काता नव आशा के दीप लिए, फिर मुझको क्या रोक सकेंगे जीवन के उत्थान पतन। मैं अटका कब विचलित मैं, सतत डगर मेरी संबल, रोक सकी पगले कब मुझको यह युग की प्राचीर निबल। आंधी हो, ओले-वर्षा हो, राह सुपरिचित है मेरी, फिर मुझको क्या डरा सकेंगे ये जग के खंडन-मंडन । मुझे डरा पाए कब अंधड़, ज्वालामुखियों के कंपन, मुझे पथिक कब रोक सकें, अग्नि शिखाओ के नर्तन। मैं बढ़ता अविराम निरंतर तन-मन में उन्माद लिए, फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये बादल विद्युत नर्तन। (1) कवि ने किसकी प्रकृति का वर्णन किया है और कैसे? (2) पथिक की क्या विशेषता है? (3) प्रलय मेघ, विद्युत घन, अंधड़, ज्वालामुखी किसके प्रतीक हैं? (4) युग के प्राचीर से कवि का क्या तात्पर्य है?
  • 1 answers

Kishor Sinha 3 years, 5 months ago

2. Pathik ki viseshta h ki pathik bina ruke aalbela ki tarh chalta ja rha h.!
  • 1 answers

Adity Gupta 3 years, 4 months ago

Barabar mul sabd hau aur ta pratya Manav mul sabd hai aur eya pratya hai
  • 1 answers

Mohini Rajput 3 years, 5 months ago

कहानी में लुट्टन के जीवन में अनेक परिवर्तन आए – 1. माता-पिता का बचपन में देहांत होना। 2. सास द्वारा उसका पालन-पोषण किया जाना और सास पर हुए अत्याचारों का बदला लेने के लिए पहलवान बनना। 3. बिना गुरु के कुश्ती सीखना। ढोलक को अपना गुरु समझना। 4. पत्नी की मृत्यु का दुःख सहना और दो छोटे बच्चों का भार संभालना। 5. जीवन के पंद्रह वर्ष राजा की छत्रछाया में बिताना परंतु राजा के निधन के बाद उनके पुत्र द्वारा राजमहल से निकाला जाना। 6. गाँव के बच्चों को पहलवानी सिखाना। 7. अपने बच्चों की मृत्यु के असहनीय दुःख को सहना। 8. महामारी के समय अपनी ढोलक द्वारा लोगों में उत्साह का संचार करना।
  • 2 answers

Veena Dubgaa 3 years, 3 months ago

किसी घटना वृत्तांत आदि को संग्रहित करके उसकी अशुद्धियों को निकाल कर पाठकों तक संप्रेषण करना संपादन कहलाता है। इसके तीन सिद्धांत निम्नलिखित है – निष्पक्षता – कोई भी संपादक को घटना का शुद्ध रूप पाठकों का तक तभी पहुंचा सकता है , जब संपादन शुद्ध रूप से हो। उस घटना में किसी व्यक्ति का , अथवा किसी संस्था का हस्तक्षेप ना हो। तथ्यों की शुद्धता – संपादन के लिए यह दूसरी आवश्यक सामग्री है। किसी भी घटना को शुद्ध रूप से व्यक्त किया जाए। उसमें अपने विचार , अपने मत , तथ्य उस घटना में कुछ तोड़ – जोड़ कर पेश नहीं किया जाना चाहिए। अन्यथा यह संपादन का शुद्ध रूप नहीं रह जाता। संतुलन स्रोत – संपादन के लिए यह अति महत्वपूर्ण तथ्य है कि , किसी भी घटना को संप्रेषित करने से पूर्व उस घटना में संतुलन रखा जाना चाहिए। क्योंकि कई बार उस घटना से हिंसक विचार पाठक तक पहुंच जाता है , जिससे पाठक का मन विचलित व खिन्न हो जाता है। इसलिए यह अति आवश्यक है की शब्दों का चयन व उसके द्वारा पड़ने वाला प्रभाव , सम्प्रेषित कर रहे व्यक्ति के मस्तिष्क में अवश्य हो |

Mohini Rajput 3 years, 5 months ago

किसी घटना वृत्तांत आदि को संग्रहित करके उसकी अशुद्धियों को निकाल कर पाठकों तक संप्रेषण करना संपादन कहलाता है। इसके तीन सिद्धांत निम्नलिखित है – निष्पक्षता – कोई भी संपादक को घटना का शुद्ध रूप पाठकों का तक तभी पहुंचा सकता है , जब संपादन शुद्ध रूप से हो। उस घटना में  किसी व्यक्ति का , अथवा किसी संस्था का हस्तक्षेप ना हो। तथ्यों की शुद्धता –  संपादन के लिए यह दूसरी आवश्यक सामग्री है।  किसी भी घटना को शुद्ध रूप से व्यक्त किया जाए।  उसमें अपने विचार , अपने मत , तथ्य उस घटना में कुछ तोड़ – जोड़ कर पेश नहीं किया जाना चाहिए। अन्यथा यह संपादन का शुद्ध रूप नहीं रह जाता। संतुलन स्रोत –  संपादन के लिए यह अति महत्वपूर्ण तथ्य है कि , किसी भी घटना को संप्रेषित करने से पूर्व उस घटना में संतुलन रखा जाना चाहिए। क्योंकि कई बार उस घटना से हिंसक विचार पाठक तक पहुंच जाता है , जिससे पाठक का मन विचलित व खिन्न हो जाता है। इसलिए यह अति आवश्यक है की शब्दों का चयन व उसके द्वारा पड़ने वाला प्रभाव , सम्प्रेषित कर रहे व्यक्ति के मस्तिष्क में अवश्य हो |
  • 1 answers

Mohini Rajput 3 years, 5 months ago

फ़ीचर पत्रकारिता की अत्यंत आधुनिक विधा है। भले ही समाचार पत्रों में समाचार की प्रमुखता अधिक होती है लेकिन एक समाचार-पत्र की प्रसिद्धि और उत्कृष्टता का आधार समाचार नहीं होता बल्कि उसमें प्रकाशित ऐसी सामग्री से होता है जिसका संबंध न केवल जीवन की परिस्थितियों और परिवेश से संबंधित होता है प्रत्युत् वह जीवन की विवेचना भी करती है। समाचारों के अतिरिक्त समाचार-पत्रों में मुख्य रूप से जीवन की नैतिक व्याख्या के लिए ‘संपादकीय’ एवं जीवनगत् यथार्थ की भावात्मक अभिव्यक्ति के लिए ‘फ़ीचर’ लेखों की उपयोगिता असंदिग्ध है। समाचार एवं संपादकीय में सूचनाओं को सम्प्रेषित करते समय उसमें घटना विशेष का विचार बिंदु चिंतन के केंद्र में रहता है लेकिन समाचार-पत्रों की प्रतिष्ठा और उसे पाठकों की ओर आकर्षित करने के लिए लिखे गए ‘फ़ीचर’ लेखों में वैचारिक चिंतन के साथ-साथ भावात्मक संवेदना का पुट भी उसमें विद्यमान रहता है। इसी कारण समाचार-पत्रों में उत्कृष्ट फ़ीचर लेखों के लिए विशिष्ट लेखकों तक से इनका लेखन करवाया जाता है। इसलिए किसी भी समाचार-पत्र की लोकप्रियता का मुख्य आधार यही फ़ीचर होते हैं। इनके द्वारा ही पाठकों की रुचि उस समाचार-पत्र की ओर अधिक होती है जिसमें अधिक उत्कृष्ट, रुचिकर एवं ज्ञानवर्धक फ़ीचर प्रकाशित किए जाते हैं। ‘फ़ीचर’ का स्वरूप कुछ सीमा तक निबंध एवं लेख से निकटता रखता है, लेकिन अभिव्यक्ति की दृष्टि से इनमें भेद होने के कारण इनमें पर्याप्त भिन्नता स्पष्ट दिखाई देती है। जहाँ ‘निबंध एवं लेख’ विचार और चिंतन के कारण अधिक बोझिल और नीरस बन जाते हैं वहीं ‘फ़ीचर’ अपनी सरस भाषा और आकर्षण शैली में पाठकों को इस प्रकार अभिभूत कर देते हैं कि वे लेखक को अभिप्रेत विचारों को सरलता से समझ पाते हैं।
  • 1 answers

Arun Maurya 3 years, 5 months ago

Hhjcjvkv
  • 2 answers

Avtar Singh 3 years, 5 months ago

By mujhe similarities and differences chaye of nibandh baat and baaten

Mohini Rajput 3 years, 5 months ago

बात यदि हम वैद्य होते तो कफ और पित्त के सहवर्ती बात की व्यानख्यार करते तथा भूगोलवेत्ता होते तो किसी देश के जल बात का वर्णन करते। किंतु इन दोनों विषयों में हमें एक बात कहने का भी प्रयोजन नहीं है। इससे केवल उसी बात के ऊपर दो चार बात लिखते हैं जो हमारे सम्भारषण के समय मुख से निकल-निकल के परस्पिर हृदयस्थ भाव प्रकाशित करती रहती है। सच पूछिए तो इस बात की भी क्या बात है जिसके प्रभाव से मानव जाति समस्तृ जीवधारियों की शिरोमणि (अशरफुल मखलूकात) कहलाती है। शुकसारिकादि पक्षी केवल थोड़ी सी समझने योग्यश बातें उच्चअरित कर सकते हैं इसी से अन्यै नभचारियों की अपेक्षा आद्रित समझे जाते हैं। फिर कौन न मान लेगा कि बात की बड़ी बात है। हाँ, बात की बात इतनी बड़ी है कि परमात्माक को सब लोग निराकार कहते हैं तौ भी इसका संबंध उसके साथ लगाए रहते हैं। वेद ईश्वार का बचन है, कुरआनशरीफ कलामुल्लाबह है, होली बाइबिल वर्ड आफ गाड है यह बचन, कलाम और वर्ड बात ही के पर्याय हैं सो प्रत्यधक्ष में मुख के बिना स्थिति नहीं कर सकती। पर बात की महिमा के अनुरोध से सभी धर्मावलंबियों ने "बिन बानी वक्तक बड़ योगी" वाली बात मान रक्खी है। यदि कोई न माने तो लाखों बातें बना के मनाने पर कटिबद्ध रहते हैं। यहाँ तक कि प्रेम सिद्धांती लोग निरवयव नाम से मुँह बिचकावैंगे। 'अपाणिपादो जवनो गृहीता' इत्यातदि पर हठ करने वाले को यह कहके बात में उड़ावेंगे कि "हम लँगड़े लूले ईश्वतर को नहीं मान सकते। हमारा प्याहरा तो कोटि काम सुंदर श्यााम बरण विशिष्टल है।" निराकार शब्दा का अर्थ श्री शालिग्राम शिला है जो उसकी स्या मता को द्योतन करती है अथवा योगाभ्या्स का आरंभ करने वाले कों आँखें मूँदने पर जो कुछ पहिले दिखाई देता है वह निराकार अर्थात् बिलकुल काला रंग है। सिद्धांत यह कि रंग रूप रहित को सब रंग रंजित एवं अनेक रूप सहित ठहरावेंगे किंतु कानों अथवा प्रानों वा दोनों को प्रेम रस से सिंचित करने वाली उसकी मधुर मनोहर बातों के मजे से अपने को बंचित न रहने देंगे। जब परमेश्व र तक बात का प्रभाव पहुँचा हुआ है तो हमारी कौन बात रही? हम लोगों के तो "गात माहिं बात करामात है।" नाना शास्त्र , पुराण, इतिहास, काव्या, कोश इत्या दि सब बात ही के फैलाव हैं जिनके मध्यत एक-एक ऐसी पाई जाती है जो मन, बुद्धि, चित्त को अपूर्व दशा में ले जाने वाली अथच लोक परलोक में सब बात बनाने वाली है। यद्यपि बात का कोई रूप नहीं बतला सकता कि कैसी है पर बुद्धि दौड़ाइए तो ईश्वहर की भाँति इसके भी अगणित ही रूप पाइएगा। बड़ी बात, छोटी बात, सीधी बात, टेढ़ी बात, खरी बात, खोटी बात, मीठी बात, कड़वी बात, भली बात, बुरी बात, सुहाती बात, लगती बात इत्या दि सब बात ही तो है? बात के काम भी इसी भाँति अनेक देखने में आते हैं। प्रीति बैर, सुख दु:ख श्रद्धा घृणा, उत्साोह अनुत्साकहादि जितनी उत्तमता और सहजतया बात के द्वारा विदित हो सकते हैं दूसरी रीति से वैसी सुविधा ही नहीं। घर बैठे लाखों कोस का समाचार मुख और लेखनी से निर्गत बात ही बतला सकती है। डाकखाने अथवा तारघर के सारे से बात की बात में चाहे जहाँ की जो बात हो जान सकते हैं। इसके अतिरिक्तत बात बनती है, बात बिगड़ती है, बात आ पड़ती है, बात जाती रहती है, बात उखड़ती है। हमारे तुम्हातरे भी सभी काम बात पर निर्भर करते हैं - "बातहि हाथी पाइए, बातहि हाथी पाँव।" बात ही से पराए अपने और अपने पनाए हो जाते हैं। मक्खी चूस उदार तथा उदार स्ववल्पबव्यायी, कापुरुष युद्धोत्सानही एवं युद्धप्रिय शांतिशील, कुमार्गी सुपथगामी अथच सुपंथी कुराही इत्या दि बन जाते हैं। बात का तत्वन समझना हर एक का काम नहीं है और दूसरों की समझ पर आधिपत्यह जमाने योग्य बात बढ़ सकता भी ऐसों वैसों का साध्य नहीं है। बड़े-बड़े विज्ञवरों तथा महा-महा कवीश्वगरों के जीवन बात ही के समझने समझाने में व्यैतीत हो जाते हैं। सहृदयगण की बात के आनंद के आगे सारे संसार तुच्छा जँचता है। बालाकों की तोतली बातें, सुंदरियों की मीठी-मीठी, प्या्री-प्याकरी बातें, सत्करवियों की रसीली बातें, सुवक्ता ओं की प्रभावशाली बातें जिसके जी को और का और न कर दें उसे पशु नहीं पाषाण खंड कहना चाहिए। क्यों कि कुत्ते, बिल्ली आदि को विशेष समझ नहीं होती तो भी पुचकार के 'तू तू' 'पूसी पूसी' इत्या दि बातें क दो तो भावार्थ समझ के यथा सामर्थ्यी स्नेीह प्रदर्शन करने लगते हैं। फिर वह मनुष्य कैसा जिसके चित्त पर दूसरे हृदयवान की बात का असर न हो। बात वह आदणीय है कि भलेमानस बात और बाप को एक समझते हैं। हाथी के दाँत की भाँति उनके मुख से एक बार कोई बात निकल आने पर फिर कदापि नहीं पलट सकती। हमारे परम पूजनीय आर्यगण अपनी बात का इतना पक्ष करते थे कि "तन तिय तनय धाम धन धरनी। सत्यीसंध कहँ तून सम बरनी"। अथच "प्रानन ते सुत अधिक है सुत ते अधिक परान। ते दूनौ दसरथ तजे वचन न दीन्होंा जान।" इत्याकदि उनकी अक्षरसंवद्धा कीर्ति सदा संसार पट्टिका पर सोने के अक्षरों से लिखी रहेगी। पर आजकल के बहुतेरे भारत कुपुत्रों ने यह ढंग पकड़ रक्खाद है कि 'मर्द की जबान (बात का उदय स्थायन) और गाड़ी का पहिया चलता ही फिरता रहता है।' आज और बात है कल ही स्वा र्थांधता के बंश हुजूरों की मरजी के मुवाफिक दूसरी बातें हो जाने में तनिक भी विलंब की संभावना नहीं है। यद्यपि कभी-कभी अवसर पड़ने पर बात के अंश का कुछ रंग ढंग परिवर्तित कर लेना नीति विरुद्ध नहीं है, पर कब? जात्योनपकार, देशोद्धार, प्रेम प्रचार आदि के समय, न कि पापी पेट के लिए। एक हम लोग हैं जिन्हें आर्यकुलरत्नोंर के अनुगमन की सामर्थ्य नहीं है। किंतु हिंदुस्तापनियों के नाम पर कलंक लगाने वालों के भी सहमार्गी बनने में घिन लगती है। इससे यह रीति अंगीकार कर रखी है कि चाहे कोई बड़ा बतकहा अर्थात् बातूनी कहै चाहै यह समझे कि बात कहने का भी शउर नहीं है किंतु अपनी मति अनुसार ऐसी बातें बनाते रहना चाहिए जिनमें कोई न कोई, किसी न किसी के वास्त विक हित की बात निकलती रहे। पर खेद है कि हमारी बातें सुनने वाले उँगलियों ही पर गिनने भर को हैं। इससे "बात बात में वात" निकालने का उत्सांह नहीं होता। अपने जी को 'क्या बने बात जहाँ बात बनाए न बने' इत्यादि विदग्धा लापों की लेखनी से निकली हुई बातें सुना के कुछ फुसला लेते हैं और बिन बात की बात को बात का बतंगड़ समझ के बहुत बात बढ़ाने से हाथ समेट लेना ही समझते हैं कि अच्छी बात है। (प्रताप नारायण मिश्र) बातें हँसी में धुली हुईं सौजन्य चंदन में बसी हुई बातें– चितवन में घुली हुईं व्यंग्य-बंधन में कसी हुईं बातें– उसाँस में झुलसीं रोष की आँच में तली हुईं बातें– चुहल में हुलसीं नेह–साँचे में ढली हुईं बातें– विष की फुहार–सी बातें– अमृत की धार–सी बातें– मौत की काली डोर–सी बातें– जीवन की दूधिया हिलोर–सी बातें– अचूक वरदान–सी बातें– घृणित नाबदान–सी बातें– फलप्रसू, सुशोभन, फल–सी बातें– अमंगल विष–गर्भ शूल–सी बातें– क्य करूँ मैं इनका? मान लूँ कैसे इन्हें तिनका? बातें– यही अपनी पूंजी¸ यही अपने औज़ार यही अपने साधन¸ यही अपने हथियार बातें– साथ नहीं छोड़ेंगी मेरा बना लूँ वाहन इन्हें घुटन का, घिन का? क्या करूँ मैं इनका? बातें– साथ नहीं छोड़ेंगी मेरा स्तुति करूँ रात की, जिक्र न करूँ दिन का? क्या करूँ मैं इनका? (नागार्जुन)<
  • 2 answers

Mansi Semwal 3 years, 4 months ago

Thank you so much mohini

Mohini Rajput 3 years, 6 months ago

लेखक ने किशोर जीवन के इस संस्मरण में दिखलाया है कि अनावृष्टि से मुक्ति पाने हेतु गाँव के बच्चों की इंदर सेना द्वार-द्वार पानी माँगने जाती है लेकिनलेखक का तर्कशील किशोर मन भीषण सूखे में उसे पानी की निर्मम बर्बादी समझता है। लेखक की जीजी इस कार्य को अंधविश्वास न मानकर लोक आस्था त्याग की भावना कहती है।
  • 1 answers

Mohini Rajput 3 years, 6 months ago

(क) पृथ्वी बच्चों के बेचैन पैरों के पास इस तरह आती है, मानो वह अपना पूरा चक्कर लगाकर आ रही हो। (ख) छतों को नरम बनाने से कवि का आशय यह है कि बच्चे छत पर ऐसी तेजी और बेफ़िक्री से दौड़ते फिर रहे हैं मानो किसी नरम एवं मुलायम स्थान पर दौड़ रहे हों, जहाँ गिर जाने पर भी उन्हें चोट लगने का खतरा नहीं है। (ग) बच्चों की पेंग भरने की तुलना के पीछे कवि की कल्पना यह रही होगी कि बच्चे पतंग उड़ाते हुए उनकी डोर थामें आगे-पीछे यूँ घूम रहे हैं, मानो वे किसी लचीली डाल को पकड़कर झूला झूलते हुए आगे पीछे हो रहे हों। (घ) इन पंक्तियों में कवि ने पतंग उड़ाते बच्चों की तीव्र गतिशीलता का वर्णन पृथ्वी के घूमने के माध्यम से और बच्चों की चंचलता का वर्णन डाल पर झूला झूलने से किया है।
  • 1 answers

Mohini Rajput 3 years, 6 months ago

यशोधर बाबू अपने आदर्श किशनदा से अधिक प्रभावित हैं और आधुनिक परिवेश में बदलते हुए जीवन-मूल्यों और संस्कारों के विरूद्ध हैं। जबकि उनकी पत्नी अपने बच्चों के साथ खड़ी दिखाई देती हैं। वह अपने बच्चों के आधुनिक दृष्टिकोण से प्रभावित हैं। वे बेटी के कहे अनुसार नए कपड़े पहनती हैं और बेटों के किसी मामले में दखल नहीं देती।
  • 1 answers

Devil ? 3 years, 6 months ago

3 ha .. aroh vitan aur abhivyakti aur madyam
  • 1 answers

Mohini Rajput 3 years, 6 months ago

सुप्रसिद्ध समालोचक एवं चिन्तक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कविता को परिभाषित करते हुए लिखा है कि " कविता वह साधन है जिसके द्वारा सृष्टि के साथ मनुष्य के रागात्मक संबंध की रक्षा और निर्वाह होता है।"  रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार दी गई परिभाषा के अनुसार कविता की तीन विशेषताएं स्पष्ट होती है--- 1. कविता मानव एकता की प्रतिष्ठा करने का एक साधन है और यहि उसकी उपयोगिता है। 2. कविता में भावों एवं कल्पना की प्रधानता रहती है।  3. कविता मे कवि की अनुभूति की अभिव्यक्ति रहती हैं। महादेवी वर्मा के अनुसार; कविता कवि विशेष की भाषाओं का चित्रण हैं। कविता के दो स्वरूप है-- (अ) कविता का बाहरी स्वरूप  कविता के दो पक्ष है--- अनुभूति और अभिव्यक्ति। अनुभूति पक्ष का संबंध कविता के आंतरिक स्वरूप से है, जबकि अभिव्यक्ति पक्ष का संबंध बाहरी रूप से से है। कविता के बाहरी रूप के निर्धारण मे निम्नलिखित कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है---- 1. लय 2. तुक 3. छन्द 4. शब्द योजना 5. काव्य भाषा 6. अलंकार 7. काव्य गुण (ब) कविता का आन्तरिक स्वरूप  कविता का आन्तरिक पक्ष काव्य की आत्मा होती है। रसात्मकता, अनुभूति की तीव्रता, भाव और विचारों का समावेश तथा कल्पना की सृजनात्मकता से उत्पन्न सौन्दर्यबोध का सम्बन्ध कविता के आन्तरिक पक्ष से है। इसके अन्तर्गत भाव सौन्दर्य, विचार सौन्दर्य, नाद सौन्दर्य और अप्रस्तुत योजना का सौन्दर्य शामिल किया जाता है।
  • 0 answers
  • 1 answers

Ishant Rajput 3 years, 6 months ago

Be Aadarshbaadi , Roodhivadi , dharmik bhi the , or shant shwabhav k byakti the.
  • 0 answers
  • 1 answers

Sia ? 3 years, 7 months ago

इस पूरे प्रकरण में भक्तिन के पति का व्यवहार अच्छा था। उसे अपनी पत्नी पर विश्वास था। पति-प्रेम के बल पर ही वह अलग हो गई। अलग होते समय अपने ज्ञान के कारण उसे गाय-भैंस, खेत, खलिहान, अमराई के पेड़ आदि ठीक-ठाक मिल गए।

myCBSEguide App

myCBSEguide

Trusted by 1 Crore+ Students

Test Generator

Test Generator

Create papers online. It's FREE.

CUET Mock Tests

CUET Mock Tests

75,000+ questions to practice only on myCBSEguide app

Download myCBSEguide App