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Adity Gupta 4 years, 2 months ago

Bhaktin ne nischaya kiya ki wo vidhwa jiwan sadgi me bitaegi wo apne parivar ki dekhbhal khud kregi wo kisi ki madad nhi legi..
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Veena Dubgaa 4 years ago

साधारण शब्दों में, नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था वर्तमान अर्थव्यवस्था को समाप्त करके नए सिरे से स्थापित करने का मार्ग है ताकि विकसित देशों द्वारा अविकसित देशों का औपनिवेशिक शोषण रुक जाए और विश्व की आय तथा साधनों का न्यायपूर्ण व समान बंटवारा हो ताकि उत्तर-दक्षिण का अन्तर समाप्त हो जाए।

Khushi Kamboj?❤ 4 years, 1 month ago

साधारण शब्दों में, नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था वर्तमान अर्थव्यवस्था को समाप्त करके नए सिरे से स्थापित करने का मार्ग है ताकि विकसित देशों द्वारा अविकसित देशों का औपनिवेशिक शोषण रुक जाए और विश्व की आय तथा साधनों का न्यायपूर्ण व समान बंटवारा हो ताकि उत्तर-दक्षिण का अन्तर समाप्त हो जाए।
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Khushi Kamboj?❤ 4 years, 1 month ago

क्यूबाई मिसाइल संकट (क्यूबा में अक्टूबर संकट के रूप में जाना जाता है) शीत युद्ध के दौरान अक्टूबर 1962 में सोवियत संघ, क्यूबा और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक टकराव था। ... संयुक्त राज्य अमेरिका ने क्यूबा आकाश और समुद्र मार्ग से हमला करने पर विचार किया और क्यूबा का सैन्य संगरोधन करना तय किया।
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Khushi Kamboj?❤ 4 years, 1 month ago

जानकारों का कहना है कि अर्थव्यवस्था पर इन स्थितियों का कितना गहरा असर पड़ेगा ये दो बातों पर निर्भर करेगा. एक तो ये कि आने वाले वक़्त में कोरोना वायरस की समस्या भारत में कितनी गंभीर होती है और दूसरा कि कब तक इस पर काबू पाया जाता है.कोरोना वायरस ने न केवल भारत की बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्था की हालत खराब कर रखी है. विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस के कारण भारत की इकोनॉमी पर बड़ा असर पड़ने वाला है. कोरोना के भारत की आर्थिक वृद्धि दर में भारी गिरावट आएगी.
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Preeti Dabral 4 years, 2 months ago

आधुनिकता के दौर में यशोधर बाबू परंपरागत मूल्यों को हर हाल में जीवित रखना चाहते हैं। उनका उसूल पसंद होना दफ्तर एवं घर के लोगों के लिए सर दर्द बन गया था यशोधर बाबू को दिल्ली में अपने पाँव जमाने में किशनदा (कृष्णानंद पांडे) ने मदद की थी । अतः वे उनके आदर्श बन गए ।

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Mohini Rajput 4 years, 2 months ago

गाजियाबाद में हापुड़ रोड के एक फ्लाईओवर के नीचे बैठे प्रवासी श्रमिक. (फोटो: पीटीआई) केंद्र सरकार ने अभी तक इस बात की कोई घोषणा नहीं की है कि भारत में फैले कोविड-19 को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाउन के कारण पहले से ही सामना कर रहे आर्थिक आपातकाल से निपटने की उसकी क्‍या योजना है. ऐसी स्थिति में लोगों की तत्काल मदद करने के लिए नकदी से लेकर शहरी क्षेत्रों में प्रवासियों के लिए सामान देकर सहायता तथा स्वास्थ्य संबंधी आवश्यक उपायों के बारे में कुछ सुझाव हैं, जिन पर गौर किया जा सकता है. कोरोना वायरस रोग 2019 (कोविड-19) के प्रसार और इसके आगे के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए लागू किए गए अनियोजित लॉकडाउन ने ऐसे लाखों लोगों के जीवन में एक आर्थिक तबाही मचा दी है जो अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं– इनमें न केवल दिहाड़ी मज़दूर हैं बल्कि अनियमित अर्थव्‍यवस्‍था में काम करने वाले मजदूर भी हैं. रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, भारत के कुल कार्यबल का 80% से अधिक हिस्‍सा अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं, इसमें से एक तिहाई कैज़ुअल मजदूर हैं. प्रधानमंत्री द्वारा 19 मार्च को दिए गए संबोधन के 24 घंटों के भीतर महानगरों के रेलवे और बस स्टेशनों पर भीड़ इकट्ठा होनी शुरू हो गई. जो लोग कमा नहीं सकते, वे अपने घर जाना चाहते थे, जहां उन्हें कम से कम खाना और आश्रय तो मिलेगा. वायरस के प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक लॉकडाउन से उत्पन्न आर्थिक स्थिति उन लोगों को भी प्रभावित करेगी जो कोविड-19 से बच जाएंगे. इस स्थिति से निपटने के लिए तुरंत क्या किया जा सकता है, इस पर कुछ सुझाव हैं. नकद सहायता भारत समेत विश्वभर में कैश ट्रांसफर यानी नकद हस्तांतरण को पहले कदम के रूप में अपनाने की वकालत की जा रही है. पहली नज़र में, वे सबसे आसान और तेज विकल्प लगते हैं, लेकिन इनके साथ कुछ खतरे भी जुड़े हुए हैं: क. यह ‘आधार’ तय करना साधारण कार्य नहीं है कि किसे नकद मिले और कितना? क्या यह सभी मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) श्रमिकों के लिए होना चाहिए? क्या सभी मज़दूरों को बराबर मिलना चाहिए (भले ही उनके पूर्व में किए काम का अनुभव अलग हो)? ख. जमाखोरी और मूल्य वृद्धि की स्थिति में नकद की कीमत कम हो सकती है. ग. ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक शाखाओं की संख्या काफी कम है. बड़े पैमाने पर नकद देने से भीड़ जमा होगी, जिसके परिणामस्‍वरूप वायरस के सामुदायिक फैलाव का जोखिम उत्‍पन्‍न होगा. घ. बैंकिंग प्रणाली के आधार-पेमेंट ब्रिज सिस्टम की ओर बढ़ने के कारण गड़बड़ियां होना एक बड़ा मुद्दा है, जिस पर बात नहीं होती, पर जिसके परिणामस्वरूप भुगतान अस्वीकृत या डायवर्ट आदि हो जाते हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय के हालिया आंकड़े यह बताते हैं कि लगभग 10% प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) इस भुगतान ब्रिज के कारण विफल रहा. इसके अलावा, जो भुगतान डीबीटी पोर्टल पर सफल दिखाई देते हैं, वे गलती से अन्य लोगों के खातों में चले जाते हैं. फिर भी, कैश ट्रांसफर का उपयोग किया जा सकता है (और अवश्य) किया जाना चाहिए. तात्कालिकता को ध्यान में रखते हुए, मौजूदा नकद हस्तांतरण कार्यक्रमों का सहारा लेना ही बेहतर होगा. इसके बावजूद कुछ संवेदनशील वर्ग (उदाहरण के लिए, शहरी गरीब) छूट जाएंगे, लेकिन उनके लिए अन्य उपाय हैं. अग्रिम भुगतान: अप्रैल में तीन महीने की पेंशन (वृद्धावस्था, विधवाओं और विकलांग व्यक्तियों को) अग्रिम रूप से दें. अमूमन बुजुर्ग परिवार के अन्य कमाऊ सदस्यों की कमाई पर निर्भर रहते हैं. जैसे-जैसे परिवार की कमाई कम होगी तो बुजुर्गों को नुकसान हो सकता है. भुगतान में बढ़ोतरी: सामाजिक सुरक्षा पेंशन में केंद्र सरकार का योगदान रु. 200 प्रति व्यक्ति प्रति माह पर रुक गया है. इसे तुरंत कम से कम रु. 1,000 प्रति माह तक बढ़ाया जाना चाहिए. सभी को शामिल किया जाना: सामाजिक सुरक्षा पेंशन को सभी के लिए लागू किया जाना चाहिए. 60 वर्ष से अधिक उम्र के व्‍यक्ति, एकल महिला आदि की पहचान करना नकद ट्रांसफर को बढ़ाने का एक आसान तरीका है. बकाया राशि का भुगतान करना: केंद्र सरकार को मनरेगा मज़दूरों की वित्त वर्ष 2019-20 की सभी बकाया मज़दूरी का तुरंत भुगतान करना चाहिए. मनरेगा श्रमिकों के लिए नकद हस्तांतरण: जॉब कार्ड धारकों को, सामुदायिक फैलाव के जोखिम के कारण, काम के बिना, आने वाले तीन महीनों के लिए 10 दिन की मज़दूरी मिले. भुगतान पंचायत भवन या आंगनवाड़ी केंद्रों में नकदी के रूप में या बैंक खातों के माध्यम से हो सकता है. यह लगभग सभी जॉब कार्ड धारकों (14 करोड़ परिवारों से कम) के लिए प्रति परिवार रु. 2,000 प्रति माह होगा. इसपर तीन महीने में लगभग रु. 100 करोड़ खर्च होगा. मनरेगा श्रमिकों के लिए बाद में काम की गारंटी: बाद के महीनों में, जब सामुदायिक फैलाव का जोखिम कम हो जाएगा, तबजो काम करने के इच्छुक हैं उन्हें आश्वस्त करें कि उनके लिए कम से कम 20 दिन प्रति माह काम उपलब्‍ध रहेगा. किसी भी स्थिति में, मांग किए जाने पर 100 दिनों का काम उपलब्‍ध कराना मनरेगा के तहत भारत सरकार का एक कानूनी दायित्व है. जैसे-जैसे अन्य आर्थिक गतिविधियां बढेंगी और मनरेगा में काम की आवश्यकता फिर से शुरू होंगी, तो यह संख्याएं स्‍वयं कम होती जाएंगी. मनरेगा वेबसाइट के अनुसार, वर्तमान में केवल 8 करोड़ जॉब कार्ड (14 करोड़ में से) ही ‘सक्रिय’ हैं. एनईएफटी (NEFT) भुगतानों पर वापस लौटें: सभी नकद हस्तांतरण योजनाओं के लिए (उदाहरण के लिए, पेंशन, मनरेगा मजदूरी, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना आदि) -भुगतान ब्रिज सिस्टम से बचें, चूंकि उसमें अस्वीकृत और असफल भुगतान की समस्या होती है. जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, इसमें विफलता दर अधिक है. इसके बजाय नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (नेफ्ट या एनईएफटी) का उपयोग करें क्योंकि यह अधिक विश्वसनीय है.
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Prateek Dev 4 years, 2 months ago

(001) Hindi ( भाषा विशिष्ट) junly 2021
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Rashi Tyagi 4 years, 2 months ago

Ya net se kr lo

Mohini Rajput 4 years, 2 months ago

bhaut bda chatpter h lasa send karu book nhi h to aap net sa ni kal k kar lo bhai ..... i am sorry bhai ma itna bda nhi likh sakti.....??

Mohini Rajput 4 years, 2 months ago

hindi ki book nhi h kay bhai
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Mansi Semwal 4 years, 2 months ago

Vriksho thatha podho ko lagane ki prakriya ko vriksharopan kha jata hai.
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Mohini Rajput 4 years, 3 months ago

साफिया के भाई ने नमक की पुड़िया भारत ले जाने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि यह गैरकानूनी था। पाकिस्तान से लाहौरी नमक भारत ले जाना प्रतिबंधित था। उसके अनुसार नमक की पुड़िया निकल आने पर बाकी सामान की भी चिंदी-चिंदी बिखेर दी जाएगी।
काव्यांश को पढ़कर इन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए: क्या रोकेंगे प्रलय मेघ ये, क्या विद्युत -घन के नर्तन, मुझे न साथी रोक सकेंगे, सागर के गर्जन तर्जन। मैं अविराम पथिक अलबेला रुके न मेरे कभी चरण, शूलों के बदले फूलों का किया न मैंने मित्र चयन। मैं विपदाओं में मुस्काता नव आशा के दीप लिए, फिर मुझको क्या रोक सकेंगे जीवन के उत्थान पतन। मैं अटका कब विचलित मैं, सतत डगर मेरी संबल, रोक सकी पगले कब मुझको यह युग की प्राचीर निबल। आंधी हो, ओले-वर्षा हो, राह सुपरिचित है मेरी, फिर मुझको क्या डरा सकेंगे ये जग के खंडन-मंडन । मुझे डरा पाए कब अंधड़, ज्वालामुखियों के कंपन, मुझे पथिक कब रोक सकें, अग्नि शिखाओ के नर्तन। मैं बढ़ता अविराम निरंतर तन-मन में उन्माद लिए, फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये बादल विद्युत नर्तन। (1) कवि ने किसकी प्रकृति का वर्णन किया है और कैसे? (2) पथिक की क्या विशेषता है? (3) प्रलय मेघ, विद्युत घन, अंधड़, ज्वालामुखी किसके प्रतीक हैं? (4) युग के प्राचीर से कवि का क्या तात्पर्य है?
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Kishor Sinha 4 years, 3 months ago

2. Pathik ki viseshta h ki pathik bina ruke aalbela ki tarh chalta ja rha h.!
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Adity Gupta 4 years, 2 months ago

Barabar mul sabd hau aur ta pratya Manav mul sabd hai aur eya pratya hai
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Mohini Rajput 4 years, 3 months ago

कहानी में लुट्टन के जीवन में अनेक परिवर्तन आए – 1. माता-पिता का बचपन में देहांत होना। 2. सास द्वारा उसका पालन-पोषण किया जाना और सास पर हुए अत्याचारों का बदला लेने के लिए पहलवान बनना। 3. बिना गुरु के कुश्ती सीखना। ढोलक को अपना गुरु समझना। 4. पत्नी की मृत्यु का दुःख सहना और दो छोटे बच्चों का भार संभालना। 5. जीवन के पंद्रह वर्ष राजा की छत्रछाया में बिताना परंतु राजा के निधन के बाद उनके पुत्र द्वारा राजमहल से निकाला जाना। 6. गाँव के बच्चों को पहलवानी सिखाना। 7. अपने बच्चों की मृत्यु के असहनीय दुःख को सहना। 8. महामारी के समय अपनी ढोलक द्वारा लोगों में उत्साह का संचार करना।
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Veena Dubgaa 4 years ago

किसी घटना वृत्तांत आदि को संग्रहित करके उसकी अशुद्धियों को निकाल कर पाठकों तक संप्रेषण करना संपादन कहलाता है। इसके तीन सिद्धांत निम्नलिखित है – निष्पक्षता – कोई भी संपादक को घटना का शुद्ध रूप पाठकों का तक तभी पहुंचा सकता है , जब संपादन शुद्ध रूप से हो। उस घटना में किसी व्यक्ति का , अथवा किसी संस्था का हस्तक्षेप ना हो। तथ्यों की शुद्धता – संपादन के लिए यह दूसरी आवश्यक सामग्री है। किसी भी घटना को शुद्ध रूप से व्यक्त किया जाए। उसमें अपने विचार , अपने मत , तथ्य उस घटना में कुछ तोड़ – जोड़ कर पेश नहीं किया जाना चाहिए। अन्यथा यह संपादन का शुद्ध रूप नहीं रह जाता। संतुलन स्रोत – संपादन के लिए यह अति महत्वपूर्ण तथ्य है कि , किसी भी घटना को संप्रेषित करने से पूर्व उस घटना में संतुलन रखा जाना चाहिए। क्योंकि कई बार उस घटना से हिंसक विचार पाठक तक पहुंच जाता है , जिससे पाठक का मन विचलित व खिन्न हो जाता है। इसलिए यह अति आवश्यक है की शब्दों का चयन व उसके द्वारा पड़ने वाला प्रभाव , सम्प्रेषित कर रहे व्यक्ति के मस्तिष्क में अवश्य हो |

Mohini Rajput 4 years, 3 months ago

किसी घटना वृत्तांत आदि को संग्रहित करके उसकी अशुद्धियों को निकाल कर पाठकों तक संप्रेषण करना संपादन कहलाता है। इसके तीन सिद्धांत निम्नलिखित है – निष्पक्षता – कोई भी संपादक को घटना का शुद्ध रूप पाठकों का तक तभी पहुंचा सकता है , जब संपादन शुद्ध रूप से हो। उस घटना में  किसी व्यक्ति का , अथवा किसी संस्था का हस्तक्षेप ना हो। तथ्यों की शुद्धता –  संपादन के लिए यह दूसरी आवश्यक सामग्री है।  किसी भी घटना को शुद्ध रूप से व्यक्त किया जाए।  उसमें अपने विचार , अपने मत , तथ्य उस घटना में कुछ तोड़ – जोड़ कर पेश नहीं किया जाना चाहिए। अन्यथा यह संपादन का शुद्ध रूप नहीं रह जाता। संतुलन स्रोत –  संपादन के लिए यह अति महत्वपूर्ण तथ्य है कि , किसी भी घटना को संप्रेषित करने से पूर्व उस घटना में संतुलन रखा जाना चाहिए। क्योंकि कई बार उस घटना से हिंसक विचार पाठक तक पहुंच जाता है , जिससे पाठक का मन विचलित व खिन्न हो जाता है। इसलिए यह अति आवश्यक है की शब्दों का चयन व उसके द्वारा पड़ने वाला प्रभाव , सम्प्रेषित कर रहे व्यक्ति के मस्तिष्क में अवश्य हो |
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Mohini Rajput 4 years, 3 months ago

फ़ीचर पत्रकारिता की अत्यंत आधुनिक विधा है। भले ही समाचार पत्रों में समाचार की प्रमुखता अधिक होती है लेकिन एक समाचार-पत्र की प्रसिद्धि और उत्कृष्टता का आधार समाचार नहीं होता बल्कि उसमें प्रकाशित ऐसी सामग्री से होता है जिसका संबंध न केवल जीवन की परिस्थितियों और परिवेश से संबंधित होता है प्रत्युत् वह जीवन की विवेचना भी करती है। समाचारों के अतिरिक्त समाचार-पत्रों में मुख्य रूप से जीवन की नैतिक व्याख्या के लिए ‘संपादकीय’ एवं जीवनगत् यथार्थ की भावात्मक अभिव्यक्ति के लिए ‘फ़ीचर’ लेखों की उपयोगिता असंदिग्ध है। समाचार एवं संपादकीय में सूचनाओं को सम्प्रेषित करते समय उसमें घटना विशेष का विचार बिंदु चिंतन के केंद्र में रहता है लेकिन समाचार-पत्रों की प्रतिष्ठा और उसे पाठकों की ओर आकर्षित करने के लिए लिखे गए ‘फ़ीचर’ लेखों में वैचारिक चिंतन के साथ-साथ भावात्मक संवेदना का पुट भी उसमें विद्यमान रहता है। इसी कारण समाचार-पत्रों में उत्कृष्ट फ़ीचर लेखों के लिए विशिष्ट लेखकों तक से इनका लेखन करवाया जाता है। इसलिए किसी भी समाचार-पत्र की लोकप्रियता का मुख्य आधार यही फ़ीचर होते हैं। इनके द्वारा ही पाठकों की रुचि उस समाचार-पत्र की ओर अधिक होती है जिसमें अधिक उत्कृष्ट, रुचिकर एवं ज्ञानवर्धक फ़ीचर प्रकाशित किए जाते हैं। ‘फ़ीचर’ का स्वरूप कुछ सीमा तक निबंध एवं लेख से निकटता रखता है, लेकिन अभिव्यक्ति की दृष्टि से इनमें भेद होने के कारण इनमें पर्याप्त भिन्नता स्पष्ट दिखाई देती है। जहाँ ‘निबंध एवं लेख’ विचार और चिंतन के कारण अधिक बोझिल और नीरस बन जाते हैं वहीं ‘फ़ीचर’ अपनी सरस भाषा और आकर्षण शैली में पाठकों को इस प्रकार अभिभूत कर देते हैं कि वे लेखक को अभिप्रेत विचारों को सरलता से समझ पाते हैं।

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