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Khushi Kamboj?❤ 3 years, 3 months ago

वहीं डॉ हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है- "सूरसागर के कुछ पदों से यह ध्वनि अवश्य निकलती है कि सूरदास अपने को जन्म का अन्धा और कर्म का अभागा कहते हैं, पर हर समय इसके अक्षरार्थ को ही प्रधान नहीं मानना चाहिए।" वहीं एक आम मत है कि सूरदास जन्म से ही अंधे थे, भगवान् की कृपा से दिव्य-दृष्टि पायी थी, जिसके आधार पर उन्होंने .....

Khushi Kamboj?❤ 3 years, 3 months ago

वहीं डॉ हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है- "सूरसागर के कुछ पदों से यह ध्वनि अवश्य निकलती है कि सूरदास अपने को जन्म का अन्धा और कर्म का अभागा कहते हैं, पर हर समय इसके अक्षरार्थ को ही प्रधान नहीं मानना चाहिए।" वहीं एक आम मत है कि सूरदास जन्म से ही अंधे थे, भगवान् की कृपा से दिव्य-दृष्टि पायी थी, जिसके आधार पर उन्होंने ...
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Khushi Kamboj?❤ 3 years, 3 months ago

सपनों की उड़ान – डॉ. डॉ. कलाम कहते हैं कि अपने जीवन का महान लक्ष्य लक्ष्य रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए और निरंतर ज्ञान प्राप्त करते रहना चाहिए तथा सत्य निष्ठा से काम करना चाहिए। हमें अपने परिवार और समाज का भी अच्छा सदस्य बनना चाहिए।
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Reshu 12C 3 years ago

Raghubir shaye

Deepanshi Negi 3 years, 1 month ago

Raghuveer Sahay

Dhruv Soni 3 years, 3 months ago

Raghuvir sahay
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Anil Kumar 3 years, 3 months ago

Hello

Anil Kumar 3 years, 3 months ago

Hii
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Puravjeet Jaat Ladre 3 years, 2 months ago

Thank you bhen

Khushi Kamboj?❤ 3 years, 3 months ago

प्रतिपाद्य- प्रस्तुत कविता 'उषा' में कवि शमशेर बहादुर सिंह ने सूर्योदय से ठीक पहले के पल-पल परिवर्तित होने वाली प्रकृति का शब्द-चित्र उकेरा है। ... सार- कवि कहता है कि सूर्योदय से पहले आकाश का रंग गहरे नीले रंग का होता है तथा वह सफेद शंख-सा दिखाई देता है। आकाश का रंग ऐसा लगता है मानो किसी गृहिणी ने राख से चौका लीप दिया हो।
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Khushi Kamboj?❤ 3 years, 3 months ago

मेरी छत के कोने में बैठा कबूतर
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Sankar Kumar 3 years, 4 months ago

Gramr prsan answer
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Khushi Kamboj?❤ 3 years, 3 months ago

पतंग' कविता 'आलोक धन्वा' द्वारा रचित कविता है, जो बाल मनोविज्ञान से प्रेरित है। इस कविता के बहाने से कवि ने बाल सुलभ इच्छाओं और बालकों की उमंग का सुंदर चित्रण किया है। ... इस तरह कवि ने प्रकृति के प्रतीकों के माध्यम से बालमन की भावनाओं को अभिव्यक्त किया है और बाल सुलभ आकांक्षाओं का सुंदर चित्रण किया है .
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Pramila Senapati 3 years, 4 months ago

Year 1905, Aligarh (UP)
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Himanshi Saini 3 years, 4 months ago

26 march 1907
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Preeti Dabral 3 years, 4 months ago

चेहरे पर शिकंजा है परेशानी की और आंखें झूठ ही बोल जाती है। किताब के बोझ ने इन्हें चिंता करने की आदत से मुक्त कर दिया है। वास्तव में नए तकनीक कौन लाता है यह युवा वर्ग ही। इसलिए यह भले ही हताशे में रहे चलेगा मगर अपने सपने को जीना न भूलें क्योंकि आशा की किरण है युवा।

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Adity Gupta 3 years, 4 months ago

Bhaktin ne nischaya kiya ki wo vidhwa jiwan sadgi me bitaegi wo apne parivar ki dekhbhal khud kregi wo kisi ki madad nhi legi..
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Veena Dubgaa 3 years, 3 months ago

साधारण शब्दों में, नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था वर्तमान अर्थव्यवस्था को समाप्त करके नए सिरे से स्थापित करने का मार्ग है ताकि विकसित देशों द्वारा अविकसित देशों का औपनिवेशिक शोषण रुक जाए और विश्व की आय तथा साधनों का न्यायपूर्ण व समान बंटवारा हो ताकि उत्तर-दक्षिण का अन्तर समाप्त हो जाए।

Khushi Kamboj?❤ 3 years, 3 months ago

साधारण शब्दों में, नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था वर्तमान अर्थव्यवस्था को समाप्त करके नए सिरे से स्थापित करने का मार्ग है ताकि विकसित देशों द्वारा अविकसित देशों का औपनिवेशिक शोषण रुक जाए और विश्व की आय तथा साधनों का न्यायपूर्ण व समान बंटवारा हो ताकि उत्तर-दक्षिण का अन्तर समाप्त हो जाए।
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Khushi Kamboj?❤ 3 years, 3 months ago

क्यूबाई मिसाइल संकट (क्यूबा में अक्टूबर संकट के रूप में जाना जाता है) शीत युद्ध के दौरान अक्टूबर 1962 में सोवियत संघ, क्यूबा और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक टकराव था। ... संयुक्त राज्य अमेरिका ने क्यूबा आकाश और समुद्र मार्ग से हमला करने पर विचार किया और क्यूबा का सैन्य संगरोधन करना तय किया।
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Khushi Kamboj?❤ 3 years, 3 months ago

जानकारों का कहना है कि अर्थव्यवस्था पर इन स्थितियों का कितना गहरा असर पड़ेगा ये दो बातों पर निर्भर करेगा. एक तो ये कि आने वाले वक़्त में कोरोना वायरस की समस्या भारत में कितनी गंभीर होती है और दूसरा कि कब तक इस पर काबू पाया जाता है.कोरोना वायरस ने न केवल भारत की बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्था की हालत खराब कर रखी है. विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस के कारण भारत की इकोनॉमी पर बड़ा असर पड़ने वाला है. कोरोना के भारत की आर्थिक वृद्धि दर में भारी गिरावट आएगी.
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Preeti Dabral 3 years, 5 months ago

आधुनिकता के दौर में यशोधर बाबू परंपरागत मूल्यों को हर हाल में जीवित रखना चाहते हैं। उनका उसूल पसंद होना दफ्तर एवं घर के लोगों के लिए सर दर्द बन गया था यशोधर बाबू को दिल्ली में अपने पाँव जमाने में किशनदा (कृष्णानंद पांडे) ने मदद की थी । अतः वे उनके आदर्श बन गए ।

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Mohini Rajput 3 years, 5 months ago

गाजियाबाद में हापुड़ रोड के एक फ्लाईओवर के नीचे बैठे प्रवासी श्रमिक. (फोटो: पीटीआई) केंद्र सरकार ने अभी तक इस बात की कोई घोषणा नहीं की है कि भारत में फैले कोविड-19 को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाउन के कारण पहले से ही सामना कर रहे आर्थिक आपातकाल से निपटने की उसकी क्‍या योजना है. ऐसी स्थिति में लोगों की तत्काल मदद करने के लिए नकदी से लेकर शहरी क्षेत्रों में प्रवासियों के लिए सामान देकर सहायता तथा स्वास्थ्य संबंधी आवश्यक उपायों के बारे में कुछ सुझाव हैं, जिन पर गौर किया जा सकता है. कोरोना वायरस रोग 2019 (कोविड-19) के प्रसार और इसके आगे के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए लागू किए गए अनियोजित लॉकडाउन ने ऐसे लाखों लोगों के जीवन में एक आर्थिक तबाही मचा दी है जो अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं– इनमें न केवल दिहाड़ी मज़दूर हैं बल्कि अनियमित अर्थव्‍यवस्‍था में काम करने वाले मजदूर भी हैं. रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, भारत के कुल कार्यबल का 80% से अधिक हिस्‍सा अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं, इसमें से एक तिहाई कैज़ुअल मजदूर हैं. प्रधानमंत्री द्वारा 19 मार्च को दिए गए संबोधन के 24 घंटों के भीतर महानगरों के रेलवे और बस स्टेशनों पर भीड़ इकट्ठा होनी शुरू हो गई. जो लोग कमा नहीं सकते, वे अपने घर जाना चाहते थे, जहां उन्हें कम से कम खाना और आश्रय तो मिलेगा. वायरस के प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक लॉकडाउन से उत्पन्न आर्थिक स्थिति उन लोगों को भी प्रभावित करेगी जो कोविड-19 से बच जाएंगे. इस स्थिति से निपटने के लिए तुरंत क्या किया जा सकता है, इस पर कुछ सुझाव हैं. नकद सहायता भारत समेत विश्वभर में कैश ट्रांसफर यानी नकद हस्तांतरण को पहले कदम के रूप में अपनाने की वकालत की जा रही है. पहली नज़र में, वे सबसे आसान और तेज विकल्प लगते हैं, लेकिन इनके साथ कुछ खतरे भी जुड़े हुए हैं: क. यह ‘आधार’ तय करना साधारण कार्य नहीं है कि किसे नकद मिले और कितना? क्या यह सभी मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) श्रमिकों के लिए होना चाहिए? क्या सभी मज़दूरों को बराबर मिलना चाहिए (भले ही उनके पूर्व में किए काम का अनुभव अलग हो)? ख. जमाखोरी और मूल्य वृद्धि की स्थिति में नकद की कीमत कम हो सकती है. ग. ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक शाखाओं की संख्या काफी कम है. बड़े पैमाने पर नकद देने से भीड़ जमा होगी, जिसके परिणामस्‍वरूप वायरस के सामुदायिक फैलाव का जोखिम उत्‍पन्‍न होगा. घ. बैंकिंग प्रणाली के आधार-पेमेंट ब्रिज सिस्टम की ओर बढ़ने के कारण गड़बड़ियां होना एक बड़ा मुद्दा है, जिस पर बात नहीं होती, पर जिसके परिणामस्वरूप भुगतान अस्वीकृत या डायवर्ट आदि हो जाते हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय के हालिया आंकड़े यह बताते हैं कि लगभग 10% प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) इस भुगतान ब्रिज के कारण विफल रहा. इसके अलावा, जो भुगतान डीबीटी पोर्टल पर सफल दिखाई देते हैं, वे गलती से अन्य लोगों के खातों में चले जाते हैं. फिर भी, कैश ट्रांसफर का उपयोग किया जा सकता है (और अवश्य) किया जाना चाहिए. तात्कालिकता को ध्यान में रखते हुए, मौजूदा नकद हस्तांतरण कार्यक्रमों का सहारा लेना ही बेहतर होगा. इसके बावजूद कुछ संवेदनशील वर्ग (उदाहरण के लिए, शहरी गरीब) छूट जाएंगे, लेकिन उनके लिए अन्य उपाय हैं. अग्रिम भुगतान: अप्रैल में तीन महीने की पेंशन (वृद्धावस्था, विधवाओं और विकलांग व्यक्तियों को) अग्रिम रूप से दें. अमूमन बुजुर्ग परिवार के अन्य कमाऊ सदस्यों की कमाई पर निर्भर रहते हैं. जैसे-जैसे परिवार की कमाई कम होगी तो बुजुर्गों को नुकसान हो सकता है. भुगतान में बढ़ोतरी: सामाजिक सुरक्षा पेंशन में केंद्र सरकार का योगदान रु. 200 प्रति व्यक्ति प्रति माह पर रुक गया है. इसे तुरंत कम से कम रु. 1,000 प्रति माह तक बढ़ाया जाना चाहिए. सभी को शामिल किया जाना: सामाजिक सुरक्षा पेंशन को सभी के लिए लागू किया जाना चाहिए. 60 वर्ष से अधिक उम्र के व्‍यक्ति, एकल महिला आदि की पहचान करना नकद ट्रांसफर को बढ़ाने का एक आसान तरीका है. बकाया राशि का भुगतान करना: केंद्र सरकार को मनरेगा मज़दूरों की वित्त वर्ष 2019-20 की सभी बकाया मज़दूरी का तुरंत भुगतान करना चाहिए. मनरेगा श्रमिकों के लिए नकद हस्तांतरण: जॉब कार्ड धारकों को, सामुदायिक फैलाव के जोखिम के कारण, काम के बिना, आने वाले तीन महीनों के लिए 10 दिन की मज़दूरी मिले. भुगतान पंचायत भवन या आंगनवाड़ी केंद्रों में नकदी के रूप में या बैंक खातों के माध्यम से हो सकता है. यह लगभग सभी जॉब कार्ड धारकों (14 करोड़ परिवारों से कम) के लिए प्रति परिवार रु. 2,000 प्रति माह होगा. इसपर तीन महीने में लगभग रु. 100 करोड़ खर्च होगा. मनरेगा श्रमिकों के लिए बाद में काम की गारंटी: बाद के महीनों में, जब सामुदायिक फैलाव का जोखिम कम हो जाएगा, तबजो काम करने के इच्छुक हैं उन्हें आश्वस्त करें कि उनके लिए कम से कम 20 दिन प्रति माह काम उपलब्‍ध रहेगा. किसी भी स्थिति में, मांग किए जाने पर 100 दिनों का काम उपलब्‍ध कराना मनरेगा के तहत भारत सरकार का एक कानूनी दायित्व है. जैसे-जैसे अन्य आर्थिक गतिविधियां बढेंगी और मनरेगा में काम की आवश्यकता फिर से शुरू होंगी, तो यह संख्याएं स्‍वयं कम होती जाएंगी. मनरेगा वेबसाइट के अनुसार, वर्तमान में केवल 8 करोड़ जॉब कार्ड (14 करोड़ में से) ही ‘सक्रिय’ हैं. एनईएफटी (NEFT) भुगतानों पर वापस लौटें: सभी नकद हस्तांतरण योजनाओं के लिए (उदाहरण के लिए, पेंशन, मनरेगा मजदूरी, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना आदि) -भुगतान ब्रिज सिस्टम से बचें, चूंकि उसमें अस्वीकृत और असफल भुगतान की समस्या होती है. जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, इसमें विफलता दर अधिक है. इसके बजाय नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (नेफ्ट या एनईएफटी) का उपयोग करें क्योंकि यह अधिक विश्वसनीय है.
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Prateek Dev 3 years, 5 months ago

(001) Hindi ( भाषा विशिष्ट) junly 2021

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