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Sachin Patil 4 years, 9 months ago

ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में काम काज की यह रिपोर्ट प्रवर समि ती द्वारा बनाई गई थी यह उन रिपोर्ट मे से पाचावीl रिपोर्ट थी| १.१८१३ में ब्रिटेन सांसद में पेश २. १७६०में कंपनी बंगाल में स्थापित | ३.. ब्रिटन के काई उद्योग पती भारत aur chin ke sath vyapar me ईस्ट इंडिया कंपनी के एकाधिकार का विरोध करते थे| ४.वे चाहते थे की ऊस शाही फर्मान को रद्द किया jay jisme e.s.c ko व्यापार का एकाधिकार दिया गया है| ५. काई लोगो का तो मनाना था की बंगाल की विजय का लाभ सिर्फ e.s.c. ko ho raha hai pure ब्रिटन को नहीं| ६.१००२ प्रस्टो की और 800 से अधिक परिशिष्ट थे 5.रिपोर्ट मे विभिन्न जीलो की कलेक्तरो रिपोर्ट , संकिखीय तलिकाय, रायतो की अर्जियां शामिल थी| ७.कंपनी के कुशास न और अव्यवस्थित प्रशासन की विषयों में प्राप्त सुचनवो पर ब्रिटेन सांसद में गरमागरम बहस छिड़ी रहती। ८.कंपनी के अधिकारियों के लोभ लालच और भ्रष्ाचार की घटनवो को ब्रिटेन समाचारपत्रों में उछला जाता। ९.इस विषय पर बहस के बाद कई अधिनियम पारित किए गए । १०.कंपनी को बाध्य किया गया कि से अपने कामकाज की रिपोर्ट नियमित पेश करे ११.कामकाज की जाच के लिए कई समितियां नियुक्त की गई। ५वी रिपोर्ट प्रवर समिति द्वारा(जनता द्वारा छुने गए ) बनाई गई थी। Hope it's helpful ??
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Muskan Maan 4 years, 8 months ago

इस नीति का उदेश्य शांती स्थापित करना था , इसमें सभी धर्मो को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी ,परंतु इसकी शर्त भी थी की वे राज्य को हानि नहीं पहुँचाएगे और आपस में नहीं ladege
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Gaurav Seth 4 years, 9 months ago

 मन्दिर में कई सभागारों का निर्माण करवाया गया था। सभागारों का प्रयोग विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए किया जाता था।

कुछ सभागारों में संगीत, नृत्य और नाटकों के विशेष कार्यक्रमों को देखने के लिए देवताओं की मूर्तियों को रखा जाता था। कुछ अन्य सभागारों में देवी-देवताओं के विवाह समारोहों का आयोजन किया जाता था तो कुछ का प्रयोग देवी-देवताओं को झूला झुलाने के लिए किया जाता था।

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Nikil Jatav 4 years, 9 months ago

यज्ञ, अनुष्ठान व अन्य विशिष्ट कार्यों के लिए

Vinay Prasad 4 years, 9 months ago

मोहनजोदड़ो के दुर्ग में मिले विशाल स्नानागार का प्रयोग संभवत सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए किया जाता था

Yogita Ingle 4 years, 9 months ago

महास्नानघर सिन्धु घाटी सभ्यता के प्राचीन खंडहर शहर मोहन जोदड़ो में स्थित एक प्रसिद्ध हौज़ है। वर्तमान समय में यह पाकिस्तान के सिंध प्रांत में आता है। यह मोहन जोदड़ो के उत्तरी भाग में स्थित है और एक कृत्रिम टीले के ऊपर बनाया गया था। यह हौज़ ११.८८ मीटर लम्बा और ७ मीटर चौड़ा है और इसका सब से अधिक भाग २.४३ मीटर की गहराई रखता है। इसमें उतरने के लिए एक सीढ़ी उत्तर में और एक दक्षिण की तरफ़ बनाई गई है। इसका निर्माण भट्टी से निकाली गई पतली ईंटों से किया गया है और, पानी को चूने से रोकने के लिए, चिनाई के मसाले और ईंटों के ऊपर डामर (बिटुमन) की परत भी चढ़ाई गई थी।

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Muskan Maan 4 years, 8 months ago

गाँधी जी ने ।

Vinay Prasad 4 years, 9 months ago

Mahatma Gandhi ji ne

Gaurav Seth 4 years, 9 months ago

किसने दिया: महात्मा गाँधी

कब दिया: वर्ष 1942 में

लक्ष्य: “करो या मरो” नारे के द्वारा गाँधी जी ने गुलामी की ज़िन्दगी जी रही भारत की आम जनता को एकजुट होकर लड़ने के लिए प्रात्साहित किया इस नारे का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों का सिरे से विरोध करना था इस नारे से देश की जनता को एकजुट होने तथा आज़ादी के लिए हर संभव प्रयास करने की प्रेरणा मिली

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Sachin Patil 4 years, 9 months ago

HBDCZ ( Short ke yaad rakhe)

Muskan Maan 4 years, 9 months ago

1 हत्या न करना , 2 झूठ न बोलना , 3 चोरी न करना , 4 भ्र्मचर्या का पालन करना , 5 धन संग्रह न करना
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Gaurav Seth 4 years, 9 months ago

The significance Salt March for Swaraj:

(i) On 12th March 1930- Gandhiji began the march from his ashram at Sabarmati towards the ocean where he reached after three weeks, making a fistful of salt and thereby breaking colonial salt law.

(ii) Parallel salt marches and protests were also conducted in other parts of the country. Peasants breached the hated colonial forest laws, factory workers went on strike, lawyers boycotted British courts  and students refused to attend goverment run educational institutions. Gandhi’s call had encouraged Indians of all classes to make manifest their own discontent with colonial rule.

(iii) During the March Gandhiji told the upper castes that if they want Swaraj they must serve untouchables. For Swaraj, Hindus , Muslims , Parsis and Sikhs have to unite

(iv) The progress of the salt March can also be traced from another source: the American news magazine, Time. Time magazine was deeply sceptical of the salt march reaching its destination. But within a week it had changed its mind and saluted Gandhi as a ‘saint ‘ and statesman. Time’s writing had made the British rulers “ desperately anxious”.

(v) Salt March was notable for at least three reasons. First, it was  this event that brought Gandhiji to world attention. The march was widely covered by the European and American Press.

(vi) Second, it was the first nationalist activity in which women participated in large numbers. Kamaladevi Chattopadhyay, the socialist activist had persuaded Gandhiji not to restrict the protest to men alone . She herself was one of numerous women who courted arrest by breaking salt and Liquor Laws.

(vii) Third, and perhaps most significant, it was the Salt March which forced upon the British the realization that their Raj would not last forever , and they would have to devolve some power to the Indians.

(viii) To that end British Government convened a series of Round Table Conferences in London. First meeting was held in Nov 1930 without any pre-eminent political leader in India, thus rendering it an exercise in futility. When Gandhiji was released from jail in Jan 1931,many meetings were held with the Viceroy and it culminated in the ‘Gandhi Irwin Pact’ by which civil disobedience would be called off and all prisoners released and salt manufacture allowed along the coast. Gandhiji represented the congress at Second Round Table Conference at London. The conference in London was inconclusive, so Gandhi returned to India and resumed civil disobedience.

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Nikil Jatav 4 years, 9 months ago

कारनीलियन, जइसपर, स्पठिक, कवरटज शैल खडी व अन्य पत्थरो से व शंख फयोन्स से
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Yogita Ingle 4 years, 9 months ago

*जॉन मार्शल - 3250 - 2750 ई० पू०।

*मार्टीमर व्हीलर - 2500 - 1500 ई० पू०।

*माधोस्वरूप वत्स - 3500 - 2700 ई० पू०।

*अर्नेस्ट मैके - 2800 - 2500 ई० पू०।

*फ़ेयर सर्विस - 2000 - 1500 ई० पू०।

*जी० सी० गैड - 2350 - 1750 ई० पू०।

*डी० पी० अग्रवाल - 2300 - 1750 ई० पू०।

*रेडियो कार्बन तिथि (“C-14”) के अनुसार हड़प्पा सभ्यता का काल 2350 - 1750 ई० पू० निर्धारित हुआ है, जो सर्वमान्य है।

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Gaurav Seth 4 years, 9 months ago

मोहनजोदड़ो को हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा शहरी केंद्र माना जाता है। इस सभ्यता की नगर-योजना, गृह निर्माण, मुद्रा, मोहरों आदि की अधिकांश जानकारी मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है।

  1. नियोजित शहरी केंद्र: यह नगर दो भागों में विभाजित था, एक छोटा लेकिन ऊँचाई पर बनाया गया और दूसरा कहीं अधिक बड़ा लेकिन नीचे बनाया गया। पुरातत्वविदों ने इन्हें क्रमश: दुर्ग और निचला शहर का नाम दिया है।दुर्ग कि ऊँचाई का कारण यह था कि यहाँ कि संरचनाएँ कच्ची ईंटों के चबूतरों पर बनी थीं। दुर्ग को दीवार से घेरा हुआ गया था जिसका अर्थ है कि इस निचले शहर से अलग किया गया था। निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। इसके अतिरिक्त कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नीवं का कार्य करते थे। दुर्ग क्षेत्र के निर्माण तथा निचले क्षेत्र में चबूतरों के निर्माण के लिए विशाल संख्या में श्रमिकों को लगया गया होगा।
  2. प्लेटफार्म: इस नगर की यह विशेषता रही होगी कि पहले प्लेटफार्म या चबूतरों का निर्माण किया जाता होगा तथा बाद में इस तय सीमित क्षेत्र में निर्माण किया जाता होगा। इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि पहले बस्ती का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार कार्यान्वयन। इसकी पूर्व योजना का पता ईंटों से भी लगता है। यह ईंटें भट्टी में पक्की हुई, धुप में सुखी हुई, अथवा एक निश्चित अनुपात की होती थीं। इस प्रकार की ईंटें सभी हड्डपा बस्तियों में प्रयोग में लायी गयी थीं। 
  3. गृह स्थापत्य: (i) मोहनजोदड़ो का निचला शहर आवासीय भवनों के उदाहरण प्रस्तुत करता है। घरों की बनावट में समानता पाई गयी है। ज्यादातर घरों में आँगन होता था और इसके चारों तरफ कमरे बने होते थे। (ii) हर घर का ईंटों से बना अपना एक स्नानघर होता था जिसकी नालियाँ दीवार के माध्यम से सड़क की नालियों से जुड़ी हुई थी।
  4. दुर्ग:दुर्ग में कई भवन ऐसे थे जिनका उपयोग विशेष सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए किया गया था। निम्नलिखित दो संरचनाएं सबसे महत्वपूर्ण थीं: (i) मालगोदाम,(ii) विशाल स्नानागार। इसकी विशिष्ट संरचनाओं के साथ इनके मिलने से इस बात का स्पष्ट संकेत मिलता है कि इसका प्रयोग किसी प्रकार के विशेष आनुष्ठानिक स्नान के लिए किया जाता था।
  5. नालियों की व्यवस्था: मोहनजोदड़ो नगर में नालियों का निर्माण भी बहुत नियोजित तरीके से किया गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों का निर्माण किया गया था और फिर उनके अगल-बगल आवासों का निर्माण किया गया था। प्रत्येक घर के गंदे पानी की निकासी एक पाईप से होती थी जो सड़क गली की नाली से जुड़ा होता था। यदि घरों के गंदे पानी को गलियों से नालियों से जोड़ना था तो प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा होना आवशयक था।
  6. सड़कें और गालियाँ: जैसे ज्ञात होता है कि सड़कें और गालियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। मोहनजोदड़ो में निचले नगर में मुख्य सड़क 10.5 चौड़ी थीं, इससे 'प्रथम सड़क' कहा गया है। बाकि सड़कें 3.6 से  4 मीटर तक चौड़ी थीं। गालियाँ एक गलियारें 1.2 मीटर या उससे अधिक चौड़े थे। घरों के निर्माण से पहले ही सड़कों व गलियों के लिए स्थान छोड़ दिया जाता था।
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Muskan Maan 4 years, 8 months ago

लाल-लाला लाजपत राय , पाल-विपिन चंद्र पाल।

Muskan Maan 4 years, 8 months ago

लाल-लल लाजपत राय,पाल-विपिन चंद्र पाल।

Deepak Kumar Meena 4 years, 9 months ago

1905-1906 के सवेडेशी आंदोलन के दौरान महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक, पंजाब के लाला लाजपत राय, बंगाल के विपिन चंद्र पाल जैसे नेताओ को जन्म दिया था। इन्हें ही लाल, बाल,पाल के नाम से जाना जाता है उन्होंने ऑपनेवेशिक sashan के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाया था।
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Nikil Jatav 4 years, 9 months ago

सरकार द्वारा आयत व निर्यात आदि सम्बन्धी नियमो को कमजोर करना

Deepak Kumar Meena 4 years, 9 months ago

उदारवादी ,जिन्हें लिबरल के नाम से जाना जाता है। यह मुक्त वायपार, निजी अर्थावस्था, सरकार का इकॉनमी में कम हस्तक्षेप को बढ़ावा देते है।

Yogita Ingle 4 years, 9 months ago

उदारवाद यानि (libration) मध्य वर्गो के लिए उदारवाद का मतलब था व्यक्ति के लिए आजादी और कानून के समक्ष बराबरी ।

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Yogita Ingle 4 years, 9 months ago

अबुल फजल का पुरा नाम अबुल फजल इब्न मुबारक था। इसका संबंध अरब के हिजाजी परिवार से था। इसका जन्म 14 जनवरी 1551 में हुआ था। इसके पिता का नाम शेक मुबारक था। अबुल फजल ने अकबरनामा एवं आइने अकबरी जैसे प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की। प्रारंभिक जीवन – अबुल फजल का पुरा परिवार देशांतरवास कर पहले ही सिंध आ चुका था। फिर हिन्दुस्तान के राजस्थान में अजमेर के पास नागौर में हमेशा के लिए बस गया। इसका जन्म आगरा में हुआ था। अबुल फजल बचपन से ही काफी प्रतिभाशाली बालक था। उसके पिता शेख मुबारक ने उसकी शिक्षा की अच्छी व्यवस्था की शीध्र ही वह एक गुढ़ और कुशल समीक्षक विद्वान की ख्याति अर्जित कर ली। 20 वर्ष की आयु में वह शिक्षक बन गया। 1573 ई. में उसका प्रवेश अकबर के दरबार में हुआ। वह असाधारण प्रतिभा, सतर्क निष्ठा और वफादारी के बल पर अकबर का चहेता बन गया। वह शीध्र अकबर का विश्वासी बन गया और शीध्र ही प्रधानमंत्री के ओहदे तक पहुँच गया। अबुल फजल इब्न का इतिहास लेखन – वह एक महान राजनेता, राजनायिक और सौन्य जनरल होने के साथ–साथ उसने अपनी पहचान एक लेखक के रूप ने भी वह भी इतिहास लेखक के रूप में बनाई। उसने इतिहास के परत-दर-परत को उजागर का लोगों के सामने लाने का प्रयास किया। खास कर उसका ख्याति तब और बढ़ जाती है जब उसने अकबरनामा और आईने अकबरी की रचना की। उसने भारतीय मुगलकालीन समाज और सभ्यता को इस पुस्तक के माध्यम से बड़े ही अच्छे तरीके से वर्णन किया है।

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Tehsin Ansari 4 years, 9 months ago

Thanks ji

Yogita Ingle 4 years, 9 months ago

पांडुलिपि तैयार करने की एक लंबी प्रक्रिया होती थी। इस प्रक्रिया में कई लोग शामिल होते थे। जो अलग अलग कामों में दक्ष होते थे। सबसे पहले पांडुलिपि का पन्ना तैयार किया जाता था जो कागज़ बनाने वालों का काम था। तैयार किए गए पन्ने पर अत्यंत सुंदर अक्षर में पाठ की नकल तैयार की जाती थी। उस समय सुलेखन अर्थात् हाथ से लिखने की कला अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मानी जाती थी। इसका प्रयोग भिन्न-भिन्न शैलियों में होता था। सरकंडे के टुकड़े को स्याही में डुबोकर लिखा जाता था। इसके बाद कोफ्तगार पृष्ठों को चमकाने का काम करते थे। चित्रकार पाठ के दृश्यों को चित्रित करते थे। अन्त में, जिल्दसाज प्रत्येक पन्ने को इकट्ठा करके उसे अलंकृत आवरण देता था। तैयार पांडुलिपि को एक बहुमूल्य वस्तु, बौद्धिक संपदा और सौंदर्य के कार्य के रूप में देखा जाता था।

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Gaurav Seth 4 years, 8 months ago

मुगल साम्राज्य के शासकों ने खुद को एक बड़ी और विषम आबादी पर शासन करने के लिए ईश्वरीय इच्छा के अनुसार नियुक्त किया। यद्यपि इस भव्य दृष्टि को अक्सर वास्तविक राजनीतिक परिस्थितियों द्वारा परिचालित किया गया था, यह महत्वपूर्ण बना रहा। इस दृष्टि को प्रसारित करने का एक तरीका वंशवादी इतिहास लेखन के माध्यम से था। मुगल राजाओं ने इतिहास लिखने के लिए अदालत के इतिहासकारों को कमीशन दिया। इन खातों ने सम्राट के समय की घटनाओं को दर्ज किया। इसके अलावा, उनके लेखकों ने उपमहाद्वीप के क्षेत्रों से बड़ी मात्रा में जानकारी एकत्र की, ताकि शासकों को उनके शासन को संचालित करने में मदद मिल सके।

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Muskan Maan 4 years, 9 months ago

Abul fajal akbar ka mittr tha . Usne akbar . Abul Fajal ne "akbarnama" namak pustak ki rachna ki thi . Veh Akbar ke navratanoo mein se ek tha.
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Uday Goel 4 years, 2 months ago

Thankyou sir

Seema Panwar 4 years, 9 months ago

मोर्य साम्राज्य कितना महत्वपूर्ण था ?? Write a long answer plzz

Yogita Ingle 4 years, 9 months ago

छठी शताब्दी ईसापूर्व को एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल इसलिए माना जाता है क्योंकि इस काल में आरंभिक राज्य नगरों लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों का अभूतपूर्व विकास हुआ था इसी काल में बौद्ध और जैन सहित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का उद्भव हुआ था साथ ही 16 महाजनपदों का उदय भी इसी काल की देन मानी जाती है।

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Khushi Kk 4 years, 9 months ago

Yh lipi dai s bai ki or likhi jati thi

Sheetal Singh 4 years, 9 months ago

1. Hadappa lipi daay se baay or likhi jati thi. 2. Hadappa lipi eak chitratmak lipi thi. 3. Ise aajtak padha nahi ja saka hai.

Muskan Maan 4 years, 9 months ago

हड्डपा लिपि के अक्षरों को बोहुत हल्के ढंग से उत्कृण किया गया था। इसमे अक्षरो की संख्या 375 से 400 थी ।
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Deepak Kumar Meena 4 years, 9 months ago

हिन्दू मत से प्रभावित होकर कबीर ने ईश्वर को निराकार, अमूर्त के नाम से पुकारा है। वहीं इस्लाम मत से प्रभावित होकर कबीर ने ईश्वर को आल्लह, पीर, hazrat ke nam se pukara hai।
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Muskan Maan 4 years, 9 months ago

Smudar ke jal se namak bnakar nanak kanoon ko bhang karna

Gaurav Seth 4 years, 9 months ago

 दांडी मार्च जो गांधीजी और उनके स्वयं सेवकों द्वारा 12 मार्च, 1930 ई. को प्रारम्भ की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य था अंग्रेजों द्वारा बनाए गए ‘नमक कानून को तोड़ना’। गांधीजी ने साबरमती में अपने आश्रम से समुद्र की ओर चलना शुरू किया। इस आंदोलन की शुरुआत में 78 सत्याग्रहियों के साथ दांडी कूच के लिए निकले बापू के साथ दांडी पहुंचते-पहुंचते पूरा आवाम जुट गया था।

लगभग 25 दिन बाद 6 अप्रैल, 1930 ई. को दांडी पहुंचकर उन्होंने समुद्रतट पर नमक कानून तोड़ा। महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा के दौरान सूरत, डिंडौरी, वांज, धमन के बाद नवसारी को यात्रा के आखिरी दिनों में अपना पड़ाव बनाया था। यहां से कराडी और दांडी की यात्रा पूरी की थी। नवसारी से दांडी का फासला लभभग 13 मील का है।

यह वह दौर था जब ब्रितानिया हुकूमत का चाय, कपड़ा और यहां तक कि नमक जैसी चीजों पर सरकार का एकाधिकार था। ब्रिटिश राज के समय भारतीयों को नमक बनाने का अधिकार नहीं था, बल्कि उन्हें इंग्लैंड से आने वाले नमक के लिए कई गुना ज्यादा पैसे देने होते थे। दांडी मार्च के बाद आने वाले महीनों में 80,000 भारतीयों को गिरफ्तार किया गया। इससे एक चिंगारी भड़की जो आगे चलकर ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ में बदल गई।

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Muskan Maan 4 years, 9 months ago

फ्योंस लघु पात्र होते है और इन्हे कीमती माना जाता है ।
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Raghav Sharma 4 years, 8 months ago

हम्पी, दक्षिणी भारत के एक पुराने शहर विजयनगर में स्थित एक छोटा सा गांव है. संस्कृत में, विजयनगर का मतलब "जीत का नगर" होता है. 1336 से 1565 तक, यह शहर विजयनगर साम्राज्य की राजधानी था. ... साम्राज्य की राजधानी बनने से कई सालों पहले भी विजयनगर एक पवित्र और ज़रूरी शहर माना जाता था.

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