No products in the cart.

Ask questions which are clear, concise and easy to understand.

Ask Question
  • 1 answers

Anushka Agarwal 4 years ago

Kabir das ji ne duniya ki tulna swan se ki hai kyunki jaise ek swan bina koi Karan bhonkta rehta hai, waise hi duniya wale humare har cheez/karya par baat banayenge. Iss saakhi ke madhyam se Kabir das ji kehna chahte hain ki humme ek hathi ki tarah doosre ke bole hue ki parwah bina kiye aage badhte rehna chahiye. Hope it help:)
  • 1 answers

Anushka Agarwal 4 years ago

Yadi humme apne dimaag ke band dwaar ke sankal kholne hain, toh humme ahankar se mukt hona padega aur sabhi cheezo ko samanta ke saath dekhna hoga , tabhi humare dimaag ke dwar khulenge.
  • 2 answers

Aadya Singh 4 years ago

कांजी हाउस में आवारा पशुओ को रखा जाता था जो पशु बेवजह सड़क पर घूमते थे या किसी के खेत मे घुसकर लगी हुई फसल नष्ट कर देते थे उन्हे पकर कर कांजी हाउस में रखा जाता था एवं बाद मे उन पशुओं की तस्करी की जाती थी। यहाँ रोज़ हाजिरी इसलिए ली जाती थी ताकि यह पता चल सके की कहीं कोई पशु भाग तो नही गया अथवा किसी पशु की मृत्यु तो नही हो गई।
कांजीहौस में कैद पशुओं की हाजिरी इसलिए ली जाती होगी क्योंकि वहां पर अलग-अलग तरह के पशुओं को उसने बंद कर रखा गया था हाजिरी इसलिए ली जाती थी क्योंकि वहाँ की दिवारे कच्ची थी और अलग-अलग तरह के पशुओं को उसने बंद कर रखा गया था जैसे - गाय, भैंस ,बकरी, घोड़ा, गधा आदि वहां यह भय बना रहता था कि कहीं कोई पशु दीवार को गिरा कर भाग
  • 1 answers
वाख-१ रस्सी कच्चे धागे की खींच रही मैं नाव जाने कब सुन मेरी पुकार,करें देव भवसागर पार, पानी टपके कच्चे सकोरे ,व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे, जी में उठती रह-रह हूक,घर जाने की चाह है घेरे। व्याख्या :- प्रस्तुत वाख में कवयित्री ललद्यद ने कहा है कि प्रभु-मिलन की आस में मैं अपने जीवन रूपी नाव को साँसों की डोरी (कच्ची रस्सी) के सहारे आगे बढ़ा रही हूँ। प्रभु न जाने कब मेरी पुकार सुनेंगे और मुझे इस भवसागर से पार करेंगे। मिट्टी से बने इस शरीर रूपी कच्चे सकोरे से निरंतर पानी टपक रहा है अर्थात् एक-एक दिन करके उम्र घटते जा रही है। प्रभु-मिलन के लिए किये गए अब तक के सारे प्रयास व्यर्थ हो चुके हैं। मेरी आत्मा परमात्मा से मिलने को व्याकुल हो रही है। बार - बार असफलता के कारण मेरे मन में  ग्लानि हो है।  वाख-२ खा खा कर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी, सम खा तभी होगा समभावी, खुलेगी साँकल बन्द द्वार की। व्याख्या :- प्रस्तुत वाख में कवयित्री ललद्यद ने हृदय को उदार , अहंकार-मुक्त एवम् समानता के भाव से परिपूर्ण बनाने का संदेश देते हुए कहा है कि केवल और केवल भोग-उपभोग में लगे रहने से कुछ प्राप्त नहीं हो सकता । इससे व्यक्ति स्वार्थी बन जाता है। यदि भोग का सर्वथा त्याग कर दिया जाय तो मन में त्यागी होने का अहंकार पैदा हो जाता है,यह स्थिति और भी भयानक होती है,क्योंकि अहंकार विनाश का कारण है। इसलिए कवयित्री ने बीच का रास्ता सुझाते हुए कहा है कि हमें भोग करना चाहिए किन्तु न के बराबर और त्याग भी अवश्य करना चाहिए,किन्तु सीमा से परे नहीं। तात्पर्य यह कि हमें त्यागपूर्वक भोग करना चाहिए अर्थात् भोग और त्याग के बीच समानता रखनी चाहिए। इस समानता के कारण हमारे अन्दर समभाव उत्पन्न होगा जिससे हमारे हृदय में उदारता का आविर्भाव होगा।जैसे ही हमारे अन्दर उदारता आएगी, हमारे अन्दर के स्वार्थ,अहंकार एवं हार्दिक संकीर्णता स्वाहा हो जाएगी । हमारा हृदय अपने - पराए के भेद से उपर उठ जाएगा और समस्त चराचर के लिए हमारे हृदय का द्वार खुल जाएगा। वाख-३ आई सीधी राह से ,गई न सीधी राह, सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह। ज़ेब टटोली कौड़ी ना पाई माँझी को दूँ क्या उतराई । व्याख्या :- प्रस्तुत वाख में ललद्यद के मन का पश्चाताप उजागर हुआ है। उन्होंने अपनी आत्मा को परमात्मा से मिलाने के लिए सामान्य भक्ति के मार्ग को न अपनाकर हठयोग का सहारा लिया। अर्थात् भक्ति रुपी सीढ़ी पर न चढ़ कर  सुषुम्ना नाड़ी (कुंडलिनी) को जागृत कर अपने और प्रभु के बीच हठयोग के द्वारा सीधे तौर पर सेतु (पुल) बनाना चाहती थीं।परन्तु अपने इस प्रयास में वे सदैव असफल होते रहीं। इसी प्रयास में धीरे - धीरे उनकी उम्र बीत गई।जब तक उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ तब तक उनके जीवन की संध्या हो चुकी थी अर्थात् अब मृत्यु की घड़ी निकट आ चुकी थी। अब कुछ और करने का समय शेष नहीं था ।जब उन्होंने अपने जीवन का लेखा-जोखा किया तो पाया कि उनके पास तो कुछ भी नहीं है,उनकी हालत तो किसी कंगाल की तरह है।अब तो परमात्मा से मिलने के लिए भवसागर पार करके ही जाना होगा । भवसागर पार कराने के लिए प्रभु जब उससे खेवाई या पार-उतराई के रूप में पुण्य कर्म माँगेंगे तो वह क्या देगी? उसने तो हठयोग में ही अपनी पूरी ज़िन्दगी बीता दी।अपनी अवस्था पर उन्हें भारी अफ़सोस हो रहा है।वे पछता रही हैं।पर कहते हैं न कि-- “अब पछताए होत का , जब चिड़िया चुग गई खेत।” वाख-४ थल थल में बसता है शिव ही भेद न कर क्या हिन्दू मुसलमाँ, ज्ञानी है तो स्वयं को जान, यही है साहिब से पहचान । व्याख्या :- प्रस्तुत वाख में ललद्यद ने ईश्वर को सर्वव्यापी कहते हुए समस्त चराचर में उसका वास बताया है।ललद्यद के अनुसार सृष्टि के कण - कण में प्रभु का वास है और वे हम सबके अन्दर हैं। अत: हमें जाति,धर्म,अमीर-गरीब,ऊँच-नीच  या हिन्दू-मुसलमान जैसे भेद-भाव नहीं करना चाहिए। वे कहती हैं कि जिसे आत्मा का ज्ञान हो गया उसे परमात्मा का ज्ञान स्वत: हो जाता है।उनके अनुसार आत्मज्ञानी परमात्मा से साक्षात्कार कर लेता है।आत्मा में ही परमात्मा का वास है अत: स्वयं को जानना ही ईश्वर को जानना है।
  • 2 answers

R. T. S. C. L Rt 3 years, 11 months ago

Do bailon ki katha may lekhak ne durdasa ke kin kardho ka chitradh kiya hai answer

Deva Manjare 4 years ago

दुख का अधिकारी
  • 3 answers

Pawan Kunal 4 years ago

प्रेमचंद के पिता का नाम क्या था ?

Pawan Kunal 4 years ago

सुसुम सेतु किसे कहा गया है

Sona Prajapat 4 years ago

Konsi kaviyitri ,konsa ch h
  • 2 answers

Intaj Intaj 3 years, 11 months ago

ch 1
Which Subject?
  • 4 answers

Disha Matta 4 years ago

Thanks deat

Aadya Singh 4 years ago

परि + आवरण= पर्यवारण

Disha Matta 4 years ago

Thanks for the answer

Sona Prajapat 4 years ago

परि+आवरण(hope it will help)
  • 2 answers
Aap pagal ho??

Palak Sahu 4 years ago

क्योंकि लेखिका को टाइफाइड था
  • 1 answers

Palak Sahu 4 years ago

क्या आप premchand का parichay कहना चाह रहे हैं या कुछ और
  • 2 answers

Kashish Kumari 4 years ago

लेखिका की नानी अपने पति के मित्र से इसलिए मिलना चाहती थी क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि उनकी बेटी की शादी किसी साहब के फरमाबरदार से हो वह चाहती थी कि उनकी बेटी की शादी किसी आजादी के सेनानी से हो

Palak Sahu 4 years ago

ताकि उन्हें अपनी बेटी की शादी की जिम्मेदारी दे सके
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में अलंकार पहचान कर लिखिए 1. चारु चंद्र की चंचल किरणें 2. मैया मैं तो चंद्र खिलौना लेव 3. कालिंदी कूल कदंब की डारन 4. गोपी पद पंकज पावन की राज 5. पानी गए न ऊबरे मोती मानुष चून 6. हनुमान की पूंछ में लगन न पाई आग लंका सिगरी जल गई गए निशाचर भाग 7. सुरभीत सुंदर सुखद सुमन तुझ पर खेलते हैं 8. काली घटा का घमंड घटा 9. नर की अरु नल नीर की गति एक के कर जोई जेते नीचे हुए चले तेतो ऊंचो हुई 1o. तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के 11. माली आवत देखकर कलियन करे पुकार फूली फूली चुन ली कॉल हमारी बार 12. दूर देश से आई बदरिया अमृत कलश भर लाई बदरिया 13. देख लो साकेत नगरी है यही स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही 14. मेघ आए बड़े बन ठन के 15. आगे नदिया पड़ी अपार घोड़ा कैसे उतरे पार राणा ने सोचा इस पार तब तक घोड़ा था उस पार
  • 2 answers

Aadya Singh 4 years ago

१५.Utpreksha अलंकार

Aadya Singh 4 years ago

१. अनुप्रासअलंकार २. अनुप्रास अलंकार ३. अनुप्रास अलंकार ४. रूपक अलंकार ५.श्लेष् अलंकार ६.अतिशयोक्ती अलंकार ७.अनुप्रास अलंकार ८. यमक अलंकार १२. मानवीकरण अलंकार १३.अतिशयोकती अलंकार
  • 1 answers

Anushka Agarwal 4 years ago

Band darwaze ki sakal kholne ke liye lekhika laladyad ne kya hai ki hume ahankar mukt hona padega aur sabhi cheezo aur vyaktiyon ko sammanta ke saath dekhna hoga. Tabhi hum samdarshi ban paayenge aur humare dimaag ke darwaze khulenge.

myCBSEguide App

myCBSEguide

Trusted by 1 Crore+ Students

Test Generator

Test Generator

Create papers online. It's FREE.

CUET Mock Tests

CUET Mock Tests

75,000+ questions to practice only on myCBSEguide app

Download myCBSEguide App