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Aadya Singh 5 years, 1 month ago

Birs watcher ko pakshi vigyano kaha jaata unka karya pakshiyo ko gair se dekh kar unke haw bhav pta karn hota h

Het Patel 5 years, 1 month ago

Hui
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Ff free fire khelte ho kya search bruce3826k
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Anushka Agarwal 5 years, 1 month ago

Kabir das ji ne duniya ki tulna swan se ki hai kyunki jaise ek swan bina koi Karan bhonkta rehta hai, waise hi duniya wale humare har cheez/karya par baat banayenge. Iss saakhi ke madhyam se Kabir das ji kehna chahte hain ki humme ek hathi ki tarah doosre ke bole hue ki parwah bina kiye aage badhte rehna chahiye. Hope it help:)
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Anushka Agarwal 5 years, 1 month ago

Yadi humme apne dimaag ke band dwaar ke sankal kholne hain, toh humme ahankar se mukt hona padega aur sabhi cheezo ko samanta ke saath dekhna hoga , tabhi humare dimaag ke dwar khulenge.
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Aadya Singh 5 years, 2 months ago

कांजी हाउस में आवारा पशुओ को रखा जाता था जो पशु बेवजह सड़क पर घूमते थे या किसी के खेत मे घुसकर लगी हुई फसल नष्ट कर देते थे उन्हे पकर कर कांजी हाउस में रखा जाता था एवं बाद मे उन पशुओं की तस्करी की जाती थी। यहाँ रोज़ हाजिरी इसलिए ली जाती थी ताकि यह पता चल सके की कहीं कोई पशु भाग तो नही गया अथवा किसी पशु की मृत्यु तो नही हो गई।

Rishikesh Sharma 5 years, 2 months ago

कांजीहौस में कैद पशुओं की हाजिरी इसलिए ली जाती होगी क्योंकि वहां पर अलग-अलग तरह के पशुओं को उसने बंद कर रखा गया था हाजिरी इसलिए ली जाती थी क्योंकि वहाँ की दिवारे कच्ची थी और अलग-अलग तरह के पशुओं को उसने बंद कर रखा गया था जैसे - गाय, भैंस ,बकरी, घोड़ा, गधा आदि वहां यह भय बना रहता था कि कहीं कोई पशु दीवार को गिरा कर भाग
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Lavishka Choudhary 5 years, 2 months ago

वाख-१ रस्सी कच्चे धागे की खींच रही मैं नाव जाने कब सुन मेरी पुकार,करें देव भवसागर पार, पानी टपके कच्चे सकोरे ,व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे, जी में उठती रह-रह हूक,घर जाने की चाह है घेरे। व्याख्या :- प्रस्तुत वाख में कवयित्री ललद्यद ने कहा है कि प्रभु-मिलन की आस में मैं अपने जीवन रूपी नाव को साँसों की डोरी (कच्ची रस्सी) के सहारे आगे बढ़ा रही हूँ। प्रभु न जाने कब मेरी पुकार सुनेंगे और मुझे इस भवसागर से पार करेंगे। मिट्टी से बने इस शरीर रूपी कच्चे सकोरे से निरंतर पानी टपक रहा है अर्थात् एक-एक दिन करके उम्र घटते जा रही है। प्रभु-मिलन के लिए किये गए अब तक के सारे प्रयास व्यर्थ हो चुके हैं। मेरी आत्मा परमात्मा से मिलने को व्याकुल हो रही है। बार - बार असफलता के कारण मेरे मन में  ग्लानि हो है।  वाख-२ खा खा कर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी, सम खा तभी होगा समभावी, खुलेगी साँकल बन्द द्वार की। व्याख्या :- प्रस्तुत वाख में कवयित्री ललद्यद ने हृदय को उदार , अहंकार-मुक्त एवम् समानता के भाव से परिपूर्ण बनाने का संदेश देते हुए कहा है कि केवल और केवल भोग-उपभोग में लगे रहने से कुछ प्राप्त नहीं हो सकता । इससे व्यक्ति स्वार्थी बन जाता है। यदि भोग का सर्वथा त्याग कर दिया जाय तो मन में त्यागी होने का अहंकार पैदा हो जाता है,यह स्थिति और भी भयानक होती है,क्योंकि अहंकार विनाश का कारण है। इसलिए कवयित्री ने बीच का रास्ता सुझाते हुए कहा है कि हमें भोग करना चाहिए किन्तु न के बराबर और त्याग भी अवश्य करना चाहिए,किन्तु सीमा से परे नहीं। तात्पर्य यह कि हमें त्यागपूर्वक भोग करना चाहिए अर्थात् भोग और त्याग के बीच समानता रखनी चाहिए। इस समानता के कारण हमारे अन्दर समभाव उत्पन्न होगा जिससे हमारे हृदय में उदारता का आविर्भाव होगा।जैसे ही हमारे अन्दर उदारता आएगी, हमारे अन्दर के स्वार्थ,अहंकार एवं हार्दिक संकीर्णता स्वाहा हो जाएगी । हमारा हृदय अपने - पराए के भेद से उपर उठ जाएगा और समस्त चराचर के लिए हमारे हृदय का द्वार खुल जाएगा। वाख-३ आई सीधी राह से ,गई न सीधी राह, सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह। ज़ेब टटोली कौड़ी ना पाई माँझी को दूँ क्या उतराई । व्याख्या :- प्रस्तुत वाख में ललद्यद के मन का पश्चाताप उजागर हुआ है। उन्होंने अपनी आत्मा को परमात्मा से मिलाने के लिए सामान्य भक्ति के मार्ग को न अपनाकर हठयोग का सहारा लिया। अर्थात् भक्ति रुपी सीढ़ी पर न चढ़ कर  सुषुम्ना नाड़ी (कुंडलिनी) को जागृत कर अपने और प्रभु के बीच हठयोग के द्वारा सीधे तौर पर सेतु (पुल) बनाना चाहती थीं।परन्तु अपने इस प्रयास में वे सदैव असफल होते रहीं। इसी प्रयास में धीरे - धीरे उनकी उम्र बीत गई।जब तक उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ तब तक उनके जीवन की संध्या हो चुकी थी अर्थात् अब मृत्यु की घड़ी निकट आ चुकी थी। अब कुछ और करने का समय शेष नहीं था ।जब उन्होंने अपने जीवन का लेखा-जोखा किया तो पाया कि उनके पास तो कुछ भी नहीं है,उनकी हालत तो किसी कंगाल की तरह है।अब तो परमात्मा से मिलने के लिए भवसागर पार करके ही जाना होगा । भवसागर पार कराने के लिए प्रभु जब उससे खेवाई या पार-उतराई के रूप में पुण्य कर्म माँगेंगे तो वह क्या देगी? उसने तो हठयोग में ही अपनी पूरी ज़िन्दगी बीता दी।अपनी अवस्था पर उन्हें भारी अफ़सोस हो रहा है।वे पछता रही हैं।पर कहते हैं न कि-- “अब पछताए होत का , जब चिड़िया चुग गई खेत।” वाख-४ थल थल में बसता है शिव ही भेद न कर क्या हिन्दू मुसलमाँ, ज्ञानी है तो स्वयं को जान, यही है साहिब से पहचान । व्याख्या :- प्रस्तुत वाख में ललद्यद ने ईश्वर को सर्वव्यापी कहते हुए समस्त चराचर में उसका वास बताया है।ललद्यद के अनुसार सृष्टि के कण - कण में प्रभु का वास है और वे हम सबके अन्दर हैं। अत: हमें जाति,धर्म,अमीर-गरीब,ऊँच-नीच  या हिन्दू-मुसलमान जैसे भेद-भाव नहीं करना चाहिए। वे कहती हैं कि जिसे आत्मा का ज्ञान हो गया उसे परमात्मा का ज्ञान स्वत: हो जाता है।उनके अनुसार आत्मज्ञानी परमात्मा से साक्षात्कार कर लेता है।आत्मा में ही परमात्मा का वास है अत: स्वयं को जानना ही ईश्वर को जानना है।
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R. T. S. C. L Rt 5 years, 1 month ago

Do bailon ki katha may lekhak ne durdasa ke kin kardho ka chitradh kiya hai answer

Deva Manjare 5 years, 2 months ago

दुख का अधिकारी
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Pawan Kunal 5 years, 2 months ago

प्रेमचंद के पिता का नाम क्या था ?

Pawan Kunal 5 years, 2 months ago

सुसुम सेतु किसे कहा गया है

Sona Prajapat 5 years, 2 months ago

Konsi kaviyitri ,konsa ch h
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Intaj Intaj 5 years, 1 month ago

ch 1

Nandani Gaikawad 5 years, 2 months ago

Which Subject?
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Disha Matta 5 years, 2 months ago

Thanks deat

Aadya Singh 5 years, 2 months ago

परि + आवरण= पर्यवारण

Disha Matta 5 years, 2 months ago

Thanks for the answer

Sona Prajapat 5 years, 2 months ago

परि+आवरण(hope it will help)
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Himanshi Chauhan 5 years, 2 months ago

Aap pagal ho??

Palak Sahu 5 years, 2 months ago

क्योंकि लेखिका को टाइफाइड था

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