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Ayush Jaat 3 years, 9 months ago

This is not Hindi book chapter ALANKARS tell me. I am right
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Somansh Sarvesh 3 years, 8 months ago

Salim Ali ji pehle ke safaron me vapas lot aya karte they. Par ab Vo hamesha-hamesha ke liye is sansaar ko alvida bolkar chale gaye, arthaat ab unki mrityu ho gayi hai
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Yogita Ingle 3 years, 9 months ago

यहाँ कवयित्री ने ज्ञानी से अभिप्राय उस ज्ञान को लिया है जो आत्मा व परमात्मा के सम्बन्ध को जान सके ना कि उस ज्ञान से जो हम शिक्षा द्वारा अर्जित करते हैं। कवयित्री के अनुसार भगवान कण-कण में व्याप्त हैं पर हम उसको धर्मों में विभाजित कर मंदिरों व मस्जिदों में ढूँढते हैं। जो अपने अन्त:करण में बसे ईश्वर के स्वरुप को जान सके वही ज्ञानी कहलाता है और वहीं उस परमात्मा को प्राप्त करता है। तात्पर्य यह है कि ईश्वर को अपने ही हृदय में ढूँढना चाहिए और जो उसे ढूँढ लेते हैं वही सच्चे ज्ञानी हैं।

Gaurav Seth 3 years, 9 months ago

ज्ञानी से कवयित्री का अभिप्राय है जिसने आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध को जान लिया हो। कवयित्री के अनुसार ईश्वर का निवास तो हर एक कण-कण में है परन्तु मनुष्य इसे धर्म में विभाजित कर मंदिर और मस्जिद में खोजता फिरता है। वास्तव में ज्ञानी तो वह है जो अपने अंतकरण में ईश्वर को पा लेता है।

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Vishnu Shukla 3 years, 9 months ago

isme karmadharayya samas h frnd uper ke galti se ho gaye the

Vishnu Shukla 3 years, 9 months ago

sorry friend isme karmadharya samas h ok

Vishnu Shukla 3 years, 9 months ago

mrig ke samaan lochan kisi istri vishesh ke {bahubrihi samas}

Vishnu Shukla 3 years, 9 months ago

mrig ke samaan lochan kisi istri vishesh ke {bahubrihi samas}
  • 1 answers

Yogita Ingle 3 years, 9 months ago

कवयित्री साँसों की (कच्चे धागे की) रस्सी से जीवन रूपी नौका को खींच रही है। संसार उतार-चढ़ाव भरा सागर है और साँसों की निश्चितता संदिग्ध है। जीवन में अगले पल या साँस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। अतः जो लक्ष्य है उसके लिए तुरन्त तत्पर हो जाना चाहिए।

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Somansh Sarvesh 3 years, 8 months ago

Fule fal me hai dvandva alankar Sabse sahani me hai anupras

Palak Sahu 3 years, 8 months ago

अनुप्रास अलंकार

Deoanshi Mandurkar 3 years, 9 months ago

Yamak alankaar
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Ayush Jaat 3 years, 9 months ago

Aap apna Mobile number dedo

Grivanshi Rajput 3 years, 9 months ago

Kanjihose mein pashuo ki haziri isliye li Kari thi kyuki vha ki diware kamjore or kacci thi or darr bna rehta tha ki koi pashu diwar ko girakar bhag Na Jaye
  • 1 answers

Karan Kumar 3 years, 9 months ago

Hello
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Grivanshi Rajput 3 years, 9 months ago

Lekhak ke samne Munshi Premchand Ka ek chitra hai
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Tanish Kalal 3 years, 9 months ago

Do belo ki kadha
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Aarju Sahu 3 years, 9 months ago

Who is the sir here ?????
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Gaurav Seth 3 years, 9 months ago

बचेंद्री पाल अपनी एवरेस्ट की चढ़ाई के सफर की बात करते हुए कहती हैं कि एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाला दल 7 मार्च को दिल्ली से हवाई जहाज़ से काठमांडू के लिए चल पड़ा था। उस दल से पहले ही एक मज़बूत दल बहुत पहले ही एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए चला गया था जिससे कि वह बचेंद्री पाल वाले दल के ‘बेस कैम्प’ पहुँचने से पहले बर्फ के गिरने के कारण बने कठिन रास्ते को साफ कर सके। बचेंद्री पाल कहती हैं कि नमचे बाज़ार, शेरपालैंड का एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र है।यहीं से बचेंद्री पाल ने सर्वप्रथम एवरेस्ट को देखा था। बचेंद्री पाल कहती हैं कि लोगों के द्वारा बचेंद्री पाल को बताया गया कि शिखर पर जानेवाले प्रत्येक व्यक्ति को दक्षिण-पूर्वी पहाड़ी पर तूफानों को झेलना पड़ता है, विशेषकर जब मौसम खराब होता है। जब उनका दल 26 मार्च को पैरिच पहुँचा तो उन्हें हमें बर्फ के खिसकने के कारण हुई एक शेरपा कुली की मृत्यु का दुःख भरा समाचार मिला। सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए थे। इस समाचार के कारण बचेंद्री पाल के अभियान दल के सदस्यों के चेहरों पर छाई उदासी को देखकर उनके दल के नेता कर्नल खुल्लर ने सभी सदस्यों को साफ़-साफ़ कह दिया कि एवरेस्ट पर चढ़ाई करना कोई आसान काम नहीं है, वहाँ पर जाना मौत के मुँह में कदम रखने के बराबर है।  बचेंद्री पाल कहती हैं कि उपनेता प्रेमचंद, जो पहले वाले दल का नेतृत्व कर रहे थे, वे भी 26 मार्च को पैरिच लौट आए। उन्होंने बचेंद्री पाल के दल की पहली बड़ी समस्या बचेंद्री पाल और उनके साथियों को खुंभु हिमपात की स्थिति के बारे में बताया। उन्होंने बचेंद्री पाल और उनके साथियों को यह भी बताया कि पुल बनाकर, रस्सियाँ बाँधकर तथा झंडियों से रास्ते को चिह्नित कर, सभी बड़ी कठिनाइयों का जायज़ा ले लिया गया है। उन्होंने बचेंद्री पाल और उनके साथियों का ध्यान इस पर भी दिलाया कि ग्लेशियर बर्फ की नदी है और बर्फ का गिरना अभी जारी है। जिसके कारण अभी तक के किए गए सभी काम व्यर्थ हो सकते हैं और उन लोगों को रास्ता खोलने का काम दोबारा करना पड़ सकता है। बचेंद्री पाल कहती हैं कि ‘बेस कैंप’ में पहुँचने से पहले उन्हें और उनके साथियों को एक और मृत्यु की खबर मिली। जलवायु के सही न होने के कारण एक रसोई सहायक की मृत्यु हो गई थी। निश्चित रूप से अब बचेंद्री पाल और उनके साथी आशा उत्पन्न करने स्थिति में नहीं चल रहे थे। सभी घबराए हुए थे। बेस कैंप पहुँचाने पर दूसरे दिन बचेंद्री पाल ने एवरेस्ट पर्वत तथा इसकी अन्य श्रेणियों को देखा। बचेंद्री पाल हैरान होकर खड़ी रह गई। बचेंद्री पाल कहती हैं कि दूसरे दिन नए आने वाले अपने ज़्यादातर सामान को वे हिमपात के आधे रास्ते तक ले गए। डॉ मीनू मेहता ने बचेंद्री पाल और उनके साथियों को अल्यूमिनियम की सीढ़ियों से अस्थायी पुलों का बनाना, लठ्ठों और रस्सियों का उपयोग, बर्फ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सियों को बाँधना और उनके पहले दल के तकनीकी कार्यों के बारे में उन्हें विस्तार से सारी जानकारी दी। बचेंद्री पाल कहती हैं कि उनका तीसरा दिन हिमपात से कैंप-एक तक सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास करने के लिए पहले से ही निश्चित था। रीता गोंबू तथा बचेंद्री पाल साथ-साथ चढ़ रहे थे। उनके पास एक वॉकी-टॉकी था, जिससे वे अपने हर कदम की जानकारी बेस कैंप पर दे रहे थे। कर्नल खुल्लर उस समय खुश हुए, जब रीता गोंबू तथा बचेंद्री पाल ने उन्हें अपने पहुँचने की सूचना दी क्योंकि कैंप-एक पर पँहुचने वाली केवल वे दो ही महिलाएँ थीं। जब अप्रैल में बचेंद्री पाल कैंप बेस में थी, तेनजिंग अपनी सबसे छोटी सुपुत्री डेकी के साथ उनके पास आए थे। उन्होंने इस बात पर विशेष महत्त्व दिया कि दल के प्रत्येक सदस्य और प्रत्येक शेरपा कुली से बातचीत की जाए। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जब उनकी बारी आई, तो उन्होंने अपना परिचय यह कहकर दिया कि वे इस चढ़ाई के लिए बिल्कुल ही नई सीखने वालीं हैं और एवरेस्ट उनका पहला अभियान है। तेनजिंग हँसे और बचेंद्री पाल से कहा कि एवरेस्ट उनके लिए भी पहला अभियान है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि शिखर पर पहुँचने से पहले उन्हें सात बार एवरेस्ट पर जाना पड़ा था। फिर अपना हाथ बचेंद्री पाल के कंधे पर रखते हुए उन्होंने कहा कि बचेंद्री पाल एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती है। उसे तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए। बचेंद्री पाल कहती हैं कि 15-16 मई 1984 को बुद्ध  पूर्णिमा के दिन वह ल्होत्से की बर्फीली सीधी ढलान पर लगाए गए सुंदर रंगीन नाइलॉन के बने तंबू के कैंप-तीन में थी। वह गहरी नींद में सोइ हुई थी कि रात में 12.30 बजे के लगभग उनके सिर के पिछले हिस्से में किसी एक सख्त चीज़ के टकराने से उनकी नींद अचानक खुल गई और साथ ही एक ज़ोरदार धमाका भी हुआ। एक लंबा बर्फ का पिंड उनके कैंप के ठीक ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर नीचे आ गिरा था और उसका एक बहुत बड़ा बर्फ का टुकड़ा बन गया था। लोपसांग अपनी स्विस छुरी की मदद से बचेंद्री पाल और उनके साथियों के तंबू का रास्ता साफ़ करने में सफल हो गए थे । उन्होंने बचेंद्री पाल के चारों तरफ की कड़ी जमी बर्फ की खुदाई की और बचेंद्री पाल को उस बर्फ की कब्र से निकाल कर बाहर खींच लाने में सफल हो गए। बचेंद्री पाल कहती हैं कि अगली सुबह तक सारे सुरक्षा दल आ गए थे और 16 मई को प्रातः 8 बजे तक वे सभी कैम्प-दो पर पहुँच गए थे। बचेंद्री पाल और उनके दल के नेता कर्नल खुल्लर ने पिछली रात को हुए हादसे को उनके शब्दों में कुछ इस तरह कहा कि यह इतनी ऊँचाई पर सुरक्षा-कार्य का एक अत्यंत साहस से भरा कार्य था। बचेंद्री पाल कहती हैं कि सभी नौ पुरुष सदस्यों को जिन्हें चोटें आई थी और हड्डियां टूटी थी उन्हें बेस कैंप में भेजना पड़ा। तभी कर्नल खुल्लर बचेंद्री पाल की तरफ मुड़े और कहने लगे कि क्या वह डरी हुई है? इसके उत्तर में बचेंद्री पाल ने हाँ में उत्तर दिया। कर्नल खुल्लर के फिर से पूछने पर कि क्या वह वापिस जाना चाहती है? इस बार बचेंद्री पाल ने बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दिया कि वह वापिस नहीं जाना चाहती।बचेंद्री पाल कहती हैं कि दोपहर बाद उन्होंने अपने दल के दूसरे सदस्यों की मदद करने और अपने एक थरमस को जूस से और दूसरे को गरम चाय से भरने के लिए नीचे जाने का निश्चय किया। उन्होंने बर्फीली हवा में ही तंबू से बाहर कदम रखा। बचेंद्री पाल को जय जेनेवा स्पर की चोटी के ठीक नीचे मिला। उसने बचेंद्री पाल के द्वारा लाई गई चाय वगैरह पी लेकिन बचेंद्री पाल को और आगे जाने से रोकने की कोशिश भी की। मगर बचेंद्री पाल को की से भी मिलना था। थोड़ा-सा और आगे नीचे उतरने पर उन्होंने की को देखा। की बचेंद्री पाल को देखकर चौंक गया और उसने बचेंद्री पाल से कहा कि उसने  इतना बड़ा जोखिम क्यों उठाया? बचेंद्री पाल ने भी उसे दृढ़तापूर्वक कहा कि वह भी औरों की तरह एक पर्वतारोही है, इसीलिए वह इस दल में आई हुई है। बचेंद्री पाल कहती हैं कि साउथ कोल ‘पृथ्वी पर बहुत अधिक कठोर’ जगह के नाम से प्रसिद्ध है। बचेंद्री पाल कहती हैं कि अगले दिन वह सुबह चार बजे उठी। उसने बर्फ को पिघलाया और चाय बनाई, कुछ बिस्कुट और आधी चाॅकलेट का हलका नाश्ता करने के बाद वह लगभग साढ़े पाँच बजे अपने तंबू से निकल पड़ी। बचेंद्री पाल कहती हैं कि सुबह 6:20 पर जब अंगदोरजी और वह साउथ कोल से बाहर निकले तो दिन ऊपर चढ़ आया था। हलकी-हलकी हवा चल रही थी, लेकिन ठंड भी बहुत अधिक थी। बचेंद्री पाल और उनके साथियों ने बगैर रस्सी के ही चढ़ाई की। अंगदोरजी एक निश्चित गति से ऊपर चढ़ते गए और बचेंद्री पाल को भी उनके साथ चलने में कोई कठिनाई नहीं हुई। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जमे हुए बर्फ की सीधी व ढलाऊ चट्टानें इतनी सख्त और भुरभुरी थीं, ऐसा लगता था मानो शीशे की चादरें बिछी हों। उन सभी को बर्फ काटने के फावडे़ का इस्तेमाल करना ही पड़ा और बचेंद्री पाल कहती हैं कि उन्हें इतनी सख्ती से फावड़ा चलाना पड़ा जिससे कि उस जमे हुए बर्फ की धरती को फावडे़ के दाँते काट सके। बचेंद्री पाल कहती हैं कि उन्होंने उन खतरनाक स्थलों पर हर कदम अच्छी तरह सोच-समझकर उठाया। क्योंकि वहाँ एक छोटी सी भी गलती मौत का कारण बन सकती थी। बचेंद्री पाल कहती हैं कि दो घंटे से भी कम समय में ही वे सभी शिखर कैंप पर पहुँच गए। अंगदोरजी ने पीछे मुड़कर देखा और उन्होंने कहा कि पहले वाले दल ने शिखर कैंप पर पहुँचने में चार घंटे लगाए थे और यदि अब उनका दल इसी गति से चलता रहे तो वे शिखर पर दोपहर एक बजे एक पहुँच जाएँगे। ल्हाटू ने ध्यान दिया कि बचेंद्री पाल इन ऊँचाइयों के लिए सामान्यतः आवश्यक, चार लीटर ऑक्सीजन की अपेक्षा, लगभग ढाई लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट की दर से लेकर चढ़ रही थी। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जैसे ही उसने बचेंद्री पाल के रेगुलेटर पर ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई, बचेंद्री पाल कहती हैं कि उन्हें महसूस हुआ कि सीधी और कठिन चढ़ाई भी अब आसान लग रही थी।बचेंद्री पाल कहती हैं कि दक्षिणी शिखर के ऊपर हवा की गति बढ़ गई थी। उस ऊँचाई पर तेज़ हवा के झोंके भुरभुरे बर्फ के कणों को चारों तरफ़ उड़ा रहे थे, जिससे दृश्यता शून्य तक आ गई थी कुछ भी देख पाना संभव नहीं हो पा रहा था। अनेक बार देखा कि केवल थोड़ी दूर के बाद कोई ऊँची चढ़ाई नहीं है। ढलान एकदम सीधा नीचे चला गया है। यह देख कर बचेंद्री पाल कहती हैं कि उनकी तो साँस मानो रुक गई थी। उन्हें विचार आया कि सफलता बहुत नज़दीक है। 23 मई 1984 के दिन दोपहर के एक बजकर सात मिनट पर वह एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने वाली बचेंद्री पाल प्रथम भारतीय महिला थी।बचेंद्री पाल कहती हैं कि एवरेस्ट की चोटी की नोक पर इतनी जगह नहीं थी कि दो व्यक्ति साथ-साथ खड़े हो सकें। चारों तरफ़ हजारों मीटर लंबी सीधी ढलान को देखते हुए उन सभी के सामने प्रश्न अब सुरक्षा का था। उन्होंने पहले बर्फ के फावड़े से बर्फ की खुदाई कर अपने आपको सुरक्षित रूप से खड़ा रहने लायक जगह बनाई। ख़ुशी के इस पल में बचेंद्री पाल को अपने माता-पिता का ध्यान आया। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जैसे वह उठी, उन्होंने अपने हाथ जोडे़ और वह अपने रज्जु-नेता अंगदोरजी के प्रति आदर भाव से झुकी। अंगदोरजी जिन्होंने बचेंद्री पाल को प्रोत्साहित किया और लक्ष्य तक पहुँचाया। बचेंद्री पाल ने उन्हें बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट की दूसरी चढ़ाई चढ़ने पर बधाई भी दी। उन्होंने बचेंद्री पाल को गले से लगाया और उनके कानों में फुसफुसाया कि दीदी, तुमने अच्छी चढ़ाई की। वह बहुत प्रसन्न है। कर्नल खुल्लर उनकी सफलता से बहुत प्रसन्न थे। बचेंद्री पाल को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि वे बचेंद्री पाल की इस अलग प्राप्ति के लिए बचेंद्री पाल के माता-पिता को बधाई देना चाहते हैं। वे बोले कि देश को बचेंद्री पाल पर गर्व है और अब वह एक ऐसे संसार में वापस जाएगी, जो उसके द्वारा अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम अलग होगा।

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Somansh Sarvesh 3 years, 8 months ago

Frida Laurence D.H.Laurence ki Patni thi.

Gaurav Seth 3 years, 9 months ago

फ्रीडा डी.एच.लॉरेंस की पत्नी थीं। लॉरेंस के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया था कि मेरे लिए लॉरेंस के बारे में कुछ कह पाना असंभव-सा है। मुझे लगता है कि मेरे छत पर बैठने वाली गौरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती है। वह मुझसे भी ज्यादा जानती है। वह सचमुच ही इतना खुला-खुला और सादा दिल आदमी थे। संभव है कि लॉरेंस मेरी रगों में, मेरी हड्डियों में समाया हो।

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World Wide Handsome💜 3 years, 9 months ago

Vakya bohot saare shabdo k Milan hota h Jo ek meaning deta h In English,group of words with meaning.
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World Wide Handsome💜 3 years, 9 months ago

Name of anything, anyone,any place and feelings

Yogita Ingle 3 years, 9 months ago

किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, जानवर, भाव, गुण आदि के नाम को संज्ञा कहते हैं। जैसे- राम, पुस्तक, भरतपुर, गर्मी, सर्दी आदि।
संज्ञा के भेद – संज्ञा के निम्नलिखित पाँच भेद हैं :
1. व्यक्तिवाचक संज्ञा – जिस संज्ञा से किसी एक ही व्यक्ति, वस्तु या स्थान विशेष का बोध हो, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे –

2. जातिवाचक संज्ञा – जो संज्ञा शब्द किसी एक ही प्रकार के जाति-वर्ग या वस्तु की-बोध कराते हैं, उन्हें जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – मनुष्य, पहाड, नदी, भाई, बहिन, मामा, चाचा, बेटा, बेटी, माता, पिता, मंत्री, पंडित, जुलाहा, बाबू, प्रोफेसर, शिक्षक, कवि, लेखक, पुस्तक, घोड़ा, गाय, कौआ, तोता, मोर, कुर्सी, मेज, आम, शीशम, तूफान, बिजली, वर्षा, भूकंप, फूल आदि।

3. भाववाचक संज्ञा – जिन संज्ञा शब्दों से किसी व्यक्ति, वस्तु और स्थान के गुण, दोष, धर्म, अवस्था और भाव आदि का बोध हो, उन्हें भाववाचक संज्ञा कहते हैं। (धर्म, गुण, अर्थ और भाव प्रायः पर्यायवाची शब्द हैं)। जैसे – लंबाई, बुढ़ापा, नम्रता, मिठास, क्रोध, शत्रुता, दया, करुणा आदि।

Renu Singh 3 years, 9 months ago

किसी प्राणी ,वस्तू , स्थान , जाति , दशा या भाव के नाम को संज्ञा कहते है।

Anushka Parihar 3 years, 9 months ago

परिभाषा – हिंदी व्याकरण अंतर्गत (hindi grammar) 'संज्ञा' (sangya) वह विकारी शब्द होता है, जिससे किसी विशेष वस्तु, भाव, जीव तथा स्थान का बोध हो अर्थात् संज्ञा विश्व में अस्तित्व की प्रत्येक प्रक्रिया का नाम है, जो प्राणी, पदार्थ, धर्म तथा चेतना के रूप में उपलब्ध है।
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Gaurav Seth 3 years, 9 months ago

किसी व्यक्ति ( प्राणी ) वस्तु , स्थान , अथवा भाव आदि के नाम को संज्ञा कहते है। जैसे – श्याम , दिल्ली , आम , मिठास , गाय आदि।

” श्याम “ खाना खा रहा है = श्याम व्यक्ति का नाम है।

” अमरुद “ में मिठास है = अमरूद फल का नाम है।

” घोडा ” दौड़ रहा है = घोड़ा एक पशु का नाम है।

संज्ञा के तीन भेद है – व्यक्तिवाचक , जातिवाचक , भाववाचक संज्ञा

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