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Gaurav Seth 4 years, 11 months ago

कवि ने अपने आने को ‘उल्लास’ इसलिए कहा है क्योंकि उसके आने से लोगों के मन और चित्त दोनों खुश हो जाते हैं। लोगों के दिलों में प्रसंता की कलियां खिल उठती है । दूसरी तरफ उसके जाने से लोगों के मन में दुख उत्पन्न होता है । लोग उसकी कमी को अनुभव करते हैं। इसलिए कवि ने स्वयं को आंसू बनकर बह जाना कहा है।
 

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Aakanksha Khot 4 years, 11 months ago

दुराशा
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Roshan Mishra 4 years, 11 months ago

3 ideat me 1 tu hi hai

Aakanksha Khot 4 years, 11 months ago

बात करने की तमीज़ नही है!!

Bhumi Modanwal 4 years, 11 months ago

?

Saurya Singh 4 years, 11 months ago

tu pass hai

Raghvendra Singh Pal 4 years, 11 months ago

यही सिखाया है तेरे माँ बाप ने
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Ayush Diwathe 4 years, 10 months ago

कसोटी

Raghvendra Singh Pal 4 years, 11 months ago

इस कविता में कवि ने अपने प्रेम से भरे हृदय को दर्शाया है क्योंकि कवि का स्वभाव बहुत ही प्रेमपूर्ण है। सभी संसार के व्यक्तियों से वह प्रेम करता है और खुशियाँ बाँटता है यही सब इस कविता में दर्शाया है। वो अपने जीवन को अपने ढंग से जीते हैं, मस्त-मौला है चारों ओर प्रेम बाँटने का सन्देश देते हैं। इस कविता के द्वारा एक सीख देते है की हमें सबके साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए।
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Rhea Sharma 4 years, 11 months ago

Opposite words Eg. - bad × good Fat× thin
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Tirth Gharat 4 years, 10 months ago

Thanks

Raghvendra Singh Pal 4 years, 11 months ago

बस की यात्रा पाठ का सारांश बस की यात्रा हरिशंकर परसाई जी द्वारा लिखा गया एक प्रसिद्ध व्यंग है ,जिसमें उन्होंने यातायात की दुर्व्यस्था पर करारा व्यंग किया है। व्यंग के प्रारंभ में लेखक और चार मित्रों के तय किया कि शाम चार बजे की बस से जबलपुर चलें। ... कंपनी के हिस्सेदार भी उसी बस से यात्रा कर रहे थे।

Shruti Sharma 4 years, 11 months ago

- हरिशंकर परसाई पाठ का सारांश- ‘बस की यात्रा’ नामक यह पाठ एक यात्रा-वृत्तान्त है जो व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया है। इस पाठ के माध्यम से यह बताया गया है कि प्राइवेट बस कंपनियों के मालिक कैसी-कैसी खटारा बसें चलाते हैं। वे अधिकाधिक मुनाफ़ा कमाने के चक्कर में यात्रियों की जान के साथ खिलवाड़ करने में भी संकोच नहीं करते। लेखक और उसके चार साथियों को जबलपुर जानेवाली ट्रेन पकड़नी थी। उन्होंने बस से पन्ना और उसी कंपनी की बस से सतना जाने का कार्यक्रम बनाया। वे सुबह पहुँचना चाहते थे। उनमें से दो को सुबह काम पर भी पहुँचना था। कुछ समझदार लोगों ने इस बस से यात्रा न करने की सलाह भी दी। लेखक ने देखा कि बस बिल्कुल टूटी-फूटी तथा जर्जर दशा में है। किसी वृद्धा की तरह वह सैकड़ों साल पुरानी हो चुकी थी। उसे देखकर यही लगता था कि वह चलेगी भी या नहीं। वास्तव में यह बस तो पूजा के योग्य थी। इस पर सवारी कैसे की जाए। उसी बस में कंपनी के हिस्सेदार भी यात्रा कर रहे थे। उनका कहना था कि बस एकदम ठीक है और अच्छी तरह चलेगी। बस की दशा देखकर लेखक और उसके साथी उससे जाने का निश्चय नहीं कर पा रहे थे। उसके डॉक्टर मित्र ने उसके अनुभव को याद दिलाते हुए कहा कि यह बस नई-नवेली बसों से भी ज़्यादा विश्वसनीय है। लेखक अपने साथियों के साथ बस में बैठ गया। जो छोड़ने आए थे, वे लेखक को इस तरह देख रहे थे, मानो लेखक इस दुनिया से जा रहा हो। उनकी आँखों में ऐसा भाव था, जैसे वे कह रही हों कि जो इस दुनिया में आया है उसे तो जाने का कोई न कोई बहाना चाहिए। बस के चालू होते ही सारी बस हिलने लगी। खिड़कियों के बचे-खुचे काँच भी गिरने की स्थिति में आ गए। लेखक डर रहा था कि वे काँच गिरकर लेखक को ही घायल न कर दें। लग रहा था कि सारी बस ही इंजन है। बस को चलता हुआ देखकर उसे गाँधी जी के असहयोग आंदोलन की बात याद आ गई। जिस तरह अंग्रेज़ों की गलत नीतियों का कोई देशवासी सहयोग नहीं कर रहा था, उसी प्रकार बस के अन्य भाग भी उसका सहयोग नहीं कर रहे थे। उसकी हिलती बॉडी देखकर लेखक को लग रहा था कि बॉडी बस को छोड़कर भागी जा रही है। आठ-दस मील चलने पर ऐसा लगने लगा कि लेखक टूटी सीटों के बीच कहीं अटका है। चलती बस अचानक रुक गई। लेखक को पता चला कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है। ड्राइवर ने पेट्रोल बाल्टी में निकाल लिया और अपनी बगल में रखकर नली से इंजन में भेजने लगा। लेखक सोच रहा था कि अब बस कंपनी के मालिक बस का इंजन अपनी गोद में रख लेंगे और नली से पेट्रोल उसी तरह पिलाएँगे जैसे माँ बच्चे को दूध पिलाती है। बस की चाल कम हो रही थी। लेखक का बस पर रहा-सहा भरोसा भी उठ गया। उसे डर लग रहा था कि कहीं बस का स्टेयरिंग न टूट जाए या उसका ब्रेक न फेल हो जाए। उसे हरे-भरे पेड़ अपने दुश्मन से लग रहे थे क्योंकि उनसे बस टकरा सकती थी। सड़क के किनारे झील देखने पर वह सोचता कि बस इसमें गोता न लगा जाए। इसी बीच बस पुनः रुक गई। ड्राइवर के प्रयासों के बाद भी बस न चली। कंपनी के हिस्सेदार बस को फ़र्स्ट क्लास की बताते हुए इसे संयोग मात्र बता रहे थे। कमज़ोर चाँदनी में बस ऐसी लग रही थी जैसे कोई बुढ़िया थककर बैठ गई हो। उसे डर लग रहा था कि इतने लोगों के बैठने से इसका प्राणांत ही न हो जाए और उन सबको उसकी अंत्येष्टि न करनी पड़ जाए। कंपनी के हिस्सेदार ने बस को खोलकर कुछ ठीक किया। बस तो चल पड़ी पर इसकी रफ़्तार अब और भी कम हो गई। बस की हेडलाइट की रोशनी भी कम होती जा रही थी। वह बहुत धीरे-धीरे चल रही थी। अन्य गाड़ियों के आते-जाते वह किनारे खड़ी हो जाती थी। बस कुछ दूर चलकर पुलिया पर पहुँची थी कि उसका एक टायर फट गया और बस झटके से रुक गई। यदि बस स्पीड में होती तो उछलकर नाले में गिर जाती। लेखक बस कंपनी के हिस्सेदार को श्रद्धाभाव से देख रहा था। वह सोच रहा था कि बस के टायरों की दयनीय हालत जानकर भी हिस्सेदार उस पर यात्रा किए जा रहे थे। उनके जैसी उत्सर्ग की भावना अन्यत्र मुश्किल थी। अपनी जान की परवाह किए बिना वे बस में सफ़र किए जा रहे थे। उनके साहस और बलिदान की भावना का सही उपयोग नहीं हो रहा था। उसे तो क्रांतिकारी आंदोलन का नेता होना चाहिए था। बस के नाले में गिरने से यदि यात्रियों की मृत्यु हो जाती तो देवता बाँहें पसारे उसका इंतज़ार करते और कहते कि वह महान आदमी आ रहा है, जिसने अपनी जान दे दी, पर टायर नहीं बदलवाया। दूसरा टायर लगाने पर बस पुनः चल पड़ी। लेखक एवं उसके मित्र पन्ना या कहीं भी जाने की उम्मीद छोड़ चुके थे। उन्हें लग रहा था कि पूरी ज़िंदगी इसी बस में बिताकर उस लोक को चले जाना है। इस पृथ्वी पर उसकी कोई मंजिल नहीं है। अब वे घर की तरह आराम से बैठ गए और चिंता छोड़कर हँसी-मजाक में शामिल हो गए।

Gaurav Seth 4 years, 11 months ago

एक बार लेखक अपने चार मित्रों के साथ बस से जबलपुर जाने वाली ट्रेन पकड़ने के लिए अपनी यात्रा बस से शुरु करने का फैसला लेते हैं। परन्तु कुछ लोग उसे इस बस से सफर न करने की सलाह देते हैं। उनकी सलाह न मानते हुए, वे उसी बस से जाते हैं किन्तु बस की हालत देखकर लेखक हंसी में कहते हैं कि बस पूजा के योग्य है।

नाजुक हालत देखकर लेखक की आँखों में बस के प्रति श्रद्धा के भाव आ जाते हैं। इंजन के स्टार्ट होते ही ऐसा लगता है की पूरी बस ही इंजन हो। सीट पर बैठ कर वह सोचता है वह सीट पर बैठा है या सीट उसपर। बस को देखकर वह कहता है ये बस जरूर गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के समय की है क्योंकि बस के सारे पुर्जे एक-दूसरे को असहयोग कर रहे थे।

कुछ समय की यात्रा के बाद बस रुक गई और पता चला कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है। ऐसी दशा देखकर वह सोचने लगा न जाने कब ब्रेक फेल हो जाए या स्टेयरिंग टूट जाए।आगे पेड़ और झील को देख कर सोचता है न जाने कब टकरा जाए या गोता लगा ले।अचानक बस फिर रुक जाती है। आत्मग्लानि से मनभर उठता है और विचार आता है कि क्यों इस वृद्धा पर सवार हो गए।

इंजन ठीक हो जाने पर बस फिर चल पड़ती है किन्तु इस बार और धीरे चलती है।आगे पुलिया पर पहुँचते ही टायर पंचर हो जाता है। अब तो सब यात्री समय पर पहुँचने की उम्मीद छोड़ देते है तथा चिंता मुक्त होने के लिए हँसी-मजाक करने लगते है।अंत में लेखक डर का त्याग कर आनंद उठाने का प्रयास करते हैं तथा स्वयं को उस बस का एक हिस्सा स्वीकार कर सारे भय मन से निकाल देते हैं।

Tirth Gharat 4 years, 11 months ago

Dh
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Rhea Sharma 4 years, 11 months ago

Because it is King of all rutus.
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Ameer Ameer Hamza 4 years, 11 months ago

Vasant chapter 13 question answer
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Pallavi Agnihotri 4 years, 11 months ago

3 मौखिक लिखित संकेतिक

Saurya Singh 4 years, 11 months ago

likhit aur moukhik

Tamanna Rohila 4 years, 11 months ago

भाषा के दो भेद होते हैं मौखिक और लिखित

Nipun Goyal 4 years, 11 months ago

Mokhik aur likhit

Nipun Goyal 4 years, 11 months ago

Momhik aur likhit
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Nipun Goyal 4 years, 11 months ago

Mahatma gandhi ko patr mahatma gandhi india khkr isiliye aate the kyunki mhatma gandhi vishv prasidh tatha lokpriya neta the aur sbko yh pta hota tha ki ve kis smay kha rh rhe h aur kya kr rhe h
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S Godara 4 years, 11 months ago

Ashok
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Aryaman Singh Tomar 4 years, 11 months ago

Mn

Archit Kumar Singh 4 years, 11 months ago

Nahi pata
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Pallavi Agnihotri 4 years, 11 months ago

जीवन का

Rajvi Odedara 4 years, 11 months ago

जीवन का
  • 3 answers

Pallavi Agnihotri 4 years, 11 months ago

रात्रि

Yatharth Malha 4 years, 11 months ago

Rajni

Saanvi Jamwal 4 years, 11 months ago

Nisha and raatri
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Tara to kiner ha ha ha ha........ ?????
Kya tara nahi ha kya

Pooja Gurjar 4 years, 11 months ago

Apne mummy Papa se pucho unke Hain ??????
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Shivansh Choudhary 4 years, 11 months ago

is story m kaha gya h ki insan agar kuch apne man m than l to khud bhi asambhav nhi hota
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Rakshan Shetty 4 years, 11 months ago

Thank u very much all?

Shivansh Choudhary 4 years, 11 months ago

upsarg is the starting word. and pratya is ending word

Gaurav Seth 4 years, 11 months ago

हिंदी भाषा में शब्दों की रचना कई प्रकार से की जाती है। इन्हीं में से एक विधि है-शब्दों के आरंभ या अंत में कुछ शब्दांश जोड़कर नए शब्द बनाना। इस तरह से प्राप्त नए शब्द के अर्थ में नवीनता देखी जा सकती है; जैसे-‘हार’ शब्द में ‘आ’, ‘प्र’, ‘वि’ सम् जोड़ने पर हमें क्रमशः आहार, प्रहार और विहार शब्द प्राप्त होते हैं, जो अपने मूल शब्द हार के अर्थ से पूरी तरह अलग अर्थ रखते हैं; जैसे- हार (पराजय, फूलों की माला)
आ + हार = आहार – भोजन
प्र + हार = प्रहार – चोट
वि + हार = विहार – भ्रमण करना

I. उपसर्ग

वे शब्दांश, जो किसी शब्द के शुरू (आरंभ) में जुड़कर उसके अर्थ में परिवर्तन या विशेषता ला देते हैं, उन्हें उपसर्ग कहते हैं; जैसे उपसर्ग मूल शब्द

हिंदी भाषा में तीन प्रकार के उपसर्ग प्रचलित हैं-
(क) संस्कृत के उपसर्ग,
(ख) हिंदी के उपसर्ग,
(ग) विदेशी उपसर्ग।

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Manmeet Kaur 4 years, 11 months ago

CNN
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Rhea Sharma 4 years, 11 months ago

Khushi apka answer wrong hai

Khushi Jaiswal 4 years, 11 months ago

बचपन में लेखक अपने मामा के गाँव चाव से इसलिए जाता था क्योंकि लेखक के मामा के गाँव में लाख की चूड़ियाँ बनाने वाला कारीगर बदलू रहता था। ...गाँव के सभी लोग बदलू को 'बदलू काका' कहकर बुलाते थे इस कारण लेखक भी 'बदलू मामा' न कहकर 'बदलू काका' कहता था।
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Shubh Raghuwanshi 4 years, 11 months ago

Prakash - ugala

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