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Ask QuestionPosted by Daksh Gurbani 4 years, 1 month ago
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Posted by Sanskriti Lodhi 4 years, 1 month ago
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Posted by Deepak Jaghina 4 years, 1 month ago
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Posted by Nipun Goyal 4 years, 1 month ago
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Raghvendra Singh Pal 4 years, 1 month ago
Posted by Asha Mann 4 years, 1 month ago
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Posted by Tirth Gharat 4 years, 1 month ago
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Raghvendra Singh Pal 4 years, 1 month ago
Shruti Sharma 4 years, 1 month ago
Gaurav Seth 4 years, 1 month ago
एक बार लेखक अपने चार मित्रों के साथ बस से जबलपुर जाने वाली ट्रेन पकड़ने के लिए अपनी यात्रा बस से शुरु करने का फैसला लेते हैं। परन्तु कुछ लोग उसे इस बस से सफर न करने की सलाह देते हैं। उनकी सलाह न मानते हुए, वे उसी बस से जाते हैं किन्तु बस की हालत देखकर लेखक हंसी में कहते हैं कि बस पूजा के योग्य है।
नाजुक हालत देखकर लेखक की आँखों में बस के प्रति श्रद्धा के भाव आ जाते हैं। इंजन के स्टार्ट होते ही ऐसा लगता है की पूरी बस ही इंजन हो। सीट पर बैठ कर वह सोचता है वह सीट पर बैठा है या सीट उसपर। बस को देखकर वह कहता है ये बस जरूर गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के समय की है क्योंकि बस के सारे पुर्जे एक-दूसरे को असहयोग कर रहे थे।
कुछ समय की यात्रा के बाद बस रुक गई और पता चला कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है। ऐसी दशा देखकर वह सोचने लगा न जाने कब ब्रेक फेल हो जाए या स्टेयरिंग टूट जाए।आगे पेड़ और झील को देख कर सोचता है न जाने कब टकरा जाए या गोता लगा ले।अचानक बस फिर रुक जाती है। आत्मग्लानि से मनभर उठता है और विचार आता है कि क्यों इस वृद्धा पर सवार हो गए।
इंजन ठीक हो जाने पर बस फिर चल पड़ती है किन्तु इस बार और धीरे चलती है।आगे पुलिया पर पहुँचते ही टायर पंचर हो जाता है। अब तो सब यात्री समय पर पहुँचने की उम्मीद छोड़ देते है तथा चिंता मुक्त होने के लिए हँसी-मजाक करने लगते है।अंत में लेखक डर का त्याग कर आनंद उठाने का प्रयास करते हैं तथा स्वयं को उस बस का एक हिस्सा स्वीकार कर सारे भय मन से निकाल देते हैं।
Posted by Mukul Vhouhan 4 years, 1 month ago
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Posted by Ameer Ameer Hamza 4 years, 1 month ago
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Posted by Girdhari Singh Kasana 4 years, 1 month ago
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Posted by Mayank Chaudhary 4 years, 1 month ago
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Nipun Goyal 4 years, 1 month ago
Posted by Anvi Mantri 4 years, 1 month ago
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Posted by Naincy Pal Pal 4 years, 1 month ago
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Posted by Mayank Patel 4 years, 2 months ago
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Posted by Tai John 4 years, 2 months ago
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Posted by Shruti Sharma 4 years, 2 months ago
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Posted by Vishu Mann 4 years, 2 months ago
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Posted by Krishna Sharma 4 years, 2 months ago
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Posted by ꧁༒☬¤《Ķáŕțìķ Pàl》¤☬༒꧂ ꧁༒☬¤《Ķáŕțìķ Pâl》¤☬༒꧂ 4 years, 2 months ago
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꧁༒☬¤《Ķáŕțìķ Pàl》¤☬༒꧂ ꧁༒☬¤《Ķáŕțìķ Pâl》¤☬༒꧂ 4 years, 1 month ago
Posted by Namarta Shukla 4 years, 2 months ago
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Shivansh Choudhary 4 years, 2 months ago
Posted by Rakshan Shetty 4 years, 2 months ago
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Shivansh Choudhary 4 years, 2 months ago
Gaurav Seth 4 years, 2 months ago
हिंदी भाषा में शब्दों की रचना कई प्रकार से की जाती है। इन्हीं में से एक विधि है-शब्दों के आरंभ या अंत में कुछ शब्दांश जोड़कर नए शब्द बनाना। इस तरह से प्राप्त नए शब्द के अर्थ में नवीनता देखी जा सकती है; जैसे-‘हार’ शब्द में ‘आ’, ‘प्र’, ‘वि’ सम् जोड़ने पर हमें क्रमशः आहार, प्रहार और विहार शब्द प्राप्त होते हैं, जो अपने मूल शब्द हार के अर्थ से पूरी तरह अलग अर्थ रखते हैं; जैसे- हार (पराजय, फूलों की माला)
आ + हार = आहार – भोजन
प्र + हार = प्रहार – चोट
वि + हार = विहार – भ्रमण करना
I. उपसर्ग
वे शब्दांश, जो किसी शब्द के शुरू (आरंभ) में जुड़कर उसके अर्थ में परिवर्तन या विशेषता ला देते हैं, उन्हें उपसर्ग कहते हैं; जैसे उपसर्ग मूल शब्द
हिंदी भाषा में तीन प्रकार के उपसर्ग प्रचलित हैं-
(क) संस्कृत के उपसर्ग,
(ख) हिंदी के उपसर्ग,
(ग) विदेशी उपसर्ग।
Posted by Niang Hoih 4 years, 2 months ago
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Posted by Ayush Gupta 4 years, 2 months ago
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Posted by Radhika Santosh Jadhav 4 years, 2 months ago
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Posted by Radhika Santosh Jadhav 4 years, 2 months ago
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Posted by Ashik Khan 4 years, 2 months ago
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Khushi Jaiswal 4 years, 2 months ago
Posted by Adarsh Verma 4 years, 2 months ago
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Posted by Christina Shaju 4 years, 2 months ago
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