प्रश्न 1. तिम्नतिखखि गद्ाींर् पि आर्ारिि बहुतवकल्प /वस्तुपिक प्रश्नोीं के उत्ति सवाशतर्क उपयुक्त तवकल्प
चुिकि तिखखए।
हमारे देों में वहंदी विल्ों के गीे अपिे आरंभ से ही आम दों णक के सुख-दुख के साथी रहे हैं। वेणमाि समर्
में वहंदी विल्ों के गीेों िे आम नि के हृदर् में िोकगीेों सी आत्मीर् नगह बिा िी है। वनस ेरह से एक नमािे
में िोकगीे निमािस के सुख-दुख आकांक्षा उल्लास और उम्मीद को स्वर देेे थे आन विल्ी गीे उसी भूवमका
को विभा रहे हैं। इेिा ही िहीं देों की ववववधेा को एकेा के सूत्र में बााँधिे में वहंदी विल्ों का र्ोगदाि सभी
स्वीकार करेे हैं। वहंदी भाषा की ों ब्द संपदा को समृद्ध करिे का नो काम रानभाषा ववभाग ेत्सम ों ब्दों की
सहार्ेा से कर रहा है वही कार्ण विल्ी गीे और डार्िॉग विखिे वािे ववववध क्षेत्रीर् भाषाओं के मेि से करेे हुए
वदखाई पड़ रहे हैं। र्ह गािे नि-नि के गीे इसी कारर् बि सके क्ोंवक इिमें रानिीवे के उेार-चढाव की
अिुगूंनों के साथ देहाेी कस्बार्ी और िए बिे ों हरों का देों न नीवि दों णि भी आत्मसाे वकर्ा नाेा रहा है। भारे
की वनस गंगा-नमुिी संस्कृ वे का मवहमामंडि बहुधा होेा है उसकी गूंन भी इि गीेों में वमिेी है। आनादी की
िड़ाई के दौराि विखे प्रदीप के गीे हों र्ा स्वाधीिेा प्राखि साथ ही होिेवािे देों के ववभानि की ववभीवषका सभी
को भी इि गीेों में बहुे संवेदिों ीि रूप से व्यक्त वकर्ा गर्ा है।
वहंदी विल्ी गीेों के इस संसार में वहंदी-उदूण का 'झगड़ा' भी कभी पिप िहीं सका। प्रदीप िीरन नैसे ों ािदार
वहंदी कववर्ों इंदीवर ेथा ों ैिेंद्र नैसे श्रेष्ठ गीेकारों और सावहर कै फी मनरूह नैसे मों हूर ों ार्रोंको वहंदी वसिेमा
में हमेों ा एक ही वबरादरी का मािा नाेा रहा है। र्ह वसिेमा की इस दुविर्ा की ही खावसर्े है वक एक ेरफ
गीेकार सावहर िे 'कहााँ हैं कहााँ हैं/मुहावफन खुदी के / वनन्हें िान है वहंद पर/ वो कहााँ हैं' विखा ेो दू सरी ेरफ
उन्होंिे ही 'संसार से भागे वफरेे हो/ भगवाि को ेुम क्ा पाओगे !/ र्े भोग भी एक ेपस्या है / ेुम प्यार के मारे
क्ा नािोगे / अपमाि रचवर्ेा का होगा/ रचिा को अगर ठु करा ओगे!' नैसी पंखक्तर्ााँ भी रची हैं। परववेणर्ों में
गुिनार ऐसे गीेकार हैं वनन्होंिे उदूण वहंदी पंनाबी रानस्थािी के साथ पुरवबर्ा बोविर्ों में मि को मोह िेिे वािे
Posted by Palak Jain
2 years, 1 month ago
Rukamani Rukamani 2 years ago
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