यौवन जिंदगी का सर्वाधिक मादक अवस्था होता है । इस अवस्था को भोग रहा युवक वर्ग ,केवल देश की शक्ति ही नहीं, बल्कि वहाँ की सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक भी होता है । अगर हम यह मानते हैं कि, यह संसार एक उद्यान है, तो ये नौजवान इस उद्यान की सुगंध हैं । युवा वर्ग किसी भी काल या देश का आईना होता है जिसमें हमें उस युग का भूत, वर्तमान और भविष्य , साफ़ दिखाई पड़ता है । इनमें इतना जोश रहता है कि ये किसी भी चुनौती को स्वीकारने के लिये तैयार रहते हैं । चाहे वह कुर्बानी ही क्यों न हो, नवयुवक अतीत का गौरव और भविष्य का कर्णधार होता है और इसी में यौवन की सच्ची सार्थकता भी है ।
हमारे दूसरे वर्ग, बूढ़े- बुजुर्ग जिनके बनाये ढ़ाँचे पर यह समाज खड़ा रहता आया है; उनका कर्त्तव्य बनता है कि इन नव युवकों के प्रति अपने हृदय में स्नेह और आदर की भावना रखें, साथ ही बर्जना भी । ऐसा नहीं होने पर, अच्छे-बुरे की पहचान उन्हें कैसे होगी ? आग मत छूओ, जल जावोगे; नहीं बताने से वे कैसे जानेंगे कि आग से क्या होता है ? माता-पिता को या समाज के बड़े-बुजुर्गों को भी, नव वर्ग के बताये रास्ते अगर सुगम हों, तो उन्हें झटपट स्वीकार कर उन रास्तों पर चलने की कोशिश करनी चाहिये ।
ऐसे आज 21वीं सदी की युवा शक्ति की सोच में,और पिछले सदियों के युवकों की सोच में जमीं-आसमां का फ़र्क आया है । आज के नव युवक , वे ढ़ेर सारी सुख-सुविधाओं के बीच जीवन व्यतीत करने की होड़ में अपने सांस्कृतिक तथा पारिवारिक मूल्यों और आंतरिक शांति को दावँ पर लगा रहे हैं । सफ़लता पाने की अंधी दौड़, जीवन शैली को इस कदर अस्त-व्यस्त और विकृत कर दिया है कि आधुनिकता के नाम पर पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण ,उनके जीवन को बर्वाद कर दे रहा है । उनकी सहनशीलता खत्म होती जा रही है । युवकों के संयमहीन व्यवहार के लिए हमारे आज के नेता भी दोषी हैं । आरक्षण तथा धर्म-जाति के नाम पर इनका इस्तेमाल कर, इनकी भावनाओं को अपने उग्र भाषणों से भड़काते हैं और युवाओं की ऊर्जा का गलत प्रयोग कर अपने स्वार्थ की पूर्ति करते है ;जिसके फ़लस्वरूप आज युवा वर्ग भटक रहा है । धैर्य, नैतिकता, आदर्श जैसे शब्द उनसे दूर होते जा रहे हैं । पथभ्रष्ट और दिशाहीन युवक, एक स्वस्थ देश के लिए चिंता का विषय है । आज टेलीवीजन , जो घर-घर में पौ फ़टते ही अपराधी जगत का समाचार, लूट, व्यभिचार, चोरी का समाचार लेकर उपस्थित हो जाता है,या फ़िर गंदे अश्लील गानों को बजने छोड़ देता है । कोई अच्छा समाचार शायद ही देखने मिलता है । ये टेलीवीजन चैनल भी युवा वर्ग को भटकाने में अहम रोल निभा रहे हैं । दूसरी ओर इनकी इस दयनीय मनोवृति के लिये उनके माता-पिता व अभिभावक भी कम दोषी नहीं हैं । वे बच्चों की मानसिक क्षमता का आंकलन किये बिना उन्हें आई० ए० एस०, पी०सी० एस०, डाक्टर, वकील, ईंजीनियर आदि बनाने की चाह पाल बैठते हैं और जब बच्चों द्वारा उनकी यह चाहत पूरी नहीं होती है, तब उन्हें कोसने लगते हैं । जिससे बच्चों का मनोबल गिर जाता है । वे घर में तो चुपचाप होकर उनके गुस्से को बरदास्त कर लेते हैं; कोई वाद-विवाद में नहीं जाते हैं, यह सोचकर,कि माता-पिता को भविष्य के लिये और अधिक नाराज करना ठीक नहीं होगा । लेकिन ये युवक जब घर से बाहर निकलते हैं, तब बात-बात में अपने मित्रों, पास-पड़ोसी से झगड़ जाते हैं । इसलिये भलाई इसी में है कि बच्चों की मानसिक क्षमता के अनुसार ही माँ-बाप को अपनी अपेक्षा रखनी चाहिये । अन्यथा उनके व्यक्तित्व का संतुलित विकास नहीं हो पायेगा ; जो कि बच्चों के भविष्य के लिये बहुत हानिकर है ।
Gaurav Seth 3 years, 11 months ago
यौवन जिंदगी का सर्वाधिक मादक अवस्था होता है । इस अवस्था को भोग रहा युवक वर्ग ,केवल देश की शक्ति ही नहीं, बल्कि वहाँ की सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक भी होता है । अगर हम यह मानते हैं कि, यह संसार एक उद्यान है, तो ये नौजवान इस उद्यान की सुगंध हैं । युवा वर्ग किसी भी काल या देश का आईना होता है जिसमें हमें उस युग का भूत, वर्तमान और भविष्य , साफ़ दिखाई पड़ता है । इनमें इतना जोश रहता है कि ये किसी भी चुनौती को स्वीकारने के लिये तैयार रहते हैं । चाहे वह कुर्बानी ही क्यों न हो, नवयुवक अतीत का गौरव और भविष्य का कर्णधार होता है और इसी में यौवन की सच्ची सार्थकता भी है ।
हमारे दूसरे वर्ग, बूढ़े- बुजुर्ग जिनके बनाये ढ़ाँचे पर यह समाज खड़ा रहता आया है; उनका कर्त्तव्य बनता है कि इन नव युवकों के प्रति अपने हृदय में स्नेह और आदर की भावना रखें, साथ ही बर्जना भी । ऐसा नहीं होने पर, अच्छे-बुरे की पहचान उन्हें कैसे होगी ? आग मत छूओ, जल जावोगे; नहीं बताने से वे कैसे जानेंगे कि आग से क्या होता है ? माता-पिता को या समाज के बड़े-बुजुर्गों को भी, नव वर्ग के बताये रास्ते अगर सुगम हों, तो उन्हें झटपट स्वीकार कर उन रास्तों पर चलने की कोशिश करनी चाहिये ।
ऐसे आज 21वीं सदी की युवा शक्ति की सोच में,और पिछले सदियों के युवकों की सोच में जमीं-आसमां का फ़र्क आया है । आज के नव युवक , वे ढ़ेर सारी सुख-सुविधाओं के बीच जीवन व्यतीत करने की होड़ में अपने सांस्कृतिक तथा पारिवारिक मूल्यों और आंतरिक शांति को दावँ पर लगा रहे हैं । सफ़लता पाने की अंधी दौड़, जीवन शैली को इस कदर अस्त-व्यस्त और विकृत कर दिया है कि आधुनिकता के नाम पर पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण ,उनके जीवन को बर्वाद कर दे रहा है । उनकी सहनशीलता खत्म होती जा रही है । युवकों के संयमहीन व्यवहार के लिए हमारे आज के नेता भी दोषी हैं । आरक्षण तथा धर्म-जाति के नाम पर इनका इस्तेमाल कर, इनकी भावनाओं को अपने उग्र भाषणों से भड़काते हैं और युवाओं की ऊर्जा का गलत प्रयोग कर अपने स्वार्थ की पूर्ति करते है ;जिसके फ़लस्वरूप आज युवा वर्ग भटक रहा है । धैर्य, नैतिकता, आदर्श जैसे शब्द उनसे दूर होते जा रहे हैं । पथभ्रष्ट और दिशाहीन युवक, एक स्वस्थ देश के लिए चिंता का विषय है । आज टेलीवीजन , जो घर-घर में पौ फ़टते ही अपराधी जगत का समाचार, लूट, व्यभिचार, चोरी का समाचार लेकर उपस्थित हो जाता है,या फ़िर गंदे अश्लील गानों को बजने छोड़ देता है । कोई अच्छा समाचार शायद ही देखने मिलता है । ये टेलीवीजन चैनल भी युवा वर्ग को भटकाने में अहम रोल निभा रहे हैं । दूसरी ओर इनकी इस दयनीय मनोवृति के लिये उनके माता-पिता व अभिभावक भी कम दोषी नहीं हैं । वे बच्चों की मानसिक क्षमता का आंकलन किये बिना उन्हें आई० ए० एस०, पी०सी० एस०, डाक्टर, वकील, ईंजीनियर आदि बनाने की चाह पाल बैठते हैं और जब बच्चों द्वारा उनकी यह चाहत पूरी नहीं होती है, तब उन्हें कोसने लगते हैं । जिससे बच्चों का मनोबल गिर जाता है । वे घर में तो चुपचाप होकर उनके गुस्से को बरदास्त कर लेते हैं; कोई वाद-विवाद में नहीं जाते हैं, यह सोचकर,कि माता-पिता को भविष्य के लिये और अधिक नाराज करना ठीक नहीं होगा । लेकिन ये युवक जब घर से बाहर निकलते हैं, तब बात-बात में अपने मित्रों, पास-पड़ोसी से झगड़ जाते हैं । इसलिये भलाई इसी में है कि बच्चों की मानसिक क्षमता के अनुसार ही माँ-बाप को अपनी अपेक्षा रखनी चाहिये । अन्यथा उनके व्यक्तित्व का संतुलित विकास नहीं हो पायेगा ; जो कि बच्चों के भविष्य के लिये बहुत हानिकर है ।
2Thank You