Vaishvikaran ne Bharat ko prabhavit kiya …
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Posted by Vk Raj 3 years, 11 months ago
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Gaurav Seth 3 years, 11 months ago
वस्तु ,पूंजी, विचार और लोगों की आवाजाही भारतीय इतिहास में सदियों से होता आ रहा है| ब्रिटेन के औपनिवेशिक दौर में भी साम्राज्यवादी मंसूबों के फलस्वरूप भारत आधारभूत वस्तुओं और कच्चे माल का निर्यातक और आयातक देश था |आजादी के बाद ब्रिटेन के साथ अनुभव से सबक लेते हुए हमने सीखा की दूसरों पर निर्भर रहने की बजाय सामान खुद बनाया जाए| इसके साथ फैसला किया गया कि दूसरे देशों को निर्यात की अनुमति नहीं होगी ताकि हम उत्पादक चीजों को बनाना सीख सकें | इस संरक्षणवाद में कुछ नई दिक्कतें आई | कुछ क्षेत्रों में तरक्की हुई और कुछ जरूरी क्षेत्रों में जैसे स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा और आवास पर उतना ध्यान नहीं दिया जितना दिया जाना चाहिए था| इसके साथ ही हमारी आर्थिक वृद्धि दर धीमी रही|
भारत में वैश्वीकरण को अपनाना:-
1991 की नई आर्थिक नीति के अंतर्गत भारत में उदारीकरण और वैश्वीकरण को अपनाया और संरक्षण नीति को त्याग दिया| बहुराष्ट्रीय कंपनियों की स्थापना और विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया| विदेशी प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञों की सेवाएं ली गई| दूसरी तरफ भारत ने औद्योगिक संरक्षण नीति को त्याग दिया| जब अधिकांश वस्तुओं के आयात के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य नहीं है, भारत ने स्वयं को अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जोड़ लिया| भारत में निर्यात के साथ साथ वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ रही हैं| लाखों लोग बेरोजगार हुए हैं| अमीर और अमीर और गरीब और गरीब होते जा रहे हैं|
भारत में वैश्वीकरण का प्रतिरोध:-
वैश्वीकरण बड़ी बहस का मुद्दा है |पूरी दुनिया में इसकी आलोचना भी हुई है |भारत में वैश्वीकरण के आलोचक कई तर्क देते हैं:-
1. वामपंथी राजनीतिक रुझान रखने वालों का मानना है कि वैश्वीकरण विश्वव्यापी पूंजीवाद की एक खास अवस्था है जो अमीरों को और अमीर और गरीबों को और गरीब बना रही है|
2. राज्य के कमजोर होने से उनकी गरीबों के हितों की रक्षा करने की क्षमता कम हो रही है| वैश्वीकरण के दक्षिणपंथी आलोचक इसके राजनीतिक , आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव को लेकर भी चिंतित रहते हैं| राजनीतिक अर्थों में उन्हें राज्य के कमजोर होने की चिंता रहती है | उन्हें लगता है कि कम से कम कुछ क्षेत्रों में ""आर्थिक आत्मनिर्भरता और संरक्षणवाद ""का दौर फिर से कायम किया जाए| सांस्कृतिक वैश्वीकरण के संबंध में उनका कहना है कि परंपरागत संस्कृति की हानि होगी और लोग अपने सदियों पुराने जीवन मूल्य और तौर तरीकों से हाथ धो बैठेंगे|
वैश्वीकरण के प्रतिरोध को लेकर भारत के अनुभव:-
सामाजिक आंदोलनों से लोगों को अपने आसपास की दुनिया को समझने का मौका मिलता है | और अपनी समस्याओं के हल तलाशने में मदद मिलती है | वैश्वीकरण के खिलाफ वामपंथी समर्थकों ने विभिन्न मंचों से औद्योगिक श्रमिक और किसानों के संगठन में बहुराष्ट्रीय निगमों के प्रवेश का विरोध किया है | कुछ वनस्पतियों जैसे ""नीम"" को अमेरिकी और यूरोपीय समूह में पेटेंट कराने के प्रयास किए हैं | इनका भी कड़ा विरोध हुआ है |
2 वैश्वीकरण का विरोध राजनीति के दक्षिणपंथी खेमो मैं भी किया जा रहा है| यह खेमा विभिन्न सांस्कृतिक प्रभाव का विरोध करता है जिसमें केबल नेटवर्क के जरिए उपलब्ध कराए जा रहे विदेशी टीवी चैनल से लेकर वैलेंटाइन डे मनाने और स्कूल कॉलेज के छात्र-छात्राओं की पश्चिमी संस्कृति जैसी पोशाकों के लिए बढ़ती अभिरुचि तक का विरोध किया गया है"
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Gunjan Sharma 3 years, 11 months ago
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