नीलकंठ चैप्टर के लेखक कौन हैं?

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Posted by Vaishnavi Chowdary 4 years, 10 months ago
- 3 answers
Gaurav Seth 4 years, 10 months ago
पाठ का नाम-नीलकंठ, लेखिका का नाम-महादेवी वर्मा।
यह पाठ एक रेखाचित्र है जिसमें लेखिका ने अपने सभी पालतू पशुओं में से एक मोर जिसे उन्होंने नीलकंठ नाम दिया है उसका वर्णन किया है| उसके स्वभाव, व्यवहार और चेष्टाओं को विस्तार से बताया है|
एक बार लेखिका अतिथि को स्टेशन पहुँचाकर लौट रही थी तो बड़े मियाँ चिड़ियावाले के यहाँ से मोर-मोरनी के दो बच्चे ले आईं। जब वे दोनों पक्षी लेकर घर पहुँची तो सबने कहा कि वे मोर की जगह तीतर ले आई है| दुकानदार ने उन्हें ठग लिया है। यह सुनकर लेखिका चिढ़कर दोनों पक्षियों को अपने पढ़ने-लिखने के कमरे में ले गई। दोनों पक्षी उनके कमरे में आजादी से घूमते रहे। जब वे लेखिका से घुल-मिल गए तो वे लेखिका का ध्यान अपनी हरकतों से अपनी ओर खींचते। जब वे थोड़े बड़े हुए तो उसे अन्य पशु-पक्षियों के साथ जालीघर पहुँचा दिया गया। धीरे-धीरे दोनों बड़े होने लगे और सुंदर मोर-मोरनी में बदल गए।
मोर के सिर की कलगी बड़ी और चमकीली हो गई थी। चोंच और तीखी हो गई थी। गर्दन लंबी नीले-हरे रंग की थी। पंखों में चमक आने लगी थी। मोरनी का विकास मोर की तरह सौंदर्यमयी नहीं था परंतु वह मोर की उपयुक्त
सहचारिणी थी। मोर की नीली गरदन के कारण उसका नाम नीलकंठ रखा गया था। मोरनी मोर की छाया थी इसलिए उसका नाम राधा रखा गया। नीलकंठ लेखिका के चिड़ियाघर का स्वामी बन गया था। जब कोई
पक्षी मोर की बात नहीं मानता था तब मोर उसे अपनी चोंच के प्रहार से दंड देता था। एक बार एक साँप ने खरगोश के बच्चे को मुँह में दबा लिया था| नीलकंठ ने उस साँप को अपने चोंच के प्रहार से टुकड़े कर दिए| खरगोश के बच्चे को रातभर अपने पंखों के नीचे रखकर गरमी देता रहा।
वसंत पर मेघों की सांवली छाया में अपने इंद्रधनुषी पंख फैलाकर नीलकंठ एक सहजात लय-ताल में नाचता रहता। लेखिका को नीलकंठ का नाचना बहुत अच्छा लगता। अनेक विदेशी महिलाओं ने उसकी मुद्राओं को अपने प्रति व्यक्त सम्मान समझकर उसे 'परफेक्ट जेंटलमैन' की उपाधि दे दी थी। नीलकंठ और राधा को वर्षा ऋतु बहुत अच्छी लगती थी। उन्हें बादलों के आने से पहले उनकी आहट सुनाई देने लगती थी। बादलों की गड़गड़ाहट, वर्षा की रिम-झिम, बिजली की चमक जितनी अधिक होती थी, नीलकंठ के नृत्य में उतनी ही तन्मयता और वेग बढ़ता जाता था। बरसात के समाप्त होने पर वह दाहिने |पंजे पर दाहिना पंख और बाएँ पर बायाँ पंख फैलाकर सुखाने लग जाता था। उन दोनों के प्रेम में एक दिन तीसरा भी आ गया।
एक दिन लेखिका को बड़े मियाँ की दुकान से एक घायल मोरनी सात रुपये में मिली। पंजों की मरहमपट्टी करने पर एक महीने में वह ठीक हो गई और डगमगाती हुई चलने लगी तो उसे जाली घर में पहुँचा दिया गया उसके दोनों पैर खराब हो गए थे, जिसके कारण वह डगमगाती हुई चलती थी। उसका नाम 'कुब्जा' रखा गया था| नीलकंठ और राधा को वह जब भी साथ देखती, उन्हें मारने दौड़ती। उसने चोंच से मार-मारकर राधा की कलगी और पंख नोच डाले थे। नीलकंठ उससे दूर भागता, पर वह उसके साथ रहना चाहती।
कुब्जा की किसी भी पक्षी से मित्रता नहीं थी। कुछ समय बाद राधा ने दो अंडे दिए। वह उन अंडों को अपने पंखों में छिपाए बैठी रहती थी। जैसे ही कुब्जा को राधा के अंडों के विषय में पता चला उसने अपनी चोंच के प्रहार से उसके अंडों को तोड़ दिया। नीलकंठ इससे बहुत दु:खी हो गया। लेखिका को आशा थी कि कुछ दिनों में सब | में मेल हो जाएगा, परंतु ऐसा नहीं हुआ।
तीन-चार माह के बाद अचानक एक दिन सुबह लेखिका ने नीलकंठ को मरा हुआ पाया। न उसे कोई बीमारी हुई थी और न ही उसके शरीर पर चोट का कोई निशान था। लेखिका ने उसे अपनी शाल में लपेट कर संगम में प्रवाहित कर दिया। नीलकंठ के न रहने पर राधा कई दिन तक कोने में बैठी रह नीलकंठ का इंतज़ार करती रही। परंतु कुब्जा ने नीलकंठ के दिखाई न देने पर उसकी खोज आरंभ कर दी। एक दिन वह लेखिका की अल्सेशियन कुतिया कजली के सामने पड़ गई। कुब्जा ने उसे देखते ही चोंच से प्रहार कर दिया। कजली ने अपने स्वभाव के अनुरूप कुब्जा की गर्दन पर दो दाँत लगा दिए। कुब्जा का इलाज करवाया गया परंतु वह नहीं बची| राधा नीलकंठ की प्रतीक्षा कर रही है। बादलों को देखते ही वह अपनी केका ध्वनि से नीलकंठ को बुलाती है।
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