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everest meri shkar yatra summary in english class 9
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Gaurav Seth 3 years, 9 months ago

बचेंद्री पाल अपनी एवरेस्ट की चढ़ाई के सफर की बात करते हुए कहती हैं कि एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाला दल 7 मार्च को दिल्ली से हवाई जहाज़ से काठमांडू के लिए चल पड़ा था। उस दल से पहले ही एक मज़बूत दल बहुत पहले ही एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए चला गया था जिससे कि वह बचेंद्री पाल वाले दल के ‘बेस कैम्प’ पहुँचने से पहले बर्फ के गिरने के कारण बने कठिन रास्ते को साफ कर सके। बचेंद्री पाल कहती हैं कि नमचे बाज़ार, शेरपालैंड का एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र है।यहीं से बचेंद्री पाल ने सर्वप्रथम एवरेस्ट को देखा था। बचेंद्री पाल कहती हैं कि लोगों के द्वारा बचेंद्री पाल को बताया गया कि शिखर पर जानेवाले प्रत्येक व्यक्ति को दक्षिण-पूर्वी पहाड़ी पर तूफानों को झेलना पड़ता है, विशेषकर जब मौसम खराब होता है। जब उनका दल 26 मार्च को पैरिच पहुँचा तो उन्हें हमें बर्फ के खिसकने के कारण हुई एक शेरपा कुली की मृत्यु का दुःख भरा समाचार मिला। सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए थे। इस समाचार के कारण बचेंद्री पाल के अभियान दल के सदस्यों के चेहरों पर छाई उदासी को देखकर उनके दल के नेता कर्नल खुल्लर ने सभी सदस्यों को साफ़-साफ़ कह दिया कि एवरेस्ट पर चढ़ाई करना कोई आसान काम नहीं है, वहाँ पर जाना मौत के मुँह में कदम रखने के बराबर है।  बचेंद्री पाल कहती हैं कि उपनेता प्रेमचंद, जो पहले वाले दल का नेतृत्व कर रहे थे, वे भी 26 मार्च को पैरिच लौट आए। उन्होंने बचेंद्री पाल के दल की पहली बड़ी समस्या बचेंद्री पाल और उनके साथियों को खुंभु हिमपात की स्थिति के बारे में बताया। उन्होंने बचेंद्री पाल और उनके साथियों को यह भी बताया कि पुल बनाकर, रस्सियाँ बाँधकर तथा झंडियों से रास्ते को चिह्नित कर, सभी बड़ी कठिनाइयों का जायज़ा ले लिया गया है। उन्होंने बचेंद्री पाल और उनके साथियों का ध्यान इस पर भी दिलाया कि ग्लेशियर बर्फ की नदी है और बर्फ का गिरना अभी जारी है। जिसके कारण अभी तक के किए गए सभी काम व्यर्थ हो सकते हैं और उन लोगों को रास्ता खोलने का काम दोबारा करना पड़ सकता है। बचेंद्री पाल कहती हैं कि ‘बेस कैंप’ में पहुँचने से पहले उन्हें और उनके साथियों को एक और मृत्यु की खबर मिली। जलवायु के सही न होने के कारण एक रसोई सहायक की मृत्यु हो गई थी। निश्चित रूप से अब बचेंद्री पाल और उनके साथी आशा उत्पन्न करने स्थिति में नहीं चल रहे थे। सभी घबराए हुए थे। बेस कैंप पहुँचाने पर दूसरे दिन बचेंद्री पाल ने एवरेस्ट पर्वत तथा इसकी अन्य श्रेणियों को देखा। बचेंद्री पाल हैरान होकर खड़ी रह गई। बचेंद्री पाल कहती हैं कि दूसरे दिन नए आने वाले अपने ज़्यादातर सामान को वे हिमपात के आधे रास्ते तक ले गए। डॉ मीनू मेहता ने बचेंद्री पाल और उनके साथियों को अल्यूमिनियम की सीढ़ियों से अस्थायी पुलों का बनाना, लठ्ठों और रस्सियों का उपयोग, बर्फ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सियों को बाँधना और उनके पहले दल के तकनीकी कार्यों के बारे में उन्हें विस्तार से सारी जानकारी दी। बचेंद्री पाल कहती हैं कि उनका तीसरा दिन हिमपात से कैंप-एक तक सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास करने के लिए पहले से ही निश्चित था। रीता गोंबू तथा बचेंद्री पाल साथ-साथ चढ़ रहे थे। उनके पास एक वॉकी-टॉकी था, जिससे वे अपने हर कदम की जानकारी बेस कैंप पर दे रहे थे। कर्नल खुल्लर उस समय खुश हुए, जब रीता गोंबू तथा बचेंद्री पाल ने उन्हें अपने पहुँचने की सूचना दी क्योंकि कैंप-एक पर पँहुचने वाली केवल वे दो ही महिलाएँ थीं। जब अप्रैल में बचेंद्री पाल कैंप बेस में थी, तेनजिंग अपनी सबसे छोटी सुपुत्री डेकी के साथ उनके पास आए थे। उन्होंने इस बात पर विशेष महत्त्व दिया कि दल के प्रत्येक सदस्य और प्रत्येक शेरपा कुली से बातचीत की जाए। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जब उनकी बारी आई, तो उन्होंने अपना परिचय यह कहकर दिया कि वे इस चढ़ाई के लिए बिल्कुल ही नई सीखने वालीं हैं और एवरेस्ट उनका पहला अभियान है। तेनजिंग हँसे और बचेंद्री पाल से कहा कि एवरेस्ट उनके लिए भी पहला अभियान है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि शिखर पर पहुँचने से पहले उन्हें सात बार एवरेस्ट पर जाना पड़ा था। फिर अपना हाथ बचेंद्री पाल के कंधे पर रखते हुए उन्होंने कहा कि बचेंद्री पाल एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती है। उसे तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए। बचेंद्री पाल कहती हैं कि 15-16 मई 1984 को बुद्ध  पूर्णिमा के दिन वह ल्होत्से की बर्फीली सीधी ढलान पर लगाए गए सुंदर रंगीन नाइलॉन के बने तंबू के कैंप-तीन में थी। वह गहरी नींद में सोइ हुई थी कि रात में 12.30 बजे के लगभग उनके सिर के पिछले हिस्से में किसी एक सख्त चीज़ के टकराने से उनकी नींद अचानक खुल गई और साथ ही एक ज़ोरदार धमाका भी हुआ। एक लंबा बर्फ का पिंड उनके कैंप के ठीक ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर नीचे आ गिरा था और उसका एक बहुत बड़ा बर्फ का टुकड़ा बन गया था। लोपसांग अपनी स्विस छुरी की मदद से बचेंद्री पाल और उनके साथियों के तंबू का रास्ता साफ़ करने में सफल हो गए थे । उन्होंने बचेंद्री पाल के चारों तरफ की कड़ी जमी बर्फ की खुदाई की और बचेंद्री पाल को उस बर्फ की कब्र से निकाल कर बाहर खींच लाने में सफल हो गए। बचेंद्री पाल कहती हैं कि अगली सुबह तक सारे सुरक्षा दल आ गए थे और 16 मई को प्रातः 8 बजे तक वे सभी कैम्प-दो पर पहुँच गए थे। बचेंद्री पाल और उनके दल के नेता कर्नल खुल्लर ने पिछली रात को हुए हादसे को उनके शब्दों में कुछ इस तरह कहा कि यह इतनी ऊँचाई पर सुरक्षा-कार्य का एक अत्यंत साहस से भरा कार्य था। बचेंद्री पाल कहती हैं कि सभी नौ पुरुष सदस्यों को जिन्हें चोटें आई थी और हड्डियां टूटी थी उन्हें बेस कैंप में भेजना पड़ा। तभी कर्नल खुल्लर बचेंद्री पाल की तरफ मुड़े और कहने लगे कि क्या वह डरी हुई है? इसके उत्तर में बचेंद्री पाल ने हाँ में उत्तर दिया। कर्नल खुल्लर के फिर से पूछने पर कि क्या वह वापिस जाना चाहती है? इस बार बचेंद्री पाल ने बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दिया कि वह वापिस नहीं जाना चाहती।बचेंद्री पाल कहती हैं कि दोपहर बाद उन्होंने अपने दल के दूसरे सदस्यों की मदद करने और अपने एक थरमस को जूस से और दूसरे को गरम चाय से भरने के लिए नीचे जाने का निश्चय किया। उन्होंने बर्फीली हवा में ही तंबू से बाहर कदम रखा। बचेंद्री पाल को जय जेनेवा स्पर की चोटी के ठीक नीचे मिला। उसने बचेंद्री पाल के द्वारा लाई गई चाय वगैरह पी लेकिन बचेंद्री पाल को और आगे जाने से रोकने की कोशिश भी की। मगर बचेंद्री पाल को की से भी मिलना था। थोड़ा-सा और आगे नीचे उतरने पर उन्होंने की को देखा। की बचेंद्री पाल को देखकर चौंक गया और उसने बचेंद्री पाल से कहा कि उसने  इतना बड़ा जोखिम क्यों उठाया? बचेंद्री पाल ने भी उसे दृढ़तापूर्वक कहा कि वह भी औरों की तरह एक पर्वतारोही है, इसीलिए वह इस दल में आई हुई है। बचेंद्री पाल कहती हैं कि साउथ कोल ‘पृथ्वी पर बहुत अधिक कठोर’ जगह के नाम से प्रसिद्ध है। बचेंद्री पाल कहती हैं कि अगले दिन वह सुबह चार बजे उठी। उसने बर्फ को पिघलाया और चाय बनाई, कुछ बिस्कुट और आधी चाॅकलेट का हलका नाश्ता करने के बाद वह लगभग साढ़े पाँच बजे अपने तंबू से निकल पड़ी। बचेंद्री पाल कहती हैं कि सुबह 6:20 पर जब अंगदोरजी और वह साउथ कोल से बाहर निकले तो दिन ऊपर चढ़ आया था। हलकी-हलकी हवा चल रही थी, लेकिन ठंड भी बहुत अधिक थी। बचेंद्री पाल और उनके साथियों ने बगैर रस्सी के ही चढ़ाई की। अंगदोरजी एक निश्चित गति से ऊपर चढ़ते गए और बचेंद्री पाल को भी उनके साथ चलने में कोई कठिनाई नहीं हुई। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जमे हुए बर्फ की सीधी व ढलाऊ चट्टानें इतनी सख्त और भुरभुरी थीं, ऐसा लगता था मानो शीशे की चादरें बिछी हों। उन सभी को बर्फ काटने के फावडे़ का इस्तेमाल करना ही पड़ा और बचेंद्री पाल कहती हैं कि उन्हें इतनी सख्ती से फावड़ा चलाना पड़ा जिससे कि उस जमे हुए बर्फ की धरती को फावडे़ के दाँते काट सके। बचेंद्री पाल कहती हैं कि उन्होंने उन खतरनाक स्थलों पर हर कदम अच्छी तरह सोच-समझकर उठाया। क्योंकि वहाँ एक छोटी सी भी गलती मौत का कारण बन सकती थी। बचेंद्री पाल कहती हैं कि दो घंटे से भी कम समय में ही वे सभी शिखर कैंप पर पहुँच गए। अंगदोरजी ने पीछे मुड़कर देखा और उन्होंने कहा कि पहले वाले दल ने शिखर कैंप पर पहुँचने में चार घंटे लगाए थे और यदि अब उनका दल इसी गति से चलता रहे तो वे शिखर पर दोपहर एक बजे एक पहुँच जाएँगे। ल्हाटू ने ध्यान दिया कि बचेंद्री पाल इन ऊँचाइयों के लिए सामान्यतः आवश्यक, चार लीटर ऑक्सीजन की अपेक्षा, लगभग ढाई लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट की दर से लेकर चढ़ रही थी। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जैसे ही उसने बचेंद्री पाल के रेगुलेटर पर ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई, बचेंद्री पाल कहती हैं कि उन्हें महसूस हुआ कि सीधी और कठिन चढ़ाई भी अब आसान लग रही थी।बचेंद्री पाल कहती हैं कि दक्षिणी शिखर के ऊपर हवा की गति बढ़ गई थी। उस ऊँचाई पर तेज़ हवा के झोंके भुरभुरे बर्फ के कणों को चारों तरफ़ उड़ा रहे थे, जिससे दृश्यता शून्य तक आ गई थी कुछ भी देख पाना संभव नहीं हो पा रहा था। अनेक बार देखा कि केवल थोड़ी दूर के बाद कोई ऊँची चढ़ाई नहीं है। ढलान एकदम सीधा नीचे चला गया है। यह देख कर बचेंद्री पाल कहती हैं कि उनकी तो साँस मानो रुक गई थी। उन्हें विचार आया कि सफलता बहुत नज़दीक है। 23 मई 1984 के दिन दोपहर के एक बजकर सात मिनट पर वह एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने वाली बचेंद्री पाल प्रथम भारतीय महिला थी।बचेंद्री पाल कहती हैं कि एवरेस्ट की चोटी की नोक पर इतनी जगह नहीं थी कि दो व्यक्ति साथ-साथ खड़े हो सकें। चारों तरफ़ हजारों मीटर लंबी सीधी ढलान को देखते हुए उन सभी के सामने प्रश्न अब सुरक्षा का था। उन्होंने पहले बर्फ के फावड़े से बर्फ की खुदाई कर अपने आपको सुरक्षित रूप से खड़ा रहने लायक जगह बनाई। ख़ुशी के इस पल में बचेंद्री पाल को अपने माता-पिता का ध्यान आया। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जैसे वह उठी, उन्होंने अपने हाथ जोडे़ और वह अपने रज्जु-नेता अंगदोरजी के प्रति आदर भाव से झुकी। अंगदोरजी जिन्होंने बचेंद्री पाल को प्रोत्साहित किया और लक्ष्य तक पहुँचाया। बचेंद्री पाल ने उन्हें बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट की दूसरी चढ़ाई चढ़ने पर बधाई भी दी। उन्होंने बचेंद्री पाल को गले से लगाया और उनके कानों में फुसफुसाया कि दीदी, तुमने अच्छी चढ़ाई की। वह बहुत प्रसन्न है। कर्नल खुल्लर उनकी सफलता से बहुत प्रसन्न थे। बचेंद्री पाल को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि वे बचेंद्री पाल की इस अलग प्राप्ति के लिए बचेंद्री पाल के माता-पिता को बधाई देना चाहते हैं। वे बोले कि देश को बचेंद्री पाल पर गर्व है और अब वह एक ऐसे संसार में वापस जाएगी, जो उसके द्वारा अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम अलग होगा।

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