Pehalwan ka dhol
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Posted by Ankit Bura 4 years, 9 months ago
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Gaurav Seth 4 years, 9 months ago
पहलवान की ढोलक, कहानी फणीश्वर नाथ रेणु जी द्वारा लिखी गयी प्रसिद्ध कहानी है .इस कहानी में लेखक ने अपने गाँव अंचल एवं संस्कृति को सजीव कर दिया है .ऐसा लगता है कि मानों हरेक पात्र वास्तविक जीवन जी रहा है . कहानी के प्रारंभ पहलवान की ढोलक के बजने से होती है .गाँव में महामारी फैली हुई है .रात में वातावरण में शान्ति है .कभी - कभी झोपड़ी से कराहने व के करने कि आवाज तथा कभी कभी बच्चों के रोने की आवाज आती थी .ऐसे समय पहलवान की ढोलक संध्या से प्रातःकाल तक एक ही गति से बजती रहती थी .यही आवाज मृत गाँव में संजीवनी शक्ति रहती थी .
पहलवान के जीवन के बारे में फणीश्वर नाथ रेणु जी ने बताया है कि नौ बर्ष कि आयु में ही पहलवान के माता - पिता की मृत्यु हो गयी और उसका पालन पोषण उसकी विधवा सास द्वारा किया गया .सास पर हुए अत्याचारों को देखकर लुट्टन को बदला लेने के लिए अपने शरीर को मज़बूत बनाना शुरू कर दिया .वह गाँव में पहलवानी करने लगा .एक वह श्यामनगर के दंगल में दंगल देखने गया था .वह उसने ढोलक की आवाज को अपना गुरु मानकर शेर के बच्चे चाँद सिंह नाम के पहलवान को हराया .उसके बाद राजा ने उसे राज - पहलवान घोषित कर दिया .अब उसका पालन - पोषण राजदरबार से होने लगा .फिर उसने काले खां जैसे प्रसिद्ध पहलवान को हरा कर अपने को अजेय पहलवान घोषित कर दिया .इस प्रकार पंद्रह वर्ष बीत गए .लुट्टन अजेय बना रहा .अपने बेटों को पहलवानी की शिक्षा देने लगा .वह अपने बेटों को ढोलक के प्रताप से अजेय बनने की शिक्षा देता रहा .लेकिन राजा की मृत्यु के बाद राजकुमार विलायत से आने के बाद पहलवान के खर्चों को देखकर उसे दरबार से हटा दिया गया .विवश होकर वह अपने गाँव लौट गया .गाँव आकर वह और उसे बेटे ग्रामीण बच्चों को कुश्ती सिखाने लगा ,लेकिन ग्रामीणों में अरुचि के कारण ,पहलवान के बेटे मजदूरी करने लगे .लेकिन अकस्मात् सूखा और महामारी के कारण एक एक करके लोग मरने लगे .इस प्रकार उनके दोनों बेटे महामारी के चपेट में आ गए .वह उन्हें उठाकर नदी में बहा आया .पुत्रों के मृत्यु के बाद भी वह ढोलक बजाता रहा .तो लोगों के हिम्मत बढ़ी .चार पाँच दिन बाद ढोलक बजनी बंद हो गयी .सुबह लोगों ने देखा कि पहलवान की लाश चित्त पड़ी है .एक शिष्य ने कहा कि गुरु ने कहा था उसकी मौत के बाद उसके शरीर को चिता पर पेट के बल लिटाया जाए क्योंकि वह कभी चित्त नहीं हुआ और चिता सुलगाने के समय ढोल बजाते रहना .इस प्रकार पहलवान के अंत के साथ कहानी का अंत हो जाता है .
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