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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-(12) प्रसिद्ध दार्शनिक नीत्शे एक ऐसा देवता तलाश रहे थे, जो मनुष्य की पहुँच में हो। उसी की तरह नाच-गा सके। जीवन से भरपूर हो। हँसे-रोए, काम करे-कराए बिल्कुल आदमी की तरह। नीत्शे को ऐसा देवता नहीं मिला तो उसने कह दिया, "ईश्वर मर गया है।" लगता है कि नीत्शे को कृष्ण की जानकारी नहीं थी। वे नाचते, गाते हैं, काम करते हैं और योगी भी है-कर्मयोगी भी। काम करो, बाकी सब भूल जाओ-यह है उनका अनासक्त कर्म। यहाँ तक कि काम के फल की भी इच्छा मत करो-कर्मण्येवाधिकारस्ते। अजीब विरोधाभास है। काम करने का निराला ढंग है कि काम तो पूरे मन से करो, ईश्वर का आदेश समझकर करो पर उससे परे भी रहो। काम पूरा होते अनासक्त हो जाओ। यों कृष्ण जो भी करते हैं उसमें गजब की आसक्ति दिखाई देती। है- चाहे ग्वाले का काम हो, रसिक बिहारी का हो, सारथि का हो, उपदेष्टा या मार्गदर्शक का, वे मनोयोग से अपनी भूमिका निभाते दिखाई पड़ते हैं और अगले ही क्षण उससे अलग, जैसे कमल के पत्ते पर पड़ा पानी। जीवन का प्रत्येक पल पूरेपन से जीना और चिपकना नहीं, यही अनासक्ति है। उनमें कहीं अधूरापन दिखाई ही नहीं देता। पीछे मुड़ने का उन्हें अवकाश ही नहीं है। यह कृष्ण जैसा कर्मयोगी ही कर सकता है। वे विश्वरूप हैं, परंतु अहंकार का कहीं नाम तक नहीं। गाय चराने या रथ हाँकने का काम करने में भी उन्हें कोई हिचक नहीं।
  • 2 answers

R. D. 4 years, 1 month ago

Ye to sirf paragraph h questions to h hi nhi .

Gaurav Seth 4 years, 1 month ago

    1. नीत्शे कौन थे? वे क्या तलाश रहे थे? (2)
    2. "ईश्वर मर गया है"-नीत्शे ने यह क्यों कहा होगा? (2)
    3. कृष्ण के व्यक्तित्व में 'विरोधाभास' क्यों लगता है? (2)
    4. आशय स्पष्ट कीजिए-"कर्मण्येवाधिकारस्ते ....।" (2)
    5. कृष्ण की किन विविध भूमिकाओं का उल्लेख है। (2)
    6. कृष्ण के व्यक्तित्व से हम क्या सीख सकते हैं? (1)
    7. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए। (1)

Answrs:

  1. नीत्शे एक प्रसिद्ध दार्शनिक थे। वे एक ऐसा देवता तलाश कर रहे थे, जो मनुष्य की पहुँच में हो और उसी की तरह नाच-गा सके और जो मनुष्य की तरह ही जीवनयापन करे।
  2. "ईश्वर मर गया है" नीत्शे ने यह इसलिए कहा होगा क्योंकि उसे ऐसा देवता नहीं मिला जो जीवन से भरपूर हो। जो मनुष्य की तरह हँसे-रोए, काम करे और कराए।
  3. कृष्ण के व्यक्तित्व में विरोधाभास लगता है क्योंकि वे नाचते गाते हैं, काम करते हैं। एक ओर वे योगी हैं, तो दूसरी ओर कर्मयोगी भी हैं।
  4. 'कर्मण्येवाधिकारस्ते' ........ का आशय है कि काम करो बाकी सब भूल जाओ। यहाँ तक कि काम के फल की इच्छा भी मत करो।मनुष्य का अपना काम है बिना किसी फल की इच्छा के कर्म करते रहना।
  5. कृष्ण की विभिन्न भूमिकाओं का उल्लेख किया गया है; जैसे-कृष्ण ग्वाले का काम करते हैं, रसिक बिहारी का, सारथी का, उपदेष्टा या मार्गदर्शक आदि का।
  6. कृष्ण के व्यक्तित्व से हम ये सीख सकते हैं कि जीवन के प्रत्येक पल को पूरेपन से जीना चाहिए, उससे चिपकना नहीं चाहिए।
  7. प्रस्तुत गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है-"कृष्ण:योगी एवं कर्मयोगी''
http://mycbseguide.com/examin8/

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