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Plz anyone give A short story on पराधीन सपनेहु सुख नाहीं .
  • 4 answers

Sahil Singh Naruka 5 years, 1 month ago

Ok

Akshay Soni 5 years, 1 month ago

Brij bhoomi ke prati kavi ka prem kin kin Roop mein abhivyakt hua hai kaun se paath ka uttar hai

Akshay Soni 5 years, 1 month ago

Brij bhoomi ke prati kavi ka prem kin kin roopame abhivyakt hua hai

Yogita Ingle 5 years, 1 month ago

प्रस्तावना : सामान्यतः मानव अपने जीवन में जो कुछ भी कार्य करता है, उसका एक मात्र उद्देश्य होता है कि वह अपने को सुखी कर सके। अपना विकास कर सके और जितना भी जीवन उसने जीना है उतना स्वाभाविक रूप में जी सके। लेकिन मानव का आदि काल से अब तक का इतिहास यह बताता है कि उसकी इच्छा के मार्ग में अनेक बाधाएँ आती हैं। यद्यपि वह सभी बाधाओं को दूर करने की कोशिश करता है फिर भी परिस्थितियाँ उसे ऐसा जीवन जीने पर विवश कर देती हैं जो उसको अच्छा नहीं लगता। जब हम पराधीनता के विषय में बात करते हैं, तो एक तथ्य यह सामने रखना होता है कि पराधीनता की विवेचना कई दृष्टियों से हो सकती है।

पराधीनता का एक रूप है स्वतन्त्रता का न होना अर्थात् जो व्यक्ति किसी की इच्छा के अधीन होता है, उसे पराधीन कहा जाता है। यह स्वाभाविक है कि अपने अनुसार काम न करने पर व्यक्ति सुख प्राप्त नहीं कर सकता। इसीलिए कहा जाता है कि पराधीन व्यक्ति सुख प्राप्त नहीं कर सकता।

 पराधीनता का अभिशाप : पराधीनता का अभिशाप सबसे बड़ा अभिशाप है। यदि यह पूछा जाए कि इस विश्व में कौन ज्यादा सुखी है, तो एक उत्तर यही होगा कि जो स्वतन्त्र है या पराधीन नहीं है वह सुखी है। सुख यद्यपि बाहरी वस्तुओं पर निर्भर करता है। फिर भी उसकी वास्तविक सत्ता अन्तर में विद्यमान रहती है। हम जब पराधीन होते हैं, तो कुछ भी अपनी इच्छा से नहीं कर सकते और हमें प्रत्येक काम के लिए दूसरे की इच्छा पर निर्भर रहना पड़ता है। यह जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है।

पराधीनता का दूसरा रूप है गुलामी : प्राचीन काल में दास प्रथा थी। अमीर व्यक्ति गरीब दासों को खरीद लिया करते थे। उनके अधिकार समाप्त हो जाते थे। उनका खाना-पीना या अन्य काम मालिक पर निर्भर करता था। धीरे-धीरे यह दास प्रथा समाप्त हुई। इसकी समाप्ति का कारण था कि मानवों में स्वाधीनता की चेतना जाग गई थी और वे पराधीनता के दुर्गुण समझने लगे थे। उन्होंने इस विषय में आन्दोलन किए और अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिये खुन की क्रान्तियाँ भी हुईं। इस विषय में प्राचीन राजसत्ता की चर्चा भी की जा सकती है। राजतंत्र में सामान्यत: शासक के विपरीत कुछ भी कहने की स्वतन्त्रता नहीं होती है। उसे भी एक प्रकार की पराधीनता ही समझना चाहिए।

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