विश्व के प्रायः सभी धर्मों में अहिंसा के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। भारत के सनातन हिंदू धर्म और जैन धर्म के सभी ग्रन्थों में अहिंसा की विशेष प्रशंसा की गई है। ‘अष्टांग योग’ के प्रवर्तक पतंजलि ऋषि ने योग ने योग के आठों अंगों में प्रथम अंग ‘यम’ के अंतर्गत ‘अहिंसा’ को प्रथम स्थान दिया है। इसी प्रकार ‘गीता’ में भी अहिंसा के महत्व पर जगह-जगह प्रकाश डाला गया है। भगवान महावीर ने अपनी शिक्षाओं का मूलाधार अहिंसा को बताते हुए ‘जियो और जीने दो’ की बात कही है। अहिंसा मात्र हिंसा का अभाव ही नहीं, अपितु किसी भी जीव का संकल्पपूर्वक वध नहीं करना और किसी जीव या प्राणी को अकारण दुःख नहीं पहुँचाना है। ऐसी जीवन-शैली अपनाने का नाम ही ‘अहिंसात्मक जीवन-शैली’ है। अकारण या बात बात में क्रोध आ जाना हिंसा की प्रवृत्ति का एक प्रारंभिक रूप है। क्रोध मनुष्य को अंधा बना देता है; वह उसकी बुद्धि का नाश कर उसे अनुचित कार्य करने को प्रेरित करता है, परिणामतः दूसरी को दु:ख और पीड़ा पहुँचने का कारण बनता है। सभी प्राणी मेरे लिए मित्रवत् हैं। मेरा किसी से भी बैर नहीं है, ऐसा भावना होने पर अहं जनित क्रोध समाप्त हो जएगा और हमारे मना में क्षमा का भाव पैदा होगा। क्षमा का यह उदात्त भाव हमें हमारे पिरवार से सामंजस्य करने व पारस्परिक प्रेम को बढ़ावा देने में अहम् भूमिका निभाता है। हमें ईर्ष्या तथा द्वेष रहित होकर लोभवृत्ति का त्याग करते हुए संयमित खान-पान तथा व्यवहार एवं क्षमा की भावना को जीवन में उचित स्थान देते हुए अहिंसा का एक ऐसा जीवन जीना है कि हमारी जीवन-शैली एक अनुकरणीय आदर्श बन जाए।
भारतीय धर्मों में अहिंसा का क्या महत्व बताया गया है? (2)
अहिंसात्मक जीवन-शैली से लेखक का क्या अभिप्राय है? (2)
क्रोध का मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? (1)
क्षमा का भाव पारिवारिक जीवन में क्या परिवर्तन ला सकता है? (1)
‘इक’ प्रत्यय से बने दो शब्द गद्यांश से ढूँढ़कर लिखिए। (1)
गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए। (1)
Posted by Manish R K
4 years, 1 month ago
Janhavi Das 4 years, 1 month ago
10Thank You