इस पूरे प्रसंग में व्यंग का …

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Posted by Mrinalini Pandey 5 years, 1 month ago
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Mrinalini Pandey 5 years, 1 month ago
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Gaurav Seth 5 years, 1 month ago
तुलसी दास हिंदी के श्रेष्ठतम भक्त कवियों में से एक है जिन्होंने गंभीरतम दार्शनिक काव्य लिखने के साथ-साथ व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य भी प्रस्तुत किया है। इस प्रसंग में लक्ष्मण ने मुनि परशुराम की करनी और कथनी पर कटाक्ष करते हुए व्यंग्य की सहज-सुंदर अभिव्यक्ति की है। लक्ष्मण ने शिवजी के धनुष को धनुही कह कर परशुराम के अहं को चुनौती दी थी। उन्होंने व्यंग्य भरी वाणी में कहा था-
(i) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू।।
(ii) इहां कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मारि जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
लक्ष्मण ने व्यंग्य करते हुए परशुराम से कहा था कि उन्हें जो चाहे कह देना चाहिए। क्रोध रोक कर असहय दुःख नहीं सहना चाहिए। परशुराम तो मानो काल को हाँक लगा कर बार-बार बुलाते थे। भला इस संसार में कौन ऐसा था जा उनके शील को नहीं जानता था। वे तो संसार में प्रसिद थे। वे अपने माता-पिता के ऋण से मुक्ता हो चुके थे तो उन्हें अपने गुरु के ऋण से भी मुक्त हो जाना चाहिए था।
सो जनु हमरेहि माथें काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा।
अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली।।
वास्तव मे लक्ष्मण ने परशुराम के स्वभाव और उनके कथन के ढंग पर व्यंग्य कर अनूठे सौंदर्य की प्रस्तुति की ।
1Thank You