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Posted by Nisha Gupta 4 years, 1 month ago
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Gaurav Seth 4 years, 1 month ago
शॉक थेरेपी: साम्यवाद के पतन के बाद पूर्व सोवियत संघ के गणराज्य एक सत्तावादी, समाजवादी व्यवस्था से लोकतांत्रिक पूँजीवादी व्यवस्था तक के कष्टप्रद संक्रमण से होकर गुजरे। रूस, मध्य एशिया के गणराज्य और पूर्वी यूरोप के देशों में पूँजीवाद की ओर संक्रमण का एक खास मॉडल अपनाया गया। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित इस मॉडल को 'शॉक थेरेपी' (आघात पहुँचाकर उपचार करना) कहा गया।
'शक थेरेपी ' की सर्वोपरि मान्यता थी कि मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व होगा। इसके अंतर्गत राज्य की संपदा के निजीकरण और व्यावसायिक स्वामित्व के ढाँचे को तुरंत अपनाने की बात शामिल थी। सामूहिक 'फार्म' को निजी 'फार्म' में बदला गया और पूँजीवादी पद्धति से खेती शुरू हुई। इस संक्रमण में राज्य नियंत्रित समाजवाद या पूँजीवाद के अतिरिक्त किसी भी वैकल्पिक व्यवस्था या 'तीसरे रुख' को मंजूर नहीं किया गया।
1990 में अपनायी गई 'शॉक थेरेपी' जनता को उपभोग के उस 'आनंदलोक' तक नहीं ले गई जिसका उसने वादा किया था। अमूमन 'शक थेरेपी' से पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई और इस क्षेत्र की जनता को बर्बादी की मार झेलनी पड़ी। लगभग 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों या कंपनियों को बेचा गया जिससे रुसी मुद्रा में नाटकीय ढंग से गिरावट आई जिसके कारण वहाँ लोगो की जमा पूंजी भी चली गई।
समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था को क्रम से नष्ट किया गया। सरकारी रियायतों के खात्मे के कारण ज्यादातर लोग गरीबी में पड़ गए। मध्य वर्ग समाज के हाशिए पर आ गया तथा कई देशों में एक 'माफिया वर्ग ' उभरा और उसने अधिकतर आर्थिक गतिविधियों को अपने नियंत्रण में ले लिया।
उपरोक्त वर्णन के आधार पर यह कहा जा सकता हैं कि ('शॉक थेरेपी') समाजवाद से पूँजीवाद की तरफ संक्रमण का यह तरीका उचित नहीं था। क्योंकि पूँजीवाद सुधार एकदम किए जाने की अपेक्षा धीरे- धीरे किए जाने चाहिए थे।
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