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Posted by Prince Kumar 5 years, 1 month ago
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Gaurav Seth 5 years, 1 month ago
जर्मनी में ऐसे कई राजनैतिक गठबंधन थे जिनके सदस्य मध्यम वर्गीय पेशेवर, व्यापारी और धनी कलाकार हुआ करते थे। वे फ्रैंकफर्ट शहर में एकत्रित हुए और एक सकल जर्मन एसेंबली के लिए वोट करने का फैसला किया। 18 मई 1848 को 831 चुने हुए प्रतिनिधियों ने जश्न मनाते हुए एक जुलूस निकाला और फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट को चल पड़े जिसका आयोजन सेंट पॉल के चर्च में किया गया था। उन्होंने एक जर्मन राष्ट्र का संविधान तैयार किया। उस राष्ट्र की कमान कोई राजपरिवार का आदमी करता जो पार्लियामेंट को जवाबदेह होता। इन शर्तों पर प्रसिया के राजा फ्रेडरिक विलहेम (चतुर्थ) को वहाँ का शासन सौंपने की पेशकश की गई। लेकिन उसने इस अनुरोध को ठुकरा दिया और उस चुनी हुई संसद का विरोध करने के लिए अन्य राजाओं से हाथ मिला लिया।
अभिजात वर्ग और सेना द्वारा पार्लियामेंट का विरोध बढ़ता ही गया। इस बीच पार्लियामेंट का सामाजिक आधार कमजोर पड़ने लगा क्योंकि उसमें मध्यम वर्ग का दबदबा था। मध्यम वर्ग मजदूरों और कारीगरों की माँग का विरोध करता था और इसलिए उसे उनके समर्थन से हाथ धोना पड़ा। आखिरकार सेना बुलाई गई और इस तरह से एसेंबली को समाप्त कर दिया गया।
<hr />उदारवादी आंदोलन में महिलाओं ने भी भारी संख्या में हिस्सा लिया। इसके बावजूद, एसेंबली के चुनाव में उन्हें मताधिकार से मरहूम किया गया। जब सेंट पॉल के चर्च में फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट बुलाई गई तो महिलाओं को केवल दर्शक दीर्घा में बैठने की अनुमति मिली।
हालाँकि रुढ़िवादी ताकतों द्वारा उदारवादी आंदोलन को कुचल दिया गया लेकिन पुरानी व्यवस्था को दोबारा बहाल नहीं किया जा सका। 1848 के कई वर्षों के बाद राजा को यह अहसास होने लगा कि आंदोलन और दमन के उस कुचक्र को समाप्त करने का अगर कोई तरीका था तो वह था राष्ट्रवादी आंदोलनकारियों की मांगों को मान लेना। इसलिए मध्य और पूर्वी यूरोप के राजाओं ने उन बदलावों को अपनाना शुरु कर दिया जो पश्चिमी यूरोप में 1815 से पहले ही हो चुके थे।
हैब्सबर्ग के उपनिवेशों और रूस में दास प्रथा और बंधुआ मजदूरी को समाप्त किया गया। 1867 में हैब्सबर्ग के शासकों ने हंगरी को अधिक स्वायत्तता प्रदान की।
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