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What is a difference between samyawaad and punjiwaad
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Gaurav Seth 5 years, 4 months ago

पूँजीवाद-
पूँजीवाद क्या है इसको समझने के लिए इसकी परिभाषा समझना ज्यादा जरूरी है-
“पूंजीवाद एक सामाजिक व्यवस्था है, तथा यह व्यक्तिगत अधिकारों के सिद्धांत पर आधारित है। पूँजीवाद राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में आर्थिक स्वतंत्रता की बात करता है। यह पूर्णरूप से वस्तुनिष्ठ नियमों की बात करता है। पूँजीवाद एक खुले बाज़ार की बात करता है।”
पूँजीवाद को निम्नलिखित बिन्दुओं से समझा जा सकता है-
(i) पूंजीवादी विचारधारा में हम यह पाते हैं कि यहाँ पूंजीपति अपना धन व्यय करता है जिससे वह और अधिक धन बना सके।
(ii) पूंजीवादी विचारधारा में संपत्ति को विभिन्न प्रकार से संस्थाओं और तंत्रों के उपयोग से पूँजी या फायदे में परिवर्तित किया जाता है।
(iii) मजदूरी पूँजीवाद में एक अहम भूमिका का निर्वहन करती है। इसी के सहारे कई बड़े उद्योग कार्य करते हैं।
(iv) आधुनिक बाजार पूंजीवादी विचारधारा के आधार पर ही कार्य करता है।
(v) निजी संपत्ति और विरासत की व्यवस्था पूँजीवाद में दिखाई देती है। इसमें विरासत के रूप में संपत्ति एक से दूसरे तक जाती है।
(vi) पूंजीवादी विचारधारा में अनुबंध, आर्थिक स्वतंत्रता, किसी भी निर्णय को लेने व संपत्ति के मन मुताबिक़ प्रयोग की स्वतंत्रता पायी जाती है।
(vii) इस व्यवस्था में समस्त क्रेता, विक्रेता अपने हित के लिए कार्य करते हैं तथा इस व्यवस्था में प्रतियोगिता को देखा जाता है।
(viii) इस व्यवस्था में सरकार का हस्तक्षेप बेहद ही कम होता है या यूँ कहें कि न के बराबर होता है। इस प्रकार से हम देखते हैं कि इसमें बड़े पैमाने पर मुनाफा बनाने का अवसर मिलता है।

 

 साम्यवाद-
साम्यवाद ने समय के साथ कई परिवर्तनों को देखा है जिनके अनुसार इसमें कई बदलाव आये। आधुनिक काल में साम्यवाद, साम्यवादी आन्दोलन एवं साम्यवादी दलों का आधार मार्क्सवाद है। कार्ल मार्क्स और अन्य लेखकों के द्वारा लिखे तथ्यों के आधार पर यह व्यवस्था कार्यरत है।
साम्यवाद का असर 20वीं शताब्दी में सबसे अधिक देखने को मिला था जब दुनिया भर के कई देश इस व्यवस्था को अपना चुके थे। इन देशों में रूस, चीन, भारत व अन्य कई देश थे। आज भी भारत में कई स्थान पर इस व्यवस्था से प्रेरित राजनैतिक पार्टियों के वर्चस्व को देखा जा सकता है। इस विचारधारा के अनुसार समाज में व्याप्त असमानता पूंजीवादी व्यवस्था के कारण है और जब तक पूँजीवाद का बोलबाला रहेगा तब तक ये असमानता कभी कम नहीं हो सकती। इसके अनुसार समाज में दो प्रमुख वर्ग हैं 1- पूंजीपति और 2- शोषित या इनको बुर्जुआ और सर्वहारा वर्ग के रूप में भी माना जाता है। इसके अनुसार पूंजीपति सदैव शोषित वर्ग का शोषण करता है। यह तानाशाही पर भी भरोसा करता है जहाँ पर शोषित वर्ग कुलीन वर्ग को दबा कर अपने को स्वतंत्र करता है।
इस प्रकार से साम्यवाद को समझा जा सकता है। चीन और रूस साम्यवाद के बड़े उदाहरण हैं। साम्यवाद में भी कई प्रकार की कुरीतियाँ हैं तथा यह हिंसा के मार्ग को भी प्रशस्त करती है, इसकी मूल भावना यही है कि किसी भी प्रकार से कोई भी समाज कुपोषित न हो। भारत में केरल, बंगाल आदि में अभी भी साम्यवाद की विचारधारा अपनी एक अलग मिसाल के रूप में कार्यरत है।

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