गंगा व यमुना के दक्षिण उभरता हुआ विशाल भूखंड भारत का प्रायद्वीपीय पठार कहलाता है। जिसका आकर मोटे तौर पर त्रिभुजाकार है। इसका आधार गंगा की घाटी है तथा शीर्ष सुदूर दक्षिण कन्याकुमारी में स्थित है। दक्कन का पठार एक लावा पठार का उदाहरण है।जो ज्वालामुखी उद्गार की अंतिम चरण में निःसृत लावा के फैलने से बना है। यह प्राचीन गोंडवाना प्लेट का हिस्सा जो कालांतर में अलग होकर वर्तमान रूप को प्राप्त किया है।
पश्चिमी घाट इसकी पश्चिमी सिमा,पूर्वी घाट इसकी पूर्वी सीमा तथा सतपुरा, मैकाल रेंज व महादेव की पहाड़ियां इसकी उत्तरी सीमा का निर्धारण करती है। पश्चिमी घाट को स्थानीय रूप में कई नामों से जाना जाता है, जैसे-महाराष्ट्र में सहाद्रि, कर्नाटक में नीलगिरि, तमिलनाडु में अन्नामलाई व केरल में इलाइची की पहाड़ियां। पश्चिमी घाट पूर्वी घाट की तुलना में अधिक ऊँचा है तथा लगातार अखंडित अवस्था में फैला है। जबकि पूर्वी घाट अपरदन के कारण कई जगहों पर कटाफटा है। पश्चिमी घाट की औसत उंचाई लगभग 1,500 मीटर है,जो दक्षिण की ओर बढ़ती चली जाती है। अन्नाईमुड़ी (2,695 मी०) प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊची चोटी है जो अन्नामलाई पहाड़ी पर स्थित है। दूसरा डोडाबेटा (2,637मी) जो नीलगिरि की पहाड़ी पर स्थित है।
प्रायद्वीपीय पठार की अधिकांश नदियों का उद्गम पश्चिमी घाट से होता है।पूर्वी घाट कई स्थानों पर कटा हुआ है। जहां अपरदन की शिकार चोटियां कम ऊची है तथा लगभग सभी नदियों का प्रवाह मार्ग होने के कारण इस क्षेत्र का व्यापक कटाव हुआ है, जिनमें महानदी,गोदावरी,कृष्णा,कावेरी आदि का अपरदन कार्य प्रमुख है। पूर्वी घाट में जवादि हिल्स,पलकोंडा रेंज,मल्यागिरि रेंज आदि स्थित है। पश्चिमी व पूर्वी घाट का मिलन बिंदु नीलगिरि की पहाड़ियां है।
दक्कन पठार का उच्चभूमि क्षेत्र एक ओर अरावली पर्वतमाला सीमा का निर्धारण करती है। इसी क्षेत्र में सतपुड़ा रेंज कई जगहों पर कटाफटा है जहां की उंचाई 600-900 मीटर के बीच है।इसका शिखर अपरदित होकर छोटा हो चूका है।प्रायद्वीपीय पठार की पश्चिमी सीमा जैसलमेर तक फैला है।यह बालू प्रधान क्षेत्र है जहाँ शुष्क धरातलीय लक्षण मौजूद है। कई अर्धचंद्राकार बालू के टीले,कटकें आदि से ढंका है।यह पठार लंबे भू-गर्भिक इतिहास में अनेक कारकों से प्रभावित हुआ है।चट्टानें रूपांतरित होकर संगमरमर,नीस स्लेट आदि में मौजूद है।
सामान्यतः प्रायद्वीपीय पठार की उंचाई समुद्र तल से 7,00-1,000 मीटर के बीच है।इसका ढाल उत्तर व उत्तर-पूर्व की ओर है।यमुना की अधिकांश सहायक नदियों का उद्गम विन्ध्यन व कैमूर की पहाड़ियां है।चम्बल की सहायक बनास नदी का उद्गम अरावली का पश्चिमी भाग है।मध्यवर्ती उच्च भूमि का पूर्वर्ती विस्तार राजमहाल तक है जहां छोटानागपुर का पठार स्थित है जो अकूत खनिज सम्पदा से भरा है।
Gaurav Seth 4 years, 4 months ago
गंगा व यमुना के दक्षिण उभरता हुआ विशाल भूखंड भारत का प्रायद्वीपीय पठार कहलाता है। जिसका आकर मोटे तौर पर त्रिभुजाकार है। इसका आधार गंगा की घाटी है तथा शीर्ष सुदूर दक्षिण कन्याकुमारी में स्थित है। दक्कन का पठार एक लावा पठार का उदाहरण है।जो ज्वालामुखी उद्गार की अंतिम चरण में निःसृत लावा के फैलने से बना है। यह प्राचीन गोंडवाना प्लेट का हिस्सा जो कालांतर में अलग होकर वर्तमान रूप को प्राप्त किया है।
पश्चिमी घाट इसकी पश्चिमी सिमा,पूर्वी घाट इसकी पूर्वी सीमा तथा सतपुरा, मैकाल रेंज व महादेव की पहाड़ियां इसकी उत्तरी सीमा का निर्धारण करती है। पश्चिमी घाट को स्थानीय रूप में कई नामों से जाना जाता है, जैसे-महाराष्ट्र में सहाद्रि, कर्नाटक में नीलगिरि, तमिलनाडु में अन्नामलाई व केरल में इलाइची की पहाड़ियां। पश्चिमी घाट पूर्वी घाट की तुलना में अधिक ऊँचा है तथा लगातार अखंडित अवस्था में फैला है। जबकि पूर्वी घाट अपरदन के कारण कई जगहों पर कटाफटा है। पश्चिमी घाट की औसत उंचाई लगभग 1,500 मीटर है,जो दक्षिण की ओर बढ़ती चली जाती है। अन्नाईमुड़ी (2,695 मी०) प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊची चोटी है जो अन्नामलाई पहाड़ी पर स्थित है। दूसरा डोडाबेटा (2,637मी) जो नीलगिरि की पहाड़ी पर स्थित है।
प्रायद्वीपीय पठार की अधिकांश नदियों का उद्गम पश्चिमी घाट से होता है।पूर्वी घाट कई स्थानों पर कटा हुआ है। जहां अपरदन की शिकार चोटियां कम ऊची है तथा लगभग सभी नदियों का प्रवाह मार्ग होने के कारण इस क्षेत्र का व्यापक कटाव हुआ है, जिनमें महानदी,गोदावरी,कृष्णा,कावेरी आदि का अपरदन कार्य प्रमुख है। पूर्वी घाट में जवादि हिल्स,पलकोंडा रेंज,मल्यागिरि रेंज आदि स्थित है। पश्चिमी व पूर्वी घाट का मिलन बिंदु नीलगिरि की पहाड़ियां है।
दक्कन पठार का उच्चभूमि क्षेत्र एक ओर अरावली पर्वतमाला सीमा का निर्धारण करती है। इसी क्षेत्र में सतपुड़ा रेंज कई जगहों पर कटाफटा है जहां की उंचाई 600-900 मीटर के बीच है।इसका शिखर अपरदित होकर छोटा हो चूका है।प्रायद्वीपीय पठार की पश्चिमी सीमा जैसलमेर तक फैला है।यह बालू प्रधान क्षेत्र है जहाँ शुष्क धरातलीय लक्षण मौजूद है। कई अर्धचंद्राकार बालू के टीले,कटकें आदि से ढंका है।यह पठार लंबे भू-गर्भिक इतिहास में अनेक कारकों से प्रभावित हुआ है।चट्टानें रूपांतरित होकर संगमरमर,नीस स्लेट आदि में मौजूद है।
सामान्यतः प्रायद्वीपीय पठार की उंचाई समुद्र तल से 7,00-1,000 मीटर के बीच है।इसका ढाल उत्तर व उत्तर-पूर्व की ओर है।यमुना की अधिकांश सहायक नदियों का उद्गम विन्ध्यन व कैमूर की पहाड़ियां है।चम्बल की सहायक बनास नदी का उद्गम अरावली का पश्चिमी भाग है।मध्यवर्ती उच्च भूमि का पूर्वर्ती विस्तार राजमहाल तक है जहां छोटानागपुर का पठार स्थित है जो अकूत खनिज सम्पदा से भरा है।
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