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How many types of स्वर संधी: are there in sanskrit
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Gaurav Seth 5 years, 5 months ago

स्वर संधि की परिभाषा

दो स्वरों के आपस में मिलने से जो विकार या परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं, जैसे-देव + इंद्र = देवेंद्र। अर्थात इसमें दो स्वर ‘अ’ और ‘इ’ आस-पास हैं तथा इनके मेल से (अ + इ) ‘ए’ बन जाता है । इस प्रकार दो स्वर-ध्वनियों के मेल से एक अलग स्वर बन गया। इसी विकार को स्वर संधि कहते हैं। स्वर संधि को अच् संधि भी कहते हैं।

स्वर संधि के प्रकार (संस्कृत में) संस्कृत व्याकरण में आठ प्रकार की स्वर संधि का अध्ययन किया जाता है। जबकि हिन्दी व्याकरण में केवल पाँच प्रकार की संधि (दीर्घ संधि, गुण संधि, वृद्धि संधि, यण् संधि, अयादि संधि) का अध्ययन किया जाता है। संस्कृत व्याकरण की आठ प्रकार की संधि इस प्रकार हैं - दीर्घ संधि - अक: सवर्णे दीर्घ: गुण संधि - आद्गुण: वृद्धि संधि - ब्रध्दिरेचि यण् संधि - इकोऽयणचि अयादि संधि - एचोऽयवायाव: पूर्वरूप संधि - एडः पदान्तादति पररूप संधि - एडि पररूपम् प्रकृति भाव संधि - ईदूद्विवचनम् प्रग्रह्यम् संस्कृत में संधि के इतने व्यापक नियम हैं कि सारा का सारा वाक्य संधि करके एक शब्द स्वरुप में लिखा जा सकता है। उदाहरण - "ततस्तमुपकारकमाचार्यमालोक्येश्वरभावनायाह।" अर्थात् – ततः तम् उपकारकम् आचार्यम् आलोक्य ईश्वर-भावनया आह।

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