पूजा प्रणाली से आप या समझते …
CBSE, JEE, NEET, CUET
Question Bank, Mock Tests, Exam Papers
NCERT Solutions, Sample Papers, Notes, Videos
Posted by Dushyantsingh Mahecha 5 years, 2 months ago
- 2 answers
Gaurav Seth 5 years, 2 months ago
विभिन्न संप्रदायों-धार्मिक विश्वासों एवं आचरणों का समन्वय लगभग 8वीं-18वीं शताब्दी के काल की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी। संप्रदाय के समन्वय से इतिहासकारों का तात्पर्य है कि इस काल में विभिन्न पूजा-प्रणालियाँ समन्वय की ओर बढ़ने लगी थीं। इस काल के साहित्य एवं मूर्तिकला दोनों से ही अनेक प्रकार के देवी-देवताओं का परिचय मिलता है। विष्णु, शिव और देवी की विभिन्न रूपों में आराधना की परिपाटी न केवल प्रचलन में रही अपितु उसे और अधिक विस्तार एवं व्यापकता भी प्राप्त हुई। देश के विभिन्न भागों के स्थानीय देवताओं को विष्णु का रूप माना जाने लगा। “महान” संस्कृत पौराणिक परम्पराओं एवं “लघु” परम्पराओं के पारस्परिक सम्पर्क के परिणामस्वरूप सम्पूर्ण देश में अनेक धार्मिक विचारधाराओं तथा पद्धतियों का जन्म हुआ।
विद्वान इतिहासकारों का विचार है कि विचाराधीन काल में पूजा-प्रणालियाँ के समन्वय के आधार में प्रमुख रूप से दो प्रक्रियाएँ कार्यशील थीं। इनमें से एक प्रक्रिया ब्राह्मणीय विचारधारा के प्रचार से संबंधित थी। पौराणिक ग्रंथों की रचना, संकलन तथा परिरक्षण ने इसके प्रसार को प्रोत्साहित किया था। पौराणिक ग्रंथों की रचना सरल संस्कृत छन्दों में की गई थी, जिन्हें वैदिक विद्या से विहीन स्त्रियाँ और शूद्र भी समझ सकते थे। दूसरी प्रक्रिया का संबंध स्त्रियों, शूद्रों तथा अन्य सामाजिक वर्गों की आस्थाओं एवं आचरणों को ब्राह्मणों द्वारा स्वीकृत किए जाने तथा उन्हें एक नवीन रूप प्रदान किए जाने से था। समन्वय की इस प्रक्रिया का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उदाहरण आधुनिक उड़ीसा राज्य में स्थित ‘पुरी’ में मिलता है।
बारहवीं शताब्दी तक पहुँचते-पहुँचते यहाँ के प्रमुख देवता जगन्नाथ (इसका शाब्दिक अर्थ है-संपूर्ण विश्व का स्वामी) को विष्णु का एक रूप मान लिया गया था। यह और बात है कि विष्णु के उड़ीसा में प्रचलित रूप तथा देश के अन्य भागों से मिलने वाले स्वरूपों में अनेक भिन्नताएँ देखने को मिलती हैं। देवी संप्रदायों में भी समन्वय के ऐसे अनेक उदाहरण उपलब्ध होते हैं। सामान्य रूप से देवी की पूजा-आराधना सिंदूर से पोते गए पत्थर के रूप में ही किए जाने का प्रचलन था। पौराणिक परम्परा के अंतर्गत इन स्थानीय देवियों को मुख्य देवताओं की पत्नियों के रूप में मान्यता प्रदान कर दी गई। कभी उन्होंने लक्ष्मी के रूप में विष्णु की पत्नी का स्थान प्राप्त किया तो कभी पार्वती के रूप में शिव की पत्नी को।
Related Questions
Posted by Anoop Kumar 1 year, 1 month ago
- 0 answers
Posted by Sameeen Khan 1 year, 4 months ago
- 0 answers
Posted by Farhan Akhtar 1 year, 8 months ago
- 0 answers
Posted by Rahul Kashyap 1 year, 4 months ago
- 1 answers
Posted by Kartik Shukla 1 year, 7 months ago
- 4 answers
Posted by Nishant Tomar 1 year, 5 months ago
- 0 answers
Posted by Nishant Tomar 1 year, 5 months ago
- 1 answers
myCBSEguide
Trusted by 1 Crore+ Students
Test Generator
Create papers online. It's FREE.
CUET Mock Tests
75,000+ questions to practice only on myCBSEguide app
Tejaram Rathore 5 years, 2 months ago
0Thank You