1857 ka vidroh kaha hua

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Posted by Naziya Ansari 6 years ago
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Sia ? 6 years ago
1857 का विद्रोह:
भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना के साथ ही उसका विरोध शुरू हो गया था। शायद ही ऐसा कोई साल बीता हो जब देश की जनता ने कंपनी और अंग्रेजों का विरोध नहीं किया हो। बंगाल में संन्यासी विद्रोह, खानदेश (गुजरात) में किसान असंतोष तथा कोल, मुंडा, खासी, गोंड, हलबा आदि जनजाति समूहों के द्वारा सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से अंग्रेजों के लिए दिक्कतें पैदा की गईं। परंतु ये सभी विरोध स्थानीय किस्म के थे तथा अंग्रेजों के लिए किसी खास परेशानी का कारण नहीं बन पाए। परंतु 1857 में पहली बार भारत की जनता के विभिन्न वर्गों या समूहों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ एक व्यापक विद्रोह किया गया जो प्रादेशिक विस्तार तथा प्रभाव में कहीं बड़ा था।
भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना के साथ ही उसका विरोध शुरू हो गया था। शायद ही ऐसा कोई साल बीता हो जब देश की जनता ने कंपनी और अंग्रेजों का विरोध नहीं किया हो। बंगाल में संन्यासी विद्रोह, खानदेश (गुजरात) में किसान असंतोष तथा कोल, मुंडा, खासी, गोंड, हलबा आदि जनजाति समूहों के द्वारा सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से अंग्रेजों के लिए दिक्कतें पैदा की गईं। परंतु ये सभी विरोध स्थानीय किस्म के थे तथा अंग्रेजों के लिए किसी खास परेशानी का कारण नहीं बन पाए। परंतु 1857 में पहली बार भारत की जनता के विभिन्न वर्गों या समूहों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ एक व्यापक विद्रोह किया गया जो प्रादेशिक विस्तार तथा प्रभाव में कहीं बड़ा था।
विद्रोह के कारण
- राजनीतिक कारण:
ईस्ट इंडिया कंपनी की विस्तारवादी नीति के कारण, विशेषकर डलहौजी के विलय के सिद्धांत (Doctrine of lapse) के कारण पूरे भारत में संदेह, चिंता और विद्रोह का वातावरण पैदा हो गया था। पंजाब,बर्मा और सिक्किम विजय के द्वारा मिला लिए गए। सतारा ,जौनपुर संबलपुर, बघाट ,झांसी और नागपुर डलहौजी की विलय नीति के अंतर्गत कंपनी के राज्यक्षेत्र में मिला लिए गए, जबकि अवध पर कुशासन का आरोप लगाकर विलय किया गया। - प्रशासनिक एवं आर्थिक कारण:
रियासतों के विलय के कारण सामंती वर्ग अधिकारों से वंचित हो गया था। नये तरह की प्रशासनिक व्यवस्था में उनके लिए कोई जगह नहीं थी। सेना और प्रशासन में कोई भी भारतीय उच्च पद पर नहीं जा सकता था।
भूमिकर व्यवस्था से किसान, रैयत और पारंपरिक जमींदार सभी असंतुष्ट थे। अनेक स्तरों पर बिचौलियों पर आधारित स्थायी बंदोबस्त में परंपरागत जमींदारों का स्थान नये जमींदारों ने ले लिया जिनका रैयत से कोई लगाव नहीं होता था। लगान की दर बहुत ऊंची होती थी तथा कड़ाई से वसूली होती थी। - सामाजिक एवं धार्मिक कारण:
अंग्रेजों ने सती प्रथा, कन्यावध, बाल विवाह आदि के विरुद्ध कानून बनाए। ईसाई मिशनरियों के धर्म परिवर्तन संबंधी उत्साह के कारण भी लोगों को संदेह हुआ कि अंग्रेज उन्हें ईसाई बनाना चाहते हैं। इससे शिक्षित मध्यम वर्ग छोड़ कर शेष भारतीय रूष्ट हो गये। - सैनिक कारण:
सैनिकों का वेतन बहुत कम था, पदोन्नति के अवसर बहुत ही सीमित थे, कोई भी भारतीय अधिक से अधिक सूबेदार रैंक तक पहुंच पाता था। सेना के अधिकारी यूरोपीय होते जो सैनिकों से प्रजातीय भेदभाव तथा अपमान जनक व्यवहार करते थे। 1854 में सैनिकों को दी जाने वाली नि:शुल्क डाक की सुविधा समाप्त कर दी गई। 1856 में सामान्य सेना भर्ती अधिनियम द्वारा सैनिकों को कहीं भी सेवा देना आवश्यक बना दिया गया तथा देश से बाहर जाने पर भी अतिरिक्त भत्ता दिया जाना बंद कर दिया गया।
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Sagar Sonkar 5 years, 11 months ago
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