France revolution in hindi language
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Posted by Amit Rathore 5 years, 11 months ago
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Posted by Prabhat Patel 1 year, 9 months ago
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Sia ? 5 years, 11 months ago
18वीं शताब्दी के 70-80 के दशकों में विभिन्न कारणों से राजा और तत्कालीन राजव्यवस्था के प्रति फ्रांस के नागरिकों में विद्रोह की भावना पनप रही थी। यह विरोध धीरे-धीरे तीव्र होता चला गया। अंततोगत्वा 1789 में राजा लुई 16वाँ (Louis XVI) को एक सभा बुलानी पड़ी। इस सभा का नाम General State था। यह सभा कई वर्षों से बुलाई नहीं गयी थी। इसमें सामंतों के अतिरिक्त सामान्य वर्ग के भी प्रतिनिधि होते थे। इस सभा में जनता की माँगों पर जोरदार बहस हुई। स्पष्ट हो गया कि लोगों में व्यवस्था की बदलने की बैचैनी थी। इसी बैचैनी का यह परिणाम हुआ कि इस सभा के आयोजन के कुछ ही दिनों के बाद सामान्य नागरिकों का एक जुलूस बास्तिल नामक जेल पहुँच गया और उसके दरवाजे तोड़ डाले गए। सभी कैदी बाहर निकल गए। सच पूंछे तो नागरिक इस जेल को जनता के दमन का प्रतीक मानते थे। कुछ दिनों के बाद महिलाओं का एक दल राजा के वर्साय स्थित दरबार को घेरने निकल गया जिसके फलस्वरूप राजा को पेरिस चले जाना पड़ा। इसी बीच General State ने कई क्रांतिकारी कदम भी उठाना शुरू किए। यथा – मानव के अधिकारों की घोषणा, मेट्रिक प्रणाली का आरम्भ, चर्च के प्रभाव का समापन, सामंतवाद की समाप्ति की घोषणा, दास प्रथा के अंत की घोषणा आदि। General State के सदस्यों में मतभेद भी हुए। कुछ लोग क्रांति के गति को धीमी रखना चाहते थे। कुछ अन्य प्रखर क्रान्ति के पोषक थे। इन लोगों में आपसी झगड़े भी होने लगे पर इनका नेतृत्व कट्टर क्रांतिकारियों के हाथ में रहा। बाद में इनके एक नेता Maximilian Robespierre हुआ जिसने हज़ारों को मौत के घाट उतार दिया। उसके एक वर्ष के नेतृत्व को आज भी आतंक का राज (Reign of terror) कहते हैं। इसकी परिणति स्वयं Louis 16th और उसकी रानी की हत्या से हुई। राजपरिवार के हत्या के पश्चात् यूरोप के अन्य राजाओं में क्रोध उत्पन्न हुआ और वे लोग संयुक्त सेना बना-बना कर क्रांतिकारियों के विरुद्ध लड़ने लगे। क्रांतिकारियों ने भी एक सेना बना ली जिसमें सामान्य वर्ग के लोग भी सम्मिलित हुए। क्रान्ति के नए-नए उत्साह के कारण क्रांतिकारियों की सेना बार-बार सफल हुई और उसका उत्साह बढ़ता चला गया। यह सेना फ्रांस के बाहर भी भूमि जीतने लगी। इसी बीच इस सेना का एक सेनापति जिसका नाम नेपोलियन बोनापार्ट था, अपनी विजयों के कारण बहुत लोकप्रिय हुआ। इधर फ्रांस के अन्दर कट्टर क्रांति से लोग ऊब चुके थे। इसका लाभ उठाते हुए और अपनी लोकप्रियता को भुनाते हुए नेपोलियन ने सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया और एक Consulate बना कर शासन चालने लगा। यह शासन क्रांतिकारी सिद्धांतों पर चलता रहा। अंततः नेपोलियन ने सम्राट की उपाधि अपने आप को प्रदान की और इस प्रकार फ्रांस में राजतंत्र दुबारा लौट आया।
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