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Mata ka anchal path ka mukhya bindu kya hai
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Gaurav Seth 6 years, 4 months ago

‘माता का अँचल’ नामक पाठ में लेखक माता-पिता के स्नेह और शरारतों से भरे अपने बचपन को याद करता है। उसका नाम तारकेश्वर था। पिता अपने साथ ही उसे सुलाते, सुबह उठाते और नहलाते थे। वे पूजा के समय उसे अपने पास बिठाकर शंकर जी जैसा तिलक लगाते और खुश कर देते थे। लेखक आईने में बड़े-बड़े बालों के साथ अपना तिलक लगा चेहरा देखता, तो पिता मुस्कुराने लगते और वह शरमा जाता था। पूजा के बाद पिता जी उसे कंधे पर बिठाकर गंगा में मछलियों को दाना खिलाने के लिए ले जाते थे और रामनाम लिखी पर्चियों में लिपटीं आटे की गोलियाँ गंगा में डालकर लौटते हुए उसे रास्ते में पड़ने वाले पेड़ों की डालों पर झुलाते। घर आकर जब वे उसे अपने साथ खाना खिलाते, तो माँ को कौर छोटे लगते। वे पक्षियों के नाम के निवाले ‘कौर’ बनाकर जब उनके उड़ने का डर बतातीं, तो वह उन्हें उड़ने से पहले ही खा लेता। खाना खाकर बाहर जाते हुए माँ उसे झपटकर पकड़ लेती थीं और रोते रहने के बाद भी बालों में तेल डाल कंघी कर देतीं। कुरता-टोपी पहनाकर चोटी में फूलदार लट्टू लगा देती थीं। बुरी नज़र से बचाने के लिए काजल की बिंदी लगातीं और पिता के पास छोड़ देती थीं। वहाँ खड़े अपने मित्रों को देख वह रोना भूल खेल में लग जाता था।

पिता जी उसको बहुत लाड़ करते। वे कभी उसके हाथों का चुम्मा लेते, कभी दाढ़ी-मूँछ गड़ाते। कुश्ती खेलते और बार-बार हार जाते। घर के सामने ही खेले जाने वाले मिठाई की दुकान के खेल में दो-चार गोरखपुरिए पैसे देकर शामिल हो जाते। घरौंदे के खेल में खाने वालों की पंक्ति में आखिरी में चुपके से बैठ जाने पर जब लोगों को खाने से पहले ही उठा दिया जाता, तो वे पूछते कि भोजन फिर कब मिलेगा। बरात के खेल में जब दुल्हन की विदाई होती, तो चूहेदानी की पालकी में पिता दुल्हन के मुख को कपड़ा हटाकर देखते और बच्चों को हँसाते। खेती के खेल में फसल आने पर पूछते कि खेती केसी रही। लेखक मित्रों के साथ आस-पास के छोटे-मोटे सामान को जुटाकर इतनी रुचि से खेलता कि उन खेलों को देखकर सभी खुश हो जाते। तिवारी के नाम के जान-पहचान वाले एक बूढ़े का मजाक उड़ाना और आँधी आने पर लोकगीत गाना लेखक व उसके मित्रों की आदत बन गई थी। एक बार तिवारी का मजाक उड़ाने पर अध्यापक ने लेखक की खूब पिटाई की। पिता ने बचाव कर उसे सांत्वना दी। पिता द्वारा घर ले आते समय मित्रों के मिलने पर वह सब भूल गया और खेतों में चिड़ियों को पकड़ने की कोशिश करने लगा। चिड़ियों के उड़ जाने पर जब एक टीले पर आगे बढ़कर चूहे के बिल में उसने आस-पास का भरा पानी डाला, तो उसमें से एक साँप निकल आया। डर के मारे लुढ़ककर गिरते-पड़ते हुए लेखक लहूलुहान स्थिति में जब घर पहुँचा, तो सामने पिता को बैठे देखा। पिता के साथ सदा अधिक समय बिताने के बाद भी उसे अंदर जाकर माँ से चिपटने में सुरक्षा महसूस हुई। माँ ने घबराते हुए भी अँचल से उसकी धूल साफ़ की और हल्दी लगाई। लेखक को तब माँ की ममता पिता के प्रेम से बढ़कर लगी।

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