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कोपरा क्या है

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कोपरा क्या है
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Aman Singh 2 years, 6 months ago

कोपरा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 (Copra) है। इसे भारतीय संसद ने 1986 में पारित किया था। COPRA( कोपरा) भारत में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए 1986 में अधिनियमित संसद का एक अधिनियम है।

इस उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Copra) को 24 दिसंबर, साल 1986 से पूरे भारत पर लागू किया गया।

धारा 1 : संक्षिप्त नाम, विस्तार, प्रारम्भ और लागू होना-

भारतीय संसद द्वारा विनियमित इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 है, जिसकी अधिकारिकता समस्त भारतवर्ष है। केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित तिथि के उपंरात यथा उपरोक्त यह अधिनियम सम्पूर्ण भारत वर्ष में प्रभावी है।

धारा 2 : परिभाषाएं- अधिनियम के अन्तर्गत निम्नवत परिभाषाएं उल्लेखित है :

1 समुचित प्रयोगशाला से अभिप्राय केन्द्रीय सरकार अथवा राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला से है।

2 शाखा कार्यालय का तात्पर्य विपरीत पक्ष द्वारा शाखा के रूप में वर्णित संस्थान से है।

3 परिवादी से तात्पर्य उपभोक्ता अथवा केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार से अभिप्रेत तथा समान हित वाले बहुसंख्यक उपभोक्ताओं में से एक या अधिक उपभोक्तागण से है। उपभोक्ता की मृत्यु की दशा में उसका कानूनी शिकायत करने व कोई अनुतोष प्राप्त करने की दृष्टि से लिखित में प्रस्तुत किया गया शिकायती पत्र, जो निम्नलिखित से सम्बधित होगा :

(अ) जब किसी व्यापारी अथवा सेवा प्रदाता द्वारा अनुचित व्यापारिक व्यवहार किया गया हों।

(ब) क्रय किये गये अथवा क्रय के लिए सहमत माल में त्रुटियां आना।

(स) क्र्रय किये गये पदार्थ अथवा भाड़ें पर लिये गई सेवाओं में किसी प्रकार की कमी।

(द) किसी व्यापारी अथवा सेवा प्रदाता द्वारा माल या सेवाओं में अधिक कीमत ली गई हो।

(ध) किसी भी माल अथवा पदार्थ का निर्धारित मानक के उल्लघंन की स्थिति में तथा जीवन और सुरक्षा के लिए परिसंकट में होने की स्थिति में जो जीवन और सुरक्षा के लिए हानिकारक है।

5 उपभोक्ता से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जिसने किसी भी वस्तु पदार्थ तथा सेवा को प्राप्त करने के लिए भुगतान किया हो अथवा अशतः भुगतान किया हो या भुगतान करने का वचन दिया हो। उपभोक्ता का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से भी है, जो सेवाओं का भाडे पर लेता है या उपयोग करता है। प्रतिबंध यह हैं कि वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए सेवाऐं लेनेवाला व्यक्ति उपभोक्ता की श्रेणी में नही आता है। किन्तु स्वनियोजन द्वारा अपनी जीविका उपार्जन के प्रयोजनों के लिए ली गई सेवाऐं अथवा क्र्रय कि गई वस्तुएं इससे भिन्न सम>ी जायेंगी।

6 त्रुटि से तात्पर्य गुणवत्ता, मात्र माप-तोल, शुद्धता अथवा मानक आदि में कोई दोष, कमी अथवा अपूर्णता आना है।

7 जिला पीठ से तात्पर्य जिला उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय से है।

8 सहकारी सोसायटी से तात्पर्य सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1860 के अधीन रजिस्टर्ड संस्था है।

9 सेवा से तात्पर्य प्रयोगकर्ता को उपलब्ध कराई गई सेवा तथा सुविधाओं का प्रबधं भी है। भुगतान करने पर प्राप्त होती है। किन्तु इसके अन्तर्गत निशुल्क अथवा व्यक्तिगत सेवाऐं नही आती।

10 अनुचित व्यापारिक व्यवहार किसी माल की बिक्री, प्रयोग या आपूर्ति अथवा सेवाओं को प्रदान करने में अनुचित आचरण एवं व्यवहार से है।

धारा 3- अधिनियम का किसी अन्य विधि के अल्पीकरण में न होना : तात्पर्य यह है इस अधिनियम की व्यवस्था वर्तमान में अन्य विधि की व्यवस्थाओं की अतिरिक्त व्यवस्था के रूप में होगें अर्थात सम्बंधित अधिनियमों में अनुुतोष उपलब्ध होने की स्थिति में भी इस अधिनियम की व्यवस्थाओं का उपयोग किया जा सकता है।

धारा 4- केन्द्रीय उपभोक्ता परिषद का गठन : अधिनियम की व्यवस्था के अनुसार उपभोक्ता मामलों के मंत्री की अध्यक्षता में एक केन्द्रीय परिषद का गठन किया जायेगा जिसमें सरकारी व गैर सरकारी सदस्य प्रतिनिधि होगें।

धारा 5- केन्द्रीय परिषद की प्रक्रिया : केन्द्रीय परिषद की बैठक वर्ष में कम से कम एक बार अवश्य होगी तथा अध्यक्ष के विवेकानुसार बैठक निर्धारित स्थान व समय पर निश्चित किये गये एजेंडे पर होगी।

धारा 6- केन्द्रीय परिषद के उद्धेश्य : (क) जीवन एवं सम्पति को हानि पहुँचाने वाले माल, पदार्थ एवं सेवाओं से सम्बंधित अधिकारों के प्रति सुरक्षा।

(ख) उपभोक्ताओं को पदार्थ की गुणवत्ता, मात्र, शुद्धता, मानक एवं मूल्य के प्रति संरक्षण सुनिश्चित करना तथा अनुचित व्यापारिक व्यवहार से सुरक्षा।

(ग) प्रतियोगी मूल्यों पर वस्तुओं को उपलब्ध कराने की व्यवस्था।

(घ) उचित फोरम पर उपभोक्ताओं के हितों का सरंक्षण।

(च) अनुचित व्यापारिक व्यवहार एवं उपभोक्ताओं के उत्पीडन से सम्बंधित प्रतितोष दिलाना।

धारा 7- राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद : प्रत्येक राज्य में उपभोक्ता मामलों के मंत्री की अध्यक्षता में एक राज्य कांउसिल का गठन किया जायेगा जिसमें परिषद राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार वर्ष में कम से कम दो बार अवश्य बैठक करेगी।

धारा 8- राज्य परिषद के उद्धेश्य - उपरोक्तलिखित केन्द्रीय परिषद की भांति राज्य परिषद का उद्धेश्य भी राज्य के क्षेत्र में उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण करना होगा।

धारा 8i - प्रत्येक जनपद में जिला कलेक्ट्रर की अध्यक्षता में परिषद का गठन राज्य सरकार द्वारा किया जायेगा जिसमें अन्य सरकारी एवं गैर सरकारी सदस्य होगें तथा परिषद की बैठक राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार होगी।

धारा 8ii - जिला उपभोक्ता परिषद के उद्धेश्य : केन्द्रीय एवं राज्य परिषद की भांति जनपद की सीमा क्षेत्र में उपभोक्ताओं के हितो का सरंक्षण, इस परिषद द्वारा सुनिशि्ंचत किया जायेगा।

धारा 9- जिला उपभोक्ता फोरम का गठन : प्रत्येक जनपद में राज्य सरकार द्वारा एक या अधिक जिला फोरम का गठन किया जायेगा।

धारा 10- जिला फोरम का स्वरूप : प्रत्येक जनपद में जिला जज की योग्यता रखने वाले व्यक्ति की अध्यक्षता में जिला फोरम का गठन किया जायेगा जिनमें अन्य दो सदस्य होगेंं और उनमें से एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य होगा। प्रत्येक सदस्य की नियुक्ति अध्यक्ष सहित पाँच वर्ष की अवधि के लिए की जायेगी।

धारा 11- जिला फोरम की अधिकारिता : अधिनियम की व्यवस्था के अनुसार जिला फोरम की जनपदीय सीमा अधिकारिता के अन्तर्गत उपभोक्ता द्वारा निम्न स्थितियों में शिकायत दर्ज कराई जा सकेगी-

(अ) विपक्षी अथवा विपक्षीगण शिकायत दर्ज कराने के समय उक्त जिला फोरम के सीमा क्षेत्र में निवास करते हों, उनका कार्यालय व्यापारिक संस्थान हो अथवा उसकी शाखा हो।

(ब) जहां पर एक से अधिक विपक्षी हों वहां पर उनमें से कोई एक उपरोक्तानुसार स्थित हों। (स) पूर्ण रूप अथवा आंशिक रूप से कार्य का कारण उत्पन्न होता हो।

यह उल्लेखनीय है कि शिकायतकर्ता के निवास स्थान के आधार पर अधिकारिकता नही बनती है और इस सम्बंध में कोई भ्रम नही रहना चाहिए।

धारा 12- शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया : किसी भी उपभोक्ता अथवा पंजीकृत उपभोक्ता संगठन द्वारा अथवा जहां पर अनेकों उपभोक्ताओं का समान हित सम्बद्ध हों, एक या एक से अधिक उपभोक्ता द्वारा अथवा केन्द्रीय एवं राज्य सरकार द्वारा शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। शिकायत के साथ शुल्क की राशि क्रमशः एक लाख पर सौ रूपये, पांच लाख तक की राशि पर दो सौ रूपये, दस लाख तक की धनराशि पर चार सौ रूपये तथा बीस लाख रूपये तक की धनराशि पर पांच सौ रूपये का बैंक ड्रा्ट अथवा पोस्टल आर्डर द्वारा जो अध्यक्ष जिला फोरम के नाम देय होगा, जमा करानी होगी। शिकायत सादे कागज पर विपक्षी गण के नाम व पते सहित शिकायत का विवरण देते हुए जो अनुतोष मांगा गया है उसके उल्लेख के साथ सम्बंधित साक्ष्य की फोटो प्रतियां संलग्न करके तीन प्रतियों में जिला फोरम में प्रस्तुत की जानी चाहिए। शिकायत के लिए वकील की अनिर्वायता नही है और शिकायत स्वयं अथवा अपने प्रतिनिधि द्वारा दर्ज कराई जा सकती है। प्रारम्भ में शिकायत को सुनवाई हेतु स्वीकार करने पर विचार किया जा सकेगा और 21 दिन की अवधि में इस सम्बध्ां में आदेश पारित किये जायेगें। कोई भी शिकायत बिना शिकायतकर्ता को सुनें अस्वीकृत नही की जायेगी।

धारा 13- शिकायत दर्ज होने के उपरांत की प्रक्रिया : शिकायत प्राप्त होने पर विपक्षी को शिकायत की प्रति भेजते हुए एक माह की अवधि में अपना उत्तर प्रस्तुत करने के निर्देश दिये जायेगें। इस अवधि में केेवल 15 दिन की सीमा और ब<ाई जा सकेगीं। दोनेा पक्षों को सुनवाई का समुचित अवसर देने के उपरांत जिला फोरम द्वारा शिकायत का निस्तारण यथासम्भव तीन माह की अवधि में किया जायेगा। यदि शिकायत के आधार पर किसी वस्तु पदार्थ या माल के तकनीकी अथवा लेबोरट्री परीक्षण की आवश्यकता अनुभव होती है तो सम्बंधित मान्यता प्राप्त लेबोरट्री को सम्बंधित वस्तु/पदार्थ भेजा जायेगा ऐसे मामलों में शिकायत का निस्तारण पांच महिने की अवधि में होगा तथा सामान्यतः शिकायत का निस्तारण तीन महिने में किये जाने की अधिनियम में व्यवस्था है।

भारत सरकार द्वारा तीस मई 2005 को निर्गत विनियमों के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि शिकायतों की सुनवाई में सामान्यतः स्थगन न दिया जाये तथा केवल अति आवश्यक मामलों में यदि स्थगन देना पडे तो द्वितीय पक्ष को व्यय के रूप में कम से कम 500 रू0 की धनराशि प्रति स्थगन दिलाने की अपेक्षा की गई है। इस प्रकार उपभोक्ता शिकायतों के त्वरित निस्तांरण के प्रति पर्याप्त बल दिया गया है।

धारा 14- इस धारा के अन्तर्गत जिला फोरम के निर्णय के स्वरूप एवं विवरण की व्याख्या की गई है। जिसके द्वारा त्रुटियों के निवारण, माल को बदलने, मूल्य की वापसी तथा क्षतिपूर्ति के भुगतान का विवरण दर्शाया गया है।

धारा 15- जिला फोरम के आदेश की तिथि से एक माह की अवधि में राज्य आयोग में प्रभावित पक्ष द्वारा अपील की जा सकेगी किन्तु आदेशित धनराशि का 50 प्रतिशत अथवा 25000/- की धनराशि जो भी कम हो जमा करनी होगी।

धारा 16- राज्य आयोगपीठ का गठन किया जा सकेगा जिसके अध्यक्ष उच्च न्यायालय सेवानिवृत्त जज होगें।

धारा 17- राज्य की सीमा की अधिकारिता के अन्तर्गत एक करोड की धनराशि तक की शिकायतें राज्य आयोग के समक्ष दर्ज कराई जा सकेगी।

धारा 18- राज्य आयोग द्वारा जिला फोरम की भांति, वादों का निस्तारण यथाविधि किया जायेगा।

धारा 19- राज्य आयोग द्वारा पारित आदेश के विरूद्ध अपील एक माह की अवधि में कि जा सकेगी किन्तु आदेशित धनराशि का 50 प्रतिशत भाग अथवा 35000/- जो भी कम हो, जमा करनी होगी।

धारा 20- राष्ट्रीय आयोगपीठ का गठन किया जायेगा, जिसके अध्यक्ष उच्च्तम न्यायालय के सेवानिर्वत्त न्यायाधीश होगें।

धारा 21- राष्ट्रीय आयोग की अधिकारिकता एक करोड से अधिक धनराशि की शिकायत होगी।

धारा 22- राज्य आयोग की भांति राष्ट्रीय आयोग की वादों निस्तारण की प्रक्रिया होगी। उपभोक्ता अदालतों के अध्यक्ष के अनुपस्थिति में वरिष्ठ सदस्य पीठ की अध्यक्षता का कार्य करेगें।

धारा 23- राष्ट्रीय आयोग के आदेश के विरूद्ध एक माह की अवधि में उच्चतम न्यायालय में अपील कि जा सकेगी किन्तु आदेशित धनराशि का 50 प्रतिशत अथवा 50000/- जो भी कम हो जमा कराने होगें।

धारा 24- अपील न होने की स्थिति में पारित आदेश अन्तिम होगा। कार्य के कारण प्रारम्भ होने के समय से दो वर्ष की अवधि में शिकायत दर्ज कराये जाने की समय सीमा निर्धारित है।

धारा 25- उपभोक्ता अदालत द्वारा पारित आदेश अनुपालन कराने की व्यवस्था : (अ) अन्तरित आदेशों के अनुपालन न होने पर सम्पति कुर्क किये जाने की व्यवस्था। (ब) आदेशित धनराशि की वसूली भू राजस्व की वसूली की भांति जिला कलेक्ट्रर द्वारा कराई जा सकेगी

धारा 26- भ्रामक व झूठे तथ्यों पर आधारित शिकायतों के प्रति दस हजार रू0 तक के अर्थदण्ड की व्यवस्था।

धारा 27- उपभोक्ता अदालतों के आदेशों के अनुपालन न करने पर एक माह से तीन वर्ष तक की अवधि के कारावास की व्यवस्था अथवा 2000 से 10000 तक के आर्थिक दंड की व्यवस्था है।

धारा 27ii - उपरोक्त के प्रति अपील एक माह की अवधि में केवल राज्य आयोग, राष्ट्रीय एवं सुप्रीम कोर्ट में की जा सकेगी।

धारा 28 - फोरम व उपभोक्ता न्यायालय किसी भी न्यायिक प्रक्रिया कि भांति व्यक्तिगत दायित्व से मुक्त होगा और जिला फोरम, राज्य आयोग एवं राष्ट्रीय आयोग के सदस्य के विरद्ध निर्णय सम्बंधी किसी भी कार्य एवं कृत्य के प्रति किसी प्रकार की वैधानिक कार्यवाही अथवा वाद दायर करना धारा 28 - फोरम व उपभोक्ता न्यायालय किसी भी न्यायिक प्रक्रिया कि भांति व्यक्तिगत दायित्व से मुक्त होगा और जिला फोरम, राज्य आयोग एवं राष्ट्रीय आयोग के सदस्य के विरद्ध निर्णय सम्बंधी किसी भी कार्य एवं कृत्य के प्रति किसी प्रकार की वैधानिक कार्यवाही अथवा वाद दायर करना वर्जित होगा।

धारा 29 : प्रश्नगत अधिनियम में प्रकियाओं के क्रियान्वन में आने वाली कठिनाइयोें को केन्द्रीय सरकार द्वारा दूर किया जा सकेगा।

धारा 30 : केन्द्रीय सरकार एवं राज्य सरकारें अधिनियम से सम्बंधित विनियमों का गठन अधिसूचना द्वारा कर सकेगें।

धारा 30iii - राष्ट्रीय आयोग केन्द्रीय सरकार की अनुमति से प्रश्नगत से सम्बंधित विनियमों का गठन अधिसूचना द्वारा कर सकेगा।

धारा 31 : इस अधिनियम से सम्बंधित नियम एवं विनियमों को संसद के समक्ष विचारार्थ रखा जायेगा।

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