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Line wise explanation of badal ko ghirte dekha hai of antra
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Rajnandani Verma 7 years, 9 months ago

बाबा नागार्जुन अपनी कविता 'बदल को घिरते देखा है' में प्रकृति का अतीव सुन्दर वर्णन करते हैं। \वे ऊँचे पर्वत शिखरों पर बादलों के उमड़ने को, वर्षा का बादलों से निकलकर स्वर्णिम कमलों पर गिरते हुए देखते हैं। हिमालय के अंचल मैं कई झीलें हैं और उन झीलों में वे गर्मी की उमस से संतप्त होकर आये हुए हंस देखते हैं जो कि साँपों को खोज रहे हैं। बसंत ऋतू की सुबह के समय मंद-मंद हवा बह रही है, सुबह के सूरज की किरणें पर्वत शिखरों को स्वर्णिम बनती है परन्तु इन शिखरों पर चकोर और चकोरी जो सदियों से शापित है, उन्हें सारी रात अलग अलग बितानी होती थी, मगर उनका क्रंदन बंद होता है और वे उन्हें मानसरोवर के किनारे शैवालों की हरी घास पर प्रेम-क्रीड़ा करते हुए देखते हैं। सैंकड़ों फुट ऊँची बर्फीली घाटियों में कस्तूरी मृग को अपनी ही नाभि से आने वाही खुशबू के पीछे भाग-भाग कर अपने पर चिढ़ते हुए देखते हैं। कहाँ गए वो कुबेर और कहाँ गयी उनकी अलका, और कालिदास के गंगाजल का कोई ठिकाना नहीं है। उनके मेघदून को बहुत ढूंढा, पता लगा क्या उसका! वह एक कवि कल्पना था जो यहीं पर बरस गया होगा। नागार्जुन आगे बताते हैं कि उन्होंने आकाश को छूने वाले शिखरों के शीर्ष पर महामेघ को तूफानी हवा से गरज गरज कर भिड़ते हुए देखा है। देवदार के घने वनों में भोजपत्रों से छायी हुई कुटी में सर्व सुसज्जित मदिरापान से लाल आँखों वाले किन्नर किन्नरियों की उँगलियों को वंशी पर फिरते देखा है बदल को घिरते देखा है।
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