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Ask QuestionPosted by Kuldeep Kumar 7 years, 11 months ago
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Posted by Pari Jain 7 years, 11 months ago
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🅿🅰🆆🅰🅽 . 7 years, 11 months ago
भक्तिन एक सीधी-साधी महिला थी। भक्तिन जिसका वास्तविक नाम लक्ष्मी था,लेखिका ‘महादेवी वर्मा’ की सेविका है। बचपन में ही भक्तिन की माँ की मृत्यु हो गयी। सौतेली माँ ने पाँच वर्ष की आयु में विवाह तथा नौ वर्ष की आयु में गौना कर भक्तिन को ससुराल भेज दिया। ससुराल में भक्तिन ने तीन बेटियों को जन्म दिया, जिस कारण उसे सास और जिठानियों की उपेक्षा सहनी पड़ती थी। सास और जिठानियाँ आराम फरमाती थी और भक्तिन तथा उसकी नन्हीं बेटियों को घर और खेतों का सारा काम करना पडता था। भक्तिन का पति उसे बहुत चाहता था। अपने पति के स्नेह के बल पर भक्तिन ने ससुराल वालों से अलगौझा कर अपना अलग घर बसा लिया और सुख से रहने लगी, पर भक्तिन का दुर्भाग्य, अल्पायु में ही उसके पति की मृत्यु हो गई। ससुराल वाले भक्तिन की दूसरी शादी कर उसे घर से निकालकर उसकी संपत्ति हड़पने की साजिश करने लगे। ऐसी परिस्थिति में भक्तिन ने अपने केश मुंडा लिए और संन्यासिन बन गई। भक्तिन स्वाभिमानी, संघर्षशील, कर्मठ और दृढ संकल्प वाली स्त्री है जो पितृसत्तात्मक मान्यताओं और छ्ल-कपट से भरे समाज में अपने और अपनी बेटियों के हक की लड़ाई लड़ती है।घर गृहस्थी सँभालने के लिए अपनी बड़ी बेटी दामाद को बुला लिया पर दुर्भाग्य ने यहाँ भी भक्तिन का पीछा नहीं छोड़ा, अचानक उसके दामाद की भी मृत्यु हो गयी। भक्तिन के जेठ-जिठौत ने साजिश रचकर भक्तिन की विधवा बेटी का विवाह जबरदस्ती अपने तीतरबाज साले से कर दिया। पंचायत द्वारा कराया गया यह संबंध दुखदायी रहा। दोनों माँ-बेटी का मन घर-गृहस्थी से उचट गया, निर्धनता आ गयी, लगान न चुका पाने के कारण जमींदार ने भक्तिन को दिन भर धूप में खड़ा रखा। अपमानित भक्तिन पैसा कमाने के लिए गाँव छोड़कर शहर आ जाती है और महादेवी की सेविका बन जाती है। भक्तिन के मन में महादेवी के प्रति बहुत आदर, समर्पण और अभिभावक के समान अधिकार भाव है। वह छाया के समान महादेवी के साथ रहती है। वह रात-रात भर जागकर चित्रकारी या लेखन जैसे कार्य में व्यस्त अपनी मालकिन की सेवा का अवसर ढूँढ लेती है। महादेवी, भक्तिन को नहीं बदल पायी पर भक्तिन ने महादेवी को बदल दिया। भक्तिन के हाथ का मोटा-देहाती खाना खाते-खाते महादेवी का स्वाद बदल गया, भक्तिन ने महादेवी को देहात के किस्से-कहानियाँ, किंवदंतियाँ कंठस्थ करा दी। स्वभाव से महाकंजूस होने पर भी भक्तिन, पाई-पाई कर जोडी हुई १०५ रुपयों की राशि को सहर्ष महादेवी को समर्पित कर देती है। जेल के नाम से थर-थर काँपने वाली भक्तिन अपनी मालकिन के साथ जेल जाने के लिए बड़े लाट साहब तक से लड़ने को भी तैयार हो जाती है। भक्तिन, महादेवी के जीवन पर छा जाने वाली एक ऐसी सेविका है जिसे लेखिका नहीं खोना चाहती।
Posted by Arvind Lahan 7 years, 11 months ago
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🅿🅰🆆🅰🅽 . 7 years, 11 months ago
रेडियों- रेडियों जनसंचार का श्रव्य माध्यम है जो सर्वाधिक लोकप्रिय है। 1895 में इटली के जी. मार्कोनी ने वायरलैस की खोज की और उसी का रुपान्तर रेडियों है। 1921 में मुंबई में टाइम्स ऑफ इंडिया डाक तार विभाग की ओर से संगीत कार्यक्रम प्रसारित हुआ। 1936 में ऑल इण्डिया रेडियों की स्थापना हुई आज देश में 350 से अधिक निजी रेडियों स्टेशन का जाल बिछ गया है। इसका उपयोग मनोरंजन के साधन के रूप में किया जाता है तथा इससे हमें देश-दुनिया की तमाम खबरों को सुनने को मिलता है। रेडियों जनसंचार का अच्छा माध्यम है।
Posted by Ishita Saraf 7 years, 11 months ago
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Shazil Imam 7 years, 11 months ago
Posted by Devesh Kapse 7 years, 11 months ago
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Posted by Deepanshi P 7 years, 11 months ago
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🅿🅰🆆🅰🅽 . 7 years, 11 months ago
सुबह की सैर
सुबह की सैर का जीवन में बहुत बड़ा महत्त्व है। इसके बिना हमारा पूरा दिन खराब रहता है। सुबह की सैर अत्यंत आनंददायक कृत्य है। यह कार्यारंभ का सर्वश्रेस्ठ आयोजन है। यह प्रकृति से साक्षात्कार का एक सुंदर तरीका है। यह दिन भर तरोताजा रहने के लिए किया जाने वाला उत्तम उपाय है। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत अच्छा कार्य है। यह लोगों को चुस्त और तंदुरुस्त रखता है।
सुबह हवा में ताजगी होती है। प्रकृति नई अंगड़ाई लेती प्रतीत होती है। संसार रात भर के विश्राम के बाद नई ताजगी और उमंग से युक्त होता है। प्रात: कालीन किरणों में अद्भुत ऊर्जा होती है। बागों में कलियाँ खिलकर फूल का रूप धारण कर लेती हैं! घास पर ओस के ठंडे कण दिखाई देते हैं। प्रकृति के अनुपम रूप की शोभा देखते ही बनती है। हजारों लोग स्वास्थ्य लाभ के लिए निकल पड़ते हैं। किसान अपने खेतों की मेड़ों पर चहलकदमी करते हैं। कुछ लोग तालाब या बाग-बगीचे का चक्कर लगाते हैं। शहरों में भी अनेक पार्क हैं। यहाँ बच्चे, युवा और वृद्ध एक साथ सैर का आनंद उठाते हैं।
पर आलसी लोगों की बात अलग है। उन्हें सूर्योदय के समय जगने की आदत नहीं है। वे रात में देर से सोते हैं और आठ-नौ बजे तक ही उठ पाते हैं। उन्हें प्रात: काल की सैर के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं। जब उन्हें तरह-तरह की बीमारियाँ घेर लेती हैं, जब उन्हें मानसिक तनाव और परेशानियों का सामना करना पड़ता है तब उनकी नींद टूटती है। लेकिन जब जागो तभी सवेरा…..अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा इसलिए सुबह उठो, मुँह-हाथ धोओ और सैर पर निकल पड़ी। जरा सा चले नहीं कि आलस्य मिटा। थोड़ी ही देर में शरीर स्फूर्तिवान हो उठा।
कुछ रहस्य है सुबह जागने में जो शरीर की अनेक व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं। पेट साफ रहता है तो चित्त में भी प्रसन्नता आती है। सैर से भूख भी अच्छी लगती है। फेफड़ों में ताजी हवा का प्रवेश होता है। शरीर का अच्छा-खासा व्यायाम हो जाता है। दिन भर मन प्रसन्न रहता है, हर काम में आनंद आता है। काम करने में थकावट कम होती है। व्यक्ति की कार्यक्षमता बढ़ती है तो उसकी आमदनी में भी बढ़ोतरी होती है।
सुबह की सैर को निकले तो प्रकृति के नए-नए रूप के दर्शन हुए। चिड़ियों ने कलरव करते हुए लोगों का स्वागत किया। गर्मियों में ठंडी हवा के झोंकों से तन-मन पुलकित हो उठा। आसमान में उगते सूर्य को नमस्कार करके लोगों ने शक्ति के अजस्त्र श्रोत को धन्यवाद दिया। बाल अरुण को देखकर मन में उत्साह का संचार हुआ। बागों में पहुँचे तो फूलों पर मँडराती तितलियों के दर्शन हुए। कोयल ने मधुर तान छेड़ी तो कर्णप्रिय ध्वनि से मन गद्गद् होने लगा। कतारों में पेड़-पौधों को देखकर किसे हर्ष न हुआ होगा। हरी- भरी मखमली दूब पर पाँव रखकर किसने सुख न पाया होगा। फूलों की खुशबू से किसकी साँसों में ताजगी न आई होगी।
थोड़ा चले, थोड़ी दौड़ लगा ली। कुछ ने खुली जगह पर हल्की कसरत कर ली। पहलवानों ने मुगदर उठा लिया। बच्चों के हाथों में बड़ी सी गेंद थी। अतिवृद्ध लाठियों के सहारे पग बढ़ा रहे थे। खिलाड़ी पोशाकें पहने अपनी फिटनेस बढ़ाने में व्यस्त थे। कुछ स्थूलकाय लोगों ने अपना मोटापा घटाने की ठान ली थी। गृहणियों ने सोचा, दिन भर घर में ही रहना है कुछ देर सैर कर ली जाए। कुछ तो एक कदम आगे बढ्कर योगाभ्यास में संलग्न हो गए। प्रात: काल का हर कोई अपने – अपने ढंग से लाभ उठाने लगा।
सुबह की सैर जनसमुदाय के लिए वरदान है। यह सदा तंदुरुस्त रहने का रामबाण उपाय है। प्रात: काल सैर पर निकलना सभी उम्र के लोगों के लिए आवश्यक है। इसके बाद किसी अन्य प्रकार के व्यायाम की आवश्यकता नहीं रह जाती है। यह मनुष्य को प्रकृत्ति प्रेमी बनाने में बहुत योगदान देता है। इससे शरीर ही नहीं, शरीर में स्थित आत्मा भी प्रसन्न होती है। इससे हमारा दिन भी ख़ुशी-ख़ुशी व्यतीत होता है।
Posted by Anshika Gupta 7 years, 11 months ago
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Posted by Anshika Gupta 7 years, 11 months ago
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Posted by Sailja Dammani 7 years, 11 months ago
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Posted by Madhur Jain 7 years, 11 months ago
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Posted by Md Farhan 7 years, 11 months ago
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Luksh Kumar 7 years, 11 months ago
Posted by Khursheed Ali 7 years, 11 months ago
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Posted by Kanchan Nishad 7 years, 11 months ago
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Paakhi Ahlt 7 years, 11 months ago
Deepika Kashyap 7 years, 11 months ago
Posted by Awas Gurung 7 years, 11 months ago
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Posted by Bhuvi Barnwal 7 years, 11 months ago
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Posted by Kalash Maheshwari 8 years ago
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Posted by Anki Vi 8 years ago
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Posted by Ikrar Ikrar 8 years ago
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Posted by Shikha Singh 8 years ago
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Mohan Jha 8 years ago
Posted by Shikha Singh 8 years ago
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Suresh Kumar 8 years ago
Posted by Vaibhav Kumar 8 years ago
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Posted by Akhil Rajput 8 years ago
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Himanshu Baurasi 8 years ago
Posted by Nishchay Giri 8 years ago
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Posted by Prakhar Srivastava 8 years ago
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Posted by Sayma Khatoon 8 years ago
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