Ask questions which are clear, concise and easy to understand.
Ask QuestionPosted by Sunita Rani 3 years, 10 months ago
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Posted by Saurabh Ahirwar 3 years, 10 months ago
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Posted by Parshav Jain 3 years, 10 months ago
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Yogita Ingle 3 years, 10 months ago
वंशीधर का ऐसा करना उचित नहीं था। मैं अलोपीदीन के प्रति कृतज्ञता दिखाते हुए उन्हें नौकरी के लिए मना कर देता क्योंकि लोगों पर जुल्म करके कमाई हुई बेईमानी की कमाई की रखवाली करना मेरे आदर्शों के विरुद्ध है।
Posted by Tej Churendra 3 years, 10 months ago
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Posted by Baijnath Agrahari Baijnath Agrahari 3 years, 10 months ago
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Posted by Dhruv .. 3 years, 10 months ago
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⚡ S.S. ⚡ 3 years, 10 months ago
Posted by Hari Priya Hari Priya 3 years, 10 months ago
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Posted by Aditya Khatri 3 years, 10 months ago
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Posted by Pal Abhishek 3 years, 10 months ago
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Posted by Abhijeet Singh 3 years, 10 months ago
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Gaurav Seth 3 years, 10 months ago
कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है?
कबीर ने स्वयं को दीवाना इसलिए कहा है, क्योंकि वह निर्भय है। उसे किसी का कुछ भी कहना व्यापता नहीं है। वह ईश्वर के सच्चे स्वरूप को पहचानता है। वह ईश्वर का सच्चा भक्त है, अत: दीवाना है।
Posted by Shivaay Singh 3 years, 10 months ago
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Posted by Deepika Chitkar 3 years, 10 months ago
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Jaishree Patidar 3 years, 10 months ago
Posted by Suhani Rawat 2 years, 7 months ago
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Posted by Blahhhh Blahhhh!!! 3 years, 10 months ago
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Posted by Nancy Sharma ? 3 years, 10 months ago
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Gaurav Seth 3 years, 10 months ago
गीता भारतीय संस्कृति की आधारशिला है । हिन्दू शास्त्रों में गीता का सर्वप्रथम स्थान है । गीता में 18 पर्व और 700 श्लोक है । इसके रचयिता वेदव्यास हैं । गीता महाभारत के भीष्म पर्व का ही एक अंग है ।v
लोकप्रियता में इससे बढ़कर कोई दूसरा ग्रन्ध नहीं है और इसकी लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है । गीता में अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से धार्मिक सहिष्णुता की भावना की प्रस्तुत किया गया है जो भारतीय संस्कृति की एक विशेषता है ।
धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों के मध्य युद्ध में अर्जुन अपने स्वजनों को देखकर युद्ध से विमुख होने लगा । धर्मयुद्ध के अवसर पर शोकमग्न अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए श्रीकृष्ण ने कहा कि व्यक्ति को निष्काम भाव से कर्म करते हुए फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भू: मा ते सङ्गोस्त्वकर्मणि ।।
आत्मा की नित्यता बताते हुए श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि यह आत्मा अजर-अमर है । शरीर के नष्ट होने पर भी यह आत्मा मरती नहीं है । जिस प्रकार व्यक्ति पुराना वस्त्र उतार कर नया वस्त्र धारण कर लेता है, उसी प्रकार आत्मा भी पुराना शरीर छोड़कर नया शरीर धारण कर लेती है ।
आत्मा को न तो शस्त्र काट सकते हैं, न अग्नि जला सकती है, न वायु उड़ा सकती है और न जल ही गीला कर सकता है । आत्मा को जो मारता है और जो इसे मरा हुआ समझता है, वह दोनों यह नहीं जानते कि न यह मरती है और न ही मारी जाती है । हे अर्जुन ! युद्ध में विजयी हुए तो श्री और युद्ध न करने पर अपयश मिलेगा इसलिए युद्ध कर ।
गीतानुसार हमें साधारण जीवन के व्यवहार सेघृणा नहीं करनी चाहिए अपितु स्वार्थमय इच्छाओं का दमन करना चाहिए । अहंकार को नष्ट करना चाहिए । अहंकार के रहते हुए ज्ञान का उदय नहीं होता, गुरु की कृपा नहीं होती और ज्ञान ग्रहण करने क्षमना नहीं होनी ।
गीता में भगवान का कथन है कि मुझे जिस रूप में माना जाता है, उसी रूप में मैं व्यक्ति को दर्शन देता हूँ, चाहे शैव हो या वैष्णव या कोई और ! गीता के उपदेशों को सभी ने स्वीकृत किया है, अत: यह किसी सम्प्रदाय विशेष का ग्रंथ नहीं है । उत्कृष्ट भावना का परिचायक होने के कारण गीता का हिन्दू धर्म ग्रन्थों में सर्वोपरि स्थान प्राप्त है।
भारत और विदेशों में भी गीता का बहुत प्रचार है । संसार की शायद ही ऐसी कोई सभ्य भाषा हो जिसमें गीता का अनुवाद न हो । पाश्चात्य विद्वान हम्बाल्ट ने गीता से प्रभावित होकर कहा है कि- ”किसी ज्ञात भाषा में उपलब्ध गीतों में सम्भवत: सबसे अधिक सुन्दर और दार्शनिक गीता है । गीतः-गज्त्र त्रैंश्त्र जगत की परम निधि है । ”
आज का युग परमाणु युद्ध की विभीषिका से भयभीत है । ऐसे में गीता का उपदेश ही हमारा मार्गदर्शन कर सकता है । आज का मनुष्य प्रगतिशील होने पर भी किंकर्त्तव्य- विमूढ़ है । अत: वह गीता से मार्गदर्शन प्राप्त कर अपने जीवन को सुखमय और आनन्दमय बना सकता है ।
गीता में सम्पूर्ण वेदों का सार निहित है । गीता की महत्ता को शब्दों में वर्णन करना असम्भव है । यह स्वय भगवान कृष्ण के मुखारविन्द से निकली है । स्वयं भगवान कृष्ण इसका महत्व बताते हुए कहते हैं- कि जो पुरुष प्रेमपूर्वक निष्काम भाव से भक्तों को पढ़ाएगा अर्थात् उनमें इसका प्रचार करेगा वह निश्चय ही मुझको (परमात्मा) प्राप्त होगा ।
जो पुरुष स्वयं इस जीवन में गीता शास्त्र को पढ़ेगा अथवा सुनेगा वह सब प्रकार के पापों से मुका हो जाएगा । गीता शास्त्र सम्पूर्ण मानव जाति के उद्धार के लिए है । कोई भी व्यक्ति किसी भी वर्ण, आश्रम या देश में स्थित हो, वह श्रद्धा भक्ति-पूर्वक गीता का पाठ करने पर परम सिद्धि को प्राप्त कर सकता है ।
अत: कल्याण की इच्छा करने वाले मनुष्यों के लिए आवश्यक है कि वे गीता पढ़ें और दूसरों को पढायें । यही कल्याणकारी मार्ग है ।
Posted by Sakshi Chouhan 3 years, 10 months ago
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Anju Anju 3 years, 10 months ago
Gaurav Seth 3 years, 10 months ago
विभिन्न समाचार माध्यमों के ज़रिये दुनियाभर के समाचार हमारे घरों में पहुँचते हैं। समाचार संगठनों में काम करने वाले पत्रकार देश-दुनिया में घटने वाली घटनाओं को समाचार के रूप में परिवर्तित करके हम तक पहुँचाते हैं। इसके लिए वे रोज़ सूचनाओं का संकलन करते हैं और उन्हें समाचार के प्रारूप में ढालकर प्रस्तुत करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को ही पत्रकारिता कहते है .
Posted by Aditya Badoni 3 years, 10 months ago
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Anju Anju 3 years, 10 months ago
Posted by Manisha Ranghar 3 years, 10 months ago
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Posted by Mo Abid Khan 3 years, 10 months ago
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Posted by Tera Baap 3 years, 10 months ago
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Sakshi Chouhan 3 years, 10 months ago
Posted by Shreya Biswas 3 years, 10 months ago
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Yogita Ingle 3 years, 10 months ago
पथेर पांचाली 'फिल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक इसलिए चला क्योंकि फिल्म बनाते समय कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ा । उस समय लेखक एक विज्ञापन कंपनी में नौकरी करता था । जब उसे नौकरी के काम से फुर्सत मिलती थी, तभी वह शूटिंग कर पाता था । लगातार शूटिंग कर पाना संभव न था ।
दूसरा कारण था धन का अभाव । लेखक के पास पैसे सीमित थे । जब वे पैसे खत्म हो जाते तब शुटिंग रुक जाती थी । फिर से पैसों का इंतजाम होने पर ही फिल्म की शूटिंग आगे बढ़ पाती थी । इस प्रकार ढाई साल का समय निकल गया ।
Posted by Mansi Chidar 3 years, 10 months ago
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Dapinder Singh 3 years, 10 months ago
Posted by Purnima Sharma 3 years, 10 months ago
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Gaurav Seth 3 years, 10 months ago
महानगर सपनों की तरह है मनुष्य को ऐसा लगता है मानो स्वर्ग वही है। हर व्यक्ति ऐसे स्वर्ग की ओर खींचा चला आता है। चमक-दमक, आकाश छूती इमारतें, सब कुछ पा लेने की चाह, मनोरंजन आदि न जाने बहुत कुछ जिन्हें पाने के लिए गाँव का सुदामा’लालायित हो उठता है और चल पढ़ता है महानगर की ओर। आज महानगरों में भीड़ बढ़ रही है। हर ट्रेन, बस में आप यह देख सकते हैं। गाँव यहाँ तक कि कस्बे का व्यक्ति भी अपनी दरिद्रता को समाप्त करने के ख्वाब लिए महानगरों की तरफ चल पड़ता है। शिक्षा प्राप्त करने के बाद रोजगार के अधिकांश अवसर महानगरों में ही मिलते हैं। इस कारण गाँव व कस्बे से शिक्षित व्यक्ति शहरों की तरफ भाग रहा है। इस भाग-दौड़ में वह अपनों का साथ भी छोड़ने को तैयार हो जाता है। दूसरे, अच्छी चिकित्सा सुविधा, परिवहन के साधन, मनोरंजन के अनेक तरीके, बिजली-पानी की कमी न होना आदि अनेक आकर्षक महानगर की ओर पलायन को बढ़ा रहे हैं। महानगरों की व्यवस्था भी चरमराने लगी है। यहाँ के साधन भी भीड़ के सामने बौने हो जाते हैं। महानगरों का जीवन एक ओर आकर्षित करता है तो दूसरी ओर यह अभिशाप से कम नहीं है। सरकार को चाहिए कि वह विकास कोंगों में भ करे इना क्षेत्र में शिया स्वास्य पिरहान रोग आद की सुवथा हनेस पालन कि सकता हैं।
Posted by Dr. Shashwat Prakash 3 years, 10 months ago
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Posted by Vaishnavi Nagpure 3 years, 10 months ago
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Posted by Shubham Gupta Gupta 3 years, 10 months ago
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Posted by Shashank Kumar 3 years, 10 months ago
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