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Ask QuestionPosted by Good Student 4 years, 11 months ago
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Posted by Good Student 4 years, 11 months ago
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Posted by Good Student 4 years, 11 months ago
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Posted by Good Student 4 years, 11 months ago
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Posted by Good Student 4 years, 11 months ago
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Good Student 4 years, 11 months ago
Good Student 4 years, 11 months ago
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Posted by Harsh Sharma 4 years, 11 months ago
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Posted by Vinod Kumar 4 years, 11 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 11 months ago
वाच्य- वाच्य का अर्थ है ‘बोलने का विषय।’
क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि उसके द्वारा किए गए विधान का विषय कर्ता है, कर्म है या भाव है, उसे वाच्य कहते हैं।
Posted by Good Student 4 years, 11 months ago
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Posted by Good Student 4 years, 11 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 11 months ago
अनुभाव – अनुभाव दो शब्दों ‘अनु’ और भाव के मेल से बना है। ‘अनु’ अर्थात् पीछे या बाद में अर्थात् आश्रय के मन में पनपे भाव और उसकी वाह्य चेष्टाएँ अनुभाव कहलाती हैं।
जैसे-चुटकुला सुनकर हँस पड़ना, तालियाँ बजाना आदि चेष्टाएँ अनुभाव हैं।
Posted by Good Student 4 years, 11 months ago
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Posted by Good Student 4 years, 11 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 11 months ago
बालगोबिन भगत कबीर के पक्के भक्त थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे और हमेशा खरा व्यवहार करते थे। वे किसी की चीज का उपयोग बिना अनुमति माँगे नहीं करते थे। उनकी इन्हीं विशेषताओं के कारण वे साधु कहलाते थे।
Posted by Good Student 4 years, 11 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 11 months ago
बालगोबिन भगत मंझलें कद के गोरे चिट्टे व्यक्ति थे, जिनकी आयु ६० वर्ष से अधिक थी। उनके बाल सफ़ेद थे ।वे दाढ़ी तो नहीं रखते थे ,पर उनके चेहरे पर सफेद बाल जगमगाते रहते थे। वे कमर में एक लंगोटी और सिर पर कबीरपंथियों जैसी कनफटी टोपी पहनते थे। सर्दियां आती तो ऊपर से एक काली कमली ओढ़ लेते थे। उनके माथे पर सदा रामानंदी चंदन चमकता था जो नाक के एक छोर से ही औरतों के टीके की तरह शुरू होता था। वे अपने गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला बांधे रहते थे। उनमें साधुओं वाली सारी बातें थी। वे कबीर को ‘साहब’ मानते थे; उन्हीं के गीत गाते रहते थे और उन्हीं के आदेशों पर चलते थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे और सदा खरा व्यवहार करते थे। हर बात साफ़ साफ़ करते थे किसी से व्यर्थ झगड़ा नहीं करते थे। किसी की चीज़ को कभी छूते तक नहीं थे। वे दूसरों के खेत में शौच तक के लिए नहीं बैठते थे। उनके खेत में जो कुछ पैदा होता था उसे सिर पर रखकर चार कोस दूर कबीरपंथी मठ में ले जाते थे और प्रसाद रूप में जो कुछ मिलता वहीं वापस ले आते थे।
Posted by Good Student 4 years, 11 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 11 months ago
नवाब साहब की भाव-भंगिमा देखकर लेखक के मन में यह विचार आया कि नवाब साहब का मुँह खीरे के स्वाद की कल्पना से ही भर गया है। पूर्व में इनकार कर चुकने के कारण आत्मसम्मान की रक्षा के लिए लेखक ने खीरा खाने से इंकार कर दिया।
Good Student 4 years, 11 months ago
Posted by Good Student 4 years, 11 months ago
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Diksha . 4 years, 11 months ago
Yogita Ingle 4 years, 11 months ago
‘नेताजी का चश्मा’ नामक पाठ के माध्यम से लेखक ने देशवासियों विशेषकर युवा पीढ़ी को राष्ट्र प्रेम एवं देशभक्ति की भावना मजबूत बनाए रखने के साथ-साथ शहीदों का सम्मान करने का भी संदेश दिया है। देशभक्ति का प्रदर्शन देश के सभी नागरिक अपने-अपने ढंग से कार्य-व्यवहार से कर सकते हैं।
Posted by Good Student 4 years, 11 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 11 months ago
इस कथन के माध्यम से लेखक ने नवाबी जीवन की नजाकत पर गहरा व्यंग्य किया है | इस प्रकार के लोग यथार्थ से कोसों दूर रहकर बनावटी जीवन जीते हैं | छोटी-छोटी बातों पर नखरे दिखाना ही इनकी नज़रों में रईसीपना होता है | अभावों में रहते हुए ये रईसी का दिखावा करते हैं और वास्तविकता को स्वीकार नहीं कर पाते |
Posted by Good Student 4 years, 11 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 11 months ago
चश्मा वाला अपनी दुकान से फ्रेम लेकर नेता जी की मूर्ति पर फिट कर देता है किंतु ग्राहक द्वारा उसी फ्रेम को मांगने पर नेताजी से क्षमा मांगते हुए फ्रेम वापस निकाल लेता है। बाद मेंं नेताजी को दूसरा फ्रेम लौटा देता है।
Posted by Good Student 4 years, 11 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 11 months ago
रघुकुल की परंपरा की यह विशेषता बताई है कि वहां ब्राह्ममण ,हरिजन ,और गाय ,पर प्रहार नहीं किया जाता।
Posted by Good Student 4 years, 11 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 11 months ago
लक्ष्मण ने अपने वीरता साबुत करने के लिय खुद को पहाड़ बताया है कि वह कोई पहाड़ नहीं है जो परशुराम के फूंक मारने पर उड़ जाएगा और कुम्हरबतिया (सीताफल का फूल) से तुलना की है कि वे सीताफल का फूल नहीं है जा तर्जनी (फरसा)दिखने से डर जाएंगे ।
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