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निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए प्रगति एवं प्रतियोगिता के इस दौर में भारत के प्रतिभा सम्पन्न युवा विदेशों की ओर भाग रहे हैं। भारतवर्ष वही देश है जहाँ नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय थे और अनेक छात्र यहाँ उच्च शिक्षा प्राप्त करने आते थे। इन विश्वविद्यालयों में साधारण छात्रों का प्रवेश पाना भी असंभव था। आज उसी भारत के छात्र विदेशों की ओर पलायन कर रहे हैं। उच्च स्तरीय एवं प्रतिष्ठित संस्थानों से शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत उनका यही प्रयास होता है कि वे किसी तरह विदेश चले जाएँ और अधिकाधिक धनोपार्जन करें। यह अत्यन्त दुख की बात है कि जिन विद्यार्थियों पर देश की जनता का इतना धन खर्च होता है उनसे देश को कोई लाभ नहीं होता। ऐसा लगता है जैसे औद्योगिक क्षेत्र में विकसित देशों के लिए काम करने वाले प्रतिभा सम्पन्न युवा भारत के खर्चे पर भारत में प्रशिक्षित होते हैं। याद आता है वह समय जब अंग्रेजों ने भारतीय राजाओं को चुग्गा डालना शुरू किया था। भारत के प्रतिष्ठित एवं सम्पन्न राज्यों में रेजीडेंसी बनाई गई, राजा के खर्चे पर ही अंग्रेज रेजीडेंट राजा की सुरक्षा का भार लेता था। सेना अंग्रेज की होती थी और खर्चा भारतीय राजा का। जानबूझ कर राज्य में अव्यवस्था फैलाई जाती थी और मौका पाते ही राजा को राज्य से, शासन से बेदखल करके राज्य हड़प लिया जाता था। क. भारत वर्ष में प्रख्यात विश्वविद्यालय कौन-कौन से थे? उनकी कोई दो विशेषताएँ लिखिए। ख. शिक्षित युवकों के विदेश गमन का मुख्य कारण क्या है? ग. नई पीढ़ी भारत में शिक्षा या विकसित देशों के लिए क्या बनती जा रही है? घ. गद्यांश में प्रस्तुत समस्या कौन सी है? स्पष्ट कीजिए। ड. चुग्गा' शब्द का अर्थ लिखिए। च. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक क्या हो सकता है? ​
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Nutan Singh 5 years, 1 month ago

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Prothom Bose 5 years, 1 month ago

केप्टन एक लँगड़ा चश्मे वाला था।उसके व्यक्तित्व की दो विशेषताएं निम्न लिखि है 1)वह एक बहुत बड़ा देशभक्त था और उससे नेताजी की बिना चश्मे वाली मूर्ति देखी नही गयीं और इसलिए वह उन्हें अलग-अलग चश्मे पहना दिया करता था। 2)उसके जुवित रहते हुए लोग(पानवाला) उसकी देशभक्ति का बहुत मजाक उड़ाते थे परन्तु उसकी मृत्यु से हर कोई दुखी हो गया था।
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Yogita Ingle 5 years, 1 month ago

कैप्टन देशभक्त तथा शहीदों के प्रति आदरभाव रखने वाला व्यक्ति था। वह नेताजी की चश्माविहीन मूर्ति देखकर दुखी होता था। वह मूर्ति पर चश्मा लगा देता था पर किसी ग्राहक द्वारा वैसा ही चश्मा माँगे जाने पर उतारकर उसे दे देता था और मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा दिया करता था।

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Yogita Ingle 5 years, 1 month ago

  1. ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के माध्यम से लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है आज भी नवाबी लोग अपनी नवाबी छिन जाने पर झूठी शान तथा तौर-तरीकों का ही दिखावा करते हैं और ऐसा करते समय वे यह भी नहीं सोचते कि इसमें उन्हें कोई लाभ मिलने वाला नहीं | जैसे पाठ में अपने दिखावे की प्रवृत्ति के कारण नवाब साहब को भूखा ही रहना पड़ा | वास्तव में यह व्यंग्य उस सामंती वर्ग पर कटाक्ष करता है जो अपनी झूठी शान बनाए रखने के लिए कृत्रिमता से युक्त जीवन जीते हैं |
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Yogita Ingle 5 years, 1 month ago

लेखक ने फ़ादर कामिल बुल्के को मानवीय करुणा की दिव्य चमक इसलिए कहा है क्योंकि फ़ादर नेक दिल वाले वह व्यक्ति थे जिनकी रगों में दूसरों के लिए प्यार, अपनत्व और ममता भरी थी। वह लोभ, क्रोध कटुभाषिता से कोसों दूर थे। वे अपने परिचितों के लिए स्नेह और ममता रखते थे। वे दूसरों के दुख में सदैव शामिल होते थे और अपने सांत्वना भरे शब्दों से उसका दुख हर लेते थे। लेखक को अपनी पत्नी और बच्चे की मृत्यु पर फ़ादर के सांत्वना भरे शब्दों से शांति मिली थी। वे अपने प्रेम और वत्सलता के लिए जाने जाते थे।

निम्न काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में लिखिए. कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।। माता पितहि उरिन भये नीके। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी के । सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गए ब्याज बड़ बाढ़ा।। अब आनिअ व्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली। सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।। भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र बिचारि ज्यों नृप द्रोही।। मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विज देवता घरहि के बाढ़े।। अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।। क. लक्ष्मण ने किसी हिसाब करने वाले को बुलाकर लाने के लिए क्यों कहा? ख, लक्ष्मण के किन शब्दों से परशुराम पुनः क्रोधित हो उठे? ग. सभा में हाय-हाय की पुकार क्यों मची? स्पष्ट कीजिए ।
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Yogita Ingle 5 years, 1 month ago

प्रस्तुत पदों में योग साधना के ज्ञान को निरर्थक बताया गया है। यह ज्ञान गोपियों के अनुसार अव्यवाहरिक और अनुपयुक्त है। उनके अनुसार यह ज्ञान उनके लिए कड़वी ककड़ी के समान है जिसे निगलना बड़ा ही मुश्किल है। सूरदास जी गोपियों के माध्यम से आगे कहते हैं कि ये एक बीमारी है। वो भी ऐसा रोग जिसके बारे में तो उन्होंने पहले कभी न सुना है और न देखा है। इसलिए उन्हें इस ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। उन्हें योग का आश्रय तभी लेना पड़ेगा जब उनका चित्त एकाग्र नहीं होगा। परन्तु कृष्णमय होकर यह योग शिक्षा तो उनके लिए अनुपयोगी है। उनके अनुसार कृष्ण के प्रति एकाग्र भाव से भक्ति करने वाले को योग की ज़रूरत नहीं होती।

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Yogita Ingle 5 years, 1 month ago

गोपियां कृष्ण भक्त थीं। कोमल हृदय वाली गोपियां तो केवल श्रीकृष्ण को ही अपना सर्वस्व मानती थीं। उनको केवल कृष्ण की भक्ति ही स्वीकार्य थी और उनका योग-साधना से कोई संबंध नहीं था। इसीलिए वे मानती थीं कि जो युवतियों के लिए योग का संदेश लेकर घूमते रहते थे, वे बड़े अज्ञानी थे। संभव है कि योग महासुख का भंडार हो पर गोपियों के लिए वह बीमारी से कुछ कम नहीं था। योग के संदेश तो विरह में जलने वालों को और भी अधिक जल्दी जला देने वाले थे। योग-साधना तो मानसिक रोग के समान है जिसे गोपियों ने न कभी पहले सुना था और न देखा था। कड़वी ककड़ी के समान व्यर्थ योग गोपियों के लिए नहीं बल्कि चंचल स्वभाव वालों के लिए उपयुक्त था। गोपियों को योग संदेश भिजवाना किसी भी अवस्था में बुद्धिमता का कार्य नहीं था। प्रेम की रीति को छोड़कर योग--साधना का मार्ग अपनाना मूर्खता है।

उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते और तेल की मटकी से की गई है। कमल का पला पानी में डूबा रहता है पर उस पर पानी की एक बूंद भी दाग नहीं लगा पाती, उस पर पानी की एक बूंद भी नहीं टिकती। तेल की मटकी को जल में डुबोने से उस पर एक बूंद भी नहीं ठहरती। उद्धव भी पूरी तरह से अनासक्त था। वह श्रीकृष्ण के निकट रह कर भी प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त था।

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Yogita Ingle 5 years, 1 month ago

गोपियों के अनुसार राजा का धर्म होता है कि प्रजा की सुध ले और प्रजा पर कोई आँच न आने दे।

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Yogita Ingle 5 years, 1 month ago

विश्वामित्र ने परशुराम की अभिमानपूर्वक प्रकट की जाने वाली अपनी वीरता संबंधी बातों को सुन कर व्यंग्य भाव से कहा था कि मुनि को हरा-ही--हरा सूझ रहा था। वे सामान्य क्षत्रियों को सदा युद्ध में हराते रहे थे। इसलिए उन्हें लगने लगा था कि वे राम-लक्ष्मण को भी युद्ध में आसानी से हरा देंगे पर वे यह नहीं समझ पा रहे थे कि ये दोनों साधारण क्षत्रिय नहीं थे। वे गन्ने से बनी खांड के समान नहीं थे बल्कि फौलाद के बने खांडे के समान थे। मुनि व्यर्थ में बेसमझ बने हुए थे और इनके प्रभाव को नहीं समझ पा रहे थे।

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Yogita Ingle 5 years, 1 month ago

जार्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन पत्रकारों को शायद अपनी बड़ी भूल का अहसास हो गया था। उस दिन केवल एक गुमनाम आदमी की नाक नहीं कटी थी बल्कि पूरे हिंदुस्तान की नाक कट गई थी। जिन अंग्रेजों से आजादी दिलाने के लिए हजारों जिंदगियाँ कुर्बान हो गईं, उसी में से एक की बेजान बुत की नाक बचाने के लिए हमने अपनी नाक कटवा ली। इसलिए उस दिन शर्म से अखबार वाले चुप थे।

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