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Aanchal Singh Chauhan 4 years, 6 months ago

Thanks

Arpita .9 4 years, 9 months ago

Kyonki uski beti abhi bahari duniya se anjaan hain,agar uska sasural accha na hua to uski nanhi si bitiya ka kya hoga ,use uski chinka kae ja rahi hain

Gaurav Singh 4 years, 9 months ago

Maa ke

Aman Jhajharia 4 years, 9 months ago

Maata ke
  • 3 answers

Yogita Ingle 4 years, 9 months ago

स्थायी भाव से रस का जन्म होता हे | जो भावना स्थिर और सार्वभौम होती है उसे स्थायी भाव कहते हैं। विभाव अनुभव और व्यभिचार स्थायी भावों का अधीन होते हैं। इसीलिए स्थायी भाव मुख्य बनता है। स्थायी भाव भावनाओं से बनता है और व्यभिचार एंसिलरी होती हे | जब स्थायी व्यभिचारी विभाव और अनुभव से संयोजन होता है तब रस बनता हे | नाट्यशास्त्र में कहते हैं कि " एक अच्छा स्वाद का उत्पादन किया जाता है जब विभिन्न मसाले एक साथ मिलाते हे, वैसे ही स्थायी भाव से रस का स्वाद बढ़ता हे |"

यह गौर का बात हे की भाव भावुकता के उत्पादन में एक मुख भाग करता है। रस का उत्पादन भाव के बिना नहीं हो सकता | इस प्रकार से स्थायी भाव, रस के नाम से प्रसिद्ध हे | स्थायी भाव ८ होता हे

  1. रति (प्रेम)
  2. उत्साह (ऊर्जा)
  3. शोक
  4. हास
  5. विसम्या
  6. भय
  7. जुगुप्सा
  8. क्रोध

कुछ लोग ' सम' भी इसके साथ जोड़ते हे |

2) 

विभाव

साहित्य में, वह कारण जो आश्रय में भाव जाग्रत या उद्दीप्त करता हो। स्थायी भावों के उद्बोधक कारण को विभाव कहते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं-

  1. आलंबन विभाव

  2. उद्दीपन विभाव

आलंबन विभाव

जिसका आलंबन या सहारा पाकर स्थायी भाव जगते हैं, आलंबन विभाव कहलाता है। आलंबन विभाव के दो पक्ष होते हैं:-

  1. आश्रयालंबन

  2. विषयालंबन

Bhawesh Naik 4 years, 9 months ago

Contact me on gmail I will provide you full notes of RAS.

Ambika Ambika 4 years, 9 months ago

Please ,please ,please please please ,please ,please ,please please ,please ,please ,please please ,please ,please ,please please ,please ,please ,please please ,please ,please ,please please ,please ,please ,please please ,please ,please ,please please ,please ,please ,please please ,please, please, please
  • 1 answers

Sia ? 4 years, 4 months ago

Hindi, or more precisely Modern Standard Hindi, is an Indo-Aryan language spoken chiefly in India. Hindi has been described as a standardised and Sanskritised register of the Hindustani language, which itself is based primarily on the Khariboli dialect of Delhi and neighbouring areas of Northern India.
  • 4 answers

Mitali Awasthi 4 years, 9 months ago

श्री कृष्ण को

Ritika Talwar 4 years, 9 months ago

हरील पक्षी हमेशा अपने पैर में लकड़ी दबाए रहता है।

Ritika Talwar 4 years, 9 months ago

श्री कृष्ण को

Vinod Vinod 4 years, 9 months ago

श्री कृष्ण को
  • 1 answers

Ambika Ambika 4 years, 9 months ago

Which Chapter ??? Which Question ????
  • 2 answers

Maniya Jain 4 years, 10 months ago

Harril pakshi ki lakdi ke saman.

Maahi Chawla 4 years, 10 months ago

Gopiyan ne khud ko harril pakshi ki lakdi ke samaan maan rhi thi
  • 1 answers

Thakur Chauhan 4 years, 10 months ago

https://mycbseguide.com/blog/sample-paper-for-class-10-hindi-b/
  • 3 answers

Mitali Awasthi 4 years, 9 months ago

गोपियाँ स्वयं को हारिल पक्षी और श्री कृष्ण को हारिल की लकड़ी के समान बताती हैं क्योंकि उनसे दूर नहीं जा सकती हैं और जीवन भर उन्हीके साथ रहना चाहती हैं। इससे सूरदास जी ने गोपियों के श्री कृष्ण के प्रति अनंत प्रेम को अभिव्यक्त किया है

Ritika Talwar 4 years, 9 months ago

गोपियां खुद को हरिल पक्षी कह रही हैं

Raj Wardhan 4 years, 10 months ago

Gopiya swayam ko haaril ki ladki ke saman btaya hai
  • 2 answers

Supriya Mishra 4 years, 10 months ago

No i don't have

Satyam Rai 4 years, 10 months ago

I have
  • 1 answers

Yogita Ingle 4 years, 10 months ago

सेवा में ,

मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी ,

नगर निगम ,

शिमला।

विषय : अपने मोहल्ले की सफाई करवाने हेतु नगर निगम अधिकारी को पत्र

श्रीमान जी ,

मैं इस पत्र के माध्यम से आपका ध्यान मोहल्ले की साफ सफाई की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ । हमारे इलाके का कचरा कंटेनर कई दिनों तक सफाई न करने के कारण बह निकला है। खराब गंध से निकलने वाली सड़ी हुई सामग्री इस प्रकार आस-पास के लोगों को अपनी नाक के आसपास दुपट्टा पहनने के लिए मजबूर करती है। अगर यही स्थिति कुछ और दिनों तक बनी रही तो बीमारी फैलने की संभावना रहेगी। हालत दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है।

इसलिए, हमारा विनम्रतापूर्वक निवेदन है कि आज ही कृपया इसे साफ किया जाए ताकि हम जल्द ही एक सामान्य जीवन जी सकें।

धन्यवाद सहित ,

भवदीय ,

कमल

शिमला।

  • 2 answers

Yogita Ingle 4 years, 10 months ago

भूमिका : शब्दकोश में फैशन का अर्थ होता है ढंग या शैली लेकिन लोकव्यवहार में फैशन का परिधान शैली अथार्त वस्त्र पहनने की कला को कहते हैं। मनुष्य अपने आप को सुंदर दिखाने के लिए फैशन का प्रयोग करता है। कोई भी व्यक्ति गोरा हो या काला, मोटा हो या पतला, नवयुवक हो या प्रौढ़ सभी का कपड़े पहनने का अपना-अपना ढंग होता है।

मनुष्य केवल अपनी आयु, रूप-रंग और शरीर की बनावट को देखकर ही फैशन करता है। यहाँ तक की फैशन के विषय में कोई विशेष विवाद नहीं है। कोई भी अध्यापक हो या विद्यार्थी, लड़का हो या लडकी, पुरुष हो या स्त्री सभी को फैशन करने का अधिकार होता है।

फैशन पर विवाद : जब हम फैशन का गूढ़ अर्थ बनाव सिंगार लेते हैं तो फैशन के विषय में विवाद उठता है। इस गूढ़ अर्थ से दूल्हा और दुल्हन का संबंध हो सकता है लेकिन छात्र और छात्राओं का इससे कोई संबंध नहीं होता है।

छात्र और छात्राएं अभी विद्यार्थी हैं और विद्यार्थी का अर्थ होता है विद्या की इच्छा करने वाला। अगर विद्या की इच्छा करने वाले विद्यार्थी फैशन को चाहने लगेंगे तो वे अपने लक्ष्य से बहुत दूर भटक जायेंगे। अगर विद्यार्थी विद्या की जगह पर फैशन को चाहेगा तो विद्या उससे रूठ जाएगी।

प्राचीनकाल में विद्यार्थियों में फैशन की भावना : प्राचीनकाल में विद्यार्थी फैशन को इतना पसंद नहीं करते थे जितने आज के विद्यार्थी करते हैं। प्राचीनकाल में विद्यार्थी सादा जीवन उच्च विचार में विश्वास रखते थे उनमे फैशन की अपेक्षा विद्या को चाहने की बहुत तीव्र इच्छा होती थी।

आज के विद्यार्थियों में फैशनेबल दिखने की इच्छा तीव्र होती है। आजकल विद्यार्थी जिस तरह के कपड़े दूसरों को पहने हुए देखते हैं वैसे ही कपड़ों की मांग वे अपने माता -पिता से करते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि आस-पास के लोगों में खुद को धनी दिखा सकें लेकिन वास्तव में वे धनी नहीं होते हैं।

धनी के साथ-साथ आज का विद्यार्थी खुद को दूसरों से सुंदर दिखाना चाहता है जो वो होता नहीं है। इस तरह वे फैशन में इतना समय व्यर्थ में गंवा देते हैं लेकिन बहुत से महत्वपूर्ण कामों के लिए उसके पास समय ही नहीं होता है। ऐसी अवस्था में कौन उन्हें यह बात समझाएगा कि वे धन के अपव्यय के साथ-साथ समय की भी बरबादी करते हैं।

सौन्दर्य के लिए धन की आवश्यकता : जब विद्यार्थी सुंदर दिखने की भावना को प्रबल कर लेते हैं तो उन में धन विलासिता भी बढ़ जाती है। फैशन के जीवन को जीने के लिए धन की आवश्यकता होती है। जब विद्यार्थी को फैशन का जीवन जीने के लिए धन आसानी से नहीं मिलता है तो वह झूठ का सहारा लेकर धन को प्राप्त करने की कोशिश करता है।

वह धन को पाने के लिए चोरी तक करने लगता है। ऐसा करने के बाद जुआ जैसे बुरे काम भी उनसे दूर नहीं रह पाते हैं। इस तरह से विद्यार्थी की मौलिकता खत्म हो जाती है और वह आधुनिक वातावरण में जीने लगता है। ऐसा करने से घर के लोगों से उसका संबंध टूट जाता है और सिनेमा के अभिनेता उसके आदर्श बन जाते हैं।

वे विद्यालय की जगह पर फिल्मों में अधिक रूचि लेने लगते हैं और अपने मार्ग से भटक जाते हैं। जो विद्यार्थी फैशन के पीछे भागते हैं वे अपने जीवन में कभी भी आगे नहीं बढ़ पाते हैं। आगे चलकर उन्हें पछताना ही पड़ता है।

सिनेमा का कुप्रभाव : आज के समय में हमारे जीवन में सिनेमा एक महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। ज्यादातर छात्र-छात्राएं फिल्मों से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। अमीर परिवार तो फैशनेबल कपड़े पहन सकते हैं और अपने बच्चों को भी फैशनेबल कपड़े पहना सकते हैं लेकिन गरीब लोग ऐसा नहीं कर सकते हैं। विद्यार्थियों में देखा-देखी फैशन की होड़ बढती ही जा रही है। टीवी की संस्कृति ने हमारे देश के लोगों के लिए समस्याएँ उत्पन्न कर दी हैं। यह फैशनपरस्ती फिल्मों की ही देन है।

फैशन के दुष्परिणाम : आज के विद्यार्थियों में फैशन की प्रवृत्ति के बढने से केवल माता-पिता ही नहीं बल्कि पूरे समाज मे घातक सिद्ध हो रही है। गरीब परिवार के लोग अपने बच्चों की मांगों की पूर्ति नहीं कर पाते हैं। इसकी वजह से उनके घर के बच्चे घर में असहज वातावरण उत्पन्न कर देते हैं।

जो विद्यार्थी फैशन के पीछे भागते हैं वो सिनेमा घरों में जाकर अशोभनीय व्यवहार करते हैं, गली मोहल्लों में हल्ला मचाते हैं और हिंसक गतिविधियों में भाग लेते हैं। जो विद्यार्थी फैशनपरस्ती होते हैं वे जीवन के विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं | जो विद्यार्थी फैशनपरस्ती के पीछे भागते हैं वो अपनी शिक्षा की तरफ ध्यान नहीं दे पाते हैं। ऐसे विद्यार्थी अपने माता-पिता के सपनों को तोड़ देते हैं।

उपसंहार : हम यह कह सकते हैं कि फैशन विद्यार्थियों के लिए अच्छा नहीं होता है। विद्यार्थियों का आदर्श हमेशा सादा जीवन उच्च विचार होना चाहिए। फैशन के मामलों में विद्यार्थी को अपना जीवन कभी भी खर्च नहीं करना चाहिए।

विद्यार्थी का लक्ष्य बस अपने जीवन का निर्माण होना चाहिए। जो विद्यार्थी अपनी शिक्षा पर ध्यान देते हैं वे ही अपने जीवन में सफल होते हैं। बस फैशन के पीछे भागने वाले बाद में पछताते हैं।

Gagan Singh Nehwal 4 years, 10 months ago

G
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Gaurav Seth 4 years, 10 months ago

शिवधनुष टूटने के साथ सीता स्वयंवर की खबर मिलने पर परशुराम जनकपुरी में स्वयंवर स्थान पर आ जाते है। हाथ में फरसा लिए क्राेिधत हो धनुष तोड़ने वाले को सामने आने, सहस्त्रबाहु की तरह दडिंत होने और न आने पर वहाँ उपस्थित सभी राजाओं को मारे जाने की धमकी देते हैं। उनके क्रोध को शांत करने के लिए राम आगे बढ़कर कहते हैं कि धनुष-भंग करने का बड़ा काम उनका कोई दास ही कर सकता है। परशुराम इस पर और क्रोधित होते हैं कि दास होकर भी उसने शिवधनुष को क्यों तोड़ा। यह तो दास के उपयुक्त काम नहीं है। लक्ष्मण परशुराम को यह कहकर और क्रोधित कर देते हैं कि बचपन में शिवधनुष जैसे छोटे कितने ही धनुषों को उन्होंने तोड़ा, तब वे मना करने क्यो नहीं आए आरै अब जब पुराना आरै कमजाोर धनुष् श्रीराम के हाथों में आते ही टूट गया तो क्यों क्रोधित हो रहे हैं। परशुराम जब अपनी ताकत से ध्रती को कई बार क्षत्रियों से हीन करके बा्र ह्मणों को दान देने और गर्भस्थ शिशुओं तक के नाश करने की बात बताते हैं तो लक्ष्मण उन पर शूरवीरों से पाला न पड़े जाने का व्यंग्य करते हैं। वे अपने कुल की परंपरा में स्त्राी, गाय और ब्राह्मण पर वार न करके अपकीर्ति से बचने की बात करते हैं तो दूसरी तरफ स्वयं को पहाड़ और परशुराम को एक फूँक सिद्ध् करते हैं। ऋषि विश्वामित्रा परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए लक्ष्मण को बालक समझकर माफ करने का आगह्र करते है। वे समझाते है। कि राम आरै लक्ष्मण की शक्ति का परशुराम को अंदाजा नहीं है। अंत में लक्ष्मण के द्वारा कही गई गुरुऋण उतारने की बात सुनकर वे अत्यंत क्रुद्ध् होकर फरसा सँभाल लेते हैं। तब सारी सभा में हाहाकार मच जाता है आरै तब श्रीराम अपनी मधुर वाणी से परशुराम की क्रोध रूपी अग्नि को शांत करने का प्रयास करते हैं।

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Gaurav Seth 4 years, 10 months ago

नई दिल्ली में सब था, सिर्फ नाक नहीं थी-यह कहकर लेखक स्पष्ट करना चाहता है कि भारत के स्वतंत्र होने पर वह सर्वथा संपन्न हो चुका था, कहीं भी विपन्नता नहीं थी। अभाव था तो केवल आत्मसम्मान का, स्वाभिमान का। संपन्न होने पर भी देश परतंत्रता की मानसिकता से मुक्त नहीं हो सका है। अंग्रेज का नाम आते ही हीनता का भाव उत्पन्न होता था कि ये हमारे शासक रहे हैं। गुलामी का कलंक हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा है। इसलिए लेखक कहता है कि दिल्ली में सिर्फ नाक नहीं I

Yogita Ingle 4 years, 10 months ago

 नई दिल्ली में सब था, सिर्फ नाक नहीं थी-यह कहकर लेखक स्पष्ट करना चाहता है कि भारत के स्वतंत्र होने पर वह सर्वथा संपन्न हो चुका था, कहीं भी विपन्नता नहीं थी। अभाव था तो केवल आत्मसम्मान का, स्वाभिमान का। ... इसलिए लेखक कहता है कि दिल्ली में सिर्फ नाक नहीं भी।

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Ritika Talwar 4 years, 9 months ago

जब शब्द वाक्य में प्रयोग होता है तो उसे पद कहते हैं। पद का व्याकरण की दृष्टि से परिचय देने को पद परिचय कहते हैं

Harsh Janghu 4 years, 10 months ago

Kisi bhi pad ka vyakranik prichya pad prichya kehlata h.

Yogita Ingle 4 years, 10 months ago

वाक्य में प्रयोग हुआ कोई पद व्याकरण की दृष्टि से विकारी है या अविकारी, यदि बिकारी है तो उसका भेद, उपभेद, लिंग, वचन पुरुष, कारक, काल अन्य शब्दों के साथ उसका संबंध और अविकारी है तो किस तरह का अव्यय है तथा उसका अन्य शब्दों से क या संबंध है आदि बताना व्याकरणिक परिचय कहलाता है।
पदों का परिचय देते समय निम्नलिखित बातें बताना आवश्यक होता है –

  1. संज्ञा–तीनों भेद, लिंग, वचन, कारक क्रिया के साथ संबंध।
  2. सर्वनाम-सर्वनाम के भेद, पुरुष, लिंग, वचन, कारक, क्रिया से संबंध।
  3. विशेषण-विशेषण के भेद, लिंग, वचन और उसका विशेष्य।
  4. क्रिया-क्रिया के भेद, लिंग, वचन, पुरुष, काल, वाच्य,धातु कर्म और कर्ता का उल्लेख।
  5. क्रियाविशेषण-क्रियाविशेषण का भेद तथा जिसकी विशेषता बताई जा रही है, का उल्लेख।
  6. समुच्चयबोधक-भेद, जिन शब्दों या पदों को मिला रहा है, का उल्लेख।
  7. संबंधबोधक-भेद, जिसके साथ संबंध बताया जा रहा है, का उल्लेख।
  8. विस्मयादिबोधक-हर्ष, भाव, शोक, घृणा, विस्मय आदि किसी एक भाव का निर्देश।
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Mitali Awasthi 4 years, 9 months ago

कौशिक विश्वामित्र को कहा गया है। परशुराम लक्ष्मण की शिकायत उनसे इसलिए करते हैं क्यूँकि विश्वामित्र लक्ष्मण के गुरु हैं

Ritika Talwar 4 years, 9 months ago

विश्वामित्र को

Souparnika T 4 years, 10 months ago

Ram Lakshman parashuram samvad mei कौसिक विश्वामित्र को कहा गया है।
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Pranav Choudhary 4 years, 10 months ago

वृक्षारोपण का शाब्दिक अर्थ है। वृक्ष लगाकर उन्हें उगाना इसका प्रयोजन करना है। प्रकृति के संतुलन को बनाए रखना। मानव के जीवन को सुखी, सम्रद्ध व संतुलित बनाए रखने के लिए वृक्षारोपण का अपना विशेष महत्व है। मानव सभ्यता का उदय तथा इसका आरंभिक आश्रय भी प्रकृति अर्थात वन व्रक्ष ही रहे हैं। मानव को प्रारम्भ से प्रकृति द्वारा जो कुछ प्राप्त होता रहा है। उसे निरन्तर प्राप्त करते रहने के लिए वृक्षारोपण अती आवश्यक है। मानव सभ्यता के उदय के आरंभिक समय में वह वनों में वृक्षों पर या उनसे ढकी कन्दराओं में ही रहा करता था। वह (मानव) वृक्षों से प्राप्त फल-फूल आदि खाकर या उसकी डालियों को हथियार के रूप में प्रयोग करके पशुओं को मारकर अपना पेट भरा करता था। वृक्षों की छाल की वस्त्रों के रूप में प्रयोग करता था। यहाँ तक कि ग्रन्थ आदि लिखने के लिए जिस सामग्री का प्रयोग किया जाता था। वे भोज–पत्र अर्थात विशेष वृक्षों के पत्ते ही थे। वृक्ष वातावरण को शुद्ध व स्वच्छ बनाते है। इनकी जड़ें भूमि के कटाव को रोकती है। वृक्षों के पत्ते भूमि पर गिरकर सड़ जाते हैं। तथा ये मिट्टी में मिलकर खाद बन जाते है। और भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते है। मानव सभ्यता के विकास के साथ जब मानव ने गुफाओं से बाहर निकलकर झोपड़ियों का निर्माण आरंभ किया तो उसमें भी वृक्षों की शाखाएं व पत्ते ही काम आने लगे, आज भी जब कुर्सी, मेज, सोफा, सेट, रेक, आदि का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। यह भी मुख्यतः लकड़ी से ही बनाए जाते हैं। अनेक प्रकार के फल-फूल और औषधियों भी वृक्षों से ही प्राप्त होती है। वर्षा जिससे हमें जल व पेय जल प्राप्त होते हैं वह भी प्राय वृक्षों के अधिक होने पर ही निर्भर करती है। इसके विपरीत यदि हम वृक्ष-शून्य की स्थिति की कल्पना करें तो उस स्थिति में मानव तो क्या समुची जीव सृष्टि की दशा ही बिगड़ जाएगी। इस स्थिति से बचने के लिए वृक्षारोपण करना अत्यंत आवश्यक है। आजकल नगरों तथा महानगरों में छोटे-बड़े उद्योग–धंधों की बाढ़ से आती जा रही है। इनसे धुआं, तरह-तरह के विषैली गैसें आदि निकलकर वायुमंडल में फेल कर हमारे पर्यावरण में भर जाती है। पेड़ पौधे इन विषैली गैसों को वायुमंडल में फैलने से रोक कर पर्यावरण को प्रदूषित होने से रोकते हैं। यदि हम चाहते हैं कि हमारी यह धरती प्रदूषण रहित रहे तथा इस पर निवास करने वाला मानव सुखी व स्वस्थ बना रहे तो हमें पेड़-पौधों की रक्षा तथा उनके नवरोपण की ओर ध्यान देना चाहिए।
2.1 हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा - हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे ? उत्तर:- हालदार साहब इसलिए मायूस हो गए कि कैप्टन अब मर चुका हैऔर उसके समान कोई देश प्रेमी नहीं था जिसकी नेताजी जैसे देशभक्त के लिए सम्मान की भावना हो. उसके मर जाने के बाद अब कौन इस जिम्मेदारी का निर्वाह करेगा। 2.2 हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा - मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है ? उत्तर:- मूर्ति पर लगे सरकंडे का चश्मा इस बात का प्रतीक है कि आज देश की आने वाली पीढ़ी के मन में देशभक्तों के लिए सम्मान की भावना है। भले ही उनके पास साधन न हो परन्तु फिर भी सच्चे हृदय से बना वह सरकंडे का चश्मा  भावनात्मक दृष्टि से मूल्यवान है। अतः उम्मीद है कि बच्चे गरीबी और साधनों के बिना भी देश के लिए कार्य करते रहेंगे। 2.3 हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा - हालदार साहब इतनी-सी बात पर भावुक क्यों हो उठे? उत्तर:- उचित साधन न होते हुए भी किसी बच्चे ने अपनी क्षमता के अनुसार नेताजी को सरकंडे का चश्मा पहनाया। यह बात उनके मन में आशा जगाती है कि आज भी देश में देश-भक्ति जीवित है भले ही बड़े लोगों के मन में देशभक्ति का अभाव हो परन्तु वही देशभक्ति सरकंडे के चश्मे के माध्यम से एक बच्चे के मन में देखकर हालदार साहब भावुक हो गए।
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Prince Ravat 4 years, 10 months ago

Jis vakya mein karma Pradhan hota hei use karma vachya kahte hei

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