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Ask QuestionPosted by Anushka Mittal 4 years, 9 months ago
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Posted by Anushka Mittal 4 years, 9 months ago
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Good Day 4 years, 8 months ago
Posted by Nishant Kishnawa 4 years, 9 months ago
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Posted by Gungun Verma 4 years, 9 months ago
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Pooja Jangid 4 years, 9 months ago
Posted by Rubi Kumari 4 years, 9 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 9 months ago
रस – साहित्य का नाम आते ही रस का नाम स्वतः आ जाता है। इसके बिना साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। भारतीय साहित्य शास्त्रियों ने साहित्य के लिए रस की अनिवार्यता समझा और इसे साहित्य के लिए आवश्यक बताया। वास्तव में रस Ras काव्य की आत्मा है।
रस के अंग-रस के चार अंग माने गए हैं –
- स्थायीभाव: कविता या नाटक का आनंद लेने से सहृदय के हृदय में भावों का संचार होता है। ये भाव मनुष्य के हृदय में स्थायी रूप से विद्यमान होते हैं। सुषुप्तावस्था में रहने वाले ये भाव साहित्य के आनंद के द्वारा जग जाते हैं और रस में बदल जाते हैं
- विभाव: विभाव का शाब्दिक अर्थ है-भावों को विशेष रूप से जगाने वाला अर्थात् वे कारण, विषय और वस्तुएँ, जो सहृदय के हृदय में सुप्त पड़े भावों को जगा देती हैं और उद्दीप्त करती हैं, उन्हें विभाव कहते हैं।
- अनुभाव: अनुभाव दो शब्दों ‘अनु’ और भाव के मेल से बना है। ‘अनु’ अर्थात् पीछे या बाद में अर्थात् आश्रय के मन में पनपे भाव और उसकी वाह्य चेष्टाएँ अनुभाव कहलाती हैं।
जैसे-चुटकुला सुनकर हँस पड़ना, तालियाँ बजाना आदि चेष्टाएँ अनुभाव हैं। - संचारीभाव: आश्रय के चित्त में स्थायी भाव के साथ आते-जाते रहने वाले जो अन्य भाव आते रहते हैं उन्हें संचारी भाव कहते हैं। इनका दूसरा नाम अस्थिर मनोविकार भी है।
चुटकुला सुनने से मन में उत्पन्न खुशी तथा दुर्योधन के मन में उठने वाली दुश्चिंता, शोक, मोह आदि संचारी भाव हैं।
संचारी भावों की संख्या 33 मानी जाती है।
Posted by Palak Sharma 4 years, 9 months ago
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Riya Rana 4 years, 9 months ago
Posted by Sharleez Fatima 4 years, 9 months ago
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Akanksha Shukla 4 years, 9 months ago
Posted by Ayush Gupta 4 years, 9 months ago
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Riya Rana 4 years, 9 months ago
Posted by Ashish Sharma 4 years, 9 months ago
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Posted by Aditi Joshi 4 years, 9 months ago
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Riya Rana 4 years, 9 months ago
Posted by Avneesh Kumar Mishra 4 years, 9 months ago
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Posted by Mustafa Ali 4 years, 9 months ago
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Posted by Kunal Singh 4 years, 9 months ago
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Bipin Bihari 4 years, 9 months ago
Ambika Ambika 4 years, 9 months ago
Posted by Saloni Ghalot 4 years, 9 months ago
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Nitesh Yadav 4 years, 9 months ago
Yogita Ingle 4 years, 9 months ago
कबीर का अनुभव क्षेत्र विस्तृत था। कबीर जगह-जगह भ्रमण कर प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करते थे। अत: उनके द्वारा रचित साखियों में अवधी, राजस्थानी, भोजपुरी और पंजाबी भाषाओं के शब्दों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पडता है। इसी कारण उनकी भाषा को ‘पचमेल खिचडी’ कहा जाता है। कबीर की भाषा को सधुक्कडी भी कहा जाता है। वे जैसा बोलते थे वैसा ही लिखा गया है। भाषा में लयबद्धता, उपदेशात्मकता, प्रवाह, सहजता, सरलता शैली है। लोकभाषा का भी प्रयोग हुआ है; जैसे – खायै, नेग, मुवा, जाल्या, आँगणि आदि।
Posted by Saloni Ghalot 4 years, 9 months ago
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Posted by Sahil Soni 4 years, 9 months ago
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Aziz Fatima 4 years, 9 months ago
Posted by Rubi Kumari 4 years, 9 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 9 months ago
रस के अंग-रस के चार अंग माने गए हैं –
- स्थायीभाव: कविता या नाटक का आनंद लेने से सहृदय के हृदय में भावों का संचार होता है। ये भाव मनुष्य के हृदय में स्थायी रूप से विद्यमान होते हैं। सुषुप्तावस्था में रहने वाले ये भाव साहित्य के आनंद के द्वारा जग जाते हैं और रस में बदल जाते हैं
- विभाव: विभाव का शाब्दिक अर्थ है-भावों को विशेष रूप से जगाने वाला अर्थात् वे कारण, विषय और वस्तुएँ, जो सहृदय के हृदय में सुप्त पड़े भावों को जगा देती हैं और उद्दीप्त करती हैं, उन्हें विभाव कहते हैं।
- अनुभाव: अनुभाव दो शब्दों ‘अनु’ और भाव के मेल से बना है। ‘अनु’ अर्थात् पीछे या बाद में अर्थात् आश्रय के मन में पनपे भाव और उसकी वाह्य चेष्टाएँ अनुभाव कहलाती हैं।
जैसे-चुटकुला सुनकर हँस पड़ना, तालियाँ बजाना आदि चेष्टाएँ अनुभाव हैं। - संचारीभाव: आश्रय के चित्त में स्थायी भाव के साथ आते-जाते रहने वाले जो अन्य भाव आते रहते हैं उन्हें संचारी भाव कहते हैं। इनका दूसरा नाम अस्थिर मनोविकार भी है।
चुटकुला सुनने से मन में उत्पन्न खुशी तथा दुर्योधन के मन में उठने वाली दुश्चिंता, शोक, मोह आदि संचारी भाव हैं।
संचारी भावों की संख्या 33 मानी जाती है।
Posted by Sanskar Sinha 4 years, 9 months ago
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Posted by Ruby Varshney Varshney 4 years, 9 months ago
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Aziz Fatima 4 years, 9 months ago
Posted by Ruby Varshney Varshney 4 years, 9 months ago
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Posted by Ruby Varshney Varshney 4 years, 9 months ago
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Aziz Fatima 4 years, 9 months ago
Posted by Pranav Chaudhary 4 years, 9 months ago
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Posted by A A 4 years, 9 months ago
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Devansh Yadav 4 years, 9 months ago
Posted by Shikhar Dwivedi 4 years, 9 months ago
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Posted by A B 4 years, 9 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 9 months ago
लेखिका ने यूमथांग के रास्ते पर दुर्लभ प्राकृतिक सौंदर्य देखा। ये दृश्य उसकी आँखों और आत्मा को सुख देने वाले थे। धरती पर कहीं गहरी हरियाली फैली थी तो कहीं हल्का पीलापन दिख रहा था। कहीं-कहीं नंगे पत्थर ऐसे दिख रहे थे जैसे प्लास्टर उखड़ी पथरीली दीवार हो। देखते ही देखते आँखों के सामने से सब कुछ ऐसे गायब हो गया, जैसे किसी ने जादू की छडी फिरा दी हो, क्योंकि बादलों ने सब कुछ ढक लिया था। प्रकृति के इसी दृश्य को लेखिका ने छाया और माया का खेल कहा है।
Posted by Akshi J 4 years, 9 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 9 months ago
वाच्य- वाच्य का अर्थ है ‘बोलने का विषय।’
क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि उसके द्वारा किए गए विधान का विषय कर्ता है, कर्म है या भाव है, उसे वाच्य कहते हैं।
दूसरे शब्दों में क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि उसके प्रयोग का आधार कर्ता, कर्म या भाव है, उसे वाच्य कहते हैं। वाच्य के भेद-हिंदी में वाच्य के तीन भेद माने जाते हैं –

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