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Jaya Chaudhary 3 years, 7 months ago

1. अच्छी तरह से पूरा करना। 2. प्रस्तुत करना।

Harsh Gautam 3 years, 7 months ago

The editing
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Jaya Chaudhary 3 years, 7 months ago

अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ! वृक्ष हों भले खड़े, हों घने, हों बड़े, एक पत्र छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत! अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ! भावार्थ : हरिवंश राय बच्चन की कविता अग्निपथ की इन पंक्तियों में कवि हरिवंश राय बच्चन जी ने हमें यह शिक्षा दी है कि अपने जीवन में हमेशा कर्म करते रहना चाहिए। हमारे सामने चाहे जितनी भी कठिनाइयाँ क्यों ना आएं, हमें कभी रुकना नहीं चाहिए। अपने कर्मपथ पर चलते हुए, अगर हमारे मित्र या संबंधी हमें सहायता देने आएं, तो वह हमें कभी भी स्वीकार नहीं करनी चाहिए। अगर एक बार सहायता ले ली, तो हम कमजोर पड़ जायेंगे और अपने कर्मपथ पर नहीं चल पाएंगे। इसीलिए हरिवंशराय बच्चन जी ने कहा है, जीवन की कड़ी धूप में चलते हुए, चाहे जितने भी घने वृक्ष आपके अग्निपथ में क्यों ना आएं, आपको कभी भी उनकी छाँव का आसरा लेने के लिए रुकना नहीं चाहिए। आपको बस अपने लक्ष्य की तरफ बिना रुके चलते रहना चाहिए। तू न थकेगा कभी! तू न थमेगा कभी! तू न मुड़ेगा कभी! कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ! अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ! भावार्थ : अग्निपथ कविता की इन पंक्तियों में हरिवंशराय बच्चन जी ने कहा है कि मनुष्य को अपने कर्म की राह पर चलते हुए कभी नहीं थकना चाहिए। चाहे वह कितना ही परेशान, बेचैन क्यों ना हो जाए, पर उसे अपने कर्म करते रहने चाहिए। कभी भी कर्मपथ पर चलते-चलते थमना नहीं चाहिए, अर्थात कभी अपने कर्मो को करते-करते रुकना नहीं चाहिए। आगे कवि कहते हैं कि मनुष्य को अपने जीवन में ये शपथ लेनी चाहिए कि वह कभी भी अपने कर्म के मार्ग से मुड़ेगा नहीं, चाहे उसके रास्ते कितने ही कठिन क्यों ना हों। यह महान दृश्य है चल रहा मनुष्य है अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ! भावार्थ : जब मनुष्य अपने कर्म के रास्ते पर चलता है, तो उसे धूल, तेज़ धूप, आंधी रूपी सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं का सामना करते-करते मनुष्य पसीने, आंसू एवं खून से लथ-पथ होकर भी अपने कर्म के सच्चे रास्ते पर आगे बढ़ता ही रहता है। ऐसे मनुष्य को उसकी मंज़िल के रास्ते पर चलते हुए देखना एक अद्भुत अनुभव होता है, इसीलिए अग्निपथ कविता की उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने इसे एक महान दृश्य कहा है। उनके अनुसार कठिनाइयों का सामना कर बिना रुके सच्चे रास्ते पर चलते-चलते ही मनुष्य अपनी ज़िंदगी की मंज़िल को पा सकता है।
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Sia ? 3 years, 3 months ago

भाषाविज्ञान/वाक्य परिवर्तन के कारण प्रयोग की नवीनता के कारण वाक्य रचना पद्धति में परिवर्तन आते हैं। वक्ता या लेखक अपने लेख में नवीनता लाने के लिए नए-नए प्रयोग करते रहते हैं। कुछ वक्ता परस्पर प्रयुक्त हो रहे वाक्यों के पद-क्रम में थोड़े बहुत परिवर्तन कर अधिक आकर्षण या प्रभाव पैदा करना चाहते हैं।
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Muscan Yadav 3 years, 8 months ago

जब लेखिका एवरेस्ट की चोटी पर पहुँची तब वहाँ तेज़ हवा के कारण बर्फ़ उड़ रही थी। एवरेस्ट की चोटी शंकु के आकार की थी।लेखिका को फावड़े से बर्फ़ की खुदाई करनी पड़ी ताकि स्वयं को सुरक्षित और स्थिर कर सके।
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Dharmendra Bhadoriya 3 years, 8 months ago

what a ANS

Mrityunjai Pratap Singh 3 years, 8 months ago

 दा इंडियन वायर समाचार राजनीति भारत व्यापार विदेश मनोरंजन स्वास्थ्य खेल शिक्षा विज्ञान दा इंडियन वायर » भाषा » अलंकार : परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भाषा अलंकार : परिभाषा, भेद एवं उदाहरण विषय-सूचि अलंकार की परिभाषा (definition of alankar in hindi) अलंकार के भेद (Types of Alankar) 1. शब्दालंकार शब्दालंकार के भेद: 1. अनुप्रास अलंकार 2. यमक अलंकार 3. श्लेष अलंकार  2. अर्थालंकार अर्थालंकार के भेद 1. उपमा अलंकार 2. रूपक अलंकार 3. उत्प्रेक्षा अलंकार 4. अतिशयोक्ति अलंकार 5. मानवीकरण अलंकार अलंकार की परिभाषा (definition of alankar in hindi) काव्यों की सुंदरता बढ़ाने वाले यंत्रों को ही अलंकार कहते हैं। जिस प्रकार मनुष्य अपनी सुंदरता बढ़ाने के लिए विभिन्न आभूषणों का प्रयोग करते हैं उसी तरह काव्यों की सुंदरता बढ़ाने के लिए अलंकारों का उपयोग किया जाता है। अलन अर्थात भूषण कर अर्थात सुसज्जित करने वाला अतः काव्यों को शब्दों व दूसरे तत्वों की मदद से सुसज्जित करने वाला ही अलंकार कहलाता है । अलंकार के भेद (Types of Alankar) अलंकार के मुख्यतः दो भेद होते हैं : शब्दालंकार अर्थालंकार 1. शब्दालंकार जो अलंकार शब्दों के माध्यम से काव्यों को अलंकृत करते हैं, वे शब्दालंकार कहलाते हैं। यानि किसी काव्य में कोई विशेष शब्द रखने से सौन्दर्य आए और कोई पर्यायवाची शब्द रखने से लुप्त हो जाये तो यह शब्दालंकार कहलाता है। शब्दालंकार के भेद: अनुप्रास अलंकार यमक अलंकार श्लेष अलंकार 1. अनुप्रास अलंकार जब किसी काव्य को सुंदर बनाने के लिए किसी वर्ण की बार-बार आवृति हो तो वह अनुप्रास अलंकार कहलाता है। किसी विशेष वर्ण की आवृति से वाक्य सुनने में सुंदर लगता है। जैसे : चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही थी जल थल में । ऊपर दिये गए उदाहरण में आप देख सकते हैं की ‘च’ वर्ण की आवृति हो रही है और आवृति हों से वाक्य का सौन्दर्य बढ़ रहा है। अतः यह अनुप्रास अलंकार का उदाहरण होगा। मधुर मधुर मुस्कान मनोहर , मनुज वेश का उजियाला। उपर्युक्त उदाहरण में ‘म’ वर्ण की आवृति हो रही है, एवं हम जानते हैं की जब किसी वाक्य में किसी वर्ण या व्यंजन की एक से अधिक बार आवृति होती है तब वहां अनुप्रास अलंकार होता है। अतएव यह उदाहरण अनुप्रास अलंकार के अंतर्गत आयेगा। कल कानन कुंडल मोरपखा उर पा बनमाल बिराजती है। जैसा की आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं की शुरू के तीन शब्दों में ‘क’ वर्ण की आवृति हो रही है, एवं हम जानते हैं की जब किसी वाक्य में किसी वर्ण या व्यंजन की एक से अधिक बार आवृति होती है तब वहां अनुप्रास अलंकार होता है। अतएव यह उदाहरण अनुप्रास अलंकार के अंतर्गत आएगा। कालिंदी कूल कदम्ब की डरनी।  जैसा की आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं की ‘क’ वर्ण की आवृति हो रही है, एवं हम जानते हैं की जब किसी वाक्य में किसी वर्ण या व्यंजन की एक से अधिक बार आवृति होती है तब वहां अनुप्रास अलंकार होता है। अतएव यह उदाहरण भी अनुप्रास आंकार के अंतर्गत आयेगा। कायर क्रूर कपूत कुचली यूँ ही मर जाते हैं।  ऊपर दिए गए उदाहरण में शुरू के चार शब्दों में ‘क’ वर्ण की आवृति हो रही है, एवं हम जानते हैं की जब किसी वाक्य में किसी वर्ण या व्यंजन की एक से अधिक बार आवृति होती है तब वहां अनुप्रास अलंकार होता है। अतएव यह उदाहरण अनुप्रास अलंकार के अंतर्गत आएगा। जे न मित्र दुख होहिं दुखारी, तिन्हहि विलोकत पातक भारी। निज दुख गिरि सम रज करि जाना, मित्रक दुख रज मेरु समाना।। ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा की आप देख सकते हैं यहां ‘द’ वर्ण की बार बार आवृति हो रही है , एवं हम जानते हैं की जब किसी वाक्य में किसी वर्ण या व्यंजन की एक से अधिक बार आवृति होती है तब वहां अनुप्रास अलंकार होता है। अतएव यह उदाहरण अनुप्रास अलंकार के अंतर्गत आएगा। रघुपति राघव राजा राम।  ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा की आप देख सकते है हर शब्द में ‘र’ वर्ण की बार बार आवृति हुई है जिससे इस वाक्य की शोभा।  साथ ही हम यह भी जानते हैं की जब किसी वाक्य में किसी एक वर्ण की आवृति होती है तो उस वाक्य में अनुप्रास अलंकार होता है। अतः यह वाक्य भी अनुप्रास अलंकार के अंतर्गत आएगा। अनुप्रास अलंकार के बारे में गहराई से पढ़नें के लिए यहाँ क्लिक करें – अनुप्रास अलंकार – उदाहरण एवं परिभाषा 2. यमक अलंकार जिस प्रकार अनुप्रास अलंकार में किसी एक वर्ण की आवृति होती है उसी प्रकार यमक अलंकार में किसी काव्य का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए एक शब्द की बार-बार आवृति होती है। दो बार प्रयोग किए गए शब्द का अर्थ अलग हो सकता है । जैसे: काली घटा का घमंड घटा। यहाँ ‘घटा’ शब्द की आवृत्ति भिन्न-भिन्न अर्थ में हुई है। पहले ‘घटा’ शब्द ‘वर्षाकाल’ में उड़ने वाली ‘मेघमाला’ के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है और दूसरी बार ‘घटा’ का अर्थ है ‘कम हुआ’। अतः यहाँ यमक अलंकार है। कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय। या खाए बौरात नर या पा बौराय।। इस पद्य में ‘कनक’ शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है। प्रथम कनक का अर्थ ‘सोना’ और दुसरे कनक का अर्थ ‘धतूरा’ है। अतः ‘कनक’ शब्द का दो बार प्रयोग और भिन्नार्थ के कारण उक्त पंक्तियों में यमक अलंकार की छटा दिखती है। माला फेरत जग गया, फिरा न मन का फेर। कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।  ऊपर दिए गए पद्य में ‘मनका’ शब्द का दो बार प्रयोग किया गया है। पहली बार ‘मनका’ का आशय माला के मोती से है और दूसरी बार ‘मनका’ से आशय है मन की भावनाओ से। अतः ‘मनका’ शब्द का दो बार प्रयोग और भिन्नार्थ के कारण उक्त पंक्तियों में यमक अलंकार की छटा दिखती है। कहै कवि बेनी बेनी ब्याल की चुराई लीनी जैसा की आप देख सकते हैं की ऊपर दिए गए वाक्य में ‘बेनी’ शब्द दो बार आया है। दोनों बार इस शब्द का अर्थ अलग है। पहली बार ‘बेनी’ शब्द कवि की तरफ संकेत कर रहा है। दूसरी बार ‘बेनी’ शब्द चोटी के बारे में बता रहा है। अतः उक्त पंक्तियों में यमक अलंकार है। यमक अलंकार के बारे में गहराई से पढ़नें के लिए यहाँ क्लिक करें – यमक अलंकार – उदाहरण एवं परिभाषा 3. श्लेष अलंकार श्लेष अलंकार ऊपर दिये गए दोनों अलंकारों से भिन्न है । श्लेष अलंकार में एक ही शब्द के विभिन्न अर्थ होते हैं। जैसे: रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून पानी गए न ऊबरे मोई मानस चून। इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है। अतः यह उदाहरण श्लेष के अंतर्गत आएगा। जे रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय ।बारे उजियारो करै, बढ़े अंघेरो होय। जैसा कि आप ऊपर उदाहरण में देख सकते हैं कि रहीम जी ने दोहे के द्वारा दीये एवं कुपुत्र के चरित्र को एक जैसा दर्शाने की कोशिश की है। रहीम जी कहते हैं कि शुरू में दोनों ही उजाला करते हैं लेकिन बढ़ने पर अन्धेरा हो जाता है। यहाँ बढे शब्द से दो विभिन्न अर्थ निकल रहे हैं। दीपक के सन्दर्भ में बढ़ने का मतलब है बुझ जाना जिससे अन्धेरा हो जाता है। कुपुत्र के सन्दर्भ में बढ़ने से मतलब है बड़ा हो जाना। बड़े होने पर कुपुत्र कुकर्म करता है जिससे परिवार में अँधेरा छा जात है। एक शब्द से ही डो विभिन्न अर्थ निकल रहे हैं अतः यह उदाहरण श्लेष अलंकार के अंतर्गत आएगा। सीधी चलते राह जो, रहते सदा निशंक| जो करते विप्लव, उन्हें, ‘हरि’ का है आतंक|| ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं हरि शब्द एक बार प्रयुक्त हुआ है लेकिन उसके दो अर्थ निकलते हैं। पहला अर्थ है बन्दर एवं दूसरा अर्थ है भगवान। यह दोहा बंदरों के सन्दर्भ में भी हो सकता है एवं भगवान के सन्दर्भ में भी। एक सहबद से डो अर्थ निकल रहे हैं, अतः यह उदाहरण श्लेष अलंकार के अंतर्गत आएगा। श्लेष अलंकार के बारे में गहराई से पढ़नें के लिए यहाँ क्लिक करें – श्लेष अलंकार – उदाहरण एवं परिभाषा  2. अर्थालंकार जब किसी वाक्य का सौन्दर्य उसके अर्थ पर आधारित होता है तब यह अर्थालंकार के अंतर्गत आता है । अर्थालंकार के भेद अर्थालंकार के मुख्यतः पाँच भेद होते हैं : उपमा अलंकार रूपक अलंकार उत्प्रेक्षा अलंकार अतिशयोक्ति अलंकार मानवीकरण अलंकार 1. उपमा अलंकार उप का अर्थ है समीप से और पा का अर्थ है तोलना या देखना । अतः जब दो भिन्न वस्तुओं में समानता दिखाई जाती है, तब वहाँ उपमा अलंकार होता है । जैसे: कर कमल-सा कोमल है । यहाँ पैरों को कमल के समान कोमल बताया गया है । अतः यहाँ उपमा अलंकार होगा। पीपर पात सरिस मन ड़ोला।  ऊपर दिए गए उदाहरण में मन को पीपल के पत्ते कि तरह हिलता हुआ बताया जा रहा है। इस उदाहरण में ‘मन’ – उपमेय है, ‘पीपर पात’ – उपमान है, ‘डोला’ – साधारण धर्म है एवं ‘सरिस’ अर्थात ‘के सामान’ – वाचक शब्द है। जैसा की हम जानते हैं की जब किन्ही दो वस्तुओं की उनके एक सामान धर्म की वजह से तुलना की जाती है तब वहां उपमा अलंकार होता है। अतः यह उदाहरण उपमा अलंकार के अंतर्गत आएगा। मुख चन्द्रमा-सा सुन्दर है।   ऊपर दिए गए उदाहरण में चेहरे की तुलना चाँद से की गयी है। इस वाक्य में ‘मुख’ – उपमेय है, ‘चन्द्रमा’ – उपमान है, ‘सुन्दर’ – साधारण धर्म  है एवं ‘सा’ – वाचक शब्द है।जैसा की हम जानते हैं की जब किन्ही दो वस्तुओं की उनके एक सामान धर्म की वजह से तुलना की जाती है तब वहां उपमा अलंकार होता है। अतः यह उदाहरण उपमा अलंकार के अंतर्गत आएगा। नील गगन-सा शांत हृदय था रो रहा।  जैसा की आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं यहां हृदय की नील गगन से तुलना की गयी है। इस वाक्य में हृदय – उपमेय है एवं नील गगन – उपमान है शांत – साधारण धर्म है एवं सा – वाचक शब्द है। जैसा की हम जानते हैं की जब किन्ही दो वस्तुओं की उनके एक सामान धर्म की वजह से तुलना की जाती है तब वहां उपमा अलंकार होता है। अतः यह उदारण उपमा अलंकार के अंतर्गत आएगा। उपमा के अंग : उपमेय : जिस वस्तु की समानता किसी दूसरे पदार्थ से दिखलायो जाये वह उपमेय होते है । जैसे: कर कमल सा कोमल है । इस उदाहरण में कर उपमेय है । उपमान : उपमेय को जिसके समान बताया जाये उसे उपमान कहते हैं । उक्त उदाहरण में ‘कमल’ उपमान है। उपमा अलंकार के बारे में गहराई से पढ़नें के लिए यहाँ क्लिक करें – उपमा अलंकार – उदाहरण एवं परिभाषा 2. रूपक अलंकार जब उपमान और उपमेय में अभिन्नता या अभेद दिखाया जाए तब यह रूपक अलंकार कहलाता है। जैसे: “मैया मैं तो चन्द्र-खिलौना लैहों” ऊपर दिए गए उदाहरण में चन्द्रमा एवं खिलोने में समानता न दिखाकर चाँद को ही खिलौना बोल दिया गया है। अतएव यह रूपक अलंकार होगा। चरण-कमल बंदौं हरिराई। ऊपर दिए गए गए वाक्य में चरणों को कमल के सामान न दिखाकर चरणों को ही कमल बोल दिया गया है। अतः यह रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा। वन शारदी चन्द्रिका-चादर ओढ़े।  दिए गए उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं चाँद की रोशनी को चादर के समान ना बताकर चादर ही बता दिया गया है। इस वाक्य में उपमेय – ‘चन्द्रिका’ है एवं उपमान – ‘चादर’ है। यहां आप देख सकते हैं की उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है। हम जानते हैं की जब अभिन्नता दर्शायी जाती ही तब वहां रूपक अलंकार होता है। अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा। पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।  ऊपर दिए गए उदाहरण में राम रतन को ही धन बता दिया गया है। ‘राम रतन’ – उपमेय पर ‘धन’ – उपमान का आरोप है एवं दोनों में अभिन्नता है।यहां आप देख सकते हैं की उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है। हम जानते हैं की जब अभिन्नता दर्शायी जाती ही तब वहां रूपक अलंकार होता है। अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा। रूपक अलंकार के बारे में गहराई से पढ़नें के लिए यहाँ क्लिक करें – रूपक अलंकार – उदाहरण एवं परिभाषा 3. उत्प्रेक्षा अलंकार जहाँ उपमेय में उपमान के होने की संभावना का वर्णन हो तब वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यदि पंक्ति में -मनु, जनु,मेरे जानते,मनहु,मानो, निश्चय, ईव आदि आता है बहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। जैसे: मुख मानो चन्द्रमा है।  ऊपर दिए गए उदाहरण में मुख के चन्द्रमा होने की संभावना का वर्णन हो रहा है। उक्त वाक्य में मानो भी प्रयोग किया गया है अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है। ले चला साथ मैं तुझे कनक। ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण।। ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं कनक का अर्थ धतुरा है। कवि कहता है कि वह धतूरे को ऐसे ले चला मानो कोई भिक्षु सोना ले जा रहा हो। काव्यांश में ‘ज्यों’ शब्द का इस्तेमाल हो रहा है एवं कनक – उपमेय में स्वर्ण – उपमान के होने कि कल्पना हो रही है। अतएव यह उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आएगा। सिर फट गया उसका वहीं। मानो अरुण रंग का घड़ा हो।  दिए गए उदाहरण में सिर कि लाल रंग का घड़ा होने कि कल्पना की जा रही है। यहाँ सिर – उपमेय है एवं लाल रंग का घड़ा – उपमान है। उपमेय में उपमान के होने कि कल्पना कि जा रही है। अतएव यह उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आएगा। नेत्र मानो कमल हैं।  ऊपर दिए गए उदाहरण में ‘नेत्र’ – उपमेय की ‘कमल’ – उपमान होने कि कल्पना कि जा रही है। मानो शब्द का प्रय्प्ग कल्पना करने के लिए किया गया है। आएव यह उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आएगा। उत्प्रेक्षा अलंकार के बारे में गहराई से पढ़नें के लिए यहाँ क्लिक करें – उत्प्रेक्षा अलंकार – उदाहरण एवं परिभाषा 4. अतिशयोक्ति अलंकार जब किसी बात का वर्णन बहुत बढ़ा-चढ़ाकर किया जाए तब वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है। जैसे : आगे नदियाँ पड़ी अपार, घोडा कैसे उतरे पार। राणा ने सोचा इस पार , तब तक चेतक था उस पार।  ऊपर दिए गए उदाहरण में चेतक की शक्तियों व स्फूर्ति का बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया है। अतएव यहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होगा। धनुष उठाया ज्यों ही उसने, और चढ़ाया उस पर बाण |धरा–सिन्धु नभ काँपे सहसा, विकल हुए जीवों के प्राण। ऊपर दिए गए वाक्यों में बताया गया है कि जैसे ही अर्जुन ने धनुष उठाया और उस पर बाण चढ़ाया तभी धरती, आसमान एवं नदियाँ कांपने लगी ओर सभी जीवों के प्राण निकलने को हो गए। यह बात बिलकुल असंभव है क्योंकि बिना बाण चलाये ऐसा हो ही नहीं सकता है। इस थथ्य का लोक सीमा से बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया है। अतः यह उदाहरण अतिशयोक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगा। अतिशयोक्ति अलंकार के बारे में गहराई से पढ़नें के लिए यहाँ क्लिक करें – अतिशयोक्ति अलंकार – उदाहरण एवं परिभाषा 5. मानवीकरण अलंकार जब प्राकृतिक चीज़ों में मानवीय भावनाओं के होने का वर्णन हो तब वहां मानवीकरण अलंकार होता है। जैसे : फूल हँसे कलियाँ मुस्कुराई।  ऊपर दिए गए उदाहरण में आप देख सकते हैं की फूलों के हसने का वर्णन किया गया है जो मनुष्य करते हैं अतएव यहाँ मानवीकरण अलंकार है। मेघमय आसमान से उतर रही है संध्या सुन्दरी परी सी धीरे धीरे धीरे | ऊपर दी गयी पंक्तियों में बताया गया है कि संध्या सुन्दर परी की तरह धीरे धीरे आसमान से नीचे उतर रही है।इस वाक्य में संध्या कि तुलना एक सुन्दर पारी से की है। एक निर्जीव की सजीव से।ये असलियत में संभव नहीं है  एवं हम यह भी जानते हैं की जब सजीव भावनाओं का वर्णन चीज़ों में किया जाता है तब यह मानवीकरण अलंकार होता है। अतएव यह उदाहरण मानवीकरण अलंकार के अंतर्गत आएगा। उषा सुनहरे तीर बरसाती, जय लक्ष्मी-सी उदित हुई।  ऊपर दिए गए उदाहरण में उषा यानी भोर को सुनहरे तीर बरसाती हुई नायिका के रूप में दिखाया जा रहा है। यहाँ भी निर्जीवों में मानवीय भावनाओं का होना दिख रहा है। हम जानते हैं की नायिका एक मनुष्य होती हैं ना की एक निर्जीव अतः यह संभव नहीं है। हम यह भी जानते हैं की जब सजीव भावनाओं का वर्णन चीज़ों में किया जाता है तब यह मानवीकरण अलंकार होता है। अतः यहाँ पर यह उदाहरण भी मानवीकरण अलंकार के अंतर्गत ही आएगा। मानवीकरण अलंकार के बारे में गहराई से पढ़नें के लिए यहाँ क्लिक करें – मानवीकरण अलंकार – उदाहरण एवं परिभाषा अलंकार के विषय में यदि आपका कोई भी सवाल या सुझाव है, तो आप उसे नीचे कमेंट में लिख सकते हैं।
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Gaurav Seth 3 years, 8 months ago

CBSE Class 9 is an important step in a student's life. Actual preparations for the class 10th board exam start from class 9th itself. Therefore, class 9 students must be attentive and focused on their studies. They should follow the right study material. They must be aware of their course curriculum to do study in an effective and productive way. Recently, CBSE made a major alteration in the syllabus of class 9th. 

 deleted portions of CBSE Class 9 Hindi Syllabus for 2020-2021:

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Pawan Belnekar 3 years, 8 months ago

Kgth
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Muscan Yadav 3 years, 8 months ago

बंद दरवाजे खोल देना –इसका अर्थ है कि जहाँ पहले सुनवाई नहीं होता थी, वहाँ अब बात सुनी जाती है। जहाँ पहले अपमान होता था, वहाँ अब मान-सम्मान होता है। यदि आदमी की पोशाक अच्छी होती है तो लोग उसका आदर सत्कार करते है। उसे कही भी आने-जाने से रोका नहीं जाता उसके लिए सभी रास्ते खुले होते है।
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Hãrjåß Käûr 3 years, 9 months ago

https://images.app.goo.gl/ZdMUg9PuFWYzYLyN8 ???????????? You'll have an idea from here
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Anitha Patel 3 years, 9 months ago

8 bhed hai

Kunal Gr 3 years, 9 months ago

8 bhed hote hai

Suhani Jayaswal 3 years, 9 months ago

Arth ke adhar par vakya ke8 bhed hote h

Vivek Soni 3 years, 9 months ago

Arth ke Aadhar per vakya ke 8 bhed hoye hai

Sunny Kumar 3 years, 9 months ago

Arth ke adhar par wakh ke eight bhed hote hai
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Sanchita Bhagade 3 years, 8 months ago

Please tell you. Question on construction
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Gaurav Seth 3 years, 9 months ago

नुनासिक


ध्यान दें- अनुनासिक की जगह अनुस्वार और अनुस्वार की जगह अनुनासिक के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में अंतर आ जाता है,जैसे –
हँस (हँसने की क्रिया)
हंस (एक पक्षी)।

हैं = ह + एँ
मैं = म् + एँ
में = म् + एँ
कहीं = क् + अ + ह् + ईं
गोंद = ग् + ओं + द् + अ
भौंकना = भ् + औं + क् + अ + न् + आ
पोंगल = प् + औं + ग् + अ + ल् + अ
जोंक = ज् + औं + क् + अ
शिरोरेखा के ऊपर मात्रा न होने पर इसे चंद्रबिंदु के रूप में ही लिखा जाता है; जैसे-आँगन, आँख, कुँआरा, चूंट आदि।

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