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  • 2 answers

Jyotheesh Khandelwal 4 years, 11 months ago

OP in FF

Mudita Mittal 4 years, 11 months ago

पक्षियों को पिंजरे में रखकर हमें उन्हें अपने परिवार के सदस्य की तरह रखना चाहिए हमने उन्हें तंग नहीं करना चाहिए और समय-समय पर दाना पानी देते रहना चाहिए
  • 1 answers

Mudita Mittal 4 years, 11 months ago

पक्षी अपनी गति व उड़ान इसलिए भूल गए हैं क्योंकि मनुष्य पक्षियों को पिंजरे में बंद कर देते हैं
  • 3 answers

Preet Verma 4 years, 11 months ago

क्योंकि पक्षियों को ऊँची उड़ान भरना, बहती नदी का जल पीना, नीम की कडवी नीमबोरिया खाना पसंद है उनको पिंजरे मे रहना पसंद नही है

Amarjeet Singh 4 years, 11 months ago

Because indepence for birds is very important than this ?

Mudita Mittal 4 years, 11 months ago

हर प्रकार की सुख सुविधाएं पाकर भी पक्षी पिंजरे में बंद नहीं रहना चाहते क्योंकि उन्हें बंधन नहीं आजादी पसंद है वह तो खुली आकाश में उल्टी उड़ान भरना अच्छे लगता है बहता जल पीना कर भी नहीं बोलना खाना ही पसंद है
  • 2 answers

Yogita Ingle 4 years, 11 months ago

पक्षी उन्मुक्त होकर वनों की कड़वी निबोरियाँ खाना, खुले और विस्तृत आकाश में उड़ना, नदियों का शीतल जल पीना, पेड़ की सबसे ऊँची टहनी पर झूलना और क्षितिज से मिलन करने की इच्छाओं को पूरी करना चाहते हैं

Mudita Mittal 4 years, 11 months ago

झूला आदि इच्छाएं को पूरी करना चाहते हैं
  • 1 answers
Pata nhi
  • 2 answers

Saurav Bisht 4 years, 11 months ago

Pujari puja karta tha

Preet Verma 4 years, 11 months ago

पुजारी पूजा करेगा
  • 5 answers

Kisan Salunke 5 years ago

Colour

Rachna Bhagat 5 years ago

लाल रंग है

Pushpa Kumari 5 years ago

लाल रंग है

Munaza Fayaz 5 years ago

रंग

Preet Verma 5 years ago

रंग
  • 4 answers
Lesson number 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15

Vishesh Gurjar 5 years ago

गांवों
वे गांव

Yogita Ingle 5 years ago

बहुवचन – शब्द के जिस रूप से उसके एक से अधिक होने का पता चले, उसे बहुवचन कहते हैं; जैसे- कपड़े, स्त्रियाँ, पेंसिलें, बकरियाँ, पत्ते, पंखे आदि।

  • 3 answers

Preet Verma 5 years ago

त फोर तोता

Tanish Thakur 5 years ago

T
T
  • 5 answers

Bheemesh Jaiswal 4 years, 11 months ago

Chapter 2 padh lo pahle pura

Vishesh Gurjar 5 years ago

लखक की दादाजी

Anjali Verma 5 years ago

Hindi ka ch-2 main iska answer hai

Tanish Thakur 5 years ago

padh lo pahle pura

Preet Verma 5 years ago

Chapter 2 padh lo pahle pura
  • 5 answers

Preet Verma 5 years ago

युधिष्ठिर, भीम,अर्जुन, नकुल, और सहदेव

Dharitri Das 5 years ago

उत्तर :- पांडव पाँच भाई थे- युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव।
Yudhishtir , bheem , arjun , nakul , sahadev

Sehrish Naaz 5 years ago

Yudhistir, bheem, arjun, nakul aur sahdev

Yogita Ingle 5 years ago

पांडव पाँच भाई थे- युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव।

  • 5 answers

Preet Verma 5 years ago

उसकी जख्मी टांग के कारण

Tanish Thakur 5 years ago

उत्तर :- ख ) उसकी जख्मी टांग के कारण |

Dharitri Das 5 years ago

उत्तर :- ख ) उसकी जख्मी टांग के कारण |

Manika Sehgal 5 years ago

Please tell the answer from above option

Yogita Ingle 5 years ago

एक दिन महादेवी वर्मा “नखासकोने” से निकली तो बड़े मियाँ ने उन्हें एक मोरनी के बारे में बताया जिसका पाँव घायल था। लेखिका उसे सात रूपये में खरीदकर अपने घर ले आयीं और उसकी देख-भाल की। वह कुछ ही दिनों में स्वस्थ हो गयी। उसका नाम कुब्जा रखा गया। वह स्वभाव से मेल-मिलाप वाली न थी।

  • 2 answers

Vishesh Gurjar 5 years ago

लखिका ने दूसरी मोरनी का नाम उसके स्वभाव के कारण रखा

Tanish Thakur 5 years ago

उत्तर :- ख ) उसकी जख्मी टांग के कारण |
  • 3 answers
Khoon Ki Ek Boond mein bhi Bahut Si chijen Pai Jaati Hai Iske do Bhag Hai pahla plasma kahlata hai Jo Ek Tarah ka Bhag hai dusra Bhag ko platelets Kaha Jata Hai ismein Kuchh Lal,Safed tatha Ranghin kan Hote Hain ye kan plasma mein tairte rahte hain khoon mein pratyek Kan ka Apna Karya Hota Hai atah khoon kobhanumati Ka pitara Kaha jata hai

Tanish Thakur 5 years ago

Khoon Ki Ek Boond mein bhi Bahut Si chijen Pai Jaati Hai Iske do Bhag Hai pahla plasma kahlata hai Jo Ek Tarah ka Bhag hai dusra Bhag ko platelets Kaha Jata Hai ismein Kuchh Lal,Safed tatha Ranghin kan Hote Hain ye kan plasma mein tairte rahte hain khoon mein pratyek Kan ka Apna Karya Hota Hai atah khoon kobhanumati Ka pitara Kaha jata hai

Preet Verma 5 years ago

Khoon Ki Ek Boond mein bhi Bahut Si chijen Pai Jaati Hai Iske do Bhag Hai pahla plasma kahlata hai Jo Ek Tarah ka Bhag hai dusra Bhag ko platelets Kaha Jata Hai ismein Kuchh Lal,Safed tatha Ranghin kan Hote Hain ye kan plasma mein tairte rahte hain khoon mein pratyek Kan ka Apna Karya Hota Hai atah khoon kobhanumati Ka pitara Kaha jata hai
  • 4 answers

Tanish Thakur 5 years ago

Karan kunti ke putra te

Preet Verma 5 years ago

Karan kunti ke putra te

Saksham Jha 5 years ago

Karan kunti ke putra te

A D 5 years ago

Karan kunti ke putra te
  • 5 answers

Tanish Thakur 5 years ago

Jiska kanth nila ho

Preet Verma 5 years ago

Jiska kanth nila ho
Awaaz

Aryan Raj 5 years ago

Jiska kanth nila ho
Neele kanth wala
  • 1 answers

Preet Verma 5 years ago

कथा महाभारत कथा
  • 4 answers

Vishesh Gurjar 5 years ago

कपड़े की मूठ दी

Preet Verma 5 years ago

Ghamdi Ki Aag se Tinka nikaalne ke liye Uske aaspaas Ke Logon Ne kapde Ki Moot Banakar uski Aankh per Lagaya Aur tinka nikalne ka Prayas Kiya

Shagun Kanwar 5 years ago

घमंडी की आंख से तिनका निकालने के लिए उसके आसपास के लोगों ने कपड़े की मूड बनाकर उसकी आंख में डाली।

Gaurav Seth 5 years ago

घमंडी की आँख से तिनका निकालने के लिए उसके आसपास लोगों ने क्या किया?
उत्तर
घमंडी की आँख से तिनका निकालने के लिए उसके आसपास के लोगों ने कपड़े की मुँठ बनाकर उसकी आँख में डाली।

  • 5 answers
Red Colours

Saksham Jha 5 years ago

Red colour
Red colour or boy child

Shagun Kanwar 5 years ago

Red colour

Om Bisht 5 years ago

red clour
  • 3 answers

Preet Verma 5 years ago

महादेवी वर्मा

Shagun Kanwar 5 years ago

महादेवी वर्मा

Gaurav Seth 5 years ago

पाठ का नाम-नीलकंठ, लेखिका का नाम-महादेवी वर्मा।

यह पाठ एक रेखाचित्र है जिसमें लेखिका ने अपने सभी पालतू पशुओं में से एक मोर जिसे उन्होंने नीलकंठ नाम दिया है उसका वर्णन किया है| उसके स्वभाव, व्यवहार और चेष्टाओं को विस्तार से बताया है|

एक बार लेखिका अतिथि को स्टेशन पहुँचाकर लौट रही थी तो बड़े मियाँ चिड़ियावाले के यहाँ से मोर-मोरनी के दो बच्चे ले आईं। जब वे दोनों पक्षी लेकर घर पहुँची तो सबने कहा कि वे मोर की जगह तीतर ले आई है| दुकानदार ने उन्हें ठग लिया है। यह सुनकर लेखिका चिढ़कर दोनों पक्षियों को अपने पढ़ने-लिखने के कमरे में ले गई। दोनों पक्षी उनके कमरे में आजादी से घूमते रहे। जब वे लेखिका से घुल-मिल गए तो वे लेखिका का ध्यान अपनी हरकतों से अपनी ओर खींचते। जब वे थोड़े बड़े हुए तो उसे अन्य पशु-पक्षियों के साथ जालीघर पहुँचा दिया गया। धीरे-धीरे दोनों बड़े होने लगे और सुंदर मोर-मोरनी में बदल गए।

मोर के सिर की कलगी बड़ी और चमकीली हो गई थी। चोंच और तीखी हो गई थी। गर्दन लंबी नीले-हरे रंग की थी। पंखों में चमक आने लगी थी। मोरनी का विकास मोर की तरह सौंदर्यमयी नहीं था परंतु वह मोर की उपयुक्त
सहचारिणी थी। मोर की नीली गरदन के कारण उसका नाम नीलकंठ रखा गया था। मोरनी मोर की छाया थी इसलिए उसका नाम राधा रखा गया। नीलकंठ लेखिका के चिड़ियाघर का स्वामी बन गया था। जब कोई
पक्षी मोर की बात नहीं मानता था तब मोर उसे अपनी चोंच के प्रहार से दंड देता था। एक बार एक साँप ने खरगोश के बच्चे को मुँह में दबा लिया था| नीलकंठ ने उस साँप को अपने चोंच के प्रहार से टुकड़े कर दिए| खरगोश के बच्चे को रातभर अपने पंखों के नीचे रखकर गरमी देता रहा।

वसंत पर मेघों की सांवली छाया में अपने इंद्रधनुषी पंख फैलाकर नीलकंठ एक सहजात लय-ताल में नाचता रहता। लेखिका को नीलकंठ का नाचना बहुत अच्छा लगता। अनेक विदेशी महिलाओं ने उसकी मुद्राओं को अपने प्रति व्यक्त सम्मान समझकर उसे 'परफेक्ट जेंटलमैन' की उपाधि दे दी थी। नीलकंठ और राधा को वर्षा ऋतु बहुत अच्छी लगती थी। उन्हें बादलों के आने से पहले उनकी आहट सुनाई देने लगती थी। बादलों की गड़गड़ाहट, वर्षा की रिम-झिम, बिजली की चमक जितनी अधिक होती थी, नीलकंठ के नृत्य में उतनी ही तन्मयता और वेग बढ़ता जाता था। बरसात के समाप्त होने पर वह दाहिने |पंजे पर दाहिना पंख और बाएँ पर बायाँ पंख फैलाकर सुखाने लग जाता था। उन दोनों के प्रेम में एक दिन तीसरा भी आ गया।

एक दिन लेखिका को बड़े मियाँ की दुकान से एक घायल मोरनी सात रुपये में मिली। पंजों की मरहमपट्टी करने पर एक महीने में वह ठीक हो गई और डगमगाती हुई चलने लगी तो उसे जाली घर में पहुँचा दिया गया उसके दोनों पैर खराब हो गए थे, जिसके कारण वह डगमगाती हुई चलती थी। उसका नाम 'कुब्जा' रखा गया था| नीलकंठ और राधा को वह जब भी साथ देखती, उन्हें मारने दौड़ती। उसने चोंच से मार-मारकर राधा की कलगी और पंख नोच डाले थे। नीलकंठ उससे दूर भागता, पर वह उसके साथ रहना चाहती।

कुब्जा की किसी भी पक्षी से मित्रता नहीं थी। कुछ समय बाद राधा ने दो अंडे दिए। वह उन अंडों को अपने पंखों में छिपाए बैठी रहती थी। जैसे ही कुब्जा को राधा के अंडों के विषय में पता चला उसने अपनी चोंच के प्रहार से उसके अंडों को तोड़ दिया। नीलकंठ इससे बहुत दु:खी हो गया। लेखिका को आशा थी कि कुछ दिनों में सब | में मेल हो जाएगा, परंतु ऐसा नहीं हुआ।

तीन-चार माह के बाद अचानक एक दिन सुबह लेखिका ने नीलकंठ को मरा हुआ पाया। न उसे कोई बीमारी हुई थी और न ही उसके शरीर पर चोट का कोई निशान था। लेखिका ने उसे अपनी शाल में लपेट कर संगम में प्रवाहित कर दिया। नीलकंठ के न रहने पर राधा कई दिन तक कोने में बैठी रह नीलकंठ का इंतज़ार करती रही। परंतु कुब्जा ने नीलकंठ के दिखाई न देने पर उसकी खोज आरंभ कर दी। एक दिन वह लेखिका की अल्सेशियन कुतिया कजली के सामने पड़ गई। कुब्जा ने उसे देखते ही चोंच से प्रहार कर दिया। कजली ने अपने स्वभाव के अनुरूप कुब्जा की गर्दन पर दो दाँत लगा दिए। कुब्जा का इलाज करवाया गया परंतु वह नहीं बची| राधा नीलकंठ की प्रतीक्षा कर रही है। बादलों को देखते ही वह अपनी केका ध्वनि से नीलकंठ को बुलाती है।

 

  • 5 answers

Preet Verma 5 years ago

कांचा

Preet Verma 5 years ago

Ek tinka

Harman Deep 5 years ago

hindi gulsane
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Hi

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