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Ask QuestionPosted by Mudita Mittal 4 years, 11 months ago
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Mudita Mittal 4 years, 11 months ago
Posted by Mudita Mittal 4 years, 11 months ago
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Mudita Mittal 4 years, 11 months ago
Posted by Mudita Mittal 4 years, 11 months ago
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Preet Verma 4 years, 11 months ago
Amarjeet Singh 4 years, 11 months ago
Mudita Mittal 4 years, 11 months ago
Posted by Mudita Mittal 4 years, 11 months ago
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Yogita Ingle 4 years, 11 months ago
पक्षी उन्मुक्त होकर वनों की कड़वी निबोरियाँ खाना, खुले और विस्तृत आकाश में उड़ना, नदियों का शीतल जल पीना, पेड़ की सबसे ऊँची टहनी पर झूलना और क्षितिज से मिलन करने की इच्छाओं को पूरी करना चाहते हैं।
Posted by Mudita Mittal 4 years, 11 months ago
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Posted by Dharmveer Gulwani 5 years ago
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Posted by Manika Sehgal 5 years ago
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Posted by Prachi Rajawat 5 years ago
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Posted by Sonam Singh 5 years ago
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Posted by Rathod Shiva 5 years ago
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Yogita Ingle 5 years ago
बहुवचन – शब्द के जिस रूप से उसके एक से अधिक होने का पता चले, उसे बहुवचन कहते हैं; जैसे- कपड़े, स्त्रियाँ, पेंसिलें, बकरियाँ, पत्ते, पंखे आदि।
Posted by Palak Sharma 5 years ago
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Posted by Riddhi Rao Bittoo 5 years ago
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Posted by Ravi Dudi 5 years ago
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Posted by Isha,???????????????❤️❤️?? Isha 5 years ago
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Posted by Samridhi Mishra 5 years ago
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Dharitri Das 5 years ago
Posted by Manika Sehgal 5 years ago
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Yogita Ingle 5 years ago
एक दिन महादेवी वर्मा “नखासकोने” से निकली तो बड़े मियाँ ने उन्हें एक मोरनी के बारे में बताया जिसका पाँव घायल था। लेखिका उसे सात रूपये में खरीदकर अपने घर ले आयीं और उसकी देख-भाल की। वह कुछ ही दिनों में स्वस्थ हो गयी। उसका नाम कुब्जा रखा गया। वह स्वभाव से मेल-मिलाप वाली न थी।
Posted by Manika Sehgal 5 years ago
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Posted by Legend Yt 5 years ago
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Bheemesh Jaiswal 5 years ago
Tanish Thakur 5 years ago
Preet Verma 5 years ago
Posted by A D 5 years ago
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Posted by Mitali Chincholikar 5 years ago
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Posted by Suraj Meena 5 years ago
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Posted by Riya Sharon 5 years ago
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Preet Verma 5 years ago
Shagun Kanwar 5 years ago
Gaurav Seth 5 years ago
घमंडी की आँख से तिनका निकालने के लिए उसके आसपास लोगों ने क्या किया?
उत्तर
घमंडी की आँख से तिनका निकालने के लिए उसके आसपास के लोगों ने कपड़े की मुँठ बनाकर उसकी आँख में डाली।
Posted by Riya Sharon 5 years ago
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Posted by Chandrasekhar Sahoo 5 years ago
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Posted by Vaishnavi Chowdary 5 years ago
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Gaurav Seth 5 years ago
पाठ का नाम-नीलकंठ, लेखिका का नाम-महादेवी वर्मा।
यह पाठ एक रेखाचित्र है जिसमें लेखिका ने अपने सभी पालतू पशुओं में से एक मोर जिसे उन्होंने नीलकंठ नाम दिया है उसका वर्णन किया है| उसके स्वभाव, व्यवहार और चेष्टाओं को विस्तार से बताया है|
एक बार लेखिका अतिथि को स्टेशन पहुँचाकर लौट रही थी तो बड़े मियाँ चिड़ियावाले के यहाँ से मोर-मोरनी के दो बच्चे ले आईं। जब वे दोनों पक्षी लेकर घर पहुँची तो सबने कहा कि वे मोर की जगह तीतर ले आई है| दुकानदार ने उन्हें ठग लिया है। यह सुनकर लेखिका चिढ़कर दोनों पक्षियों को अपने पढ़ने-लिखने के कमरे में ले गई। दोनों पक्षी उनके कमरे में आजादी से घूमते रहे। जब वे लेखिका से घुल-मिल गए तो वे लेखिका का ध्यान अपनी हरकतों से अपनी ओर खींचते। जब वे थोड़े बड़े हुए तो उसे अन्य पशु-पक्षियों के साथ जालीघर पहुँचा दिया गया। धीरे-धीरे दोनों बड़े होने लगे और सुंदर मोर-मोरनी में बदल गए।
मोर के सिर की कलगी बड़ी और चमकीली हो गई थी। चोंच और तीखी हो गई थी। गर्दन लंबी नीले-हरे रंग की थी। पंखों में चमक आने लगी थी। मोरनी का विकास मोर की तरह सौंदर्यमयी नहीं था परंतु वह मोर की उपयुक्त
सहचारिणी थी। मोर की नीली गरदन के कारण उसका नाम नीलकंठ रखा गया था। मोरनी मोर की छाया थी इसलिए उसका नाम राधा रखा गया। नीलकंठ लेखिका के चिड़ियाघर का स्वामी बन गया था। जब कोई
पक्षी मोर की बात नहीं मानता था तब मोर उसे अपनी चोंच के प्रहार से दंड देता था। एक बार एक साँप ने खरगोश के बच्चे को मुँह में दबा लिया था| नीलकंठ ने उस साँप को अपने चोंच के प्रहार से टुकड़े कर दिए| खरगोश के बच्चे को रातभर अपने पंखों के नीचे रखकर गरमी देता रहा।
वसंत पर मेघों की सांवली छाया में अपने इंद्रधनुषी पंख फैलाकर नीलकंठ एक सहजात लय-ताल में नाचता रहता। लेखिका को नीलकंठ का नाचना बहुत अच्छा लगता। अनेक विदेशी महिलाओं ने उसकी मुद्राओं को अपने प्रति व्यक्त सम्मान समझकर उसे 'परफेक्ट जेंटलमैन' की उपाधि दे दी थी। नीलकंठ और राधा को वर्षा ऋतु बहुत अच्छी लगती थी। उन्हें बादलों के आने से पहले उनकी आहट सुनाई देने लगती थी। बादलों की गड़गड़ाहट, वर्षा की रिम-झिम, बिजली की चमक जितनी अधिक होती थी, नीलकंठ के नृत्य में उतनी ही तन्मयता और वेग बढ़ता जाता था। बरसात के समाप्त होने पर वह दाहिने |पंजे पर दाहिना पंख और बाएँ पर बायाँ पंख फैलाकर सुखाने लग जाता था। उन दोनों के प्रेम में एक दिन तीसरा भी आ गया।
एक दिन लेखिका को बड़े मियाँ की दुकान से एक घायल मोरनी सात रुपये में मिली। पंजों की मरहमपट्टी करने पर एक महीने में वह ठीक हो गई और डगमगाती हुई चलने लगी तो उसे जाली घर में पहुँचा दिया गया उसके दोनों पैर खराब हो गए थे, जिसके कारण वह डगमगाती हुई चलती थी। उसका नाम 'कुब्जा' रखा गया था| नीलकंठ और राधा को वह जब भी साथ देखती, उन्हें मारने दौड़ती। उसने चोंच से मार-मारकर राधा की कलगी और पंख नोच डाले थे। नीलकंठ उससे दूर भागता, पर वह उसके साथ रहना चाहती।
कुब्जा की किसी भी पक्षी से मित्रता नहीं थी। कुछ समय बाद राधा ने दो अंडे दिए। वह उन अंडों को अपने पंखों में छिपाए बैठी रहती थी। जैसे ही कुब्जा को राधा के अंडों के विषय में पता चला उसने अपनी चोंच के प्रहार से उसके अंडों को तोड़ दिया। नीलकंठ इससे बहुत दु:खी हो गया। लेखिका को आशा थी कि कुछ दिनों में सब | में मेल हो जाएगा, परंतु ऐसा नहीं हुआ।
तीन-चार माह के बाद अचानक एक दिन सुबह लेखिका ने नीलकंठ को मरा हुआ पाया। न उसे कोई बीमारी हुई थी और न ही उसके शरीर पर चोट का कोई निशान था। लेखिका ने उसे अपनी शाल में लपेट कर संगम में प्रवाहित कर दिया। नीलकंठ के न रहने पर राधा कई दिन तक कोने में बैठी रह नीलकंठ का इंतज़ार करती रही। परंतु कुब्जा ने नीलकंठ के दिखाई न देने पर उसकी खोज आरंभ कर दी। एक दिन वह लेखिका की अल्सेशियन कुतिया कजली के सामने पड़ गई। कुब्जा ने उसे देखते ही चोंच से प्रहार कर दिया। कजली ने अपने स्वभाव के अनुरूप कुब्जा की गर्दन पर दो दाँत लगा दिए। कुब्जा का इलाज करवाया गया परंतु वह नहीं बची| राधा नीलकंठ की प्रतीक्षा कर रही है। बादलों को देखते ही वह अपनी केका ध्वनि से नीलकंठ को बुलाती है।
Posted by Manhas Manhas 5 years ago
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Posted by Mehak Deep Singh Sandhu 5 years ago
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Posted by Harmanjot Singh Singh 5 years ago
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Jyotheesh Khandelwal 4 years, 11 months ago
3Thank You