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संधि इत्यस्य परिभाषां लिखित्वा प्रत्येकस्वरसन्धे: पञ्च-पञ्च …

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संधि इत्यस्य परिभाषां लिखित्वा प्रत्येकस्वरसन्धे: पञ्च-पञ्च उदाहरणानि लिखित। (संधि की परिभाषा लिखकर के प्रत्येक स्वर संधि के पांच पांच उदाहरण लिखिए।) ‌ ‌‌ यह प्रश्न मुझे ग्रीष्मकालीन गृह कार्य में मिला है।
  • 4 answers

Rakhi Singh 3 years, 5 months ago

लता + इव = लतेव गं गा + इति = गं गेति अ/आ + उ/ऊ = ओ भाग्‍य + उदय: = भाग्‍योदय: सर्य ू + उदय: = सर्यो ू दय: नर + उत्तम: = नरोत्तम: हित + उपदेश: = हितोपदेश: महा + उत्‍सव: = महोत्‍सव: गं गा + उदकम् = गं गोदकम् यथा + उचितम् = यथोचितम् गं गा + ऊर्मि: = गं गोर्मि: महा + ऊरु: = महोरु: नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा अ/आ + ऋ/ॠ = अर् देव + ऋषि = देवर्षि: ग्रीष्‍म + ऋत: ु = ग्रीष्‍मर्तु: ‍मर्तु वर्षा + ऋतु = वर्षर्तु: र्षर्तु iii) वद् ृधि* सन्‍धि (वद् ृधिरेचि)— यदि 'अ' या 'आ' के बाद 'ए' या 'ऐ' आए तो दोनों के स्‍थान पर 'ऐ' एकादेश हो जाता है। इसी तरह 'अ' या 'आ' के बाद 'ओ' या 'औ' आए तो दोनों के स्‍थान पर 'औ' एकादेश हो जाता है। अ/आ + ए/ऐ = ऐ उदाहरण— मम + एव = ममैव एक + एकम् = एकै कम् तव + एव = तवैव * अा, एे एवं औ वर्णों को 'वद् ृधि' वर्ण कहते हैं।

Rakhi Singh 3 years, 5 months ago

लता + इव = लतेव गं गा + इति = गं गेति अ/आ + उ/ऊ = ओ भाग्‍य + उदय: = भाग्‍योदय: सर्य ू + उदय: = सर्यो ू दय: नर + उत्तम: = नरोत्तम: हित + उपदेश: = हितोपदेश: महा + उत्‍सव: = महोत्‍सव: गं गा + उदकम् = गं गोदकम् यथा + उचितम् = यथोचितम् गं गा + ऊर्मि: = गं गोर्मि: महा + ऊरु: = महोरु: नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा अ/आ + ऋ/ॠ = अर् देव + ऋषि = देवर्षि: ग्रीष्‍म + ऋत: ु = ग्रीष्‍मर्तु: ‍मर्तु वर्षा + ऋतु = वर्षर्तु: र्षर्तु iii) वद् ृधि* सन्‍धि (वद् ृधिरेचि)— यदि 'अ' या 'आ' के बाद 'ए' या 'ऐ' आए तो दोनों के स्‍थान पर 'ऐ' एकादेश हो जाता है। इसी तरह 'अ' या 'आ' के बाद 'ओ' या 'औ' आए तो दोनों के स्‍थान पर 'औ' एकादेश हो जाता है। अ/आ + ए/ऐ = ऐ उदाहरण— मम + एव = ममैव एक + एकम् = एकै कम् तव + एव = तवैव * अा, एे एवं औ वर्णों को 'वद् ृधि' वर्ण कहते

Rakhi Singh 3 years, 5 months ago

दैत्‍य + अरि: = दैत्‍यारि: च + अपि = चापि विद्या + अर्थी = विद्यार्थी गिरि + इन्‍द्र = गिरीन्‍द्र: कपि + ईश: = कपीश: मही + ईश: = महीश: नदी + ईश: = नदीश: लक्ष्‍मी + ईश्‍वर: = लक्ष्‍मीश्‍वर: स + उ ु क्‍ति: = सक ू्‍ति: भान + उद ु य: = भानद ूय: पित + ऋणम ृ ् = पितणमॄ ् ii) गु ण* सन्‍धि (आद्गु ण:)— यदि 'अ' या 'आ' के बाद 'इ' या 'ई' आए। दोनों के स्‍थान पर ए एकादेश हो जाता है। इसी तरह यदि 'अ' या 'आ' के बाद 'उ' या 'ऊ' आए तो दोनों के स्‍थान पर 'ओ' एकादेश हो जाते हैं। इसी तरह 'अ' या 'आ' के बाद यदि 'ऋ' आए तो दोनों के स्‍थान पर 'अर' ् एकादेश हो जाता है। उदाहरण — अ/आ + इ/ई = ए उप + इन्‍द्र: = उपेन्‍द्र: देव + इन्‍द्र: = देवेन्‍द्र: गण + ईश: = गणेश: महा + ईश: = महेश: नर + ईश: = नरेश: सर + ईश: ु = सरेश: ु * अ, ए एवं ओ वर्णों को 'गण' व ु र्ण कहा जाता है।

Rakhi Singh 3 years, 5 months ago

व्‍याकरण के सं दर्भ में 'सन्‍धि' शब्‍द का अर्थ है वर्णविकार। यह वर्णविधि है। दो पदों या एक ही पद में दो वर्णों के परस्‍पर व्‍यवधानरहित सामीप्‍य अर्थात स् ‍ंहि ता में जो वर्णविकार (परिवर्तन) होता है, उसे सन्‍धि कहते हैं, यथा— विद्या + आलय: = विद्यालय:। यहाँ पर विद् + आ + य् आ + लय: में आ + आ की अत्‍यन्‍त समीपता के कारण दो दीर व्घ र्णोें के स्‍थान पर एक 'आ' वर्ण रूप दीर्घ एकादेश हो गया है । सन्‍धि के मख्ु‍यतया तीन भेद होते हैं— 1. स्‍वर सन्‍धि (अच सन्‍धि), ् 2. व्‍यं जन सन्‍धि (हल सन्‍धि), एव ् ं 3. विसर्ग सन्‍धि 1. स्‍वर (अच्) सन्‍धि दो स्‍वर वर्णों की अत्यंत समीपता के कारण यथाप्राप्‍त वर्णविकार को स्वर सन्धि कहते हैं। इसके निम्‍नलिखित भेद हैं— i) दीर्घसन्‍धि (अक: सवर्णेदीर्घ:)— यदि ह्रस्‍व या दीर अ, इ, उ ्घ तथा 'ऋ' स्‍वरों के पश्‍चात ह्रस् ् ‍व या दीर अ, इ, उ ्घ या ऋ स्‍वर आएँ तो दोनों िमलकर क्रमश: आ, ई, ऊ तथा ऋॄ हो जाते हैं। अ/आ + आ/अ = आ इ/ई + ई/इ = ई उ/ऊ + ऊ/उ = ऊ ऋ/ऋृ + ऋृ/ऋ = ऋृ उदाहरण— पस् ु‍तक + आलय: = पस् ु‍तकालय: देव + अाशीष: = देवाशीष:
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