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Posted by Kv Unboxing 3 years, 7 months ago
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Sia ? 3 years, 7 months ago
उदारचरितानां तु वसुधैवकुटम्बकम्॥
(लघुचेतसाम् – छोटे चिंतन वाले; वसुधैवकुटम्बकम् -सम्पूर्ण पृथ्वी ही परिवार है.)
ये अपना है ये दूसरे का है. ऐसा टुच्ची सोच रखने वाले कहते हैं. उदार लोगों के लिए पोरी दुनिया फैमिली जैसी है.
अधनस्य कुतो मित्रम् अमित्रस्य कुतो सुखम् ॥
आलस करने वाले को नॉलेज कैसे होगी? जिसके पास नॉलेज नहीं है उसके पास पैसा भी ,जिसके पास पैसा नहीं होगा उसके दोस्त भी नहीं बनेंगे और बिना फ्रेंड्स के पटी कैसे करोगे? मतलब बिना फ्रेंड्स के सुख कहां से आएगा ब्रो?
अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ:।।
(प्रियवादिन: – प्रिय बोलने वाले ,पथ्यस्य – हितकर बात )
मीठा-मीठा और अच्छा लगने वाला बोलने वाले बहुतायत में मिलते हैं. लेकिन अच्छा न लगने वाला और हित में बोलने वाले और सुनने वाले लोग बड़ी मुश्किल से मिलते हैं.
वानरानुपदिश्याथ स्थानभ्रष्टा ययुः खगाः ॥
(विद्वानेवोपदेष्टव्यो – विद्वान को ही उपदेश करना चाहिए, कदाचन – किसी भी समय)
सलाह भी समझदार को देनी चाहिए न कि किसी मूर्ख को, ध्यान रहे कि बंदरों को सलाह देने के कारण पंक्षियों ने भी अपना घोसला गंवा दिया था.
लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति ॥
(यस्य – जिसका,लोचनाभ्यां – आंखों से)
जिसके पास खुद की बुद्धि नहीं किताबें भी उसके किस काम की? जिसकी आंखें ही नहीं हैं वो आईने का क्या करेगा?
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कुर्वाणो नावसीदति ॥
(रिपु: – दुश्मन)
आलस ही आदमी की देह का सबसे बड़ा दुश्मन होता है और परिश्रम सबसे बड़ा दोस्त. परिश्रम करने वाले का कभी नाश या नुकसान नहीं होता.
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥
(सुप्तस्य – सोते हुए)
कार्य करने से ही सफलता मिलती है, न कि मंसूबे गांठने से. सोते हुए शेर के मुंह में भी हिरन अपने से नहीं आकर घुस जाता कि ले भाई खा ले मेरे को, तुझको बड़ी भूख लगी होगी.
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥
(यदुक्तं – जो कहा गया, परपीडनम् – दूसरे को दुःख देना)
करोड़ों ग्रंथों में जो बात कही गई है वो आधी लाइन में कहता हूं, दूसरे का भला करना ही सबसे बड़ा पुण्य है और दूसरे को दुःख देना सबसे बड़ा पाप.
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥
पढ़ने-लिखने से शऊर आता है. शऊर से काबिलियत आती है. काबिलियत से पैसे आने शुरू होते हैं. पैसों से धर्म और फिर सुख मिलता है.
हठी चैव विषादी च परोक्तं नैव मन्यते ॥
मूर्खों की पांच निशानियां होती हैं, अहंकारी होते हैं, उनके मुंह में हमेशा बुरे शब्द होते हैं,जिद्दी होते हैं, हमेशा बुरी सी शक्ल बनाए रहते हैं और दूसरे की बात कभी नहीं मानते.
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