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Class 5 Hindi Syllabus 2024-25

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The CBSE syllabus for Class 5 Hindi for the academic year 2024-25, based on the new curriculum, is available on the official CBSE website (cbse.nic.in). Students can download the latest syllabus for Class 5 Hindi in PDF format for free. This syllabus includes all the important topics and chapters for the academic year. Additionally, the Hindi syllabus for CBSE Class 5 is also available on the myCBSEguide app, a highly recommended resource for CBSE students, offering easy access to study materials, sample papers, and other helpful tools for better exam preparation.

CBSE Academics Unit - Curriculum Syllabus

CBSE has a dedicated academic unit responsible for designing the curriculum and syllabus. The syllabus for CBSE Class 5 Hindi is published by the Central Board of Secondary Education (CBSE), headquartered in New Delhi. The latest syllabus for Class 5 Hindi includes a detailed list of topics and chapters to be covered during the academic year. CBSE question papers are created in accordance with the syllabus prescribed for the current session, ensuring that students are tested on the material taught throughout the year. Adhering to this syllabus helps students effectively prepare for their exams.

CBSE Syllabus category

  • Secondary School Curriculum (class 9 and class 10)
  • Senior School Curriculum (class 11 and class 12)
  • Vocational Courses (Class 11 and class 12)

मातृभाषा के रूप में हिंदी (कक्षा 3 से 5)

तीसरी कक्षा तक आते-आते बच्चे स्कूल से परिचित हो जाते हें और वहाँ के वातावरण में घुलमिल जाते हैं। स्कूल का वातावरण और दूसरे बच्चो का साथ उन्हे हिंदी भाषा में निहित स्थानीय, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विविधातावों से परिचित कराता है। इसके अतिरिक्त वे अन्य भाषाओं के प्रति संवेदनशील भी हो जाते हें | इस स्तर पर बच्चों की भाषा से जुडे कौशलो की प्रकृति में गुणात्मक बदलाव आएगा। उनमें स्वतंत्र रूप से पढ़ने की आदत विकसित होगी। पढ़ी हुई सामग्री से वे संज्ञानात्मक और भावनात्मक स्तर पर जुड़गे और उसके बारे में स्वतंत्र ओर मोलिक विचार व्यक्त कर सकेंगे। यहाँ तक आते-आते लिखना एक प्रक्रिया के रूप में प्रारंभ हों जाता है, और वह अपने विचारो को व्यवस्थित ढंग से लिखने लगते हें ।

उद्देश्य

1- बच्चो में पुस्तकों के प्रति रुचि जागृत करना -

  • पाठ्यपुस्तक की विधाओं से परिचित होना और उससे प्रेरित होकर उन विधाओ की अन्य पुस्तके पढना।
  • मुख्य बिंदु/विचार को ढूँढ़ने के लिए विषय-सामग्री की बारीकी से जाँच करना।
  • विषय सामग्री के माधयम से नए सब्दों का अर्थ जानने की कोशिश करना।

2- पूर्व अर्जित भाषायी कोसलों का उत्तरोत्तर विकास करना

  • दूसरे के विचारों कों सुनकर समझना और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकना।
  • दूसरों के विचारों को पढ़कर समझने की योग्यता का विकास करना।
  • पठन के द्वारा ज्ञानार्जन एवं आनंद प्राप्ति में समर्थ बनाना।
  • अधययन की कुशलता का विकास करना।
  • स्वतं=ता और आत्मविश्वास के साथ लिख पाना।
  • मनपसंद विषय का चुनाव कर लिख सकना।
  • विषयवस्तु और विचारों कें प्रस्तुतीकरण में लेखन की तकनीक का विकास करना।
  • दूसरों की अभिव्यक्ति को सुनकर उचित गति से शब्दो एवं वाक्यों को लिख सकना।

3- भाषा को अपने परिवेश और अपने अनुभवों को समझने का माधयम मानना और उसका साथर्क उपयोग कर सकना।

  • कक्षा में बच्चों को बहुभाषिक और बहुसांस्कृतिक संदभो से जोड़ना।
  • बच्चो की कल्पनाशीलता और सृजनात्मकता को विकसित करना।
  • भाषा के सौदर्य की सराहना करने की योग्यता का विकास करना।

पाठ्यसामग्री

प्रत्येक कक्षा (3,4,5) के लिए एक-एक पाठ्यपुस्तक निर्धाारित की जाएगी। इन पाठ्यपुस्तकों में ही पर्याप्त अभ्यास कार्य शामिल होगा। पुस्तको की विषय-सामग्री उद्देश्यों और शैक्षिक क्रियाकलापो पर आधाारित होगी।

सामग्री का चयन कक्षा 1 और 2 में विकसित हुए भाषायी कोशल और विषयों को धयान में रखकर कियाजाएगा। कक्षा 3 4 और 5 के बच्चो को अतिरिक्त पठन के लिए भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

शिक्षण युक्तियाँ

कक्षा एक और दो के लिए सुझाई गई युक्तियो के साथ ही निम्नलिखित क्रियाकलापों का आयोजन भाषाशिक्षण के लिए किया जा सकता है -

  • बच्चों की रुचि के अनुसार परिचित विषय या प्रसंग पर चर्चा।
  • कहानी, वर्णन, विवरण आदि पर प्रश्न पूछने और उत्तर देने को प्रोत्साहित करे।
  • भाषण, वाद-विवाद, कविता पाठ, अभिनय आदि का आयोजन कराया जाए।
  • कहानी, नाटक के पात्रों का अभिनय कराया जाए।
  • अनोपचारिक एवं औपचारिक परिस्थितियों में परिचित एवं पाठ्यपुस्तक के अतिरिक्त पुस्तको सेकविता ढूँढ़ने तथा सुनाकर पड़ने के लिए कहना।
  • उचित गति एवं प्रवाह के साथ पड़ने पर बल दे।
  • दूसरों की हस्तलिखित सामग्री, पत्र आदि पढवाए जा सकते है ।
  • सरल एवं परिचित विषयों पर वाक्य, अनुच्छेद लेखन।
  • अनुभव पर आधाारित घटना का विवरण लेखन।
  • अनोपचारिक एवं औपचारिक पत्र लेखन।
  • वर्ग-पहेली भरवाना।
  • चित्र दिखाकर उस पर आधाारित कविता, कहानी लेखन।
  • संदर्भ पुस्तकों को पढ़ने तथा कठिन शब्दों को शब्दकोश में से देखकर उनके अर्थ समझने काअवसर दिया जाए।
  • अधुरी कहानी को पूरी कर सुनाने तथा लिखने को कहा जा सकता है।
  • पुस्तकालय समृधि करने हेतु प्रयास।

व्याकरण के बिन्दु

कक्षा 3

  • तरह-तरह के पाठों (पाठयपुस्तक व अन्य) के संदर्भ में और कक्षा के संदर्भ में संज्ञा, विशेषण औरवचन की पहचान और व्यवहारिक प्रयोग।
  • गणित के पाठयक्रम के अनुरूप हिंदी में संख्याएं, संयुक्ताक्षरों की पहचान।

कक्षा 4

  • तरह-तरह के पाठो (पाठ्यपुस्तक के व अन्य) के संदर्भ में और कक्षा के संदर्भ में सर्वनाम और लिंग की पहचान।
  • विशेषण का संज्ञा के साथ सुसंगत प्रयोग, वचन का प्रयोग।

कक्षा 5

  • तरह-तरह के पाठो के संधर्भ में (पाठ्यपुस्तक के एवं अन्य) और कक्षा के संदर्भ में क्रिया, कालऔर कारक चिहंनो की पहचान।
  • शब्दों के संद र्भ में लिंग का प्रयोग।

अभ्यास प्रश्नों के ही माधयम से बच्चों को व्याकरण सिखाया जाए। इस प्रकार के अभ्यास दिए जाएं जिनसे बच्चे सहज रूप से संज्ञा, सर्वनाम और शब्द व्यवस्था (पर्याय और विलोम- स्तरानुकूल) की जानकारी प्राप्त करें जैसे चाँद के पर्यायवाची सब्दों का अभ्यास कराना हो तो अभ्यास दिया जा सकता है-चाँद को तुम और क्या-क्या कहते हो?

अभ्यास प्रश्नों के माधयम से व्याकरण सीखना बच्चे के लिए नीरस, बोझिल ओर उबाऊ प्रक्रिया नही होगी।

मूल्यांकन

मूल्यांकन का उपयोग बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए किया जाता है इसीलिए पहली कक्षा से बारहवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन पदत्ति ही श्रेष्ठ पदत्ति है। जैसाकि पहले कहा जा चुका है कि पहली और दूसरी कक्षा में मूलयांकन बच्चों की गतिविधिायों के अवलोकन के आधाार पर किया जाना चाहिए एवं उन्हें पता भी नहीं होना चाहिए कि उनका मूल्यांकन हो रहा है।

तीसरी से पाँचवीं कक्षा के मूल्यांकन में थोडा बदलाव होगा और इस स्तर पर कुछ औपचारिक मूल्यांकन भी किया जाएगा। यहाँ बच्चो को पता होना चाहिए कि उनका मूल्यांकन हो रहा है। लेकिन यह प्रक्रिया उनके मन में डर पैदा करने वाली न हो। सत्र में कई बार छोटी-छोटी लिखित और मोखिक परीक्षाएँ ली जाएं न कि एक ही बार।

मूल्यांकन करते समय शिक्षक द्वारा बच्चे की प्रगति की तुलना किसी पूर्व कल्पित मापदंड से न की जाए उनकी प्रगति का लगातार ओर सूक्ष्म आकलन किया जाए ओर प्रत्येक बच्चे का रिकाड रखा जाना चाहिए जिसमें शिक्षक को हर सप्ताह या पखवाडे में प्रत्येक बच्चे की प्रगति के बारे में टिप्पणी लिखनी चाहिए।

शिक्षक को बच्चो की विभिन्न गतिविधिायो पर धयान रखते हुए उसकी प्रगति की जाँच करनी चाहिए,जेसे-कक्षा में परिचर्चा में भाग लेते हुए, छोटे समूह में काम करते हुए, कापियाँ या दूसरी जगह पर लिखितकार्य करते हुए आदि।

प्राथमिक कक्षाओ में भाषा ज्ञान की उपलब्धिा बच्चो का न केवल भाषा विशेष में प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती है वरन अन्य विषयों के अधययन को भी साथ र्क रूप से प्रभावित करती है। अतः मूल्यांकन करते समय निदानात्मक पक्ष पर विशेष धयान देना जरूरी होगा और उसके अनुसार उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था उपयुक्त समय पर की जानी चाहिए।

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